________________
भगवनी मूत्र-श. १८ उ. ४ कृतादि युग्म चतुष्क
२६९७
अजहण्णमणुक्कोसपए सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा। एवं जाव चतुरिंदिया। सेसा एगिदिया जहा बेंदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जाव वेमाणिया जहा णेरइया । सिद्धा जहा वणस्सइकाइया।
भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक कृतयुग्म हैं, व्योज हैं, द्वापरयुग्म हैं, या कल्योज हैं ?
. ४ उत्तर-हे गौतम ! वे जघन्य पद में कृतयुग्म हैं और उत्कृष्ट पद में व्योज हैं तथा अजयन्योत्कृष्ट (मध्यम) पद में कदाचित् कृतयुग्म यावत् कदाचित् कल्योज रूप होते हैं । इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक कहना चाहिये।
५ प्रश्न-हे भगवन् ! वनस्पतिकायिक कृतयुग्म यावत् कल्योज रूप हैं?
५ उत्तर-हे गौतम ! वे जघन्य और उत्कृष्ट पद की अपेक्षा अपद है, अर्थात् उनमें जघन्यपद और उत्कृष्ट पद सम्भव नहीं है। अजघन्योत्कृष्ट पद की अपेक्षा कदाचित् कृतयुग्म यावत् कदाचित् कल्योज रूप होते हैं।
६ प्रश्न-हे भगवन् ! बेइन्द्रियों के विषय में प्रश्न ?
६ उत्तर-हे गौतम ! वे जघन्य पद में कृतयुग्म हैं और उत्कृष्ट पद में द्वापरयुग्म हैं । अजघन्यानुत्कृष्ट पद में कदाचित् कृतयुग्म यावत् कदाचित् कल्योन होते हैं। इस प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय तक कहना चाहिए । शेष एकेन्द्रियों का कथन बेइन्द्रियों के समान है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिक यावत् वैमानिक तक का कथन नरयिक के समान है। सिद्धों का कथन वनस्पतिकायिक के समान है।
७ प्रश्न-इत्थीओ णं भंते ! किं कडजुम्मा० ?
७ उत्तर-गोयमा ! जहण्णपए कडजुम्माओ, उक्कोसपए कड. जुम्माओ, अजहण्णमणुकोसपए सिय कडजुम्माओ जाव सिय कलि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org