Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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२०
षट्प्राभूते
जह मूलाओ खंधो साहापरिवार बहुगुणो होई । तह जिणदंसणमूलो णिदिट्ठो मोक्खमग्गस्स ॥ ११॥
यथा मूलात् स्कन्धः शाखापरिवारो बहुगुणो भवति । तथा जिनदर्शनं मूलं निर्दिष्टं मोक्षमार्गस्य ॥ ११ ॥
[१.११
( जह मूलाओ ) यथा मूलाद् 'वृक्षमूलात् कारणात् । ( खंघो ) स्कन्धः शाखा - aft प्रकाण्ड: । ( बहुगुणो होइ ) प्रचुरगुणो वृद्ध्याद्यतिशयवान् भवति । तथा : ( साहापरिवार ) शाखापरिवारश्च लतास्वरूपी कटप्रश्च बहुगुणो भवति पत्र-पुष्पफलादिमान् भवति । दृष्टान्तो गतः । इदानीं दान्तमाह - ( तह मूलो णिद्दिट्ठो मोक्खमग्गस्स ) तथा तेनैव वृक्षमूलप्रकारेणैव मोक्षमार्गस्य मूलं सम्यग्दर्शन -ज्ञानचारित्रलक्षणस्य मोक्षमार्गस्य मूलं कारणम्, ( जिणदंसणं ) जिनदर्शनं मूलं निर्दिष्टं श्रीगौतमस्वामिना कथितम् । श्रीमूलसंघो मोक्षमार्गस्य मूलं कथितम्, न तु जैनाभासादिकम् । किं तत् ? पञ्चैते जैनाभासाः -
गोपुच्छिकः श्वेतवासा द्राविडो यापनीयकः । निष्पिच्छश्चेति पञ्चते जैनाभासाः प्रकीर्तिताः ॥
ते जैनाभासा आहारदानादिकेऽपि योग्या न भवन्ति । कथं मोक्षस्य योग्या भवन्ति ? गोपुच्छिकानां मतं यथा, उक्तञ्च
गाथार्थ - जिस प्रकार मूल अर्थात् जड़ से वृक्ष का स्कन्ध और शाखाओं का परिवार वृद्धि आदि अतिशय से युक्त होता है उसी प्रकार जिनदर्शन - आर्हत मत अथवा जिनेन्द्र देव का प्रगाढ श्रद्धान मोक्षमार्ग का मूल कहा गया है । इस जिनदर्शन से ही मोक्षमार्गं वृद्धि को प्राप्त होता है ॥ ११ ॥
विशेषार्थ - जिस प्रकार मूल से वृक्ष का तना वृद्धि को प्राप्त होता है और मूल से ही वृक्ष की शाखाओं और उपशाखाओं का समूह पत्र, पुष्प तथा फल आदि से युक्त होता है उसी प्रकार जिनदर्शन हो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र रूपी मोक्षमार्ग का मूल कारण है - इसी से मोक्षमार्ग वृद्धि को प्राप्त होता है, ऐसा श्री गौतम स्वामी ने कहा है ।
संस्कृत टीकाकार ने मूलसंघ को मोक्षमार्ग का मूल कहा है तथा अन्य जैनाभासों का निषेध किया है । वे जैनाभास कौन हैं ? इस प्रश्न
१. वृक्षस्य मूलात् म० ।
२. कि तज्जैनाभासं ? उक्तञ्च म० ।
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