Book Title: Jain Subodh Gutka
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कककककका ) : .. बन्दे वीरम् जैन सुबोध गुटका . ", R " P 鄉郊长长长长长长长长长长长长长长长长长长长长 रचयिता कविवर सरलखमावी पण्डित मुनि श्री हीरालालजी महाराज सुशिष्य प्रसिद्धचक्ता पण्डित मुनि श्री चौथमलजी महाराज . प्रकाशकश्री जैनोदय पुस्तक प्रकाशक समिति, रतलाम.. चतुर्थावृत्तिः । मूल्य वीराब्द २४६० । EN २००० बारह पाना (विक्रमाब्द १६६० RRRRRRRRRRRthe RCR AAVAAD FACHARAKRIER 1601 AC-AAPARAMPARANA SARKAARYAARARH Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकः-- मास्टर मीश्रीमल ___-मैत्री:-श्री जैनोदय पुस्तक प्रकाशक समिति, - स्तलाम DE AUTH --14 मुंद्रकमैनेजर-श्री जैनोदय प्रिंटिंग प्रेस, रतलामः । Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. निवेदन। Dec1 . प्रिय पाठको..आप यह अच्छी तरह से जानते हैं कि कविवर सरल स्वभावी पण्डित मुनि श्री हीरालालजी महाराज के सुशिष्य जगत्, पल्लम प्रसिद्ध वक्ता पण्डित मुनि श्री चौथमलजी महाराज ने केवल ललित ही नहीं, किन्तु प्रभावशाली और अति ही सारगर्मित ध्याख्यानों द्वारा संसारी जीवों के साथं अनेकों उपकार समय समय पर किये, तथा श्राज भी उसी प्रकार करने में लगे हुए हैं.। इन उपकारों को यहां दर्शाने की न तो हमारी मनशा हैं और न हमारे में इतनी सामर्थ्य है। 1 जब मुनि,प्रवचन करते हैं उस के वच बीच में आप अपने बनाये हुए उपदेश जनक पदों को कह कर, जनता का.चित्त धर्म मार्ग की ओर आकर्षित करते है। वे पद समय पर पृथक् पृथक् और छोटे छोटे पुस्तकाकारों के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं । तथापि इससे जनता का मन संतोष नहीं हुआ, उनका इससे भूख न बुझी । जनता चाहती थी कि एक ही जगह बैठकर अापके अभी तक के सभी स्तवनों के अमृत मय रस को पान करने का, एक ही समय में मजा चख सके । तब हमने साहित्य प्रेमी पण्डित मुान श्री प्यारचन्दजी महाराज से आग्रह किया । बस यह उन्हीं मुनि श्री की कृपा का सुफल है मुनि श्री के रचे हुए जितने भी स्तवन नये और पुराने, हम आज तक मिले, हमने उन्हें इस संग्रह में रखने की ओर भरपूर चेष्टा की है। ___इस में आपके सुख के साधन है, मन संतोष का मसाला है, परलोक को विगाव देने वाले कार्यों का कथन है, लोक और परलोक को सुधार ने के साधनों का सम्मिश्रण है, जन्म और मरण के दुख ददौ की ओर आपका ध्यान दिलाया गया है, और जगत् की धांधली में यम दूतों की कठोर करतूतों का वर्णन कराया गया है । इतना सव होने पर भी, एक Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वात आपके बड़ी ही तवियत के लायक इस में है, और वह है, सम्पूर्ण संग्रह आपकी निजु घरेलू और बोल चाल को भारताय भाषा में होना, जिससे कि बाल वृद्ध नर नारी सव पड़ सुन कर एकसा लाभ इससे उठा सकें। थोड़े ही समय में इस पुस्तक के चार संस्करण निकल चुके इससे " इसकी उपयोगता के विषय में हमें कोई बोलने-लिखने की. विशेष श्रावश्यकता नहीं। . .. - भवदीय . मास्टर मिश्रीमल ‘मंत्री श्री जैनोदय पुस्तक प्रकाशक समिति रतलाम ( सालवा) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाराद्यनुक्रमणिका पृष्टाङ्क -३०५ २६६ २१६ १६१ १३३ सं० .. श्रए पियारो मत बिगाडी । २ ए मन मेरारे ३ अंकल तेरी गई किधर .. ४ अकल भ्रष्ट होती पलंक . ५ अंगरे पाराम चाहंत हो ६ अंगर चाहं श्राराम ७ आग को जला जला के .. ८ अच्छी सोबत मिली पुण्य ६ अजल का क्या भरोसा.हे १० अजव तमासा कर्म संग ११. अजि भांग पियोतो मारे १२ अब खोल दिल के चश्म , १३ अब तो नहीं छोडांगां: , १४ अंबं पाके मानव भव रत्न १५ अब लगा खलक मोये १६ अभिमांनी प्रानी डर तो १७ अमर कोई न के जी १८ श्रय जवानो चेतो १६ अय जवानो मानो मेरी २० श्रय दिला दनिया फना. २१ अयोध्या नगरी को २२ अरे जाती है बीती यह २३ अरे जो श्वास आता है : . २४ अरे देखी तुमारी अकल. २५ अरे रहनेभी क्यों २६ अरे सत्सङ्ग करने में ' २७ अर्ज पर हुक्म श्री । • 9 ७३ १२० ५२ १९४ १३४ १२८ १७६ १० Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (28 सं० पृष्टाङ्क २६३ २४६ २० २८० ७६ ३०० २३८ ६५ २८ अर्ज मारी साभलो हों के . २६ अर्ज मारी सांभलो हो के सा ३० अर्ज मारी सुनियो सय. ३१ अवतार लिया जब भारत ३२ अहो अांदसर भाषे ३३ अहो मारी मानो मानो ३४ अहो मुझ धन्धव प्यारा प्रा . ३५ श्राए रूप मुनि का कर के ३६ श्राए वेद गुरुजी लेलो. ३७ प्राकवत के लिये तुझको ३८ आकबत के वास्ते ३६ श्राकवत से डर जरा तूं . ४० आखिर जाता छिटकाई है ४१ आज दिन फलियोरे . . ४२ आठों पहर धंधा में . ४३ आदत तेरी गई विगड़ ४४ आनन्द छायोरे ४५ श्रावरू बढ़ जायगी ४६ श्राया रामचन्द्र महाराज ४७ श्रार्ज की नैया डूब रही . . ४८ श्रावोजी श्रावो चिदानन्द . २८८ ४६ इज्जत तेग बढ़ जायगी ५० इन्ही पापियों ने देश माया Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) सं०.. पृष्टा . . ३२७ “७१ - २८४ '५१ इन्हें तुम त्यागियोरे :...... '५२ इल्म पढ़ले अय दिला ५३ इस्क उससे लग गया ५४ इस कर्म संग जीव .५५ इस कलि काल के बीच ५६ इस जगत के बीच :५७ इस तरफ तूं कर निगाह." " ·५८ इस दुनियां के पड़दे से . ..:५६ इस पाप कर्म से किस : ' . ६० इस फूट ने बिगाड़ा :: ६१ इस हराम काम बीच ६५ २८९ ३२८ २१६ ६२ उज्वल नीति की रीति ६३ उठा के देखो चशम . . ६४ उठो बादर कस कमर ६५ उठो बादर मिटावो फूट . ७४ ७२ ૭૨ ६६ उत्तम नर तन पाय " ६७ उमर तेरी सगगगग ६८ उलज जाते जा बेढंग स ६६ उलट चलने लगी दुनिया । ७० उसे मानो धारनी नार . ऋ:.. ७१ ऋषभ प्रभु मांगू मोक्ष को १०६ २६६ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. (४) पृष्टांक . ३०१ . २१६ . ११७ ' . २५ २०४ 1:७२ एक दिन कजा जब आयगी "७३ एक धर्म साथ में . . •७४ ऐ दिल मौका ऐसा ७५ ऐसी देह पाई भजो .७६ ऐसी. पतिव्रता मिले ९७७ ऐसे कुल लजावन ७८ ऐसे चतन को समझाना.. .७६ ऐसे भाग्य उदय सुबुद्धि । ५० ऐसे विनाश काले विपरीत क का का क्या भरोसा है ८२ कदर जो चाहे दिला ८३ कन्या पिता ले जाकर ८४ कन्या वेचो न शिक्षा ८५ कबज कर लो युवानी को ८६ कबतक हम समझावें । ७ कभी चाह की चाह ८ कभी जालिम फला फूला 'E कभी नेकी से दिल को १० कभी नैनों से पार ११ कभी भूल किली को । .६२ कभी भूल तमाखू '६३ कभी भोगों से इस दिल १४ कभी होटल में जाकर • १५ कम मत जानियोरे . ::६१ ।। ६३ ३१७ २६५ ३१६ ३३६ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . सं० क ६६ कर धर्म ध्यान ले सीख ६७ करना जो चाहे करले = कर सत्संग ऐ चेतन ६६ करे जो कब्ज इस दिल १०० करो कुछ गौर दिल अन्दर १०१ करो कोशिश ज्ञान पढ़ाने को १०२ करो दिल में जरा विचार १०३ करो ने की बदा जहां में १०४ कर्म गति कहियन जावे १०५ कर्म गति भारीरे १०६ कर्मन की गत ज्ञाता १०७ कलि युग छायोजी '१०८ कसूर मेरा माफ करो १०६ कहती है भूमि भारत ११० कहां लिखा तूं दे बता १११ कहूं पंचम आरे का बयान ११२ कहे तारा अर्ज गुजारी ११३ कहे राम सुन, लक्ष्मण ११४ कहे सीता सुनो रावण ११५ कहे श्रीराम भरत ताई + ( 2 ) . ११६ काया कर जोड़ी कहरे ११७ काया काचीरे २ कर - ११८ काया शारीरे पर पुद्गल ११६ काल पकड़ ले जाता है १२० किल भरोसे रहे दिवाना "१२१. किससे तूं करता है प्यार 4 पृष्टांक २३३ ५६ ७६ २७६ २३० ९६३ १२१ २३१ ४७ २६६ २१० ६४ २७२ १५८ १४६ ३८ ११४ १२४ २०६ २०६ १०८ ३६ ६० Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्टाक १४७ २१७ २२५ .१४७ .१७६ ३२१ क . .१२२ कुचाल चतुर तज दीजो... .. १२३ केवल तेरे धर्म सहाई . १२४ कैसा आया यह कलियुग १२५ कैसा आया यह काल . १२६ कैसा यह कर्मों का खेल: . . १२७ कैसा बुरा हुक्के का शोक: १२८ कैसी विश्व की रेल बनी.. १२६ कैसे इज्जत रहे तुमारी १३० कैसे बीर कजा के हुकम में. .१३१ कोई नर ऐसा पैदा होय ' १३२ क्या अमोल जिन्दगी का . १३३ क्यों गफलत के बीच में । १३४ क्यों गफलत में रहव दीवाना. .. १३५ क्यों तूं इतना अकड़ के १३६ क्यों तूं भूला झूठा संसारा. १३७ क्यों पाप कमावरे १३ क्यों पाप का भागी बने. १३६ क्यों पानी में मल २ न्हावरे ५४० क्यों प्राणी के प्राण सतावरे १४१ क्यों बुराई पै तेने बान्धी- . १४२ क्यों भूला संसार यार . १४३ क्यों भुल्यो प्रभुको नामा .. १४४ क्यों सोये भर नीन्द में . . , १६६ .२०२ .१८३ २८५ २४६ २४० १८५ २५१ २-३ १५५ गम खाना चीज बड़ी है: १४६ गुणों का धारी .. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्टाङ्क २५७ १४७ गुरु तीरने का मार्ग १४८ गुरु मुझे ज्ञान का प्याला १४६ गौतमजी कर अभिमान '२४ ३०७ २२५ २१० २८७ ''२७५ १५० चतुर न कीजो संग चौथा १५१ चले जाओगे दुनिया से १५२ चाहे अगर आराम तो तूं १५३ चाहे जाओ दिल्ली कोटा १५४ चाहे जितनी तूं तजबीज '. १९५५ चेत चेत रे चतुर २५६ चेतो चेतोरे चेतन मिली १५७ चेतो तो जल्दी चेतलो १५८ चेतन अब चेते अवसर •९५६ चेतन निज स्वरूप ९६० चेतन थारे २ नहीं चेते १६१ चेतन दुनियां में देखो . १६२ चेतन पाके मनुष्य जन्म ९६३ चेतन यह नर तन .१९५ २४७ २०० : ३३४ ૨૭. पत १६४ छोड़ अज्ञानीरे १६५ जगत के बीच नारी की २६६ जब गया बुढ़ापा बाई है १६७ जाग बटाऊ क्यों करे मोड़ो । २६ जाती है उन तुम्हारी Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८ ) . सं. ज .१६६ जिया गफलत की नीन्द .१७० जिया साथ क्या यहां से १७१ जीवराज येतो श्राच्छो १७२ जीना तुझे यहां चार १७३ जुधां खेलों नं शिक्षा १७४ जो आनन्द मङ्गल चात्ररे खुद १७५ जो इतनी मस्ताई है १७६ जो हो नहीं समझा १७७ जो जोवन के हो मदमाते १७८ जो धर्म वीर पुरुष है १७६ जो पर की करे वुराई है १८० जो ब्रह्मचर्य घरता है - १८१ जो वर्तमान पढ़ाई है १८२ जो हो मोक्ष के बीच में १८३ जो होवे सच्ची नार ติ १६४ तजो तुम रात का खाना १८५ तजोरे जिया भुंठो यो संसार १८६ तपकी झुले छे तल १८७ तला से कहां उसे ढूंढे १८८ तारीफ फैले मुल्क में १८६ तीनों की फक्त लड़ाई है १६० तुझे जिना अगर दिनं १६१ तुभं देवे सद्गुरु ज्ञान : १९२ तुम द्वेषता वजीरे . पृष्ठाङ्क ३२३ २८ ४२ ५६ २३४ २६७ १३५ १७२ २७४ २१४ १४० २११ १३७ ३.१५ १६५ १०६ ११८ ३११ ८२ २६ १०६ १०७ १६८ .३०५ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ( . ह ) : सं० ส १६३ तुम्हें यहां से एक दिन १६४ तुम रहना यहां होशियार.. १६५ तुम्हारी देख के आदत १६६ तुरत रघुनाथजी आकर १६७ तूं है कौन यह ज्ञान -१६८ तेने बातों में जन्म गमायारे १६६ तेरा चेतन: यह नर तन - २०० तेरे दिल का तूं भ्रम '२०१ तेरे दिल में तो वह '२०२ तोकों वार वार समझाऊँरे '२०३ तोकों वार वार समझाऊँ हो - थ २०४ थांरो नरभव निष्फलं जाये '२०५ तो सांचा बोलो बोल २०६ तो सुणजोए वा वा า २०७ थोड़े जिने पे क्यों तूं गुमान द २०८ दया करने में जिया लगाया. २०६ दया करो २ संब भारत २१० दया की वो लता शुभ २११ दया क बिदुन ए. ब्रादर २१२ दयां को पाले है बुद्धवान 4 " २१३ दया को लेवे दिल में धार २१४ दया धर्म का डंका दुनियां २१५ दया धर्म का परिचय ' पृष्टाङ्क ३३७ २४४ २७८ १७ ३३३ ७७ १७४ ३३१ ३२० १४ २६ : ४६ ४३ ५५ ३३६ १२८ ३२६ २ १०४ २१३ १६२ २७६ ३१२ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) पृष्टाङ्क :-२६५ :५३ १५० ३१८ : ६७ ३३० '५५ १.१३ ३३ २१६ दया धर्म जो करे उसीका : .:२१७ दया नहीं लावेरे २ पापी, ::: २१८ दयालु भैया मरे बे अपराध ..: . २१६ दान नित्य कीजरे २ अणी:: .. २२० दारू भूलके पीने न जाया करो, : २२१ दिल अपने में सोचो . २२२ दिल के अन्दर है खुदा . २२३ दिल में रखो विश्वास २२४ दिल सताना नही रवा २२५ दिल गाफिल न रहे : २२६ दीजो दान सदारे २ दीजो . २२७ दुनियां के बीच श्राय २२८ दुनियां तो मतलव की यार २२६ दुनियां मतलब की यारीरे.. २३० दुनियां में कैसे वीर थे २३१ दुनियां से चलना है २३२ दुनियां स्वपने सी जान' २३३ दुर्लभ नरका यह जन्म । २३४ दूर हटावो जी मच्छरता २३५ देकर सद्बोध जगाया ; २३६ देखी सुखुबी और की । २३७ देखो सुजान सट्टेने २३८ देता हूँ ज्ञान की ब्यूगल : १६३ રૂરરૂ ३३८ રર૦ ३०३ १९८. १०० ९५६ २३६ नर तन अमुल्य प्राणी : २४० नैनन में पुतली लड़े । :२३ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९) ૨૨૭ पृष्टीत . २४१ पंछी काहे को प्रीत लगावे " - २४२ पर त्रिया से प्रेम लगाओ .. ३०१ .२४३ पयूषण पर्व श्राज श्रायाः । .२५६ २४४ पलकर श्रायु जायरे चेतनियों: . . . १२३ २४५ पहिनों २ सखीरी ज्ञान गजरा २४६ पापिनी ममतारे ममता .११३ २४७ पापी तो पुण्य का मार्ग २६ २४८ पापों से मुझे छुडादोरे २४६ पा मौका सुकृत नहीं करता . १६६ २५० पाथ अव मनुष्य को . २६७ २५१ पावे न कोई पार श्रीकृष्ण १७८ २५२ पिया की इन्तजारी में २५३ पिया गैरों से मोहबत २४३ २५४ पिया रंडी के जाना मना । २३७ २५५ पुरुषारथ से सिद्धि २५६ पूछे बिभिषण हित ।। . २५७ पैदा हुश्रा है जहां में: . ३०४ २५८ प्यारे गफलत की नीन्दः २७३ .. २५६ प्यारे दया को हृदय लो २६२ २६० प्यार हिन्दू से कहना . .१३० - २६१ प्रभु कीजे रक्षा हमारीरें ... २६२ प्रभु के भजन बिन कैसे . २६३ प्रभुतेरी कृपा से बल ..४० २६४ प्रभु ध्यान से दिल को .२६५ प्रभु मुझे मुक्ति के म में .२२६ .२६६ प्राणीया कैसे होवेगा । • ४२ : २३४ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) पृष्टाङ्क '७८ २६७ प्राणी परदेशी अमर २६८ प्रीतम अवला की अरदास २६६ प्रीतम से पदमण नित्य २७० प्रीत पर घर मत कीजेरे · २७१ फँसा जो पेश के फन्दे । - २७२ फानी दुनियां में कोई . २७३ फायदा इस में नहीं • २७४ फूट तज प्राणीरे . . २७५ बन्द करो बन्द करो . .२७६ बहिनों शिक्षा पर ध्यान .२७७ बायां सुतर सुणोए . २७८ बेटियां बोले छे उसवार . . २७६ भवसागर में पापी की नैया ર૪૨ २८० मंदोदरी कहे यूं कर . २८१ मत कीजो चोरी कहे . २८२ मत कीजो दगा समझाते २८३ मत फीजो नशामुख । २८४ मत कीजो सट्टा २ २८५ मत चाह की चाट २८६ मत दीजो चतुर नर २८७ मत पड़ मोहनी के फंदरे . २३५ ...१०३ '. ३१० : १४१ • २२४ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) ! सं मत पक्षी तूं बाग में २८ मत पड़ त्रिया के फन्द २६ मत बेबी कन्या को २६१ मत भूल मेरे प्यारे २६२ मत लूटो तुम जीवों के २६३ मति लीजेरे बदनामी २४ मथुरा में आकर जन्म २६५ मना तूं भजतेरे भगवान् २६६ मना रात का खाना २६७ मना समझो अवसर २६६ मनुष्य जन्म अनमोल २६६ मनुष्य जन्म को पायके ३०० मनुष्य पशु से श्रेष्ठ ३०१ मनुष्यों की जिन्दगी ३०२ महावीर का फरमान ३०३. महावीर जिनेश्वरा ३०४ महावीर ने अहिंसा का ३०५ महावीर से ध्यान ३०६ महिमा फैलीरे असी ३०७ माता कहे उसवार ३०८ माथे गाजेरे या फोज ३०६ मान मत करना कोई ३१० मान मन मेरा कहा ३११ मान मन मेरा कहा ३१२ माना हुआ है सुख ३१३ माने मात पिता की पृष्टीक २४१ १२६ २५२ १४१ ६६ ३.११ २६६ १५६ ३०८ ३२ ર २७४ २८६ १४३ ३ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्टाई . :१३ २६४ ... । . . . .mi .. ३१४ मानो यह कहन हमारीके ३१५ माया दुनियां की है ३६६ मारा वीर प्रभुका ३१७ मारे मन्दरिये वेरखने ३१८ मालिक का सुनलो ३१६ मांस अभक्ष नर का ३२० मिली कैली अमोल ३२१ मिले गर वादशाही तो ३२२ मिले पाप उदय कुलक्ष । ३२३ मुगत में सुख है ३२४ मुझे कौन बतावेमा ३२५ मुझे गुरुजी बतावेगा ३२६ मुझे भूल के जालिम ३२७ मुद्रा मुझर की ३२८ मुनाफर यहां से ३.६ मेरा ता धर्म कहने का ३३० मेगापि गिरनारी ३३३ मग प्याग सात राजु ३३२ में से करूं असर ३३ में कैसे करूं अररर ३३४ मतो आई शरण ३३५ भैतो मूंजी छु साहुकार ३३६ मतोही आँगुन गारो ३३७ मैं दिलोजान से कहतीरे ३३८ मने अच्छी तरह से ३३६ मोटाने एवो करवो 380 मोरा दे मैया प्यारा mammy ४ ११६ १२४ રૂર १२६ १२० २०७ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भृष्टाक ३०६ ६४४ २१२ ३४१ यह अधम उधारन जन्म ४३४२ यह इश्क बुरा पर नार का ३४३ यह तारा रानी प्राण से ३४४ यह मनुष्य जन्म पुण्य : "३४५ यह मोह संतान की जाई । ३४६ यह सद्गुरु सीख सुनाई १३४७ यह सदा एकसी नाय.. : ३.३४८ यह सातों व्यसन बहुत ३४६ या नवधा भक्ति धारो । ..३५० याही की याही की बात... ३५१ ये कर्म दलं को तोड़ने में NUMAN २०७ २५२ रसना सीधी बोल ३५३ रहम करले अय दिला ३५४ राजन मानरे मान मान १०३ १२६ ९९९ '३५५ लगाओ ध्यान प्रभु .. ३५६ लगा जो तीर लक्ष्मण के 3५७ लगाता दिल तूं किसपर ३५८ लछमन अर्ज करे हित । ३५६ लाओजी लामो तुम ३६० लाखों कामी पिट चुके ३६१ लाखों पापी तिर गए '३६२ लाखों प्राणी तिर गए। ३६३ लाखों व्यसनी मर गए। - ७ ४६ २८ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ :२२७ ३६४ लीजे देश सुधार .. ३६५ लेकर चुडामणी हनुमान.. हलेसंग बरचीरें ३६७ लो तन को धोए क्या .. ३६८ लोभ जबर जगत में :. ::२०३ २४३ १५४ ७० ७४ ३६६ वक्त हरगिज न सोने की ३७० वय पलटावरे या ३७. वही शूरवीर जो इस ३७२ वारी ज कंजी सत गुरु ३७३ विद्या पढ़ने में जिया : ३७४ विवेकी होन टेकी हो.' ३७५ विषम वाट ने उलंघने ३७६ विषय अनरथ कारी , ३७७ वर ने फामा दिया. .. ३७८ वीर प्रभु का मतो , ३७६ व्यसन बाज सातों की २२३ २६२ ...२६८ . ३८० शान्तिः जिनन्द्रजी श्रो:: .:३८१ शान्ति शान्ति शान्ति ३८२ शुभा शुभा जो किये ३८३ श्यां दिल हो जायगा : १.३८४ शिक्षा धारियो रे ::३८५ श्री ऋषभ देव भगवान ९ श्री बीवीसी जिनराज .. ८० ३२५ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) . २६४ ३३८७ श्री जादुपति महाराज .. ३८८ श्री वीर प्रभु से विनति : ३८६ श्री श्री महावीर गुण धीर , ३६० श्री संघ से विनय कर के "२६७ :२२२ ३१६ १४४ ३२४ १२३ १३६१ साल मंगर को जानो ३६२ सखी गिरनारी की । १३६३ सखी बात पर क्यों न ३६४ सखी मान कहन तू . . .३६५ सखी सत्य देऊं मैं ..३६६ सख्त दिल हो जायगा : .३६७ संगत कर लेरे साधु की ३६८ सच्चे देव वही दुम जानो :३६६ सज्जन तुम नेकी कर लेना ४०० सज्जन तुम झूठ मत बेलो. . ४०.१ सज्जन तेरी उन्न जाती ४०२ सज्जन मत बाम्धा कर्म ४०३ सती सीताजी धीज करे । ४०४ सत्य कठिन करारी ४०५ सत्य कभी तजना नहीं - - ४०६ सत्य घरजो सब मानवी .' '४०७ सत्य धर्म धारोरी बहना ...' ४०८ सत्य बात के कहे बिना ४०६ सत्य मत हारणारे । ४ . सत्य शिक्षा सुनता नाहीं.: ४११ सदा जो धर्म पर रहती : - १६४ • ६१ . ४८ १९०४ ५६४ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .()) : सं० स ४१२ सदा यहां रहना नहीं : -४१३ सद्गुरु देवे ज्ञान जन ४१४ सन्तानुगग का नहीं ४१५ सब नर धारोरे ४६ सब तत्तब को संसार : ४१७ सब से बढ़ा ज्ञान ४१८ सवर नर को श्राती नहीं : ४१६ सर्व पापों बीच में - ४२० सर्वो परिहित कारिणी है ४२१ साथै आसीरे सुन “ ४२२ साफ हम कहते तुझे : ४२३ सांभल हो गौतम ४२४ सांभल हो श्रावक *४२५ सासुजी थांकी बड़ी '४२६ सिया को सासुजी लेंक ४२७ सिया दूंगा नहीं हाँ ४२ = सिवा सीता तेरे बोले ४२ सीख सतगुरु ने क्या ४३० सीता प्रीतम दो पांछी - ६३१ सुकून कररे माया :: ४३२ सुख सम्पत की गर - ४३३ सुगड़ मानवी हो के ४. ४३४ सुगुरु संघ धार धाररे ६. ४३५ सुन मनुवा मेरा ध्यान " : - ४३६ सुन लखन उठे जोश :. पृष्टङ्क ya. • १.६५ ११६ · २६६ ११२ २६२ ६१ २६३ ३० २० ૨૦ २६० २५६ २६३ ५२ ३०२ .१.१४ १५२ ११६ . ६२७ २८१ २४८ ÷२१५ २९१ ७३६ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) सं० पृष्टांक १६० १७१ १४५ ४३७ सुनरे तूं चेतन प्यारे ४३८ सुनिये प्रभु विनय ४३६ सुनो रावण मेरी ४४० सुनो सब जहां के ४४१ सुनो सुजान सत्य की ४४२ सुन्दर झूो जग लियो । ४४३ सुन्दर सांचीए २ जो पति ४४४ सुन्दर हित की दूं मैं .. ४४५ सुमति जव श्रादेगा ४४६ सुयश लीजरे २ मनुष्य : ४४७ सेलानी जीवड़ा क्यों हूं ४५८ सोये हो किस नींद में ४४६ सोच दिल में जर... ४५० सोच नर इस भूठ से" ४५१ सोबत सन्तन की ऐसी . ४५२ संयम धारी महाराज ४५३ संसार है असार तूं ४५४ स्वामी मेरा कैसा जबर २५० २२५ २०० २८४ १३५ २५३ २०५ १६७ २६० ४५५ हे प्रभु पार्श्व जिनन्द ४५६ हो मार्गमानो क्यों नहीं ४५७.हो सरदार थेंतो दारुड़ा ४५८ हंसजी आठ कर्म के ४५६ सजी थे मत जावो १८२ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I 4 .4s P RIL '. . . H FE+ '1111PTHIN Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसौधर्मगच्छीयहुक्मीचन्द्रजित्सूरिश्चरेभ्यो नमः । सर्वज्ञाय नमः जैन सुबोध गुटका मंगलाचरण. दृष्ट्वा भवन्तमनिमेप विलोकनीयं, नान्यत्र तोपमुपयाति जनस्य चक्षुः । पीत्वा पयः शशिकरद्युतिदुग्धसिंधोः, क्षारं जलं जलनिधे रशितुं क इच्छेत् ॥ १ ॥ १ वीर स्तुति. ।नाटक। महावीर जिनेश्वरा, सकल सुखकरा । विधन हरण शांति करण, अपरिपु हरा ॥ टेर । सिद्धार्थ के नन्द आप छो, ब्रशला देवी मात । क्षत्री कुल में जन्म लिया है, तीन लोक विख्यात || महा० ॥१॥ वर्षीदान दे संयम लीनों,पाम्या केवल ज्ञान । मुनि तपीश्वर सुरनर किन्नर,सेवा करे नित्य पान ॥ महा० ॥२॥ अधिक चन्द्र से निमल छो तुम, रवि से अधिक प्रकाश । सागरवर गंभीर आप छो, Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) जैन सुबोध गुटका । पूरो दास की आश ॥ महा० ॥ ३॥ कल्पवृक्ष हो कामधेनु, चिन्तामणि रत्न समान । जहां जावें हो विजय धर्म की, ऐसा दो वरदान || महा० ||४|| असी साल चेत सुदी एकम, किजे प्रभुजी निहाल | गुरु प्रसादे चौथमल कहे, सेलाना गुणमाल || महा० ॥ ५ ॥ २ दया का फल. तर्ज- या हसीना बस मदीना, कर्बला में तूं न जा ॥ दया की बोवे लता, शुभ फल वही नर पायगा । सर्वज्ञ का मंतव्य है, गर ध्यान में जो लायगा ॥ टेर ॥ श्रायु दीर्घ होता सही, अरु श्रेष्ठ तन पाता वही । शुद्ध गौत्र कुल के बीच में, फिर जन्म भी मिल जायगा ॥ १ ॥ घर खूब ही धन धान्य हो, अति वदन में बलवान हो । पदवी मिले है हर जगह, स्वामी बड़ा कहलायगा || २ || आरोग्य तन रहता सदा, त्रिलोक में यश विसतरे । संसार रूप समुद्र को, आराम से तिर जायगा || ३ || गुरु के परसाद से, यूं चौथमल कहता तुम्हें । दया रस भीने पुरुष के, इन्द्र भी गुण गायगा ॥ ४ ॥ ३ मिथ्या ममत्व. तर्ज-लावणी कर धर्म ध्यान ले सीख गुरुकी मानी । क्यों सटर : पटर में, खोवे सारी जिन्दगानी || टेर || तु धंधा बीच "में, : अधा होके डोले । पैसे के नशे में श्रांखें भी नहीं खोले । " Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (३) कोई कहे नीति की, अभिमान में बोले में ग्राम बीच जरदार, मुझे कौन तोले। मेरे चन्द्रमुखी है नार जैसे सुलतानी ॥१॥ तूं किसको कहता महल ये मंदिर हाथी । और ये गुलाम दिन रात के सेवक साथी । सब छोड़ चले जैसे तेल जले पे बाती। ये झूठी दुनियां साथ कोई नहीं पाती । तेने किया पुण्य अरु पाप भोगे तूं प्राणी ॥२॥ तेरा बालपना तो खेल कूद में जाता । जवानी बीच में फिरे होय मद माता। नहीं सत्संग में लेजा भर तूं आता । हीरे को तज के पत्थर पर ललचाता । तुझे पार २ समझावे सद्गुरु ज्ञानी ॥३॥ यूं अनंतकाल गयो, अब न इसे बितावो । प्रमाद छोड़ केजिनवर के गुण गावो। धमें श्राराम में सदा जीव रमावो। करे सुमति सखियां अर्ज ध्यान में लायो । मुनि चौथमल उपदेश देवे नित तानी ॥ ४ ॥ . . . ४ मनशुद्धि प्रयत्न. (तर्ज.-या हसीना बल मदीना कर्बला में तू न जा) लो तन को धोए क्या हुने, इस दिल को धोना चाहिये । बाकी कुछ भी ना रहे, बिलकुल ही धोना चाहिये । ॥टेर ॥ शिल्ला बनावो शील की, और ज्ञान का साबुन सही । प्रेम पानी बीचमें, सब दाग खोना चाहिये ॥१॥ व्यभिचार हिंसा झूठ चोरी, काम क्रोध मद लोभ का। मैल बिलकुल ना रहे, तुम्हें पाक होना चाहिये ॥२॥ दिल खेत को करके सफा, पाप कंकर को हटा । प्रभु नाम का इस Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) जैन सुबोध गुटका। खेत में, फिर बीज बोना चाहिये ॥ ३ ॥ मुंह को धोती है बिल्ली, स्लान भी कन्या करे । ध्यान बक कैसा घरे, ऐसा न होना चाहिये ॥ ४॥ गुरु के प्रसाद से, कहे चौथमल सुन लीजिये । झूठ गोहर छोड़दे, सच्चे पिरोना चाहिये ॥५॥ ५सु स्त्री. (तथारो नरभव निष्फल जाय, जगत. का खेल में) ऐसी पतिव्रता मिले नार पुरुष पुण्यवान को ॥ टेर॥ पंखो ढोरी अन्न जिमावे, समझे पिउ भगवान् को । दासी समान हो हुकम उठावे, बोले मिष्ट जवान को ॥१॥ सास सुसर का मात पिता ज्यूं, माने वह फरमान को । लजा नम्रतावंत भ्रात ज्यूं, समझे पर इन्सान को ।। २ ॥ कुलोद्धारिणी कुल बर्द्धक वही, घर श्रङ्गार कुलवान को । सत्य सलाह देके समझाये, लाभ और नुकसान को ॥३॥ विपति में सहायक पतिको, देवे साज धर्म ध्यान को । पति रक्षक अति क्षम्यावान् वो, आदर करे महमान को ॥४॥देव गुरु की भक्ति करे है, अभ्यास करे नित ज्ञान को । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, स्मरे सीता इतिहास को ॥ ५ ॥ ६ द्रोपदी का चीर हरण. .(तर्जना छेड़ो गाली दूंगारे, भरवादो मोय नीर) - मैं तो आई शरण तुम्हारीरे, प्रभु कीजे मेरी सहाय ॥ टेर ।। सती द्रौपदी राणी, ग्रही दुष्ट दुशासन तानी । फिर लाया सभा मंझारी रे॥११॥ सती देखे निगाह पसारी Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - जैन सुवोध गुटका। वैराग्य में छावरे ॥ ५॥ राज्य कुंवर ने राज्य देई, राणीने समझावरे । प्रत्येक बुद्धि संयम ले फिर, मोक्ष सिधावरे ॥ ६ ॥ साल गुण्यासी रतनपुरी, फागण बदि चउदस आवरे । पूज्य प्रसाद चौथमल, सुख संपत पावरे ॥ ७ ॥ ८ करुणा रस (या हशीना बस मदीना, करबला में तू न जा) . . रहम करले अय.दिला, सवाय इसमें मानकर। रहम बड़ी है चीज जहांमें, अय सनम पहिचान कर ॥टेर ।। नबी महमद रसूल हकका, एक रोज जंगल में गये । देखा तो हिरणी को किसीने, वांध रक्खी तान कर ।। १॥ देख हजरत को वह हिरणी, इन्सान की बोली जवां । महरयां हो खोलदो, मश्कीन मुझको जानकर ॥२॥ जान बच्चों की पचेगी, दूध मिलने पर सही। सुनके हजरत बोले मेरी, बात पर तू ध्यान कर॥३॥ करना क्या जो तू न आवे, हिरणी कह सुनलो बयां । देती हूं जामिन खुदा तुमको पेगम्बर मानकर ॥ ४ ॥ रहम ला उस हिरणी को, हजरत ने फोरन खोलदी। इधर एक दम फिर वहां, बोला शिकारी प्रानकर ॥ ५॥ खोली किसने हिरणी को, हजरत कहे हम ही तो हैं । पाती अभी खामोश कर, मत बोल ज्यादा तान कर ॥६॥ इतने में मय बच्चों के, आ हिरणी हाजिर होगई । रो के बच्चे कहे छुड़ादो, अम्मा को अहसान कर ॥ ७॥ बच्चों की बातें सुन शिकारी, Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (७) नवी के कदमों पे गिरा । शिकार से तौबा करी, हुआ नेक ला इमान कर ॥ ८॥ मय बच्चों के आजादगी, हिरणी को रस्सा खोलकर । दे दुआ हिरणी गई, बन बीच सुख वो मानकर ॥ ६॥ खुदा के प्यारे ऊमत के सरवर, ऐसे नबी साहिब हुए । रहम ला हिरणी बचाई, बात को परमान कर ॥ १० ॥ वे जबां को मारना, कर रब को ये मंजूर है । छोड़दे गफलत को अय दिल, आगे का सामान कर ॥ ११॥ हिरणी नामे पे करा, इस नजम को सारा खतम, चौथमल देता नसीहत, इस तरफ कुछ ध्यान कर ॥ १२ ॥ 8 स्वार्थ मय संसार, (तर्जना खेडो गाली दूंगारे, भरने दे मोय नीर) दुनियां मतलब की यारीरे, तू किण से बांधे प्रीत ॥टेर ॥ भाई को भाई वुलावे, बे मतलब वो छिटकावे । नहीं आने दे घर द्वारीरे ॥१॥ माता सुपुत्र बताने, जो . धन कमाई ने लावे । वे मतलव देवे निकारीरे ॥ २॥ यूं मीठी बोले बेना, वीरा कोड़ दिवाली जीना । बे मतलब देवे विसारीरे ॥ ३ ॥ नारी अति प्रेम रचावे, भरतार कर तार बतावे । बेमतलब बोले करारीरे ॥ ४ ॥ एक नारी थी अति प्यारी, निज बालम को उस वारी । उन्हें दिया कूप में डारीरे ॥ ५ ॥ सब झूठा जगत पसारा, तुझे सम झाऊं हर पारा । मैं जोड़ी जैसी निहारीरे ॥६॥ वजाज Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। खाना चौक कहावे, चौथमल उपदश सुनावे । इस इन्दौर शहर मंझारी रे ॥ ७॥ १० तप का महत्व. (तर्ज-या दृशीना बस मदीना, करबला में तू न जा) ___ यह कर्म दलको तोड़ने में,तप बड़ा बलवान है । काम दावानल बुझाने, मेघके समान है | टेर ।। ग्रासरूपी सर्प कीलन, मंत्र यह परधान है। विधन धन तम हरण को, तप जैसे मानु है ॥ १॥ लब्धिरूपी लक्ष्मी, की लता का यह मूल है। नंदिक्षिण विष्णु कुंवर का, साराही बयान है ॥२॥ वन दहन में आग है, और आग उपशम मेघ है। मेघ हरण को अनल है, और कर्म को तप ध्यान है।॥३॥ देवता कर जोड़ के. तपवान के हाजिर रहे । वर्धमान प्रभु तप तपे, उपना जो केवल ज्ञान है ।। ४ ।। गुरु के परमाद से, करे चौथमल ऐसा जिकर । आमासही ऋद्धि मिले, यही स्वर्ग सुख की खान है ॥ ५ ॥ ११ दुर्बुद्धि. (तर्ज-थारो नरभव निप्फल जाय जगत का खन्नमें) ऐसे विनाश काले, विपरीत बुद्धि इन्सान की टे। पाप कर्म में धन ने खरचे, नहीं इच्छा पुण्य दान की। चोले ड्रउ दे गवाही झूठी, नहीं प्रतीत जवान की ।। १॥. नित्य घर में कुसंप चलावे, बात नहीं धम्म ध्यान की। मान मर्यादा छोड़ चले, नहीं माने नीतिवान की ॥२॥ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | (ε) चोरी चुगली करे पराई, परवा नहीं भगवान की । ठंठाबाजी करे रात दिन, लड़वा में अगवानकी ॥ ३ ॥ काम हो आदत ऐसी, जूं कावी के श्वान की । झूठे कलंक देवे पर के सर, नहीं चिन्ता अपमान की ॥ ४ ॥ सर्प सरीखो क्रोध बदन में, नहीं सोचे लाभ नुकसान की । गुरू परसादे चौथमल कहे, सुखे न शिक्षा ज्ञान की ॥ ५ ॥ १२ प्रभु प्रार्थना. 1 ( तर्ज - ना छेड़ो गाली दूंगारे भरवादो मोए नीर ) सुनिये प्रभु विनय हमारी, क्यों देरी मेरी बार ||टेर || दीनबन्धु दीनानाथ, संकट मेटन साक्षात | मैं आयो तेरे दरबारीरे ॥ १ ॥ सीता की विपता निवारी, अग्नी का बनाया वारी । है अद्भुत महिमा थारी रे ॥ २ ॥ द्रौपदी की सभा मंकारी, तुम पत राखी उस बारी । किए लम्बे चीर विस्तारीरे ॥ ३ ॥ सुदर्शन को शूली चढ़ाया, जब उसने तुमको ध्याया | हुआ सिंहासन सुखकारीरे ॥ ४ ॥ कई भक्तों का प्राण बचाया, अत्र शरण चौथमल आया । दो भटपट मुझको तारीरे ॥ ५ ॥ १३ परभव सुख प्रबन्ध. (तर्ज-- पनजी मुंडे बोल ) ले संग खरचीरे २, परंभव की खरची लीधा सरसीरे || ढेर || कूड़ कपट कर धन कमाई, जोड़ जमी में धरसीरे । सुन्दर महल बागने छोड़ी, जाणो पड़सीरे ॥ १ ॥ श्रागे Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) जैन सुवोध गुटका। धंधो पाछे धंधो, धंधो कर २ मरसीरे । धर्म सुकृत नाय करे, परभव काई करसीरे ॥२॥ राजा वकील बेरिस्टर. से, कर मोहबत तूं संग फिरसीरे । कौन छुड़ावे काल आय,. जब घंटी पकड़सीरे ॥३॥ पांच कोस गामांतर खातिर, खरची लेई निकलसीरे । नया शहर है दूर, नहीं मनियाडर मिलसीरे।। ४ ॥ यौवन की थने छाक चढ़ी, बुढ़ापा आया.. उतरसीरे । इस तनकी तो होसी खाक, कहां तक निरखसीरे ॥ ५॥ घरकी नारी हांडी फोड़ने, पाछी घरमें वरसीरे। मसाण भूमि में छोड़ थने, फिर कुटुम्म विछड़सीरे ।। ६ ।। लख चौरासी की घाटी करड़ी, कैसे पार उतरतीरे । रत्ती सीख नहीं लागे थारी छाती वजरसीरे ।। ७॥ साल गुण्यासी हातोद में, जिनवाणी जोर से वरसीरे । गुरू प्रसादे चौथमल कहे, किया धम्म सुधरसीरे ।। ८॥ १४ स्त्री शिक्षा. (तर्ज-स्वामी भले. विराजाजी) वायां सूतर सुणोए २,.सूतर सुण्या में लाभ घणो ॥टेर ॥ पांव पचीस मिल आइ बखाण में, बातां करवा मंडी । पापड़ बड़ियां दाल भात मैं, आइ बणाई. कड़ी ॥१॥ गेंदी कहे म्हारे आया जंबाई, गारां गावा लागी । धूरी कहे म्हारे पायो पियर को, पूछण ने रह गई श्रागी ॥२॥ फूली कहे नान्या का भाईजी, समझे नहीं समझाया । गेंद दियो सोनी ने घड़वा, हाल तलक नहीं लाया ॥३॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (११) निर्थक वातां करवा में तो, घड़ियां बन्द लगावे । सज्झाय वोल की बात करे तो, उठी ने चली जावे ॥४॥ साधां के आतां लाजां मरो, व्याही के डेरे गाल्यां गावो । बरात गया पिछे ढूंढ्यो काडो, भंसा रोल भचावो ॥५॥ टमकू झमकू लाला गुलावां, मूली सब मिल जावे । केतो. काण को घर भांगे, के किणरे राड़ लगावे ॥६॥ साधु सतियां की निन्दा करना; सासु श्वसुर से लड़ना । इण बातों से सुणजो वायां लक्ष चौरासी फिरना ।। ७॥चौथमल कहे मुणजो बायां, मैं वखाण करवा लागो । एक चित्त से सूत्र सुणो थे निरथक वातां त्यागो ॥ ८॥ १५ प्रभु से मुक्तिदान की प्रार्थना. (तर्ज-मांच.) ऋषभ प्रभु मांगु मोक्ष को दान कृपा कर दीजे श्री भगवान || टेर । लक्ष चौरासी में भटकत आयो, चवदे राज दरम्यान । आप सरीखा देव न दूजा, केवल ज्ञानी गुणवान ॥१॥ तुम गुण सिन्धु अपार पार नहीं, पावे कोई इन्सान। सुर गुरू महिमा कथ २ हारे,तो म्हारी एक जवान ॥२॥ अलख निरंजन तू अविनाशी; अगम अगोचर महान । नाम लियां सुख सम्पदा पावे, वरते क्रोड कल्याण ॥३॥ नाभी रायं मरू देवी के नन्दन, इखाग वंश के भान । गुरू प्रसादे चौथमल तो, शरण लियो है आन ॥४॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) जैन सुबोध गुटका । १६ सत्य की महत्वता. (या हशोना बस मदीना करबला में तू न जा) सत्य कभी तजना नहीं यह सर्व गुण की खान है। विपत वारक सुर सहायक, देखलो परधान है ।।टेर। सत्यका शरणा ग्रहो, यश विस्तरे त्रिलोक में । जलाग्नि समन अहि व्याघ्र स्थंभन, विश्वास का यही स्थान है ।। १।। वशीकरण नाद् बड़ा, प्रेम का यही मित्र है । पावन परम निडर वही, प्रवल अतिशयवान है ।। २॥ नियम सृष्टि जाय पलटी, सत्य कभी पलटे नहीं । सत्य पे ही तन मन धन, तीनों ही कुरबान है ।। ३।। सत्य रवि परगट हुवे, मिथ्या तिमिर का नाश हो । सर्व सिद्ध राज्य ऋद्धि का अमूल्य निधान है॥ ४ ॥ आग के बीच बाग हो, दरियाव के बीच थाग हो । जहर का अमृत बने, और महा सुखों का स्थान है ॥ ५ ॥ अयोध्या का राज्य फिर, हरिश्चन्द्र को दिया सत्य ने । सत्यधारी भूप विक्रम, सभी करे परमाण है ॥ ६॥ गुरू के परसाद से, करे चौथमल सत्य पे जिकर । यतो धर्मस्ततो जयः सत्य पे भगवान है ॥ ७॥ . १७ सुबुद्धि. (तर्ज-थारो नरभव निष्फल जाय जगत का खेल में) ऐसा भाग्य उदय सुबुद्धि, होय इन्सान की ॥ टेर ॥ सर्व जगह प्रतीत जमावे, बात करे इमान की । मात पिता की माने केन, और लगन लगी धर्म ध्यान की ॥१॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका । (१३) दुव्र्यसन को अनर्थ समझे, चले चाल कुलवान की। सत्संग करे डरे अपयश से, कथा सुने भगवान की ॥२॥ कुमार्ग में धन नहीं खरचे, परमार्थ में परवा न की । सत्य से प्रेम नम्रता पूरी, दृढ़ता पक्की जवान की ॥ ३॥ कुशिक्षा को कान सुने नहीं, माने बात नीतिवान की। दुःखी जीव ने देवे सहायता, कदर करे बुद्धिवान की ॥४॥ पक्षपात को काम नहीं है, नहीं लहर अभिमान की । गुरु प्रसादे चौथमल को, इच्छा रहे निर्वान की ॥ ५॥ १८ पर स्त्री निषेध. (तर्ज--ना छेड़ो गाली दंगारे भरवादो मोए नीर) __ मानो यह कहन हमारीरे, पर नारी छोड़ियो ।।टेर।। या हँस २ तुझे बुलावे, कर नेन सेन समझावे । है विप की भरी कटारीरे ॥१॥ या मीठी २ बोल, बूंघट के पटके ओले । फिर अपयश की करनारीरे ॥२॥ तन सुंदर वस्त्र सजावे, नवयुवक से प्रीत लगावे। कई छलबल की करनारीरे ॥३॥ मत रीको रूप निहारीरे, इसे समझो आफू क्यारी । हुई रावण की कैसी खुवारीरे ॥ ४ ॥ मत प्यारी प्रिया जाणो, काली नागन है पहचानो । पल क्षण में प्राण हरनारीरे ॥ ५॥ सब भूख प्यास बिसरावे, स्वग्ने में वही दर्शावे । है पूरी कामणगारीरे ॥ ६॥ ये साल गुण्यासी जानो, हो इन्दौर शहर में पानों। कहे चौथमल हर वारीरे ॥७॥ .. . . Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) जैन सुवोध गुटका । १६ सन को शिक्षा. (तर्ज-कांटो लागोरे देवरिया मोसूं संग चल्यो नहीं जाय) तों को वार २ समझाऊं रे मनवा, जिनवर के गुण गाले ।। टेर ।।जैसे पूर नदी का बहावे, जूं जोधनिया कल, ढलजावे । किसपे करे मरोड़, छोड़ जाना है भेद तू पाले ॥१॥ मात पिता कुटुम्ब परिवारा मोह रह्यो रमणी के लारा । स्वार्थ के साथी जान मान तू सहकार्य में प्राले ॥ २ ।। माया दोलची कहलाने, आत जात ये देती जावे। चंचल चपला जूं निहार, नार नातेसी न्यायलगाले ॥३॥ गोरा बदन देख घुमरावे, रंग पतंग सा कल उड़जावे । क्या गंधी देह का गर्व, अन जैसे ये पलटा खाले ॥ ४ ॥ छत्रपति का राजा राणा, देखत खाक में जाय समाणा । सरपे काल निशाना दिखाना, गफलत दूर हटाले ।। ५ ।। गुरू प्रसादे चौथमल कहता, जो नाम प्रभुका हरदम लेता। तिरजावे संसार सार, यही दया धर्म को पाले ॥ ६ ॥ २० सत्य की महत्वता (तर्ज-वारी जाऊंरे सांवरिया तुम पर वारनारे) · सत्य मत हारणारे, सत्य के ऊपर तन मन धन सब वारणारे ॥ टेर ।। सत्य से सर्प हो पुष्प की माला| अग्नि मिट जल हो ततकाला। विप अमृत हो जाय, सत्य को धारणारे ॥ १ ॥ सत्य है स्वर्ग मोक्ष को दाता । सत्याग्रही का सुर गुण गाता । पुष्प वृष्टि करे देव, सत्य जय कारणारे Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (१५) ॥२॥देखो हरिश्चन्द्र ने सत्य धारा।येची उसने रानी तारा। आप भंगी घर रहा, न किया विचारणारे ॥३॥ सत्य तुंबा नहीं जल में छिपेगा। कंचन के नहीं कीट लगेगा। चौथमल कहे सत्य है विधन विदारणारे ॥४॥ २१ सती सुभद्रा का यश (तर्ज-ना छेड़ो गाली दूंगारे भरवादो मोय नीर) प्रभु की रक्षा हमारीरे, विपता को दूरी टार ।। टेर॥ एक जिन कल्मी मुनिराया, सुभद्रा के घर पाया । उठ हाथां हर्ष बहरायारे ।। १ ।। कर्म योग नेन के माई, पड़ा फूस मुनिके आई । सती काढ्यो कर चतुराईरे ॥२॥ सासुने कलंक चढ़ाया। सती तप तेला का ठाया। 'सुर' प्रकटी धीर बंधायारे ॥३॥ दिया वज्र कमाड़ बनाई। चारों दरवाजा ताई । खोल से खुलते नाईरे ॥ ॥ ४ ॥ जब खुले देव कहे बानी, सती कच्चे सूत्र में पानी । चलनी से काढ़े पानीरे ॥ ५॥ एंडी नृप ने पिटवाई, हो सती खोले वो आई । सासु को सती जारे ॥६॥ नहीं पूर्व पाप छिपाया, फिर पर किडी के आया । यूं सासू वाक्य सुनायारे ॥ ७ ॥ सुभद्रा प्राय उस वारी, लियो चलनी से जल कागदीनी तीनों पोल उधारीरे ।। ८ ॥ मिल सुर नर मंगल गावे, सत्य धर्म की महिमा छाये। सासु अपराध खमावरे ।। ६ । रतलाम चौथमल पाया, पूज्य राज्य का दर्शन पाया। साल गुण्यासी में गुण गायारे ॥ १० ॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका । २२ संसार अनित्य: (तर्ज- - पनजी मुंडे बोल ) माया दुनियां की २ है झूठी मनवा, क्यों ललचावरे ॥ टेर ॥ उगे जोई आथमरे, फूले जो कुमलांवरे । सदा | एकसी रहे नहीं, ज्ञानी फरमांवरे ॥ १ ॥ पूंडर्थधकको भूपति निघाई नाम कहांवेरे | मान मर्दन कर दुश्मन को, सिर छत्र धरावेरे ॥ २ ॥ भोग विलास करे राख्यां संग यूं सुखमें दिवस चितावेरे । एक दिन वन क्रीड़ा करवा; आप सिधावरे ||३|| मांझरी से छायो थांबो, मारग में दरशांवरे । उपर बैठी कोयली; चा राग सुनावेरे ॥ ४ ॥ एक लूंब राजा ने तोड़ी, पछि सेना वेरे । देखा देखी तोड़ने, ये सब लेजावेरे ||५|| राजा फिर वो देख्यो, स्तंभ रूप जब पावेरे । विरूप जोई पुछियो; सब बात बतावेरे ॥ ६ ॥ अनित्य पणो राजा विचारे; ऊमर बीत्यां जावरे । रूप यौवन ऋद्धि संपदा नहीं स्थिर रहावेरे || ७ || राज्य तिलक देइ पुत्रने, नृप संयम को पद पावेरे । प्रत्येक बुद्धि होके केवली; फिर मोक्ष सिधावरे ॥ ८ ॥ साल गुण्यासी गोतमपुरा में; दस ठाणा सुख पावेरे | गुरु प्रसादे चौथमल मुनिका गुण गावेरे ॥ ६ ॥ " ( १६ ) २३ मनको शिक्षा. ( तर्ज गर्यो ) मना समझो अवसर एवो पायेनेरे; क्यों बैठा तुम्हें Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (१७) ललचायनेरे ।। टेर ।। मना पूर्व पुण्य संयोग सेरे । पांचों इंद्रियशरीर निरोग बरे ॥ १॥ मना उत्तम कुल मानव भव सहीरे । गुरु मिलिया निग्रंथ फिर चाहे कहीरे ॥२॥ मनः कुटुंब धन जाणो श्रापणारे । नहीं श्रावेगा साथ झूठो थापणारे ॥६॥ मना भुगतण वेलात एक्लोर। नहीं मानो तो भूत्र देखलोरे ॥४ा ऐसी जापी ने दया धर्म कीजियेरे। पाई लची को लाचो लीजिएरे ॥ ५ ॥ नाथद्वारे साठ साल मायनेो । कियो चौमासो चौथमल पायनेरे ॥६॥ २४ चेतन-प्रतिवोय. (तर्ज-पनजी मुंडे बोले) चेतन थारोरे २ नहीं चने तो यो वांक सारोरे ।टेर ।। प्रारंभ परिग्रह माहे राचे, समझे नहीं मन थारोरे। सागर सेठ सागर में वो । रेगयो धन सारोरे ॥१॥ हुई कुमोदनी द्रह से दूरी, काछवे मुख निकारयोरे । मोह माया में फेर पड्यो, निजचंद विशारबारे ॥२॥ आयु कमल को झाल ममरो, रस पीने हत्यारोरे। ततो किस नींदौ, यो जावे बमारोरे ॥ ३॥ पर वस्तु ने अपनी मानी, योही कियो विगाड़ोरे । सिंहपणो तज गाडर में,क्यो होय सुमारोरे ॥४॥ गुरु प्रसाद चौथमल कहे, जो करणो थने सुधारोरे ! दया धर्म की नाव चैट, उतरो मव पारोरे ॥ ५ ॥ २४ सीता प्रार्थना (तर्ज-चाली) तुरत रघुनाथजी भाकर,बचालोगे तो क्या होगा । नि Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) जैन सुवोध गुटका | शारने ग्रही मुझको, छुड़ालोगे तो क्या होगा ॥ ढेर ॥ मुझे मालूम न थी इसकी - कि, यह दंभी प्रपंची है । धोखा देके ले जाता है, छुड़ा लोगे तो क्या होगा || १ || चिड़िया को पकड़ ले बाज, इसी मानिंद करी इसने । अरे इस नीच पापी को, हटादोगे तो क्या होगा ॥ २ ॥ सुनो लक्षमण मेरे देवर, तुम्हारी भाभी पर आकर | पड़ी आफत बड़ी भारी, मिटादोंगे तो क्या होगा || ३ || दयालु कोई दया करके मेरी तकलीफ की बातें | अभी श्रीराम पे जाकर, सुना दोगे तो क्या होगा !! ४ ॥ तन से जेवर गिराती हूं, श्राना इस खोज को पाकर | मुझे निराधारको आधार, बंधादोगे तो क्या होगा ||५|| चौथमल कहे सुनो सजन, सिवा रो २ पुकारे है । कोई रघुनाथ से मुझको, मिला दोगे तो क्या होगा ||६|| २६ चेतन को शिक्षा. ( तर्ज - पंजी मुंडे. बोल ) मती लीजेरे २, बदनामी कितनो जीणो प्राणीरे || ढेर | ली बदनामी राजा रावण, हरी राम की राणीरे । स्वार्थ भी हुआ नहीं, गई राजधानीरे ॥ १ ॥ दियो पींजरे बापरे, कंश अनीति ठाणीरे । विरोध करीने मरयो हरिसे, हुई उसीकी हानीरे ॥ २ ॥ ली. बदनामी कौरवांने, नहीं बात हरिकी मानीरे | पांडवों की जीत हुई, महाभारत बखानीरे ||३|| ली बदनामी बादशाह ने गढ़ चित्तौड़ पर Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (१६) पानीरे । हाथ न आई पदमणी, गई नाम निशानीरे ॥४॥ वाशन तो विरलाय जावे, बासना रह जानीरे । तज घुमराई 'ली में भलाई, या सुख दानीरे !! ५ ॥ धर्म ध्यान से शोभा होदे, सुधरे नर जिंदगानीरे । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, धन जिन बानीरे ॥६॥ २७ लक्ष्मणजी का राम से कहना, (तर्ज-कंवरा साध तणो आचार ) लछमन अरज करे हित काज, सुनो श्री रामचन्द्र महाराज ॥ टेर ॥ सीता है निषि प्रभुजी, मत बनवास पठावें। दुनिया की प्रतीत नहीं है, खाली गप्प ऊडावे ॥१॥ पानी में पत्थर तिरेस कोई, हो पश्चिम दिनकार । नेन अंध देखना चाहे, सरल रूप संसार ॥ २॥ पंकज हो पापाण पै कोई, समुद्र लोपे पाल । वैश्वानल शीतलता भजे स कोई, माता मारे बाल ॥ ३॥ दिन की तो रजनी बने स कोई, रजनी दिन प्रकटाय । इतनी बात नहीं बने स जूं सिया शील नहीं जाय ॥४॥ राम कहे अपयश की मो, बात सुखी नहीं जाय । घर से इसे निकाल दूं स यह, लोक कहन मिट जाय ॥शा दांता बीच दिनी अंगुली को सुनकर ऐसी बात ! किया शीघ्रता कार्य बिगड़े, सोच करो जगन्नाथ ॥६॥ वह दिन याद करो प्रभुजी, सिया का हुआ हरण । बांसू नहीं नेन से रुकता, नहीं रुचता जल अन्न ॥७॥ कहे Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (20) जैन सुबोध गुटका | विभीषण सुनो राम, सीता की देऊं जमान । कष्ट सह्यो धर्म नहीं छोड़ा, बहुत गुणों की खान ॥ ८ ॥ मिलकर सारा करे वीनती, राम धरे नहीं कान | चौथमल कहे कैसे माने, होन हार बलवान ॥ ६ ॥ २८ चेतन के साथी कौन ? ( पनजी मूंडे वोल ) साथै यासीरे २ सुन प्रानी जो सत कर्म कमासीरे || || तू जाने मारे मात पिता, सुत दारा मामा मासीरे । स्वार्थ का सकल सगा, तू लीजे विमासीरे ॥ १ ॥ स्नान करे बागों में जानित, तन पोशाक सजासीरें । दर्पण में मुख देखर तू पातर नचासीरे || २ || भोगों में मद मस्त बनी तू, फूल्यो नहीं समासीरे । चटके यौवन उतर जाय, पीछे पछतासीरे ॥ ३॥ बार बार यह उत्तम नरदेहं प्रानी फिर कब पासीरे । शोभा ले संसार में, अमर रह जासीरे ||४|| खेल गोठ में साथीड़ा संग, खूब माल उड़ासीरे | सुकृत की कोई बात करे, मन में नहीं भातीरे ||५|| बोवे पेड़ बंधूल को फिर, आम कहां से खासीरे । सुख अभिलापी पाप करे, सुन आवे हांसीरे ॥ ६ ॥ दान सुपात्र देने से भव सागर तिर जासीरे । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, त बदमासीरे ॥ ७ ॥ " २६ एक्यता. ( तर्ज--मार्च ) अरज म्हारी, सुनियो सब सरदार । एको कर मेटो या Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। (२१) New तकरार ॥ टेर। चिड़िया न तो गुलाम जीते, गुलाम बीवी से जावे हार । पुनःबीवी से बादशाह जीते, सबमें एको मुखत्यार ॥१॥ तृण मिलाय छप्पर नर छावे,पड़े नहीं जल धार । तृण के रस्से से गज वांधे, चसके नहीं लगार ||२|| देखो जल की धार बहे तो, पर्वत नांखे विदार । जिस घर मांही एको नाही, कैसे हुआ विगार ॥ ६॥ गज ने पिंज से चूहा निकारचा, करुणा कर उस बार । चूहा कूर से गज ने उवारचा, कास्तकार गयो हार ॥ ४॥ ऐका से श्रीरामचन्द्रजी, रावणंने लियो मार । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, एको जगत में सार ॥ ५ ॥ ३० पाप. (तर्ज-पनजी मुंडे चोल) - क्यों पाप कमावरे २ वरजे सत्गुरु नहीं ध्यान में लावरे । टेर ॥ पाप कर्म कर धन थे जोड़यो, कुटुम्ब मिली खाजावेरे । भोगे परभव एकलो, ज्ञानी फरमावरे ॥ १॥ छाने २ कर्म करे ज्यू, रुई में आग छिगवरे । फूटे पाप को घड़ो प्रगट, आखिर पछतावरे ॥ २ ॥ इखाई राठोड़ भव पाप किया, मरगा लोढ़ा दुख पावेरे । वीर वचन से इन्द्रभूति, देखन को जावेरे ॥ ३ ॥ धर्म रुची ने नाग श्री, कडवो तूंबो बहरावेरे । सोलह रोग हुआ तन में, मर नर्क सिधावेरे ॥ ४॥ कीड़ी सहित फल डाल्यो Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) जैन सुवोध गुटका | आग में, भागवत बतलावेरे । चित्रकेतु के लाल ने राख्यां जहर पिलावेरे || ५ || अस्मी साल इन्दौर चौमासो, दितवारा में ठावेरे | गुरु प्रसादे चौथमल, उपदेश सुनावेरे ॥ ६ ॥ | ३१ दान की योजना. (तर्ज-नाही नवल वनीका व्याव में ) सारे मन्दरिये वरण ने हालो, तीन भवन रा नाथ || ढेर || सज श्रङ्गार कामिनी वारी, उभी मार्ग सांग | धन दहाड़ो आज को वारी, प्रभुजी हम घर आय || १ || भांत २ का भोजन द्वारी, उभी लेके थाल । एक कहे प्रभु पधारो, करदो जल्दी निहाल || २ || नगर कौतुम्बी चीच प्रभु, फिरे अभिग्रह धार | थोडासा चाकला ले दी, चन्दनवाला को तार || ३ || त्रशला दे के लाड़ला, प्रभु सिद्धार्थ के नन्द | चौथमल की मनोकामना पूरो वीर जिनन्द ॥ ४ ॥ ३२ फूट की करतूत. ( तर्ज - पनजी मूंडे दोल ) . फूट तज प्राणीरे २, आपस की फूट है या दुख दानीरे || ढेर || पड़ी फूट गयो बदले विमीक्षण, रावण बात नहीं मानीरे | सोना की गई लंका टूट, मिट्टी में मिलानीरे ॥ १ ॥ कौरव पांडव के आपस में, जब या फुट भराणीरे । लाखों मनुष्य गये मरी युद्ध में, हुई नुकसानीरे Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन सुरोध गुटका । (२३) ॥२॥ पृथ्वीराज जयचंद राठोड़ के,हुई फूट अगवाणीरे। बादशाह ने कियो राज, दिल्ली पे पानीरे ॥ ३ ॥ फूट विके या कैसी सस्ती, फूटे सर नहीं पानीरे । फूटे मोती की देखो, किमत हलकानीरे ॥४॥ संप जहां पर मिले सम्पदा, फूट जहां पर हानिरे । ऐसी जानने बुद्धिवान, तज कुत्ता तानीरे ॥ ५॥ अस्सी साल में रामपुरे, मंडी बाजारमें आनीरे । गुरु प्रसाद चौथमल यूं, केवे हित आनीरे ॥ ६॥ ३३ नेत्रार्दश. (तर्ज--लावणी छोटी खड़ी) नयनन में पुतली लड़े भेद नहीं पावे, कोई सच्चा गुरु का चेला बना छन्द गावे ।। टेर । इस मन के तच्छन लच्छन सब नयनन में । यह नेकी बदी के दोनों दीप नयनन में। ये योगी मोगी की छुद्रा है नैनन में। और खुशी गमी की पहिचान है नैनन में। ये करे लाखों में चोट चूक नहीं जावे ॥१॥ यह काम क्रोध दो जालिम रहे नैनन में । ये प्रीति नीति रस दोनों वसे नैनन में। है शक्ति हटोटी बदकारी नैनन में । ये लिहाज नम्रता सभी बसे नैनन में । नैनन के वश हो प्राण पतंग गमावे ॥२॥ ये शूरवीर के तोड दीखे नैनन से । और सुगडाई के अक्षर मिले नैनन से । अष्टादश देश की लिपी लिखे नैनन से । और, वरणादिक की खास विषय नैनन से । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) जैन सुबोध गुटका। विप अमृत ये दोनों नैन में रहावे ॥३॥ मुनि मुद्रा का दरस करे नैनन से । पांव धरे जीवों को टाल नैनन से। गौशाले की रक्षा वीर करे नैनन से । इलायची कुंवर गुरू देख तिरे नैनन से। मुनि चौथमल नैनन पैछंद सुनावे ॥४॥ ३४ शिष्य प्रार्थना, (तर्ज-अम्मा सुझे छोटीसी टोपी दिलादे). गुरू मुझे ज्ञान का घाला पिलादो, प्याला पिलादो. आला बनादो । गुरू मुझे मोहबत का शरबत पिलादो ॥टेर। सोता हुअा हूं गफलत की निंद में। हां मेरा पकड़ के पल्ला जगादो ॥ १॥ भवसिन्धु में मेरी नौका पड़ी है । आप इसे मल्लाह होके तिरादो ॥ २॥ काम क्रोध मद मोह चोर हैं । इस डाकू से मुझको बचादो ॥ ३ ॥ संसार का नाता झूठा है त्राता । मुझे मुक्ति के मार्ग लगादो ॥ ४॥ चौथमल कहे गुरूजी मुझको । ब्रशलानन्द से वेग मिलादो ।। ५॥ ३५ चेतन को अनित्य की शिक्षा. (तर्ज-पनजी मुंडे बोल ) प्राणी परदेशी २ अमर दुनियां में कुण रेसीरे टेश। मोटो पंथ संत फरमावे, तू क्यों रयो वेसीरे । मारग मांही विलम रयो, थारी बुद्धि कैसीरे ॥१॥ सुन्दर का रंग रूप में मोयो, तूं वणरयो भोग गवेषीरे । सत शिक्षा देव-रणवाराको, तू बणे द्वेपारे ॥२॥ उदेः अस्त तक राज्य Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। (२५) करता, थी. ऋिद्धि इन्दर जैसीरे । बादल जू विरलाय गया तू कहां तक रहे पीरे ॥३॥ पुण्य से छत्रपति हुवो माटो, हाथी घोड़ा मवसीरे । आग सुख मिले तुझको, कर करणी वैसीरे ॥ ४॥ माल खजाना धयों रहेगा, कुण लेजावा देसीरे । अंत समय थारा तनका भूषण, उतार लेसीरे॥५॥ परभव में नासीर पापी, जम हाथां थारी पेसीरे न कुंड में कर्म फल तू, कैसे सेसीरे ॥ ६ ॥ गुरू प्रसादे चौथमल कहे, या वाणी उपदेशीरे । वे ही तीरे जो जिन प्रभु को, शरणों ग्रहसारे ।। ७॥ ३६ कुपुत्र लक्षण. . (तर्ज थारो नरभव निष्फल जाय जगत का खलमें) . ऐसे कुल लजावन, कलियुग में संतान है ॥ टेर ॥ पिता माता से करे लड़ाई, बोले गेर जबान है । चले नारकी आज्ञा मांही, बन रह्यो दास समान है ॥१॥ जुवा चोरी वैश्या परनारी, दुर्व्यसनों में गलतान है । कुसंगत में फिरे भटकतो, नहीं इजत को ध्यान है' ॥ २॥ माता कहे कठिन से पाला, जिसका भी कुछ ध्यान है । कुत्ती वैश्या रांड तेरा, क्या मुझ पर अहसान है ।। ३ ।। साला श्वसुर से हेत घणों, भाता से तानों तान है । धन खोई. ने करजदारहो निर्लज फिर अंज्ञान है.॥४॥ सत्संग तो खारी लागे, कुकर्म में भगवान है । चौथमल कहे प्रतीत नहीं, नहीं बोली का- परमान है ।। ५॥ . . Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) जैन सुबोध गुटका। ३७. रहनेम को प्रतिबोध. . तर्ज -कांटोलागोरेदेवरिया मोसूं संग चल्यो नहीं जाय. तो को बार बार समझाऊं हो मुनिवर मन अपनो समझाले ॥टेर ॥ सुं तो रहगई दर्शन प्यासी, आप बने जा गिरिवर वासी । तू रिष्टनेम भगवान पे, देवरिया निगाह लगाले ॥१॥ मुझे अकेली श्राप निहाली, विषयभोग की जवां निकाली। नहीं वंछु तुझे लगार, वार तू चाहें जितना पटकाले ॥२॥ धिक्कार पड़ो अब तुझ ताई, गज तज खर पे सुरत लगाई । इससे मरना परधान जान, प्रतिज्ञा पूरि निभाले ॥ ३॥ जातिवंत सर्प कहलावे, वमें जहर वह भी नहीं चहावे । पड़े आग में जाय ध्यान में लाय वाज तू आले ॥४॥ सती वेन रहनेम सुणी ने गए मोक्षम शुद्ध बनीने । कहे चौथमल चित्त लाय, आगम के माय सदा गुण गाले ॥५॥ ३८ योग्यता का परिचय (तर्ज-लावणी खड़ी) पापी तो पुण्य का मारग क्या जाने है, खर कमल. पुष्प की गंध न पहचाने है ।। टेंर ॥ नकटाने नाक दूजा को दाय नहीं आवे । विधवा ने सांग स्वागन को नहीं सुहावे । हो उदय चंद्रमा चोरों को नहीं भावे । लुब्धक को लागे अमिष्ट जो जाचक आये । सुनके सिद्धान्त मिथ्यात्वी रोस आने है ॥१॥ अगायक गायक की करे बुराई। Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन सुबोध गुटका। (२७) निर्धन धनी से रखता है अकड़ाई । दाता को देख मूंजी ने हंसी उड़ाई। पतिव्रता को देख लंपट ने आंख मिलाई । गुणी के गुण को द्वेपी की माने है ॥ २ ॥ बंध्या क्या जाने कैसे पुत्र जावे है। संतन के भेद को वही संत पावे है। हीरे की जांच तो जौहरी को आवे है। या घायल की मति घायल बतलावे है । सत शिक्षा को मूरख उलटी ताने हैं ॥ ३ ॥ मुक्ता तजके गुंजा शठ उठावे । इक्षु को वजके ऊंट कटारो खावे । पा अमूल्य नरतन विषयों में ललचावे । गज से विरोध हो जैसे श्वान धुर्रावे । कथे चौथमल समझे वही दाने है ॥४॥ ३६ चेतन प्रतिबोध. (तर्ज-शेर खानी दादरा) चेतन दुनियां में, देखो धरा क्या है ॥ टेर ॥ कोठी बनी है बागमें, पानी का होज है । लीलम के कंठे पहनते, मोटर की मौज है। बजे नकारे जोर से, संग लाखों फोज है । कहां गए वह राजा उनका भी खोज है । खाली मोह बीच फंसना पड़ा क्या है॥१॥ माता पिता और भ्राता स्वजन परिवार है। सोले श्रङ्गार सजती अछरासी नार है । फूलों की सेज उपरे करती प्यार है । पकड़ के काल लेगया करती प्रकार है। स्वार्थका रोना और अड़ा क्या है ॥ २॥ वाटी के बदले खेत दे कैसा गंवार है। कव्वा उड़ाने खातिर दिया रत्न डार है । नपुसंक को Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mononna. (२८) __ जैन सुवोध गुटका ! व्याही कन्या वो होती बेजार है । ऐसे नर . जन्म खो सेवे विकार है। अरे पापी ये तेने करा क्या है ॥३॥ दिन चार की है बहार मत भूलियो जनात्र । आखिर तो वह कुमलायगा जो खुल रहा गुलाब । तकलीफ देके गेर को करते हो तुम अजाब । कहे चौथमल रहिम कर तू जो बने नवाव । मान नसीहत बंदा खड़ा क्या है ॥ ४ ॥ ४० दान का कल. . तर्जच्या हसीना बस मदीना करबला में तू न जा) - लाखों प्राणी तिरगये है, दान के परताप से। सुखी होवे पलक में, एक दान के परताप से ॥ टेर ॥ दारिद्र दुर्भाग्य अपयश, समूल तीनों नाश हो । 'सुर' सम्पदा हाजिर रहे, एक दान के. परताप से ॥ १ ॥ पाप रूपी तमा हरण को, पुण्य रखी प्रकट करे । निर्वाण. पद उसको मिले, एक दान के परताप से ।। २ ॥ धन्नाशालिभद्रजी श्रीमंत कैवन्ना हुए। भरतजी चक्रवर्ती हुए,एक दान के परताप से ॥ ३ ॥ हर जगह सत्कार हो, राज्य मान्य सरदार हो। धन से भरे भंडार हो, एक दान के परताप से ॥४॥ गुरु के परसाद से, करे चाशगल ऐसा जिकर । सुरलोक की सम्पत मिले, एक दान के परताप से ॥ ५ ॥ ४१ चेतन बोध. ... (तर्ज-खाजा लेलो खबरिया) जीना साथ क्या यहांसे लेजावेगा। टेंर ॥ पो Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। (२६) खूब तन, डोले तू बन ठन । मिट्टी में मिल जावेगा ॥ १ ॥ पापों को कर कर, खजाने को भर भर; कौड़ी साथ नहीं जावेगा ॥ २॥ यौवन के अंधे, पड़े भोगों के फंदे सो आगे पछतावेगा ॥ ३ ॥ जागना हो तो जाग अज्ञानी, ऐसा समय कब पावेगा ॥ ४ ॥ गुरु प्रसाद चौथमल कहे, धर्म से सुख प्रगटावेगा ॥५॥ ४२ शाल का फल. (तर्ज-या हसीना बस मदीना करवला में तू न जा) तारीफ फैले मुल्क में, एक शील के परताप से । सुरेन्द्र नमे कर जोड़ के, एक शील के परताप से ॥ टेर ॥ शुद्ध गंगाजल जैसा, चिन्तामणि सा रत्न है । लो स्वर्ग मुक्ति भी मिले, एक शील के परताप से ॥ १॥ आग का पानी बने, हो सर्प माला पुष्प की । जहर का अमृत बने एक शील के परताप से ॥ २॥ विपिन में वस्ति बने, हो सिंह मृग समान जी । दुश्मन भी किङ्कर बने, एक शील के परताप से ॥ ३ ॥ चंदनवाला कलावती, द्रोपदी सीता सती । सुखी हुई मेनासती, एक शील के परताय से ॥४॥ गुरु के परसाद से, करे चौथमल ऐसा कथन । सुर संपति उसको मिले, एक शील के परताप से ॥ ५ ॥ ४३.संसार स्नेह असत्य, (तर्ज-ना छेड़ो गाली दंगारे भरवादो मोए नीर) .. मैंने अच्छी तरह से जानीरे, दुनियां की झूठी प्रीत । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) जैन सुबोध गुटका। है श्वासा जहां लगाशारे, दुनियां की झूठी प्रीत ॥ टेर।। ये मात पिता सुत माता, मतलब का सत्र है नाता । विन मतलब दूरा जातारे ॥ दु० ॥१॥ लाखों का माल कमाया, पापों से घड़ा भराया। तेने सुन्दर महल चुनायारे ॥२॥ उमदा पोशाक सजावे, तू इत्तर फुलेल लगावे | सत्र तेरा हुक्म उठावरे ।। ३ ॥ कानों में मोटा मोती, तेरी मग मग दीपे जोती । कई त्रिया मोहित होतीरे ।। ४ ।। फूलों की सेज विछाव, पदमन से प्रीत लगावे । वा पूरो प्रेम जनावरे ॥ ५ ॥ जो अन्तकाल आजावे, भूमि पे तुझे सुलाचे । सब सुन्दर वस्त्र हटायेरे ॥ ६ ॥ तू कहता धन घर मेरा, अब हुआ लदाउ डेरा। चले पुण्य पाप संग तेरारे ॥ ७॥ सर छोड़ी काण मुलाजा, मिली मुख २ धन सब खाजा । तेरा करके मृत्यु काजारे ॥ ८॥ फिर उसी सेज के माई, पर पुरुष को लेत वुलाई। वो तुझको दे विसराईरे ॥६॥ नृप परदेशी की प्यारी, थी शूरी कन्ता नारी । उन्हें दिया पतिको मारीरे ।। १० ।। गुरु प्रसादे चौथमल गावे, सच्चा उपदेश सुनावे, कर धर्म ध्यान सुख पावरे ॥ ११ ॥ यह साल गुरयासी खासा, किया उजैन शहर चौमासा किया लूणमंडी में वासारे॥१२॥ ४४ भावना महत्व (तर्ज-या हसीना वस मदीना करवला में तू न जा) सर्वोपरि हितकारिणी है, भावना भव-नाशिनी । अघ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (३१) हटानी पुराग बधानी, भावना भव नाशिनी ॥ टेर। विवेक वन संचारिणी,उपसम सुख संजीवनी । संसार समुद्र तारिणी है, कर्म अरिने त्राशिनी ॥ १ ॥ दान शील तप तीनों भावना से सफल हो । शिव मिलावनी पाविनी, कषाय शैल विनाशिनी ॥ २॥ वन रहो चाहे घर रहो.भाव विन करणी वृथा । गुण स्थानारोहन मोह ढाहन, परम ज्ञान प्रका. शिनी ॥३॥श्रेष्ठ जीरण स्वर्ग में गए,भवन में भर्त केवली । मरुदेवी भगवती को, शिव धाम निवाशिनी ॥ ४ ॥ गुरु के परसाद से, करे चौथमल ऐमा कथन । ऐसी भावो भावना, सदा हपोनन्द विलाशिनी ॥ ५ ॥ . . ४५ कुस्त्री. (तर्ज-थारो नर भव निष्फल जाय जगत का खेल में ) मिले पाप उदय कुलक्षणीनार इन्सान को ॥ टेर ॥ पति से करे विरोध सदा, और बोले कटु जबान को । हुक्म चलाये पति के कार, माने नौकर दुकान को ॥१॥ मने परणिया जदसुं थाने, अन्न मिल्यो है खान को। सारा घर को काम चलाऊं, यूं वाक्य कहे अभिमान को ॥२॥ कुटल कलेसणी व्यभिचारिणी, करे कुधान शुद्ध धान को । पियर सासरा की तज लजा, लिहाज नहीं खानदान को॥३॥स्वछंद हो उल्टी चले, नहीं माने पति फरमान को । साधु सत्यां की करे बुराई, नहीं काम पुण्य दान Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (:३२) जैन सुबोध गुटका। को ॥ ४॥ कुलक्षणी कहे पति मरे कद, विनती कर भग-' वान को। गुरु प्रसादे चौथमल कहे, वह नारी जा नके स्थान को॥ ५॥ ४६ सीता प्रण. (तर्ज-ना छेड़ो गाली दूगारे भरवादो मोए नीर) .. मैं दिलोजान से कहतीरे, स्वप्ने में वंछुनाय । मैं सांची सांची बोलुंरे, पर नरने बंछु नाय ॥ टेर ॥ इस महेन्द्र बाग के माई, दिया अगनी कुण्ड रचाई । खड़े राम लछमण भाइरे ॥ १ ॥ कर स्नान वो सीता माई, अग्नि के कुण्ड पर आई । सब सुनजो लोग लुगाई रे ॥ २॥ प्रभु छोड़ी मुझको वन में, सब रहगई मनकी मन में । अब कौन सुने विपिन में रे ॥३॥ मेरे शिर पर कलंक चढाया,पाप्यों ने दोष लगाया। क्या हाथ में उनके आयारे ॥ ४ ॥ है उज्ज्वल मेरी सारी, कोई दाग न लगा लगारी । है रवि शशी साख तुम्हारी रे ॥ ५ ॥ जो नहीं हो दोप लंगारा, मिट अगनी हो जल सारा | सती कूद पड़ी उस वारारे ॥६॥ फूलों की वृष्टि वरसावे, सत धर्म वहां प्रकटावे । यूं चौथमल दरसावरे ॥ ७ ॥ ४७ काल से सावधान. तर्ज पनजी मुंडे बोल . "माथे गाजेरे या फौज काल की, ध्यान में लाजेरे ॥टेर । पूर्व पुण्यं से पाई संपदा, खाई. मतिः खुटांजरे । Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टका। nimiimmm जैन सुबोध गुटका । (३५) चुगने जावे ॥२॥ जैसे ख्वाब में बादशाहों के शिरपर छत्र धरावे । ताजिम देते हैं हुरमा उनको, चश्म खुले विरलावे ॥ ३ ॥ जैसे खेल रचत वादीगर, प्रत्यक्ष अंब दिखावे । क्षणभरमांही देखो तो प्यारे कुछ नहीं नजरांगावे ॥४॥ पुगलिक है सुख जगत का, ज्ञानी यूं फरमावे । चौथमल कहे सुनरे चेतन, नाहक तू ललचावे ॥ ५॥ . . . ५१ तम्बाखू.निषेध, ..., (मारो बनो नखरारोरे हाथी के होदे तोरण बांधसी) 'प्रीतम से पदसण नित्य उठ विनवे, मत पियो तमाखू ॥ टेंर । नान्या का माईजी, तमाखू मत पियो बरजा आपने ॥ टेर ॥ कहता.प्रावे.लाज-घणी पण, था लेवो जद श्वास । मुंडाने तो डोडो.राखो, माने आवे.बास जी ॥१॥ पीला दाग लग्या हाथों के. पीला पड़ गया दांत चांसी से नहीं आवें निंद या, म्हाने सारी रात ॥ २ ॥ पीके' विगाड्यो प्रांगणो सरे,खुणो विगाड्यो खाय। संघ विगाड्यो वस्त्र ने सरे, कहूं केठा लंग ताय ॥३॥ तुरत हाथ लंबो कियो सरे, आग तमाखू कान । मंगत आदतं अणी सीखाई, उत्तम छुड़ाई लाज ॥ ४॥ पंडित मुख मैंने सुना . सरे, तमाल पत्र अधिकार । पीवे सों शूकर वनेस यो, दाता नरक द्वार ॥ ५ ॥ खाया पीया विना तमाखू, वादी मनें सतावे । इण कारण नान्या की वाई, मांस रयो न जावे ॥ ६ ॥ लाखों मनुष्य नहीं पिये तमाखू कई सारा मरजावे । थांके सामल जीमणों सरे, माने नहीं Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) . जैन सुवोध गुटका । सुंहावे ॥ ७॥ बैठ मंडली पिवो तमाखू, आनो रोज बि- गाड़ो। एक वर्ष को लाभ खरच थे, पति राज विचारो ॥८॥पी तमाखू गया दुकान पे, नान्ये चिलम उठाई। . मना कियो मान्यो नहीं मारो, उलटी करी लड़ाई ॥ ६॥ सूता बैठा प्रभुनाथ तज,याद तमाखू आवे । अंत समयभी हायः .: तमाखू, जिवड़ो यो डुल जावे ॥१०॥ विडी सिगरेट जरदो : तमाखू, से दुखिया हिंदुस्तान । क्रोडो रुपेका सालमें सरे होय रयो नुकसान ॥ ११ ॥ गुरू प्रसाद चौथमल कहे,आज सभा दरम्यान । सुंदर को केनो जो माने, सो प्रतिम सुजान ॥ १२॥ ___५२ शिक्षा दर्पण. (तर्ज-ल वणी लंगडी) अच्छी सोवत मिली पुण्य से, तुझको शुद्ध बनना चहिये । बद सोबत पाकर तरेको, कभी विगडना ना चहिये ।। टेर ॥ निर्दोष देवकी सेवा करो, कुदेव को ध्याना ना चहिये। रत्न मिले तो फिर पापाण उठाना ना चहिये । जो राणी मिली तो महेतराणी से, प्रेम लगाना ना चहिये । जोहरी होकर तुझे खोटा, न कभी खाना चाहिये । मात पिता भाइयों के साथ में, तुझको लड़ना ना चहिये ॥१॥ सब से प्रीति रखना तुझको वैर बसाना ना चाहिये । रस्तमें चलते तेरेको, पांव धीसनाना चाहिये। हर. बातों में तेरेको.. कभी रिसाना ना चहिये। मिष्ठ वाक्य वशीकरण मंत्र है, Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . . . - जैन सुबोध गुटका। (३३) दान दया को लावो ले, आगे सुख पाजेरे ॥ १॥ सत्संग में प्राणी तू तो, वेगो २ आजेरे । साथीड़ा ने भाइला ने, लारे लाजेरे ॥ २॥ पर नारी और वैश्या के संग, भूल चूक मत जाजेरे। दारुने तू खोटो जाणी, मन पीजे पिलाजेरे !॥३॥ फागण में गेरया के संग, डफड़ा मति बजाजेरे । भूडो २ मुख से बोली, मति जन्म गुमाजेरे ।। ४ ॥ गधा की असवारी करने, मत झाडू का चंवर दुराजेरे । मत दोरजे पाणी ने, मत धूल उड़ाजेरे ॥५॥ मनुष्य जन्म का हाट में श्रा,खाली हाथ मत जाजेरे । काम क्रोध मद लोम वणिक से, मति ठगाजेरे ॥ ६॥ चार दिन की है या जवानी, मत मूंछां बंट लगाजेरे । अजुन भीम भी नहीं रया, करता जोई छाजेरे ॥ ७॥ भांग तमाखु गांजो छोड़ी, पूरो प्रण निमाजेरे । गुरु प्रसादे चौथमल कहे जिन गुण गाजेरे ॥८॥ ४८ दान की महत्वता. (तर्ज-सेवो श्री रिष्टनेम २ जहां घर वरते कुशल जी क्षेम) दीजो दान सदारे २ जहां घर वरते सुख संपदा ॥टेरा पूर्व भवमें वेराई थी खीर। शालिभद्र हुए कैसे अमीर ॥ १॥ धन्ना सेठने दियाथा दान । तो पग २ प्रगटा उनके निधान ॥२॥ सुवाहु कुंवरजी हुआ पुण्यवान । दानको प्रताप .. बतायो वर्द्धमान ॥३॥ रिद्धि सिद्धि नव निधि धरे।शुद्ध भाव • सुं जो दान करे ॥ ४ ॥ दानेश्वरी की महिमा अपार । स्वर्ग Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ...३४) 1. जैन सुवोध गुटका । मोक्ष सुख आगे तैयार ॥ ५॥ पूज्य मन्नालालजी बीज का चंद । चौथमल कहे सदा वरते आनंद ।। ६ ॥ . ४६ कटुक वाक्य निषेध. (तर्ज-पनजी मुंडे बोल ) _ छोड़ अज्ञानीरे २ यह कटुक वचन समझावे ज्ञानीरे ॥ टेर ॥ कटुक वचन द्रौपदी बोली, लौरव ने जब तानीरे। भरी सभा खंचे चीर, या प्रकट कहानीरे ॥ १॥ कटु वचन नारदने चोली, देखो भामाराणीरे हरिको रुखमण से व्याव हुओ, वा ऊपर प्राणी ॥२॥ ऐवंता ऋपिने कटु कह्यो या, कंश तणी पटराणीरे । ज्ञान देख मुनि कथन करयो, पिछे पछताणीरे ॥ ३ ॥ वधु सासुने कटु कहो, हुई चार जीव की हानीरे। कटु वचन से टूटे प्रेम, लीजो पहेचानीरे ॥४॥ थोड़ो जीनो क्यों कांटा वीणो, मति वेर बसानो प्राणीरे । गुरुप्रसादे चौथमल कहे, बोलो निर्वद्य वाणीरे । ॥ ५ ॥ ५० झूठा स्नेह, . . (तर्ज-बाशावरी) पंछी काहे को प्रीत. लगावे, काहेको प्रीत लगावे । पंछी काहेको प्रीत लगावे ॥ देर ॥ यह संसार मुसाफिर खाना आत जात रहावे । प्रात हुए भानु जन निकसे, निज २ रस्ते सिधाचे ॥ १॥ जैसे वृक्ष पे. रवि अस्त भये, पक्षी वासो लहावे । दिन नहीं उगे जहां लग चेतन, आखिर Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. जैन सुबोध गुटका । ( ३६ ) थावेजी । व भूख प्यास विसराई ॥ १ ॥ दस बीस दिनों की आशा फिर करसी प्राण विनाशाजी । यह देर पड़े } हुण माँई ।। २ ।। तरस्यो नीर पे जावे; गरजी निज गरज { 1 वेजी | दुखिया के धीरज नांई ॥ ३ ॥ सुग्रीव अलगरज रहावे, मतलबी जगत कहावेजी । या चौथमल दर साई ॥ ४ ॥ ५६ श्रीराम से लक्ष्मण का कहना : ( दर्ज - बनजारा ) सुन लखन उठे जोश खाई, लिया धनुष बाण कर माई || टर || ऐसा क्रोध बदन में छाया, 'पृथ्वी परवत थरायाजी | कहे सुग्रीव पां श्रयी ॥ प्रभु तरु तले कष्ट उठावे, तु महलों में मोज उड़ावेजी । थने तनिक लाज नहीं आयी || २ || वर्ष समान दिन जाने, छे गुणी रेन हाजी | सोबती है तुझ मांई ॥ ३ ॥ रोगी दवा वैद्य से खावे, हो निरोग उसे विसरावेजी । अत्र लो खुद वचन निभाई ॥ ४ ॥ नहीं तो शाहा शक्ति की नाइ, दूं परलोक पहुंचाईजी | पड़े सुग्रीव चरण के मांई ॥ ५ ॥ फिर ये जहाँ रघुराई, कहे शोध करां अब जाईजी | ये ऐसी चौथमल गाई ॥ ६ ॥ || ५७ सीता से विभीक्षण का कहना ( तर्ज - बनजारा ) पूछे विमीक्षण हितकारी, तुम कौन पुरुष की नारी Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) जैन सुवोध गुटका। ॥टर ।। तुम कौन कहाँ से आया; यहाँ कौन पुरुष तुम्हें लायाजी | दो शंका मेरी निवारी ॥१॥ कौन तात भ्रात कहो सारा; मत राखो शंका लगाराजी। मुझे कहो आप विसतारी ॥२॥ [टेर फिरी] प्रमाणिक पुरुष कोई जानी, सीता बोली यूं बानी ।। टेर । लजा से नीचे नैन कर दीना, कर धुंघट तन ढक लीनाजी। फिर को सुनो कहानी ॥१॥ जनक पिता भामंडज भाई, पति अयोध्यानाथ सुख दाईजी । दशरथ-कुल वधु वखानी ॥ २॥ लक्ष्मण खरदुपण के साथ, लड़ते फिर गये रघुनाथ जी। पीछे पाया रावण अभिमानी ॥३॥ ये चुरा के समतो लाया, मैंने बहुत इसे समझायाजी। लेकिन मेरी नहीं मानी ॥४॥ इसके दिल में बईमानी, मिलेगी मिट्टी में राजधानीजी । इसकी या आई मोत निशानो ॥५॥ कहें चौथमल यूं सीया, मेरे छुड़वाया पियाजी । है रावण को दुखे दानी ॥ ६ ॥ ५८ हनुमान का श्रीराम से कह्वेना. ... (तर्ज-कव्वाली) ) . प्रभु तेरी कृपा से आज, वल इतना रोखावें हम । राक्षस द्वीप से लंका, उठाके यहां पै ला हा ॥१॥ रावण सहित कुटुम्ब सारा, बांध के ला धरें प्रभु पां। कहो निश रावण का, करें ना चार लावें हम ॥२॥ सत्यवती सती सीता को, लाऊं मोद से यहां पर । हुक्म दीजे कृपासिन्धु, 'कार्य करके दिखावें हम ।। ३ ।। चौथमल दाम कहे Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (३७) इसे विसरना ना चहिये ॥ २॥ सम दृष्टी होकर तुझको, राग द्वेप तजना चहिये । श्रावक होकर भैरू भवानी नहीं भजना चहिये । विश्वास देकर नहीं बदलना, अनरथ घडना ना चहिये । सुरासुर मिथ्यात्वी डिगाव, तुझको डिगना ना चहिये। धर्म करनेमें तेरेको कभी नहीं लजना चाहिये ॥३॥ हिंदू होकर जीव की हिंसा, तुझको करना ना चहिये । ब्राह्मण होकर तेरेको, ब्रह्मध्यान धरना चहिये । क्षत्री होकर रक्षा करना, दुश्मन से डरना ना चाहिये । वैश्य होकर श्रद्धा रख, दातापन धरना चहिये । जमीकंद रात्रीभोजन अब तुझको परहरना चहिये॥४॥ संसारमें तिरना क्या मुश्किल दयाधर्म रुचना चहिये । पवित्रहोकर दारु मांस से, तुझे बचना चहिये । धन कुटुंब आवे कर संग, फिर नाहक क्यों पचना चहिये । काम भोग के कीचमें, तुझको नहीं फसना चहिये । चौथमल कहे झूठ गवाह को, कभी नहीं भरना चहिये ॥५॥ ५३ नीति का प्रकाश. (या हसीना वस मदीना करबला में तू न जा) उज्ज्वल नीति की रीति से, प्रीति करो मेरे सजन । विजय हो संसार में, ऐसी नीति हैगा रवन ॥ टेर ॥ नीति से भय नाश हो, यश चन्द्रमा परकाश हो। सर्व लोक को विश्वास हो, जो कुछ करे वह नर कथन ॥१॥ नीति से इज्जत बढ़े, सरकार भी शादर करे । शृङ्गार यह सबसे Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८) जैन सुवोध गुटका । सिरे जूं नाक से शोभे बदन ।। २ ।। कपट से परधन हरे स्वाथे वश अकृत्य करे । अन्याय से जो ना डरे, लिख हाथं से झूठा कथन ॥ ३ ॥ ऐसे अनीतिवान नर, द्विलोक में निंदित बने । व्यवहार भी रहता नहीं, कोई नहीं माने वचन ॥४॥ प्राण गर जाय तो जाय, नीति कभी तजना नहीं। चौथमल कहे इच्छित फले, कीजिये नीति का यतनं ॥ ५॥ . . . . . ५४ सुपुत्र लक्षण, (तर्ज-थारो नरभव निप्फल जाय लगत का खेल में) . . माने मात पिता की केनः पुत्र पुनवान है ॥ टेर।। कुल दीपक कुल चन्द्रमा सरे, कुल में धजा समान है। सरल नम्रता अधिक बदन में, जो पूरा लजावान है ॥ १॥ उपकार माने मात पिता को, रखे सवायो मान है । विद्या वन्त पर गुण ग्राही, बोले सत्य जवान है ॥ २॥ सुख शांति की करे बात जो, कुल मर्यादावान है। कुसंगत में कभी न जावे, इजत का पूरा ध्यान है ।। ३ ।। मुनिराज की करे वन्दगी; कर करुणा दे पुन्यदान है। गुरू प्रसादे चौथमल कहे; मानु दशरथ सुत समान है ।। ४ ॥ . ___ . . ५५ लक्ष्मण से श्रीराम का कहना - (तर्ज वनजारा) कहे राम सुन लक्ष्मण भाई.. कौन जाने. पीड़ पराई ॥ टेर। सीता की शुद्ध कुण लावे; विपता. में नींद नहीं Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुशेध गुटका । ( ४१ ) ऐसे, सत्य हनुमान तुम समरथ । एक दफे जाय कर आवो, खबर जल्दी से पावें हम ॥ ४ ॥ ५६ हनुमानजी के साथ मुद्रिका भेजना, ( तर्ज- श्री नंदजी के कन्हैयालाल मारे घर श्रावजो ३ ) मुद्रिका मुझ करकी हनुमान, लेई ने जावजो ३ || ढेर || कही जो सीताजी ने खास, प्रभुको चित्त तुम्हारे पास | लग रही एक मिलन की आश, यही सुनावजो ३ ॥ १ ॥ स्वाद न लागे श्रन जल पान, सुन्दर एक ही वेरा ध्यान | योगी जैसे भजे भगवान, धैर्य धावजो ३ ॥ २ ॥ विश्वास खूप उसे दिराजो, कहजो मतना प्राण गमाजो | आता चूड़ामणि तुम लाजो, भूल मत जावजो ३ ॥ ३ ॥ चौथमल कहे राम यूं फेर, लक्ष्मण आने की है देर । मार रावण को बरतावे खेर, न संशय लावजो ३ ॥ ४ ॥ ६० प्रत्युत्तर में चूड़ामणि का भेजना, (तर्ज- श्री नंदजी के कन्हैयालाल मारे घरे श्रावजो ३ ) लेकर चूड़ामणि हनुमान, वेगा जाव जो ३ ||टेर || प्रभु ने कहीजो तुम्हारी दासी, आपके दर्शन की है प्यासी । जानकी रहवे सदा उदासी, सविनय सुनावजो ३ ॥ १ ॥ मरती सिया न संशय लगार; जीवी नाम तंथों आधार । लीजो सुध कौशल्या कुमार; न देर लगावजो ३ ॥ २ ॥ यह है दुश्मन का ही स्थान; हुश्यार तुम रहना हनुमान | अरज मेरी जहां पर है. भगवान; ठेठ पहुंचावजो ३ ॥ ३ ॥ · Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२ ) जैन सुबोध गुटका | चौथमल कहे सीता हितकार, लगाओ मत रघुवर अब चार । भैया लछमन को ले लार; बेगा आवजो ३ ॥ ४ ॥ ६१ मनुष्यत्व की उत्कर्षता. ( तर्ज - माडू ) जिवराज थे तो थाछो प्राक्रम फोड़ो म्हाकाराज || ढेर || काया वाड़ी गुलावकीरे, सींचता कुम्हलाय । चेतना होवे तो चेतजोरे, जोवन ढलियो जाय ॥ १ ॥ नर देह खेती मांयन, पंछी बैठा पांच । गुण रुप्यो दानो चुगेरे, लंबी जिसके चांच || २ || रस्तागीर देख्यो मानवीरे ऊजड़ होतो खेत । कोई गफलद में हो मतीरे; उपकारी हेला देत || ३ || थोड़ो सो उद्यम करोरे, माल जावते होय | परमादी जोको रहेरे, गयो जमारो खोय ||४|| खेती तो निपजी थकीरे, कुंडरिक दीधी खोय । गति उद्यम कर पुंडरिक मुनीरे सिद्ध पामी सोय || ५ || उगणीसो चोसठमेरे, पोप आगरे मां । गुरु हीरालाल जी के प्रसादे, चौथमल यों गया ॥ ६ ॥ ६२ उद्यम ही सिद्धि का हेतु. (तर्ज- आसावरी ) पुरुषारथ से सिद्धि पावे ॥ ढेर || पुरुपारथ ही बंधु - " जगत में, दुष्कर कार्य करावे । पुरुषारथ करके महा मुनिवर खप्पक श्रेणी चढ़ जावे । उद्यम हीन दीन नर वांकी कुण माखी उड़ावे ॥ २ ॥ सत्य शील आचार तपस्या । पुरुपारथ पार लगावे । अरिहंत सिद्ध लव्ध पात्र पद । सो सब Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (४३) दुःख मिटावे ॥३॥ पुरुषारथ कर रामचन्द्रजी, सीता को लंका से लावे । उद्यम हीनके मनके मनोरथ, दिलके बीच रहजावे ॥४॥ पुरुषारथ करके चींटी देखो, वजन खेच ले जावे । पुरुषास्थ करके राजा बादशाह, समर जीत घर आवे ॥ ५ ॥ परम धरम में पुरुषारथ कर, आवागमन मिटावे । चौथमल कहे गुरु प्रसादे, जाके जग गुण गावे ॥६॥ ६३ सत्य की जय. (तर्ज-मैं तो मारवाड़ को वनियो) थेतो सांवा बोलो बोलजी, सगलाने वाला . लागो ॥ टेर ॥ प्रिय अने हितकारी बानी, ज्ञानी सत्य बखानी । सत्य छता अप्रिय कटुक हो वोही असत्य कहानी ॥ १ ॥ झूठा बोल प्रतीत जमावे, कई कुयुक्ति लगावे । सत्य ‘भ.पी निर्भयहो रहवे; सुर जिसका गुण गावे ॥२॥ सत्य खीर प्रिय मिश्री सम है, असत नौन सा खारा । क्रोध लोभ भय हास्य से बोले, कभी न हो निस्तारा ॥ ३ ॥ तोतली जीभ गूंगा मुख रोगा, दुस्वर मूरख जानो। अनादेज वचन इत्यादिक, झूठ तणा फल मानो ॥ ४ ॥ चोखी जीभ सुस्पष्ट भापी, पंडित सुस्वर जीका । निर्दोप आदेज वचनादिक सब, सत्य तना फल नीका ॥५॥ ऐसी जान असत्य को छोड़ी, बोलो निरवद वाणी । चाथमल कहे गुरु प्रसादे मिले मोक्ष पटरानी ॥ ६ ॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | ६४ दारू से होती हुई दुर्घटना, ( तर्ज- मांड ) हो सरदार थें तो दारुड़ा मत पीजो म्हांका राज || ढेर | श्राम फले परिवार सेरे, मउया फले पत खोय । जाका पानी पीचतारे, तामें बुद्धि किम होय || हो || १ || पीपी प्याला हो मतबाला, हरकांई गिरजाय । गाली देवे बेतर हरे, सुध बुध को विसराय ॥२॥ वमन होय बाजार मेंरे; मखियां तो भिनकाय । लोग बुरा थाने कहेरे; मांसु सुना न जाय ॥ ३ ॥ इज्जत धन दोनों घटेरे, तन सुं-होय खराब | चौथमल कहे छोड़ो सज्जन; भूत न पीयो शराब ॥ ४ ॥ ६५ स्त्री शिक्षा ( ४४ ) ( त - वनजारा ) सखि मान कहन तू मेरी; जिससे सुधरे जिन्दगी तेरी || || फिरे जोबन में मद माती । नित नया शृङ्गार सजाती जी । नानाविध गहना पहरी ॥ सखी ० ॥ १॥ हो परमेश्वर से राजी तू मतकर नखरा बाजी जी । ऐसी वख्त मिले कव फेरी ॥२॥ ऐसी जान गफलत तज दीजे, दया दान बीच जस लीजे जी । जो चले वहां पर लेरी || ३ || तेरी पुष्प सी कोमल काया | तापे कामी भंवर लुभाया जी । सो होगा राख की ढेरी |४| तू. जाने कंथ शुभ प्यारा न करे कभी किनाराजी । है श्वास वहां तक देरी ।। ५। तुझे वन में छोड़ के टरके, वो दूजी कामिन वरके जी नहीं याद करे कि वे री ॥ ६ ॥ पुन्य पाप का तू फल पावे,वहां • Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। (४५) mu कोई न आन छुड़ावे जी । फकत तूही अकेली हैरी ॥७॥ शील धर्म क्षमा ले धारी; कहे सब अच्छी ये नारीजी । न बोले एरी गरी कहे चौथमल हितकारी ले देव गुरु शुद्ध धारीजो। धरो ध्यान प्रभुका सबेरी ॥६॥ ६६ स्त्री की धूर्तता से बचो (त-लावणी रंगत छोटी) मत पड़ त्रिया के फंद मानले कहना है नया रंगसी प्रीत चित्त क्या दना टे॥ये सूरत की तो दिखती भोली भाली। उसने में बैंगी पक्की नागिन काली। हँस २ रिझावे लगा हात की ताली। फँसे इसके जाल में पढ़े लिखे कईजाली । नहीं इसके विषकी दवा होवे कर चैना ॥ है०॥२॥ नहीं करना कोई विश्वास ऐसी कपटन का । कर देगी सत्यानाश तेरे तन धन का। ये बुरी लुटेरी लूटे रस जोबन का। किया इसका संग वो अधिकारी नरकनका लेती चलते को चींध तीर यों नैना ॥२॥ ये मात पिता भगनी से प्रीति छुड़ावे । इक क्षणभर में नाराज खुशी हो जावे । कभी बोले मधुरे न कभी घुरकाये। इसकी माया का पार कहो कुण पाये । बड़े २ वीर को चलावे अपनी एना ॥३॥ इसके कारण दशकंठ ने दुःख उठाया। पुन पदमनाभ ने अपना राज गमाया । भीमजीने कीचक को मार गिराया। फिर इसके भोग से त्रपत नहिं हो काया। कहे चौथमल सत शील रत्न को लेना ॥४॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) जैन सुवोध गुटका। ६७ चेतन ! होशियारी से रहना. (तर्ज--मांड) हो म्हारी मानो क्यों नहीं कहन २ वटाउमा खरची ले ले लार ॥ टेर ॥ तू मुमाफिर खाने में सोतो, झलती मांझल रात । श्रास पास तेरे हेरु फिरत हैं, और न कोई सात ॥ हो० ॥१॥ तीन रतन तेरे बंधे गठरीमें, जिनका करियो जतन । गफलत में रहियो मतीरे, नरभव मिले कठिन ॥२॥ पर भूमि पर भूप कीरे, तेरो यहां पर कौन । वृथा माया में फँसीथे तो,भुगतो चौरासी जौन ॥३॥ इस मुमाफिर खाने माही, लख आवत लख जात । सुकरत खर्ची पल्ले बांधो, तू मत जा खाली हाथ ॥ ४ ॥ भोर भये उठ जावनोरे, चार पहर की बात । चौथमल कहे सुयश लीजो, ये जग में रहजात ॥ ५ ॥ ६८ सांसारिक कृत्यों से चेतनको बचना. (तर्ज-पालकी) थारो नरभव निष्फल जाय जगत के खेलमें ।। टेर ॥ सन्दर के संग सेज में सोवे, रात दिवस तू महल में । इत्तर लगावे पेच मुकावे, जावे शामको सैलमें ।। थारो० ॥ १ ॥ कंठी डोरा डाल गले में, बैठे मोटर रेल में । मोत पकड़ लेजावे तोकू, हवालगे ज्यू पेल में ॥ २॥ कमूमल पाग केशरिया बागा, . पटा चमेली तेल में । काम अंध घूमे गलियों में, होय छबीलो छेल में ॥३॥ धर्म करेगा तो Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। (४७) 'मोक्ष वरेगा, बदी चौरासी जेल में । चौथमल हित शिक्षा दीनी, इन्दौर अलीजा शहरमें ॥४॥ . ६६ गुरु शिक्षा चेतन को. (तर्ज-मांड) चेतन अब चतो अवसर पाय, थाने सद्गुरुजी समझाय ॥ टेर ॥ काल अनंतो भव मांही फिरतो, पायो नर अवतार | तारन तरन सद्गुरु मिल्यारे, हृदय ज्ञान विचार । चे०॥१॥ तन धन यौवन जान अथिर तू, बीजूको चमकार । पलटत वार न लागे निशीभर, सुपना सो संसार ॥ २ ॥ जो नर ढोल्ये पोढ़तारे, फूलन सेज बिछाय । बत्तीस विध नाटक को देखतारे, ते पण गया विरलाय ॥३॥ टेड़ी पगड़ी बांधतारे, चावता नागर पान । लाखों फौजां लारे रहती, कहां गया सुलतान ॥ ४॥ अवतो चेतो चतुर सुजान मत जगमें ललचाय । चौथमल कहे लावो लीजे । प्रभु से ध्यान लगाय ॥ ५॥ ७० जैसे कर्म वैसे फल. (तर्ज-ठुमरी) कर्मन की गति ज्ञाता सुनावे । जैसा करे वैसा फल पावः॥ टेर ॥ दोनों भाई राम और लक्षमण । देखोजी बनवास रहावे ॥ कर्म०॥१॥ हरिश्चन्द्र राजा तारादे रानी ताके पासे नीर भरावे ॥२॥ सीता सती चन्द्रसी निरमल कलंक उतारने धीज करावे ॥ ३ ॥ क्रोड विलाप कियां Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) जैन सुवोध गुटका। .nnnnnnnnnnnnnx MAANW नहीं छूटे। ज्ञानी तो हंस २ के चुकावे ।। ४ ।। चौथमल कहे कर्म मिटे सब, वीर प्रभु से जो ध्यान लगावे ॥ ५ ॥ ७१ प्रभु भजन प्रतिबोध. (तर्ज-ठुमरी) प्रभु के भजन पिन कैसे तिरोगे। सांच कह फिर सोच करोगे ॥टेर । अाठ पहर धंध लागो । सजन कुटुम्ब बीच नेह धरोगे ॥ प्रभु॥॥ १ ॥ मोह नशाके मांही छक के । बुरे कर्मों से नहीं डरोगे ॥ २ ॥ ज्वानी चली है झटपट । ज्यों नदियां को पूर उतरेगो ॥३॥ परभव में तेरो कोय न साथी । तेरो किमो फिर तुहीं भरेगो ।। ४ ।। चौथमल कहे सत् गुरु सीख सुन । सभी काज तेरो सुधरेगो ॥५॥ ७२ सत्य ही स्त्री का प्राभूषण, (तर्ज-बनजारा) सत्य धर्म धारोरी बहिना, क्या काम आवेगा गहना. ॥ टेर ॥ तेरे हार रेशमी सारी, सब लेगा तुरत उतारीजी । जब मुदित होगा नयना ।। सत्य०. ॥१॥ देह मूत्र मल मयी गंधी, मत बन काम में अंधीजी, है यौवन ज्यू जल फैना ॥२॥ कर-शोभा कंकण नाही, कर दान खुब हुलसाइजी, कर जीवां की तू जयणा ।। ३ ।। पर पुरुष समझ तू भाई, प्रिय वाक्य वद सुखदाईजी, चल कुल मर्यादा की एना ॥४॥ सुन नित्य शास्त्र की वाणी, जिससे सुधरेगा Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (४) NAAN aanawarwwwwwwww wwwwnnamruaamannaahaa जिन्दगानी जी, यह चौथमल का कहना ॥ ५ ॥ ___७३ सत्संग की महिमा. (तर्ज या हसीना बल मदीना, करबला में तू न जा) लाखों पापी तिरगए सत्संग के परताप से । छिन में बेडा पार हो, सत्संग के परताप से ॥ टेर ॥ सत्संग का दरिया भरा. कोई न्हाले इसमें आन के । कटजाय तन के पाप सब; सत्संग के परताप से ॥ लाखों ॥१॥ लोह का सुवर्ण बने, पारस के परसंग से । लट की भंवरी होती है, सत्संग के परताप से ॥२॥ राजा परदेशी हुआ, कर खून में रहते भरे । उपदेश सुन ज्ञानी हुआ, सत्संग के परताप से ॥३॥ संयति राजा शिकारी, हिरन के मारा था वीर | राज्य तज साधु हुआ, सत्संग के परताप से ॥ ४॥ अर्जुन मालाकार ने, मनुष्य की हत्या करी। छ: मास में मुक्ति गया, सत्संग के परताप से ।। ५ ॥ एलायची एक चोर था श्रेणिक नामा भूपति । कार्य सिद्ध उनका हुआ, सत्संग के परताप से ॥ ६॥ सत्संग की महिमा बड़ी है, दीन दुनियाँ बीच में। चौथमल कहे हो भला, सत्संग के परताप से ॥७॥ ७४ कतकर्म फलाफल. (तर्ज-विना रघुनाथ के देखे) . शुभाशुभ जो किया तुमने वही अब पेश आते हैं। कभी नीचा दिखाते हैं, कभी ऊंचा बनाते हैं । टेर ॥ आश्रय हिंसा असत्य चोरी; भोग ममत्व में राचे । कमें बंधन यही कारण, गुरू Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) जैन सुबोध गुटका। प्रगट जिताते हैं, | शुभा० ॥१॥ कम मत बांधना कोई, कर्म शेतान है जहां में । अवतार श्री राम लक्षमण को, उठा बन में ले जाते हैं ॥२॥ त्रिखंडी नाथ जो माधव, थे यादु वंश के भानु । जरद कुमार के जरिये, पांव में बाण खाते हैं ॥ ३ ॥ सत्यधारी हरिचन्द को, चंडाल के घर लेजाते हैं। पतिव्रता सती तारा, से ये पानी भराते हैं ॥४॥ कभी तो नर्क के अन्दर, ताते स्तंभ कराते हैं। कभी सुर लोकके अन्दर, ताज शिर पर सजाते हैं।। ५ ॥ अजब लीला करम की है,कथन करने में नहीं आती। राजा नल को दमयंति से, जुदाई ये कराते हैं ॥६॥ कथे यों चौथमल बानी, अरे सुन लीजो भव प्राणी । भजो तुम देव निर्मानी, करम सब भाग जाते हैं ॥ ७ ॥ ७५ उद्बोधन. (तर्ज--या हसीना वल मदीना,करबला में तू न जा) उठो बादर कस कमर, तुम धर्म की रक्षा करो। श्री वर के तुम पुत्र होकर, गीदड़ों से क्यों डरो ॥टेर ।। दुर्गति पड़ते जो प्राणी; को धर्म आधार है । यह स्वर्ग मुक्ति में रखे, तुम धर्म की रक्षा करो ॥ उठो० ॥ १॥ धरमी पुरुष को. देख पापी; गज श्वानवत् निन्दा करे । हो सिंह मुश्राफिक जवाब दो, तुम धर्म की रक्षा करो ॥ २॥ धन को देकर तन रखो, तन. देके रक्खो लाज को । धन लाज तन अर्पन करो तुम धर्म की रक्षा करो !! ३॥ माता पिता भाई जंबाई, दोस्त फिरे तो डरे नहीं । प्रचार. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'जैन सुबोध गुटका। (५१) धर्म सें मत हटो, तुम धर्म की रक्षा करो ॥ ४॥ धैर्य का धारो धनुष और तीर मारो तर्क का । कुयुक्ति का खंडन करो तुम, धर्म की रक्षा करो ॥५॥ धर्मसिंहः मुनि लवजी ऋषि लोका शाह संकट सहा । धर्म को फैला दिया, तुम धर्म की रक्षा करो ॥ ६॥ गुरू के परसाद से कहे, चौथमल उत्साहियों । मत 'हटो पीछे कभी तुम, धर्म की रक्षा करो ॥७॥ ७६ स्त्रियों को प्रतियोध, (तर्ज-यारो नरभव निष्फल जाय जगत का खेल में) - सखी सत्य देऊ में शिख, हृदय घर ध्यान तू ।। टेर ॥तन 'सज कर सिंणगार यह सोले, मुख में चाबे पान तू । दया नहीं लावे जीवों पर,पेसी बनी मस्तान तू ।। सखी० ॥१॥ योवन रंग पतंग उड़े कल,क्यों बनी नादान तू । पुण्य योग से हुई मनुष्यणी, दिल में कर अहेसान तू ॥२॥ कुदेव कुगुरु कुधर्मका, पक्षपात मन तान तू । किधर गई है बुद्धि तेरी, नहीं पीती जल छान तू ॥३॥ देवर जेठ कंथ कुटुम्ब संग, मत कर ताना तान तु । कानों से सुन बाना प्रभु की, हाथों से दे दान तू ॥४॥ पर पुरुष को ऐसा समझ, ले भाई बाप समान तू । लज्जायुक्त नयन पढ़ विद्या, तन से तप ले ठान तू ।। ५ ।। गंधी देह का क्या है भरोसा, मत कर मान गुमान तू । चार दिनों की समझ चांदनी करले सत्य धर्म ध्यान तू ॥ ६॥ गुन्नीसे इकतर साल में लश्कर ग्रीष्म ऋतु जान तू । गुरु प्रसाद चौथमल कहे हो सीता सी प्रधान तू ॥७॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) जैन सुबोध गुटका। mmmmmmmmmurarimr..xirmirmiraamanarrrrrram.or.am.aiironmrroranik ७७ कौशल्या का पुत्र वधू को बनवास से रोकना - (तर्ज विना रघुनाथ को देखें) . सिया को सासुजी लेकर, बिठाई गोदी के अन्दर । कठिन वनवास का रस्ता, कहां जाती वधू सुन्दर ।। टेर। पुरुष का पांव बंधन हो, जो परदेश संग नारी । सासु श्वसुर की करे . खिदमत, पति सेवा से ये बहतर ।। सिया० ॥१॥ बदन नाजुक है तेरा, बैठ पीजस में फिरती है। वहां पैदल का चलना है, सूल का फेर है खतर ॥२॥ कठिन सहना क्षुधा तृषा, रहना फ़िर वृक्ष की छाया। परिसहा ठंड गरमी का, मानले कहन रहजा घर ॥ ३॥ हरगिज यहां न रहूंगी, रहूं जहां नाथ वो रहये । पतिव्रत धर्म यही सहे, दुख सुख संग में रहकर ॥ ४ ॥ चौथमल कहे सच्ची नारी, पतिव्रता पियु प्यारी । लेवे शोभा जहां अन्दर, पति सेवा में यूं रह कर ॥ ५ ॥ ७- प्रोत्साहन, . (तर्ज-या हसीना वस मदीना, करवला में तू न जा) - अय जवानों चेतो जल्दी; करके कुछ दिखलाइयो । उठो अब बांधो कमर तुम करके कुछ दिखलाइयो । टेर । किस नींद में सोते पड़े; क्या दिल में रखा सोच के । वेकार वक्त मत गुमाओ; करके कुछ दिखलाइयो । अय० ॥१॥ यश का डंका बजा; इस भूमि को रोशन करो । एश में भूलो मती: तुम करके कुछ दिखलाइयो ॥२॥ हिम्मत बिना दौलत नहीं; दौलत बिना ताकत कहां । फिर मर्द की हुरमत कहां, करके कुछ दिखलाइयो ॥३॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। (५३) हिकारत की नजर से; सब देखते तुमको सही । मरना तुम्हें इससे बहत्तर, करके कुछ दिखलाइयो ॥४॥ जागन यूरोप देश ने, किनी तरक्की किस कदर । वे भी तो इन्सान हैं, करके कुछ दिखलाइयो ।॥॥५॥ उठा के गफलत का पड़दा, सुधार लो हालतं सभी । इन्सान को मुश्किल नहीं, करके कुछ दिखलाइयो ॥ ६॥ जो इरादा तुम करो तो, बीच में छोड़ो मती । मजबूत रहो निज कौल पर, करके कुछ दिखलाइयो ॥ ७॥ नीति रीति शान्ति क्षमा; कर्तव्य में मशगूल रहो । खुद और का चाहो भला, करके कुछ दिखलाइयो ।!! काम अपना जो बजाना, 'लोगों से डरना नहीं । उत्साह से बढ़ते चलो, करके कुछ दिखलाइयो ॥8॥ संतान का चाहो भला, रंडी नचाना छोड़दो । वृद्ध बाल विवाह बंद करो, करके कुछ दिखलाइयो।। १०. ॥ फिजुल खर्ची दो मिटा, मुँह फूट का काला करो । धर्म जाति की उन्नति, करके कुछ दिखलाइयो ।। ११ ॥ दुनियां अव्वल सुधर. जातो, दीन कोई मुश्किल नहीं । चौथमल कहे इसलिये, करके कुछ दिखलाइयो।॥ १२॥ ७६ स्त्रियों को हित शिक्षा. ( तर्ज-गवरल ईसरजी कहे तो हंसकर बोलनाए ) .. सुन्दर हित की देऊं में सीख, हृदय में धारजेए । दुर्लभ उत्तम तन को पाय तू, कुल उजवालजेप ॥ टेर | कका कंथ आज्ञा को, नहीं उलंघनाए । खखा क्षमा धार कर रहिजे, गगा गाल. कलह तज दीजे, घघा घर में सुयश लीजे । 'नना नरम बयन तज कठिन मति उचारजेए । सुन्दर० ॥ १॥ चचा Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) - जैन सुवोध गुटका। चंचल वुद्धि छाड़ धैर्य तू धारणाए । छछा छलवल दूर ही टाल, जजा जयणा विन मत चाल । झझा झटपट नीति संभाल । नना निर्लज गाना दूर तू निवारजेए ॥२॥ टटा टेक तजी सुगुरु धारणाए । ठठा ठपको न कुल के लागे, डडा डरे पाप से सागे, ढढा ढेठाई को त्यागे । नना निसंदेह यश तेरा होय विचारजेए ! ३॥ तता तन से तपस्या करके जन्म सुधारनाए । थथा स्थिर मन से पढ़ ज्ञान, इदा दीजे सुपात्र दान, धधा ध्याजे तू धर्म ध्यान । नना नवतत्वों का जान पणा तू चिंतारजेए ॥ ४ ॥ पपा पर पुरुपों की सेज कभी मत बैठनाए । फफा फर्क रखो मतकाई । ववा वाप श्वसुर के मांही। भभा भाभी नणद एक साही । ममा मर्म ववन को दूर टारजेए ॥ ५॥ यया यत्ना से तू जीवदया नित्य पालगाए । ररा रमत गमत ने टाल । लला लख पतिव्रत धर्म पाल । वा वस्त मोल निहाल । शशा श्रवण करी गुरु वचन मती विसारजेए ॥ ६ ॥ पषा पट द्रव्यों का भेद गुरु मुख धारणाए । ससा समकित निर्मल पार । हहा हीरालाल गुरुधार । कहता चौथमल हितकार । जोड़ा कृष्णगढ़ के मांय सलूणी धारजेए ॥ ७ ॥ ८० नेकी का नतीजा नेक (तर्भ बिना रघुनाथ के देखे नहीं दिलको.) सजन तुम नेकी कर लेना; हमेशा नेकी पर रहना । सज्जन चन्द रोजका जीना; इसी पर ध्यान कर लना ॥ टेर ॥ सज्जन तेरा ताता और भाई मिले मतलब से वे आई, धर्म पर . लोक में सहाई; इसीको साथ में लना ॥ सजन० ॥ १ . सज्जन तेरे घर में सुन्दर नार; रात दिन करता उससे प्यार । मगर आती नहीं ये लार, यही सत्पुरुषों का कहना ॥ २ ॥ सज्जन Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। (५५) तुझे युवानी का जोर, राज्य धन फौज का है और । आखिर तो जाना छोड़, यहां दिन चार का रहना ॥ ३ ॥ सज्जन ये सद्गुणी वानी, करो शुभ धर्म सुखदानी। चौथमल कहे सुन प्रानी, यही लेना यही देना ॥ ४॥ ८१ नेक नसीहत... (तर्ग--या हसीना वस मदीना, करवला में तू न जा) दिल सताना नहीं रवा यह खुदा का फरमान है । खाप्स इबादत के लिए, पैदा हुश्रा इन्सान है॥टेर ॥ दिल बड़ी है चीज जहां में, खोल के देखो चशम। दिल गया तो क्या रहा, मुर्दा तो वह स्मशान है। दिल० ॥१॥ जुल्म जो करता उसे, हाकिम भी यहां पर दे सजा। मुश्राफ हरगिज हो नहीं, कानून के दरम्यान है ।। २ ॥ जैसे अपनी जान को, पाराम तो प्यारा लगे। ऐसे गैरों को समझ तू. क्यों बना नादान है । ३॥ नेकी फा ६दला नेक है, कुरान में लिखा सफा । मत वदी पर'कस कमर, तू क्यों हुआ बेईमान है ॥ ४ ॥ वे गुफ्तगु दोजखमें, गिरफतार तो होगा सही। गिन्ती वहां होती नहीं, चाहे राजा या दीवान है॥५॥ वैठकर तू तख्त पर, गरीबों की तेने नहीं सुनी। फरीश्ते वहां पिटते, होता बड़ा हैरान है ॥ ६ ॥ गते । • कातिल के वहां, फेरायगा लेके छुरा । इन्लान होके ना गिर्ने, यह भी तो कोई जान है ॥ ७ ॥ रहम को लाके जरा तू, सख्त दिल को छोड़ दे। चौथमल कहे हो भला, जो इस तरफ कुछ ध्यान है ॥ ८॥ ८२ स्त्री हित बोध.. (देशी-धूसो वाजेरे) थे तो मुणजो ए वाह वाह थे तो सुणजोए सुलक्षणी सर्व सुंदरयां ॥ टेर ॥ देवर कंथ से लड़ाई न करजो, सासु श्वसुर Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) जैन सुबोध गुटका । लज्जा तन धरजो। थे० . ॥ १ ॥ सुशिक्षा पुत्र पुत्री को सिखावे, तो मोटा हुश्रा से सुख पावे ॥२॥ कामी लंपट से वचकर रहीजे,थे पीहर स.सरा पर ध्यान दीजों ॥३॥पतिव्रत धर्म है जो तुम्हारो, सो याद रखो न विसारो ए॥४॥ भैरु भवानी पीर और होरो, नहीं समरथ क्यों फिरो दौरी ॥ ५॥ थे तो घमक चाल ताली द हंसना, ऐसी बातों से सदा बचना ॥६॥ विना छाण्यो पानी नहीं पोजो, जीवाणी यत्ना कीजो ॥ ७॥ सीता सती दमयन्ती तारा इनके चरित्रों पर करो विचारा॥६॥ गुरु प्रलादें कहे चौथमल गाई, तुम पक्की रहीजों संम्यक्त मांहीं En ..८३.आयु की, चंचलता. (तर्ज-विना रघुनाथ के देखे) सज्जन तेरी उमर जाती देख, मुझे विचार आता है। नहीं ये वक्त सोने का, लाभ क्यों नहीं कमाता है ॥ टेर ॥ चाहे राजा चाहे राणा, चाहे हो बादशाह वजीर। चाहे हो श्रेष्ठी साहूकार, वहां किसका न खाता है ॥ सज्जन० ॥१॥ क्या माता पिता न्याती, क्या धन माल व हाथी। क्या तेरे संग के साथी, साथ में कौन आता है ॥ २॥ समय अनमोल जाता है, किसी को क्यों सताता है। वाज तू क्यों न आता है, जहां का झूठा.नाता है ॥ ३॥ सजी रोषाक तन प्यारे, वैठ वग्धी फिरे सारे । ले जिन शर्ण वा तारे, चौथमल यों जिताता है ॥४॥ ८४ क्रोध निषेधः .. (तर्ज-या हसीना वसमदीना, करबला में तू न जा) ...श्रादत तेरी गई:बिगड़, इस क्रोध के परतापं से । अंजीज को बुरा लगे, इस क्रोध के परताप से ॥टेर ॥. दुश्मन से Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (५७) बढ़कर है यही, महोब्बत तुड़ावे मिनिट में । सप मुत्राफिक डरे तुझले, क्रोध के परताप से । श्रादत० ॥१॥ सलवट पड़े मुंह पर तुरंत, कम्पे मानिन्द जिन्द के । चश्म भी कैसे बन, इस क्रोध के परताप से ॥२॥ जहर या फांसी को खा, पानी में पड़ कई मरगये । वतन कर गये तर्क कई, इस क्रोध के परताप से ॥ ३॥ बाल बच्चों को भी माता, क्रोध के वश फेंकदे । कुछ सूझता उलमें नहीं, इस क्रोध के परताप से ॥ ४॥ चंडरुद्र श्राचार्य, की मिसालपर करिये निगाह । सर्प चंड कोसा हुआ, इस क्रोध के परताप ले ॥५॥ दिल भी कावू न रहे, नुकसान कर रोता वही। धर्म कर्म भी न गिने, इस क्रोध के परताप से ॥ ६ ॥ खुद जले पर को जलाये, विवेक की हानि करे । सूख जाव खून. उसका, क्रोध के परताप से . ७ ॥ जन के लिय हंसना बुरा, चिराग को जैले हवा । इन्सान के हक में समझ, इस क्रोध के परंताप से ॥८॥ शैतान का फरजन्द यह, और जाहिलों का दोस्त है। बदकार का चाचा लगे, इस क्रोध के परताप से॥६॥ इबादत फाका कसी, सब खाक में देवे मिला। वीच दोजख के पड़े, इस क्रोध के परताप से ॥ १०॥ चाण्डाल से बदतर यही, गुस्ला बड़ा हराम है। कहें चौथमल कब हो भला, इस क्रोध के परताप से ॥ ११ ॥ ८५ नारी भूषण. (तर्ज-मांड मारवाड़ी.) पहिलो २ सखी री ज्ञान गजरा २ तुम्हें लगे अजरा ॥टेर ॥ शील की सारी ओढले पोरी, लज्जा गहिनो पहिन । प्रेम पान को खाय सखीरी, बोलो सच्चा वैन । प० ॥१॥ हर्ष को हार हृदय में धारो, शुभ कृत्य कंकरण सोहय । चतु Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) जैन सुबोध गुटका। Ara राई की चूड़ी सुन्दर, प्रभु वाणी विंदली जोय ॥२॥ विद्या को तो बाजूबंद सोहे, प्रभु लोह लोग लगाय । दांतन में चूप सोहे एसी, धर्म में चूप सवाय ॥ ३॥ नव पदार्थ पालिखो नेवर का झणकार । चौथमल कहे सच्ची सजनी, ऐसा सजे सिणगार ॥४॥ ८६ दुनिया फना. (तर्ज-विना रघु नथ के देखे) लगाता दिल तू किसपर यहां, जहां में कौन तेरा है। सभी मतलव के गरजी हैं, किसे कहता यह मेरा है : टेर। कहलाते वादशाह जहां में, हजारों रहते थे तावे | चले वो हाथ खाली करन उनके साथ पहरा है। लगाता०॥ १॥ छपे रहते थे महलों में, हो गलतान ऐशों में। दिखाते मुंह न सूरज को, उन्हें भी काल ने हेरा है ॥ २॥ मिलकर कुमत वदखुवाने, पिलादी शराव तुझे मोहकी। खबर ना उसमें पड़ती है, यहां चंद रोज डरा है ॥ ३॥ कहां तक यहां लोभानोगे, कि आखिर जाना तुमको वहां । उठाकर चश्म तो देखा । हुआ शिरपर सवेरा है ॥ ४॥ गुरु हीगलालजी के प्रसाद, चौथमल कहे अरे दिल तू । दयाकी नाव पर चढ़ना, वहां दरियाव गहरा है॥५॥ ८७ मान निषेध. (तर्ज-या हसीना वस मदीना, करवला तू न जा) सदा यहां रहना नहीं तू, मान करना छोड़दे । शहनशाह' भी न रहे, तू मान करना छोड़दे ॥ टेर ॥ जैले खिले हैं फूल गुलशन में अज़ीजों देखलो। आखिर तो वह कुम्हलायगा, तू मान करना छोड़दे ॥ सदा० ॥ १ ॥ नूरसे वे पूर थे, लाखों • उठाते हुक्म को । सो खाक में ये मिल गये, तू मान करना . Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... . .. ... . .... . . m x जैन सुबोध गुटका । (५६) soonuunnan 'छोड़दे ॥ २॥ परशु ने क्षत्री हन, शंभूम ने मारा उसे । शभूम भी यहां ना रहा, तू मान करना छोड़दे ॥ ३॥ कंस जरासिंघ को, श्री कृष्ण ने मारा सही। फिर जर्द ने उनको हना, तू मान करना छोड़दे ॥ ४॥ रावण से इंदर दवा, लक्षमण ने रावण को हनान वह रहा न वह रहा, तू मान करना लोडदे ॥ ५ ॥ रच्च का हुक्म माना नहीं, अजाजिल काफिर बन गया। शैतान सब उसको कहें, तू मान करना छोड़दे ॥६॥ गुरुके प्रसाद से कहे चौथमल प्यारे सुनो। आजिजी सब में वड़ी, तू मान करना छोड़दे ॥७॥ ८८ सदुपदेश. (तर्ज- गजल, बिना रघुनाथ के देख नहीं दिलको करारी है.) कर सलंग ए चेतन ! तेरा इसमें सुधारा है। देखले ज्ञान दृष्टीस, भाउ यह जगत सारा है । टेर ॥ यह नर तन रत्नमा है, यन्न कीजे जिताता हूं । सदा रहता न यहां कोई, चंद दिनका गुजारा है। कर॥ १॥ जो लखपती तू होगा, तो रक्षा कर अनाथों की। आगे को साथ ले खर्चा, और तो धन्ध सारा ६ ॥२॥ अरे घट टूट जाता है, रह जाती है सुगंधी । नेकी सदा रोशन, रहेगा तरी अप प्यारा ॥ ३ ॥ शह. नशाह हो चुके लाखों, गये तज तख्त शाहीको । नहीं धन धान रानी दूत.संग उनके सिधारा है ॥ ४ ॥ सो करल काज तू ऐसा, हो सुख चैन आगेको । गुरु हिरालाल के शिष्य ने, किया तुझको इशारा है ॥५॥ ८६ कपट निषेध. (तर्ज--गजल, या हसीना वस मदीना, करवला में तू न जा) जीना तुझे यहां चार दिन,तू दगा करना छोड़ दे पाक रख दिलको सदा, तू दगा करना छोड़ दे ॥ टेर ॥ दगा कहो या Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६० ) जैन सुवोध गुटका । 9 1 कपट जाल फरेब या तिरघट कहो । चीता चोर कमानवत्. तू दगा करना छोड़ दे | जीना० ॥१॥ चलते उठने देखत, बोलंत हंसते गा । तोलने और नापने में, दगा करना छोड़ दे ॥ २ ॥ माता कही बहनें कही, पर नार को तकता फिरे क्यों जाल कर जाहिल वने, तू दगा करना छोड़ दे || ३ || मर्द की औरत चने, औरत का नापुरुष हो । लख चौरासी योनि भुगते, दगा ' करना छोड़ दे ॥ ४ ॥ दगा से श्री पोतना ने, कृष्णको लिया गोद में | नतीजा उसको मिला, तू दगा करना छोड़ दे ॥ ५ ॥ कौरवोंने पांडवोंने, दगा कर जूया रमा द्वार कौरव की हुई, तू दगा करना छोड़ दे || ६ || कुरान पुरान में है मना, कानून में लिखी सजा | महावीरका फरमान है, तू दगा करना छोड़ दे ॥ ७ ॥ शिकारी करके दगा, जावोकी हिंसा वह करे। मंज. र और वुगकी तरह, तू दगा करना छोड़ दे ॥ ८ ॥ इज्जत में श्राता फरक, भरोसा कोई न गिने । मित्रता भी टूट जाती, दगा करना छ।ड़ दे ॥ ६ ॥ क्या लाया क्या ले जायगा, तू गौर कर इस पर जरा | चौथमल कहे सरल हो तू दगा करना छोड़ द ॥ १० ॥ ६० महिला हितोपदेश. (तर्ज-- सत्य धर्म ए सबको सुनाय जायेंगे ) बहिनों शिक्षा पर ध्यान तुम दीजोष ॥ ढेर | उत्तम कुल की होकर बाला, नीच कर्तव्य मृत कीजोए । बहिनो० ॥ १ ॥ रूपवान पर पुरुष कैसा ही, उस पर कभी मत रीझोए ॥ २ ॥ विद्या शील दोही भूषण तुम्हारा खुश हो तन पर सजलोए ॥ ३ ॥ निर्लज्ज गीत कभी नहीं गानां, नशा बुरा तज दीजोप ॥ ४ ॥ सासु श्वसुर और देवर जी का, कभी न निरादर कीजोए ॥ ५ ॥ घर में संप रहे तो संपत्ति सारी, न कटु वाक्य कह खीजोए ॥ ६ ॥ सत्य वक्ता विदुषी सती का, सत्संग का • " Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। (६१) .... ...................... अमृत पीजोए ॥ ७॥ गुरुकृपा से चौथमल कहे, सीता ज्यों धर्मपर रहिजोए ॥॥ ६१ दिवानी युवानी. . ( तर्ज गजल. बिना रघुनाथ के देखे.) कवज करलो युवानी को, युवानी तो दिवानी है । फेल पैदा करे पलमें, खराबी की निशानी है ॥ टेर ॥ यही तारीफ और वदनाम, नेकी बदी कराती है। कमाने में उड़ाने में, यही मुखिया युवानी है। कबंज० ॥ १ ॥ चढ़े है जोश जव इसका, उसे फिर कुछ नहीं सूझे । रा रहे ऐश असरत में, जमाने की घुमानी है ॥२॥ अगर हो दोस्त की सुन्दर, चाहे हो बंधु की प्यारी। भले विधवा कुमारी हो, नहीं आती गिलानी है॥३॥ सकल श्रृंगार क्रीड़ा का, चतुरता का यही घर है। सोदाई और खुदाई में, नहीं कोई इसक लानी है ॥ ४॥ लगे नहीं दिल प्रभु अन्दर, सदा ही घूमता रहवे । करे निलंग्ज तजे मर्याद, कई रोगों की खासी है ॥ ५॥ मेणरया के लिये मणिरथ, करा कत्ल भाई को। पट् ललिताङ्ग पुरुषों की, कराई इसने हानि है ॥ ६ ॥ युवानीरूपी बग्धो में, जुता है अश्व मन चंचल । ज्ञान लगाम से को, चौथमल की यह वानी है ॥ ७॥ १२ संतोप. (तर्ज-गज) ___ सबर नर को प्राती नहीं, इस लोभ के परताप से। लाखों मनुष्य मारे गये, इस लोभ के परताप से । टर ॥ पाप का वालिद बड़ा, और जुल्म का सरताज है। वकील दोजख का बने, इस लोभ के परताप से ॥ सवर० ॥१॥ अगर शहन. शाह बने, सर्व मुल्क तावे में रहे। तो भी ख्वाहिश ना मिटे, Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) जैन सुवोध गुटका । इस लाभ के परताप से ॥२॥ जाल में पक्षी पड़े, और मच्छी कोटे ले मर । चोर जावं जेलम, इस लाभ के परताप से ॥ ३ ॥ रुवाव में देखा न उसको, रोगी क्यों न नीच हो। गुलामी उसकी करे, इस लाभ के परताप से ॥४॥ काका भतीजा भाई भाई, वालिद या बेटा सज्जन | वीच कोर्ट के लड़े, इस लेभ के परताप से ॥ ५ ॥ सम्भूम चक्रवर्ती राजा, सेठ सागर की सुना । दरियाव में दोनों मरे. इस लोभ के परताप से ॥६॥ जहां के कुल माल का, मालिक वने तो कुछ नहीं। प्यारा तज परदेश जा, इस लोभ के परताप स ॥७॥ बाल बच्चे बेंच दे, दुःख दुर्गुणों की खान है । सम्यक्त भी रहती नहीं, इस लोभ के परताप से ॥ ८ ॥ कहे चौथमल सद्गुरु वचन, संताप इसकी है दवा । और नसीहत नहीं लगे, इस लोभ के परताप से ॥ ६ ॥ ६३ माता ही संतति सुधारने का मुख्य हेतु (तर्न धूंसो बाजरे ) सुन्दर सांचीए २ जो पतिव्रता धर्म रही राची ॥ टेर॥ जो माता होवे सदाचारी, तो कन्या उसकी हो सुशीला नारी ॥ १ ॥ जो माता विद्या हो भणी, तो पुत्री उसकी हाचे वहु गुणी ॥ २ ॥ जो माता हो मयंदा धारा, तो पुत्र पुत्री हो श्राज्ञाकारी ॥ ३ ॥ जो माता हो चतुराईवान, तो पुत्र पुत्री हो चतुर सुजान ॥४॥ माता का गुण सीखे बेटी, यह चली श्राय रीति ठेटा ठेटी ॥५॥ सासु की चाल बहू में आवे, ऐसे ही वाप की बेटा सीख जावे ॥ ६॥ चौथमल कह सुनजो बाई, यह व्यवहार की बात सुनाई । ७॥ ६४ सराय से उपमिन, संसार. . . (तर्ज गजल, विना रघुनाथ के देखे ). सफल संसार को जानो, सराय जैसा उतारा है : 'मुला Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) जैन सुवोध गुटका। दुनियां का रहे नहीं दीन का, गुरु का रहे नहीं पीर का ! नर जन्म भी जाये निफल, तू जूवा वाजी छोड़दे ॥ ॥ गुरु पर. लाद ले, कहे चौथमल सुन लो जरा । मान ले श्राराम होगा, जूवा बाजी छोड़दे ॥६॥ Goor . ६६ दगा से दुर्दशा तर्ज-गजल अरे रावण तू धमकी दिखाता किसे ) • दिल अपने में लोचो जरा तो सनम, यह दगा तो किसी का सगा ही नहीं। लो यहां पर भी उसको न चैन पड़े। और वहिश्त में उसको जगह ही नहीं ॥टेर ॥ अव्वल तो रावण ने किया दगा, सती सीता को लेकर लंक गया । मुफ्त में लंक लोने फी गई, और ऐश तो हाथ लगा ही नहीं। दिन० ॥१॥ देखो कंल ने कृष्ण से मारन को, फिया कैसा दया जाने मुल्क तमाम । उसी कृष्ण ने कंश को मार दिया, हुआ कोई शरीफ लगा ही नहीं ॥ २॥ फिर धबल सेठ ने करके दगा, श्रीपाल को मारन ऊंचा चढ़ा। पांच फिसल के लेठ घन्चल ही मरा, श्रीपाल तो डरके भगा ही नहीं ॥ ३॥ दामनखाले करके दगा, वह श्वसुर सेठ खुद ही भरा। चौधमल कहे दिल पाफ रखो यह दगा तो किसी का सगा ही नहीं ॥ ४॥ १०० विषयों का फितूर. (तन्यारो नरभव निष्फल जाय जगत का खेल में ) फ्यों भृल्यो प्रभु को नाम विषय की लहर में ॥टेर ॥ . काम भोग में रहे रंगभीनो, फोनुनाफ की टेरमे । मदछकियो भांगा गटकाचे, फिरे डोलतो गेर में ॥ क्यो० ॥१॥ मुख में Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | ( ६७ ) पान हाथ घड़ी बांधे, चले अकड़तो टेड़ में । जेन्टिलमेन नैन ऐनक धर, पूछा वोले देर में ॥ २ ॥ घोड़े चढ़ी शिकारां खेले, समझे नहीं कुछ मेहर में । दुर्लभ नर तन पाय फेर क्यों, पढ़े चौरासी फेर में || ३ || दो घड़ी जिनवर को भजले, अए मन आठों पहर में । चौथमल हित शिक्षा देवे. जयपुर सुन्दर शहर में ॥ ४ ॥ १०१ हृदयोद्गार. ( तर्ज - बिना रघुनाथ के देखे नहीं दिलको करारी है ) अर्ज पर हुक्म श्रीमहावीर, चढ़ा दोगे तो क्या होगा । मुझे शिव महल के अन्दर, बुलालोगे तो क्या होगा || टेर ॥ सिवा तेरे सुनेगा कौन, मुझ से दनि की घरजी । मुझे यद फेल के फन्दसे, छुड़ा दोगे तो क्या होगा ॥ श्ररज० ॥ १ ॥ जगह वहां पर न खाली है, क्या तकदीर ही ऐसी । न मालूम क्या सवव शुरू है, मिटा दोगे तो क्या होगा ॥ २ ॥ पढ़ी है नाव भवजल में, चले जहां मोह की सर सर । तो करके महर. बानी जब, तिरा दोगे तो क्या होगा ॥ ३ ॥ जो है तेरी मदद मुझ पर, तो दुश्मन कुछ नहीं करता । भरोसा ही तुम्हारा है, निभालोगे तो क्या होगा ॥ ४ ॥ गुरु हीरालालजी गुणवंता, दिखाया रास्ता शिवपुर का । खड़ा है चौथमख वहां पे, बुलालोगे तो क्या होगा ॥ ५ ॥ १०२ प्रभु दिग्दर्शन ( तर्ज- या हसीना बस मदीना, करवला में तू न जा ) दिलके अन्दर हैं खुदा, दिलसे खुदा नहीं दूर है | दिल Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६८) जैन सुवोध गुटका। nananananannaannnaam, NAAMRAPA सताना ऐ मियां !, उस रब को कव मंजूर है । टेर ।। तूं कहे इस जहां में, हर शे में उसका नूर है । तो हर शे महोब्बत ना करे, ये भूल तेरी पूर है ॥ दिल० ॥ १॥ अए दिवाने कर निगाह, क्या. उसका असली अमूर है। चार दिनकी चांदनी पे, क्यों हुआ मसरूर है ॥ २ ॥ ससकीन के ऊपर सदा, तू क्यों करे मकहर है। नीजात ना होगा कभी, ये तो सही मजकूर है ॥ ३॥ जो जुल्म को करता सदा, दिल में रख मगरूर है। पड़े दोजख बीच में, वह ता चकनाचूर है ॥ ४॥ फते लाखों में करे, और वजावे रणतुर है। चौथमल कहे फ्स. मारे, वोही जहां में शूर है ॥ ५॥ १०३ प्रभु प्रार्थना. (तर्ज-अटारियां पे गिरारी कबूतर आधीरात) आज की नय्या डूब रही मझधार ॥टेर ॥ सोते मोह की नींद खेवैया-दिलमें नहीं करते विचार आर्ज०॥ १॥ अविद्या छाई भारत में-नाइत्फाकी बेशुमार ॥२॥ कहें किससे और कौन सुने हैं, बन बैठे दिलके सरदार ।। ३ ॥ हिंसा झूठ-निन्दा घट घटमें -सत्संगका कम प्रचार ॥ ४ ॥ चौथमल कहे सत गुरू की शिक्षा माने से होगा उद्धार ।।५।। १०४ मांस निषेध. (तर्ज-गजल या हसीना बस मदीना, करवलामें तू न जा ) सख्त दिल हो जायगा तू, गोश्त खाना छोडदे । रहम फिर रहता नहीं, तू गोश्त खाना छोड़दे ।। टेर॥ जो रहम दिल में न Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (६६) रहे, तो रहेमान फिर रहता है फब । वह बशर फिर कुछ नहीं, तू गोश्त खाना छोड़दे । सस्त० ॥१॥ जिस चीज़ से नफरत करे, वह गोश्त की पैदाश है। वह पाक फिर कैसे हुआ,तू गोश्त खाना छोड़दे ॥ २॥ गौ, बकरे, बैल, भैसा, लामों ही कई फट गए । दूध दही मंहगा हुआ, तू गोश्त खाना छोड़दे ।। ३॥ दूध में ताफत बाड़ी, वह गोश्त में है भी नहीं। पूछले कोई डाक्टरों से, गोश्त खाना छोड़दे ॥ ४॥ गोश्तखोर देवान के चिन्ह, मिलते नहीं इन्लान में नेक स्वादी मत बने, तू गोश्त खाना छोड़दे ॥ ५ ।। कुरान के अन्दर लिखा, खुराक श्रादम के लिये पैदा किया गेहूं, मेवा,तू गोश्त खाना छोड्दे॥६॥ कत्ल देवानात के विन, गोश्त कहो कैसे मिले। कातिल निज्जात् पाता नहीं, तू गोश्त खाना छोड़दे । ७॥ जैन सूत्रों वीच में, महावीर का फरमान है। माल अाहारी नर्क जावे, गोश्त खाना छोड़दे ॥८॥ जिसका मांस खाता यहां,वह उसको वहां पर खायगा मनु ऋपि भी कह गए, तू गोश्त खाना छोड़दे ॥ ६ ॥ नफ्स हरगिज नहीं मरे, फिर इबादत होती कहां। चौथमल की मान नसीहत, गोश्त खाना छोड़दे ।। १०॥ १०५ मोह. (तर्ज-बनजारा) यह मोह शेतान सी जाई, तेने इसको बीवी बनाई टेर।। तेने इससे तबियत लगाई, भूला फरज जाल में आई जी, यह खुदा से रखे जुदाई । तेने० ॥१॥यह अच्छी पोशाक सजवा. ती, फिर इतर फूलल लगवाती जी, इसकी बड़ी बदिन खुदाई ॥२॥ तुझे मोटर वीच विठवाती, गुलशन की हवा खिलाती जी, है जाहिल इसका भाई ॥३॥ फिर अच्छा माल चखाती Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) जैन सुवोध गुटका। पुनः महफिल में ले जाती जी, करे वेहोश नशा पिलाई ॥४॥ गुनाहों की सेज बिछाके, जुल्मों का तकिया लगाक जी, जिस पर दे तुझे लिटाई ॥५॥ ये तुझको कातिल वनावे, और वे इन्साफ करावेजी, इसे खोफ हशर का नाहीं॥६॥ कई वज़ीर बादशाह तांई, किये इसने तावे मांदीजी, दिये दोजन बीच पठाई ७॥ जरा समझ के घर में आओ,तो फिर मजा हकीकी पापोजी, दो इसका फेल मिटाई ।। ८॥ गुरु प्रसाद चौथमलं फहये, जो नसीहत पे चित्त देवेजी, फिर कमी रहे नहीं कांई || १०६गुरु प्रार्थना. (तर्ज-वारी जाऊरे सांवरिया तुम पर वारणारे) वारी जाऊंरे सद्गुरुजी तुम पे वारणारे । टेर ।। यह भव सिंधु अथाग भयों है, जहां चीच मेरो जहाज पड़यों है, कृपा निधान कृपाकर पार उतारनारे ॥ घारी॥ १॥ तुम ही मात पिता अरु बन्धु, परोपकारी करुणा सिन्धु । देदे सत्योपदेश, भर्म निवारणारे ॥२॥ गुरु विन जप तप करणी कैली, बिना नरेश के फौज है जैसी। पति विना झार भात पिन पालना रे॥३॥ गुरु विन कौन करे उद्धारा, तीर्थ व्रत चाहे करों हजारा। तो गुरु आशा शिर घार, काज सुधारणारे ॥४॥ आवागमन में फिर नहीं आऊं, अबके गुरुजी शिव सुख पाऊं । ऐसा मुझ शिर ऊपर पंजा डालनारे ॥५॥ गुरु हीरालालजी ने गुण कीना, चौथमल को संयम दीना । है गुरु धर्म की जहाज, फभी न विसारणारे ॥६॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " जैन सुबोध गुटका । १०७ ऋषि परिचय. ( तर्ज-गजल. विना रघुनाथ के देखे ) करे जो कब्ज इस दिलको, रहे इस जहां से निरयाला । श्री जिन थान धारे वो, ऋषिश्वर हो तो ऐसा हो ॥ १ ॥ आत्म जित श्रासन मार, इन्द्रीय मर्दन मृग छाता | मुद्रा सुनि धर्म धारी वो, ऋषिः ॥ २ ॥ क्षमा की खाक तन पहिने, रहम रुद्राक्ष की माला । तप अनी कर्म इन्धन । ऋषि० ॥ ३ ॥ भगवन् नाम की भंग पी रहे नित मस्त मतवाला । लगावे ध्यान ईश्वर से | ऋपि० ॥ ४ ॥ लंगोटी शील की मारी, अनद हो नाद रस घाला । काया कोटी में रहता वो ॥ ऋषि० ॥ ५ ॥ काम मद क्रोध लोभ तांई, दिया टाला दिया टाला। भोग भुजंग सा जाने | ऋषि० ॥६॥ चौथमल कहे गुरु हीरालाल, थे गुणवंत दुनियां में, उन्हीं को नम्र हो वन्दे ॥ ऋषि० ॥ ७ ॥ ( ७१ ) www www.n १०८ प्रभु प्रेमादर्श. ( तर्ज- या हसीना वस मदिना, करवला में तू न जा ) इश्क उससे लगगया; दुनियां से मतलब कुछ नहीं । अपना विगाना छोड़ दे, दुनियां से मतलब कुछ नहीं || टेर ॥ उसकी मोहब्बत का पियाला, भरके एकदम पी लिया । मस्त वह रहता सदा, दुनियां से मतलब कुछ नहीं । इश्क० ॥ १ ॥ लज्जत ज्यादे इश्ककी, कहने में कुछ श्राती नहीं । उसका मजा जाने वही, दुनियां से मतलब कुछ नहीं ॥ २ ॥ चाग या स्मशान हो, चाहे महल या वीरान हो । वदनाम या तारीफ हो, दुनियां से मतलब कुछ नहीं ॥ ३ ॥ बना रहे माशूक वो, दिनरात Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७२ ) जैन सुबोध गुटका ! उसकी याद में । हसर तक नहीं भूलते, दुनियां से मतलब कुछ नहीं || ४ || चौथमल कहे दोस्ती, मालिक से तेरी लगगई । फिर दीन हो या बादशाह, दुनियां से मतलब कुछ नहीं ॥ ५ ॥ १०६ आयु चंचलता. (तर्ज--अटारियां पे गिरारी कबूतर श्रीशत ) उमर तेरी सगगगगगगग जाय ॥ टेर ॥ तू तो कुटुंब म्याति के अन्दर, मुर्ख रह्योरेरे लोभाय-उमर० ॥ १ ॥ धन राज्य में गर्भ रह्योरे, खबर पड़े कछु नाय ॥ २ ॥ कर स्नान पोशक सजे है, इतर फुलेल लगाया || ३ || सुंदर गोरी तेरो, चित्त लियो चोरी, जिन संग रह्यो लिपटाय ॥ ४ ॥ डाव अणि पर जैसे जल बिंदु, ज्यू जोवन भोला तेरो खाय ॥५॥ करले तू कुछ सुकृत करना, वख्त अमोलक पाय || ६ || चौथमल कहे सद्गुरु तुमको, व २ समझाय - उमर तेरी सगगग ॥ ७ ॥ ११० शराब निषेव . " ( तर्ज- या हसीना बस मर्द ना, करवला में तू न जा ) अकल भ्रष्ट होती. पलक में, शराब के परताप से । लाखों घर गारत हुए, शराब के परताप से ॥ ढेर ॥ शरावी शोक महा बुरा, खुदकी खबर रहती नहीं । जाना कहां जाये कहां, शराब के परताप से ॥ अकल ॥१॥ इज्जत और दानीशमंदी, जिस पर दे पानी फिरा । धनवान कई निर्धन बने, शाय के परतापसे ॥ २ ॥ वकते २ हंस पड़े, और चौक के फिर से उठे । वेहोश हो हथियार ले, शरात्र के परताप से ॥३॥ चलते २ गिरपड़े, कपड़ा Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (७३) हटा निर्लज्ज बने । मक्खिये भिनक मुंह पर करें,शराव के परताप से ॥ ॥ जेवर को लेवे खोल लुच्चे,ले जेब से पैसे निकाल । कुत्ते देवें मृत मुंह पर, शरावके परतापसे ॥५॥ इन्साफ ही करते अदल जो, हजारोंकी रक्षा करे । खुदकी रक्षा नहीं बने, शरावके परतापसे ॥६॥ कम उमर में मर गए, कई राज्य राजों का गया । यादवों का क्या हुश्रा इस, शरावके परतापले ॥ ७ ॥ नशे से पागल बने, पुलिस भी लेवे पकड़ । कानून से मिलती सजा, शराय के परताप से ॥ ८ ॥ पाठ आने वह कमाव, खर्च रूपये का करे । चोरी को फिर यह करे, शराब के परताप से ॥ ६ ॥ जैन वैष्णव मुसलमां, अंजील में भी है मना । कई रोगी बन गए, शराब के परताप से ॥ १० ॥ चौथमल कहे छोड़दे तू, मानले प्यारे अजीज़ । माराम कोई पाता नहीं, शराव के परताप से ॥ ११ ॥ १११ संसार से विरक्त. (तर्ज-बनजारा) अब लगा स्नलक मोर वारा, गुरु हृदये शान उतारा टेर। सच २ मुनिवर की वाणी, श्रद्धा प्रतीत रुचि प्राणी जी, मैं हो जाऊं अणगारा ॥ गुरु० ॥१॥ खुल रहे जिगर के नैने, अग झूठा जाना मेने जी, यह जैसा भ्रम टिपारा ॥२॥ यह मात तातरु सजन, राथी घोड़ा धन कंचन जी, सब दामनसा भलकारा ॥३॥ जो इनके बीच ललचावे, सो परभव में दुख पावेजी, पहुंचेगा नर्फ दुधारा ॥ ४॥ जहां यम मुद्र से मारे, वहां हाकोहाफ पुकारेजी, ना छुड़ाए सजन प्यारा ॥ ५॥ ये काम भोग जग सारा, भेमे जाण्या नाग सम कारा जी, मैं दूंगा इनको टारा॥६॥ मुनि बाथमल कहे धन भाग्ये, सुन शान Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) जैन सुबोध गुटका। इंलु कर्मी जागे जी, जांके अल्प हाय संसारा ॥ ७॥ । -sxats११२ मनुष्य जन्म की उत्कर्वता. . ( तज--वारी जाऊरे सांवरिया तुम पर वारणारे ) .. उत्तम नर तन पाय वृथा मत हारनारे । टेर। जीती बाजी नर तन पाया । फिर विषयन में क्यों ललचाया। सत्गुरू देवे सीख हृदय में धारनारे । उत्तमः ॥ १॥ मात पिता भगिनी सुत नारी । स्वार्थ वश करे सव यानी। दग्ध तृण मृग तजे न्याय विचारणारे ॥२॥ किसका हाथी घोड़ा पहेरा । चिड़िया जैसा रैन बसेरा। लफल संसार से नेह निवारणारे ॥ ३॥ जैनागम है धर्म तुम्हारा । तेने उस को क्यों विलारा। सुनि चौथमल की कहन निज प्रातम तारणा रे॥४॥ ११३ श्रावक परिचय, . (वर्ज-विना रघुनाथ के देखे ) विवेकी हो न टेकी हो, नहीं मिजाज में शेखी हो। हजारों में भी एकी हो, जो श्रावक हो तो ऐसा हो ॥१॥ जो अरिहंत ध्यान ध्याता हो, वो नव तत्व ज्ञाता हो । सहाय सुरका न चाहता हो, जो श्रावक हो तो ऐसा हो ॥ २॥ समभावी हो अमाई हो, वो गुण क्षा ही ग्राही हो । कदर जहां में सवाई हो । जो श्रावकः ॥ ३ ॥ न वुराई का करता हो, सदा जुल्मों से डरता हो । वो समभाव घरता हो, जो श्रावक हो तो ऐसा हो ॥ ४ ॥ आचारी हो विचारी हो, को बाहर व्रत का धारी हो । स्वधर्मी साज दावा हो जो . Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। (७५ श्रावक हो तो ऐसा हो ॥५॥ दयालु हो कृपालु हो, जो शुद्ध श्रद्धा का धारी हो । न शंका हो न कांक्षा हो, जो श्रावक हो तो ऐसा हो ॥६॥ गुरु हीरालाल सा ज्ञाता हो, चौथमल को सुन दाता हो । रत्नवत हृदय दिखाता हो, जो श्रावक हो तो एसा हो॥७॥ ११४ रावण से सीता का कहना. (तर्ज-या हसीना वस मदीना, कर वला में तू न जा) अकल तेरी गई किधर, सिया कहे कुछ गौर कर रावण फजा आई तेरी, सीया कहे कुछ गौर कर ॥ टेर । अभिमान छाया तुझे, सोने की लंका देख कर । मेरे लिये यह कुछ नहीं, सीता कहे कुछ गौर कर ॥ अकल०॥ १॥ इश्क में सूझे नहीं अंधा बना तू वेहया, क्यों जुल्म पे बांधे कमर, सीया कहे कुछ गौर कर ॥२॥ खूब सूरत कामिनी, तेरे हजारों महल में । जिनसे सवर आती नहीं, सीया कहे कुछ गौर कर॥३॥ सूरज उदय पश्चिम हुए, फिर भाग निकले चांद से । ये मन सुमेरु ना चले, सीया कहे कुछ गौर कर॥४॥ सच तो स्वयंवर जीत लाता, क्यों चोर के लाया मुझे। दाग लगता वंशके, साया कह कुछ गौर कर ॥५॥ जुगर्नु कमर की दमक जहां तक, आफताब निकले नहीं, ऐसे पिया के सामने तू, सीया कहे कुछ गौर कर ॥६॥ कुटुम्ब सारा क्या कहे, तुझको जरा तो पूछले । मंदोदरी राजी नहीं,सीया कहे कुछ गौर कर ॥७॥ देख मेरे हुश्न को, फिदा हुआ हद से कमाल । मगर हक तेरा नहीं, सीया कहे कुछ गौर कर ॥८॥ वदफेल करने से कोई, आराम तो पाया नहीं। सती सताये है नरक, सीया कहे कुछ गौर कर ॥ ६॥ गुरू के परसाद से यूं चौथमल कहता तुझ। चले, सीया चोर के लागत कमर कान ,सीया Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) जन सुबोध गुटका होने वाली ना टल, सीया कहे कुछ गौर कर ॥१०॥ ११५ परभव प्रबंध (तर्ज-अटारियां पे गिरारी कबूतर आधीरात ) मुसाफिर यहां से खरची लेले लार-मुसाफिर यहां से ॥टेर ॥ यह संसार है शहर पुरानो, जिसका मोहराज मुखत्यार || मु०॥ १॥ पाप अठारे ये हैं लुटारे, त इनले रहियो होशियार ॥ २॥ राणा और राजा छत्रपति कई, गया है हाथ पलार ॥ ३ ॥ पांच कोस को बांधे जावतो, परभव की वूम न वार॥४॥ नये शहर में जाना तुझको, वहां नहीं नानीका द्वार ॥ ५॥ मनुष्य जन्म की अजब दुकान है, जिसमें नाना विध व्यौहार ॥६॥ ज्ञान दर्शन चारित्र तपस्या, यह लीजो रत्न संग चार || ७ || सुकृत बोड़ो झीण यत्ला को, जिस पर होजा असवार ॥ ८॥ दश विध यति धर्म सुखडी, दानादिक कलदार ॥ ६॥ शिवपुर पाटण वीच पधारो, जहां पावोगा सुख अपार ॥ १० ॥ गुरु हीरालाल प्रसाद चौथमल, कहे तुझे ललकार ॥ ११ ॥ उन्नीसे सीतर टॉक शहर में, पाया छः ठाणा सेखे काल ॥ १२ ॥ - ११६ रण्डीवाजी निषध, (तर्ज--या हसीना वस मदीना, करवला में तू न जा) श्रय जवानों मानों मेरी, रण्डी बाजी छोड़दो । कपट की भंडार है, तुम रण्डीवाजी छोड़दो ॥ टेर ॥ पोशाक उमदा जिस्म पर लज, पान से मुंह कोरचा टेड़ी निगाह से देखती, Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | ( ७७ ) तुम रण्डीबाजी छोड़ दो ॥ अय० ॥ १ ॥ धन होवे किस कदर, इस चिन्ता में मशगूल रहे । मतलब की पूरी यार है, तुम राडीबाजी छोड़ दो || २ || काम अन्ध पुरुष को, मकड़ी के मुश्राफिक फांसले । गुलाम अपना वह बनावे, रण्डीबाजी छोड़दो || ३ || विषय अन्ध होके सभी, वह माल घरका सोपदे । मतलब बिना आने न दे, तुम रण्डीबाजी छोड़ दो ॥ ४ ॥ इसकी सोहबत में बड़ों का, बड़प्पन रहता नहीं । पानी फिरावे आबरू पर, रण्डीबाजी छोड़दो ॥ ५ ॥ सुजाक गर्मी से सड़े, मुंह पर दमक रहती नहीं । कमजोर हो कई मर गये, तुम रण्डीबाजी छोड़ दो ||६|| भरोसा कोई नहीं गिने, धर्म कर्म का होता है नाश | चौथमल कहे अय रफीकों, रण्डीवाजी छोड़दो ॥ ७ ॥ ११७ प्रबोधन (तर्ज- ख्वाजा लेले खवरिया हमारीरे ) तेने वातों में जन्म गुमायारे, नहीं प्रभु से ध्यान लगाया रे ॥ टेर ॥ साणी मीठी बातें बना कर, लोगों को ठग २ खायारे ॥ तेने० ॥ १ ॥ तेरी मेरी करता, मिजाज में फिरता । खाली साफे का पेंच झुकाया रे ॥ २ ॥ पश ख्याल में माल लुटाया, नहीं दया दान में हाथ उठायारे ॥ ३ ॥ गरीबों के ऊपर तू करता है शक्ति, नहीं रहम जरा तू लाया दे ॥ ४ ॥ दारू भी पीवे भंग भी पीछे, पर नारी से प्रेम लगाया रे ॥ ५ ॥ लाखों रुपये का माल कमाया, पैसा साथ नहीं आया रे ॥ ६ ॥ पाप करी प्राणी गया नर्क में, फेर घणा पछताया रे ॥ ७ ॥ कहे यमदूत गुरज उठाकर ले भोग जो तेने कमायारे ॥ ८ ॥ चौथमल Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७८) जैन सुवोध गुटका । तो साफ सुनावे, करा धर्म वहीं सुख पाया रे ॥६॥ ११८ प्रश्न जंवू कुंवर से उसकी स्त्रियों का. (तर्ज-वारी जाऊरे सांवरिया तुम पर वारनारे) . प्रियतम अवला की अरदाल, ध्यान में लावनारे ॥ टेर।। हम सब सुन्दर खुद की दासी, तुम्हरे वचनामृत की प्यासी। महर नज़र कर इधर, छोड़ मत जावनारे ॥ प्रियतम० ॥१॥ कैसे जावे बाल उमरिया, तुम बिन कौन आधार केशरिया। वोली मधुबैन, प्रेम दरसावनारे ॥ २ ॥ वात सुनी जियरा घयरावे, पानी बिन ज्यू हरी कुमलावे। पति विना ज्यूं नार, दान बिन भावनारे ॥३॥ मात पिता भये वृद्ध तुम्हारे, तिनकी और दो तनिक निहारे । विना विचार करे होय पछतावनारे ॥४॥सोच समझ कर घर पर रहिजे,हम तुम वय को लायो लीज । मुनि चौथमल कहे वेरागी!, मत ललचावनारे ॥ ५ ॥ ११६ निवास की अस्थिरता. (तर्ज-बिना रघुनाथ के देख नहीं दिलको करारी है) ' सुनो सब जहां के प्रालिम, यहां कक्तक लुभानोगे। सालो वर्ष जिन्दे, तो आखिर यांसे जाओगे।। टेर॥पाया. किस कामको नरभव, लगे किस काम के धंधे । करो तो गौर. दिल अन्दर, मौका फिर फिर न पाओगे । सुनो०॥१॥ अजाब की पोट सिर धर घर, खजाना कर दिया तर तर। घराधन माल यहां रहेगा, सफर में कुछ न पाओगे ॥२॥ जरा नहीं खोफ लाते हो, वक्त योही गुमाते हो। धरी सिर दिल अन्दर सिर सफर में कुछ हो। धरी Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका । (७६) पाप की गठरी, कहां पर तुम छिपाओगे ॥ ३॥ अरे! क्या हुक्म है उसका, फेर क्या फर्ज तुम पर है। हिसाप जिस वक्त बोलेगा, वहां पर क्या बताओगे ॥४॥ गुरू हीरालाल के परसाद, चौथमल जोड़ के गाता । चौसठ के साल दिया उपदेश, अमल में कुछ भी लाश्रोगे ॥५॥ orissansar १२० चेतन को सजग करना, (तर्ज--या हसीना वस मदीना, करवला में तू न जा ) उठाके देखो चशम, दुनियां में लाखों हो गये। किस नींद मैं सोते पड़े, दुनियां में लाखों होगये ॥टेर ॥ टेड़ा दुपट्टा घांधते, पोशाक सजते जिस पे। घड़ी लगाते जेब में, दुनियां में लाखों होगये ॥ उठाके० ॥१॥ हाथ लकड़ी, पान मुंह में, लीलम के कंठे हैं गले । घूमते बाजार में, दुनियां में, लाखों होगये ॥ २॥ बग्घीके अंदर बैठके, गुलशन की खाते हवा । मशगूल रहते इश्क में, दुनियां में लाखों होगये ॥३॥ लाखों उठाते हुक्म को, भारत के सर वो ताज थे । गरीव की सुनते नहीं, दुनियां में लाखों होगये ॥४॥ इन्सान होकर गैर का जिसने भला कुछ ना किया। इवान सी खो जिन्दगी, दुनियां में लाखों होगये ॥५॥ गुरु के परमाद से, यूं चौथमल कहता तुझे। मीजाज करना छोड़दे, दुनिया में लाखों हो गये॥६॥ १२१ कुचेष्टा का परिणाम, (तर्ज-मांड) . महो मारी मानो मानो मानो मानो मानो मानोरे । श्रहो Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८०) जन सुवोध गुंटका। ------- menu डर आनो आनो आनो श्रानो श्रानो आनोरे ॥टेर ॥ कुचाले चालो मतिरे, कुल में लागे कलंक । रावन सरिखा राजवी जांकि, गई हाथ से लंक ॥ अहो मानो० ॥१॥ जैसे गऊवां होती उजाड़ी, ढींची पांव लगाय । नहीं माने गले डांग लगावे, ऐव तणे फल पाय ॥ २॥ पद्मनाभ को मान भंग भयो, मणिरथ नर्क सीधात । किच्चक का कीचड़का निकाल्या, या जग में विख्यात ॥३॥ पर नारी वैश्यां से यारी, तोजो पीवे शराव । मांसाहारी और शिकारी, नां का परमव हाल खराद ॥ ४ ॥ यौवन रंग पतंग सारे, जाता न लागे बार। थोड़ा जीतव्य के वास्ते थां, मत बांधो पाप को भार ॥ ५॥ जीवों की यतना करो, देवो सुपातर दान । भजन करोभगवान का, थारा सुर लोकों में मकान ॥ ६॥ गुरु हीरालालजी नो ठाणा पधारे, साहाजापुर के मंझार । चौथमल कहे उगणीसे चौसड, माह महिनो श्रेयकार ॥ ७ ॥ १२२ शिकार निषेध. (तर्ज-या हसीना वस मदीना, करवला में तू न जा) श्याह दिल हो जायगा, शिकार करना घोड़दे । कातिल बने मत अय दिला, शिकार करना छाड्डे ॥टेर ॥ क्यों जुल्म कर जालिम बनें, पापों से घट को क्यों भरे। दिन चार का जीना तुझे. शिकार करना छोड़दे ॥ श्या० ॥१॥ सूअर सांभर रोज हिरन, खरगोश जंगल के पशु । इन्सान फों देखी डरे, शिकार करना छोड़दे ॥२॥ तेरा तो एक खेल है, और उनके जाते प्राण है। मत खून का प्यासा वन, शिकार करना छोड़दे ॥३॥ वेकसूरों को सतावे, खौफ तू लांता नहीं। बदला फिर देना पड़े; शिकार करना छोड़दे ॥४॥. जैली प्यारी जान Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (८१) तुझको, ऐसी गैरों की भी जान । रहम ला दिलमें जरा,शिकार करना छोड़दे ॥५॥ जितने पशु के वाल है,उतने जन्म कातिल मरे । 'मनुस्मृति' देखले, शिकार करना छोड़दे ॥६॥ हेवान आपस में लड़ाना, निशाना लगाना जान का। हदीस' में लिखा मना, शिकार करना छोड़ते ॥ ७ ॥ गर्भवती हिरनी को मारी भूप श्रेणिक तीर से । वह नर्क के अन्दर गया, शिकार करना छोड़दे ॥८॥ खून से होती नरक, श्री वीर का फरमान है । चौथमल कहे समझलो, शिकार करना छोड़दे ॥६॥ vocs. १२३ कम फल. (तर्ज दादरा) इस कर्म संग जीव तेने रूप कई धरे, श्रापो संभाल श्राप लक्ष काज तो सरे ॥टेर ॥ तिलों में तेल क्षीर नीर पुष्प में सुगन्ध । ऐसे अनादिका संयोग, समझ तो अरे। इस० ॥१॥ सोनी के निमत से कंचन का गहना हो। पीकर शराय शराबी जैसे, नाली में गिरे ॥२॥ कभी गया नर्क में, दुःख का न पार है। पुद्गल की मार वे शुमार, लोचो जहां परे॥३॥ हेवान धीच पैदा होय, भार को वहां । पुष्प होय सेज बीच, जाके दय मरे ॥ ४ ॥ स्वर्ग वीच भतरा के, झुंड में रहे कभी हुमा शिरोमणि, कभी हुआ तरे ॥५॥ मनुष्य जन्म ऊंच नीच, कौम में हुश्रा । कभी तो बादशाह कभी, नकीम हो फिरे ॥६॥ दया धार हिंसा टाल, जिन बेन हैं खरे, कहे चौथमल कर्म मिटे, मोक्ष में वरे॥७॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २) जैन. सुवोध गुटका । · · १२४. जम्बू कुंवर का उत्तर उसकी रानियों को. .. (तर्ज-वारीजाऊरे सांवरिया तुम पर वारनारे ) सुन्दर झूठा जग लिया जान, ज्ञान लगायफेरे ॥ टेर॥ तन धन यौवन, विद्युत् भलकारा, संध्या राग स्वप्न संसारा । इंद्र धनुष क्षण बीच जाय विरलायकेरे ॥ सुन्दर० ॥१॥ जन्म जरा मृत्यु दुख भारी, अनन्त बेर भोगे सुन प्यारी। विषय वासना मांय वृथा ललचायकेरे॥२॥ पैसठ सहन पांच सो छत्तीस, बादर निगोद में सहस्र है बत्तीस । मुंहूतं एक में जन्म मरण सुन, थर २ जीव कम्पायरे ॥ ३॥ रंग पतंग सा पुदगल का ढंग, मृग तृष्णावत् कौन करें संग। कंभी तृप्त नहीं होय, स्वर्ग सुख पायकेरे ॥ ४॥ प्रेम होय तो उत्तर दीजे, मेरे साथ में संयम लीजे। कहे चौथमल बैरागी यूं समझायरे ॥५॥ फाइ १२५ वो तो सबसे निराला है. (तर्ज-विना रघुनाथ के देखे नहीं दिल को करारी है) तलाशें कहां उले ढूंढे, वो तो सवसे निराला है। हीरे वीत्र की ज्योति से, बढ़के भी उजाला है । टेर ॥ फूलों बीच वाही हैं, खुशबू बीच वोही है । न वो फूल न वो खुशवू.वो तो सबसे निराला है ॥ तलाशें ॥१॥ पानी बीच वोही है, पाषान बीच वोही है। न वो पानी न वो पाषान, वो तो सबसे निराला हैं ॥२॥ भोगी बीच वोही है, जोगी बीच वोही है। न वो जोगी ना.वो भोगी,वो तो सवसे निराला है ॥३॥ दिनके वीच वोही है, निशा के बीच कोही है । न वो दिन है न रजनी है, वो तो सबसे निराला है ॥ ४ ॥ दरखत वीच वोही है, पत्तों वांच वाही है। न वो दरखत न वो पत्ता, वो तो सबसे निराला है Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। (८३) ॥५॥ हिन्दू पीच वोही है, मुसलमां वीच वोही है। न वो हिंदू नवो मुसलमां, वोतो सयले निराला है ॥६॥ स्त्री बीच वोही है, पुरुषों वीच वोही है।न वो स्त्री न वो मानुष, वो तो सबसे निराला है॥ ७ ॥ हरशे बीच वोही है, हृदय वीच वोही है। न वो हरशे न घो हृदे, वो तो सबसे निराला है ॥८॥ सूर्य सम जूदा है सबसे, धूप सम सबके अन्दर है । न वो सूरज न वो है धूप, वो तो सबसे निराला है ।।६ ॥ अनंत चतुष्ट करके सहित, न उसके रूप है ना रंग। चौथमल कहे वो निरवानी, वोही भक्तों का वाला है ॥ १०॥ १२६ गौ से लाभ. (तर्ज-जशोदा मैया, अव ना चराऊ तेरी गैया) दयालु भैया, मरे बे अपराध पशु या ॥टेर ॥ कहां गये गोपाल लाल, धनु के थे वो चरैया । शिर पर आढ़े काली कमलिया, वंशी राग बजैया । दयालु० ॥१॥ हिंदू नाम उसी का जानों, पर के प्राण बचैया। हिंदू होके पशु वीणा से, जमपुरी बीच पठया ॥ २॥ गऊ के जरिये दूध मलाई, पेड़ा खात रवड़िया । गऊ के सुत से खेती होवे, सबके उदर भरैया ॥३॥ माता दूध अल्प पिलावे, वो उमर भर दूध पिलया । उपकार पे अपकार करे, वो कैसे कृत धनैया ॥ ४॥चेतो चेतो जल्दी चेतो, अहो ! निज सुख के चैया । चौथमल कहे दया धर्म से, पार लगे तेरी नैया ॥५॥ १२७ चोरी निषेध. (तर्जया हसीना वस मदीना, करवला में तू न जा) । इज्जत तेरी बढ़ जायगी, तू चोरी करना छोड़दे । मानले Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६) जन सुवोध गुटका। - - - - - वासी, हो अविनाशी, चौथमल के रिझाने वाले । लाप्रांजी लाश्रो० ॥१॥ १३१ नेक सलाह. (तर्ज-विना रघुनाथ के देखे नहीं दिलको करारी है) मेरा तो धर्म कहने का, भला उपदेश देने का । मान चाहे तू मत माने, हुश्न तेरा न रहने का ॥ टेर ॥ अरे जाती है जिन्दगानी, जैसे बरसात का पानी । जरा तो चेत आभमानी भरोसा क्या है जीने का ॥ मेरा०॥१॥ छोड्दे जुल्म का करना जरा पाकवत से डरना । प्रेम दिलोजान से करना, समां ये लाथ लेने का ॥२॥ दुखावे मत किसी का दिल, तजो अब रात का खाना । नशाखोरी जिनाकारी, त्याग कर मांस छीने का ॥३॥ मुसाफिरखाने में रह कर,अरे ! वन्दे भजन तो कर कहे चौथमल तजो अभिमान, अरे कञ्चन के गहने का ॥ ४ ॥ -- - १३२ स्वार्थमय संसार. (तर्ज-गुलशन में भाई वहार) दुनियां तो मतलव की यार, यार मेरे प्यारे दुनियां तो मतलव की यार ॥ टेर ॥ मतलब ले महोव्यत करती है जोरु, वे मतलवले देती धिक्कार ॥ घि० ॥ दु०॥१॥ मात पिंता कहे पुत्र सपुत है, वे मतलब दे घरसे निकाल ॥ नि० ॥ २ ॥ मतलव से बेन भैया २ पुकारे, वे मतलब नहीं श्रावे तेवार ॥ ते० ॥३॥ मतलव से नाता मुर्दा से जोड़े, नहीं तो जिन्द को देवे विसार ॥ वि० ॥४॥ मतलव से वैश्या यार को बुलावे, वे मतलब वो ढादे किंवार ॥ किं० ॥५॥ दावत में दोस्त खुश Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। (८७) हो होश्रावे, ना पूछेफिर हुआ कर्जदार ॥ दा० ॥ ६ ॥ युवा घेल की करते हिफाजात, वुड्ढ की पूछे नहीं सार । सा०: ॥ ७ ॥ हाथ पसारे चड़ भरे पै, हुआ खाली दे लात की मार ॥ मा०॥८॥ डाक्टर चुलाके औषध भी खावे, हुश्रा मतलब न जाव दुवार ॥ दु० ॥६॥ दूधारु गाय की लात भी खाल, दे यांटो फिर लेवे वुचकार । बु० ॥१०॥ फले वृत पे घूमे हैं पक्षी, याचक भी श्राव दुवार ॥ दु०॥ ११ ॥ मतलव के गीत नारी गाती है सब मिल, मतलव से भरा संसार ।। सं० ॥१२॥ चौथमल कहे बेस्वार्थ सदगुरु, देते उपदेश हितकार ॥ हि०॥ १३ ॥ १३३ परस्त्री परिणाम. (तर्ज-या हसीना बस मदीना, करवला में तू न जा) लाखों कामी पिट चुके, परनारके परसंग से । मनिराज कहे सब ववो, परनारके परसंग से ॥टेर ॥ दीपक की लो पर पड़ पतंग, प्राण वहीं खोता सही। ऐले. कामी कट मरे, वह परनार के परसंग से ।। लाखों० ॥१॥ परनार का जो हुश्न है, मानों यह अग्नी कुण्ड सा । तन धन सबको होमते,परनार के परसंग से ॥२॥ झूठे निवाले पर लुभाना, इन्सान को लाजिम नहीं । सूजाक गर्मी में सड़, परनार के परसंग से ॥३॥ चार से सत्ताणुवा (४६७) कानून में लिखा दफा । सजा हाकिम से मिले, पहनार के परसंग से ॥ ४॥ जैन सूत्रों में मना, मनुस्मृति भी देखलो । कुरान बाएवल में लिखा, पर नार के परसंग से ॥२॥ रावण कीचक मारे गए,द्रौपदी सीया के वास्ते । मणीरथ मर नरके गया, परनार के परसंगले ॥६॥ जहर वुझी तलवार से श्रा, अयन मुलाम बदकार Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) जैन मुवोध गुटका । ने । हजरत अली पर वहार की; परनार के परसंग से ॥७॥ कुत्ते को कुत्ता काटता,कत्ल नर नर को करे । पल में महाव्यत टूटती, पर नार के परसंग से ॥ ८॥ किस लिए पैदा हुआ, अए बेहया कुछ सोच तू । कहे चौथमल अव स्थर कर, पर नार के परसंग ले।। ६ ॥ १३४ बन्धु प्रार्थना. (तर्ज--मांड., अहो मुझ बंधव प्यारा, करुणा आणी अर्जी लो मानी जी राज ॥ टेर ॥ भरत सुणी संयम तणी, छूटी आंसु की धार । यांधव से यूं बीनवे, मत लो संयम भार ।। अहा० ॥१॥ अठाणुं संयम लियो, पूर्व पिता के पास । ऐला विचार मत करो मुझे, श्राप तो विश्वाल ॥२॥ यो सघनोई राज्य लो, छत्र चंवर दुराय । श्राप रहो संसार में, अर्ज कबूल कराय ॥३॥ शहर वनिता जावतां, पग नहीं पड़े लगार । माजी साहब ने जायने में, कई कहूं समाचार ॥ ४॥ चक्र त निज स्थान पै, आयो नहीं इण काज । करी चढ़ाई प्रावियो काई, यह अनादि रिवाज हो ॥५॥ बाहुबल कहे सुनो भरतजी, जो निकल्या मुझ वैण । गज दन्तवत् नहीं फिो कांई, यह सुरा का वैण ॥ ६॥ समझाया मानी नहीं लियो संयम हित जान । भरत गयो निज शइर वनिता, फेरी अखरिडत भान ॥७॥ उगणीले बासठ मेरे, उदियापुर चौमाल । चौथमल कहे गुरु प्रसादे, वरते लील विलास हो ॥ ८॥ १३५ दीन दुनियां वास्ते मत विगाड़ो. . (तर्ज-या हसीना वस मदीना, करवला में तू न जा ) • अए प्यारो ! मत विगाड़ो; दीन दुनिया वास्ते । नेक Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (8) anaamanaraamaraamaayaamaraamarmarwanamammmmmmmmraman नसीहत मानलो तुम, दीन दुनियां चास्ते ॥ टेर ॥ यह चन्द रोजा जिन्दगी है, गौर कर देखो जहां । ऐयाशी वनके मत शिगाड़ो दीन दुनियां वास्ते ॥ अरे० ॥१॥ रहम करना जान पर, इन्सान का यह फर्ज है । दिल सताके मत विगाड़ो, दीन दुनियां वास्ते ॥ २॥ इन्साफ पर रक्खो निगाह, रिशवत का स्थाहा छोड़दो । झूठी गवाह भर मत विगाड़ो, दीन दुनियां चास्ते ॥ ३॥ माल और भोलाद हरगिज, साथ में आते नहीं। हस करके मत विगाड़ो, दीन दुनियां वास्तं ॥४॥ हुश्न सदा रहता नहीं, दरियाके मुत्राफिक जा रहा । जिनाह करके मत विगाड़ो, दीन दुनियां वास्त ॥५॥ एक पैसे के लिये, तू खुदाकी खाता कसम । लालच में पाकर मत विगाड़ो, दीन दुनियां वास्ते ॥६॥ अगर दिल हुशियार है तो, जुलम से अव वाज श्रा। नशा करके मत विगाड़ो, दीन दुनियां वास्ते ॥७॥ दीन को जिसने विगाढ़ा, वो इन्लां नहीं हेवान है । चौथमल कहे मत विगाड़ो, दीन दुनियां वास्ते ॥८॥ १३६ गुरूपकार. (तर्ज. नाटक) सावोजी प्राची चिदानंद के जगानेवाले, मोहकी नींदको उड़ानेवाले, करके विचार ज्ञान टेलीफोन के लगाने वाले । श्रावोजी० ॥ टेर॥ कुमता की सेजों में जाके कप्ता यह वैमान लेटा। जवानोके वीव हो अज्ञानी यह कैसे ऐंठा, अपना स्वरूप बिलारा, विषयों में धर्म हारा, ममता से फिर मारा, कैसा प्रज्ञान धारा, कहे सुमता नारी, चेतन थारी, चाल नठारी, देवो निवारी, चौथमल तो समझोन वाला भावो० ॥१॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) जैन सुवोध गुटका। १३७ सत्संगपर सदुपदेश.. . (तर्ज-विना रघुनाथ के देखें नहीं दिलको करारी है ) अरे लत्लंग करने से, तुझे क्यों शर्म आती है । विना सत्संगके आयु, पशु मानिंद जाती है ॥ टेर ॥ तमाशा देखने रंडीका, मेफिल बीच जात हो। धर्म स्थान के अंदर, तुझे क्यों नींद आती है। अरे०॥१॥करे लुच्चेकी तू संगत, पिलाव वो तमाखू भंग । फैर पर नारी का परसंग, यही इज्जत घटाती है।॥ २॥ अरे! सत्संग बड़ा जहां में, चश्न को खोज करके देख । तिरे सलंग से पापी, जो गिनती नहीं गिनाती है ॥३॥ अगर लाखों करोड़ों का, करे पुण्यदान कोई प्राणी। मगर लर मात्रकी सत्संग, खास मुक्ति दिखाती है॥४॥ कहे यो चौथमल पुकार। सभी है झूठा संसार । एकलसंग जगर्भ सार, भवसागर तिराती है ॥५॥ १३८ विश्वमोह दिग्दर्शन. (तर्ज-गुलशन में आई वहार) किससे तू करता है प्यार, प्यार मेरे प्यारे, किसले तू करता है प्यार ।। टेर। उमर हुश्न दोय दामन का झमका । किस मोटर पर होता सवार ।। स० ॥ किसले० ॥१॥ पोशाक जिस्म पे सजता तू उमदा, गले गुलाब का हार॥ हार० ॥२॥ दोस्तोके संग में लहलों को जावे । जीवन की देखे वहार ॥ ५० ॥३॥ किस गफलत में सोताहै प्राणी, दुनियां तो मतलव की यार ।। यार० ॥४॥ मात, पिता, भैया बहिन, कुटुंब सव, छोड़ेंगे तुझको मंझधार ॥ धार० ॥ ५ ॥ श्वास है वहां तक सुंदर भूषण, फेर लेवेगे तन से उतार ॥ उ० ॥६॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। सब घर के मिलके, खंधे पे धरके ॥ फूंकावेंगे अग्नि मंझार ॥ मं०॥ ७॥ इंद्र भवन और फूलों की सजां । प्यारी न श्रावेगी लार ॥ लार० ॥८॥ व्यभिचारन हो तोपर पुरुप चुलावे, तुमको दे दिलले विनार ॥ पि०॥ ६ ॥ सुकृत दुष्कृत करता सो भुक्ता, दिलमें तू करले विचार वि०॥१० ॥चौथमल कहे राजा संयती, लीना है जन्म सुधार ।। सु०॥११ !! उगणील तियोतर पालीके मांही । देताहूं शिक्षा कार ॥ वहा०॥१२॥ १३९ सतीत्व का परिचय, (तर्ज--मांड) सती सीताजी धीज करे, सत्य धर्म से संकट टरे ।। टेर ।। अग्नि कुंड रचियो केशुलम जारों भार जरे। राम और लक्षमण भरत शत्रुधन, जहां राणोराव खरे ।। सती० ॥१॥ सीया उाडी अग्नि कुंड पे, परमेष्टि ध्यान घरे। पूर्व जन्म के लेख जो लिखीया, सो टारे केम टरे ॥२॥ अयाध्या के लोक शोर मचायो, राम अन्याय करे । सीता सती चंद्रसी निर्मल, पावक बीच परे ॥ ३ ॥ नख शिस्त्रा तक जो हो निर्मल, तव कहो कौन डरे । समक्ष लोकों के देखत जव, तत्तण कूद परे ॥४॥ पुष्प वृष्टि हुई नभ से, लिया जल वीच तरे। चौथमल कहे सत्य लहाई सुर नर यश उचरे ॥ ५॥ १४० वद सौवत निषेध. (तजे-या हसीना यस मदीना, करबला में तू न जा । अगर चाहे श्राराम, तो जाहिल की सौवत छोड्दे । मान ले नसीहत मेरी, जाहिल की सोवत छोड्दे टेर ॥ शगर त Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) जैन सुबोध गुटका ! 1 अक्लमन्द है, होशियार जो है दिला । भूल के अखत्यार मत कर, जाहिल की सौबत छोड़दे ॥ अगर० ॥ २ ॥ जाहिल से मिलता मत रहे, मानिंद शक्कर सीर के । भाग मुनाफिक तीर के, जाहिल की सौबत छोड़दे ॥ २ ॥ दुशमन भी अक्लमन्द बेहतर, होवे जाहिल दोस्त के परहेजगारी है भली, जाहिल की सौबत छोड़दे || ३ || फेलवद के जाहिलों से, नेकी तो मिलती नहीं । सिवा कोल वद के नहीं सुने, जाहिल की सौवत छोड़दे ॥ ४ ॥ रहम दिल का पाकपन, इबादत भी तर्क हो । ईमान भी जावे बिगड़, जाहिल की सौवत छोड़दे ॥ ५ ॥ जाहिल तो श्राखिर ए दिला, दोजख के अंदर जायगा । निजात नहीं होगा कभी, जाहिल की सौवत छोड़ने ॥ ६ ॥ नशा पीना जुल्म करना, लड़ना लेना नींद का । गरूर श्रादत जाहिलों की, जाहिल की सौवत छोड़दे ॥ ७ ॥ जाहिलपन की दवा मियां, लुकमान के घर में नहीं । सिविल सर्जन के हाथ क्या, जाहिल की सौवत छोड़दे ॥ ८ ॥ गुरु के परसाद से, कहे चौथमल तू कर निगाह । श्रालिम की सौवत कर सदा, जा'हिल की सौबत छोड़दे ॥ ६ ॥ १४१ मनुष्य के दशांग. (तर्ज - पनजी मूंडे वोल ) आज दिन फलीयोरे २ थांने जोग बोल यो दश को मिलियोरे || ढेर || मनुष्य जन्म और आर्य भूमि, उत्तम कुल को योगोरे । दीर्घ आयु और पूर्ण इन्द्री, शरीर निरोगोरे ॥ श्राज० ॥ ॥ १ ॥ सद्गुरु कनक कामनी त्यागी, आप तिरे पर तारेरे । तप क्षमा दया रस भीना, सूत्र उच्चारेरे ॥ २ ॥ ये आठ बोल Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (६३) तो भवी अभवी, कई जीव ने पायार नहीं श्रद्धा २ तो कुगुरु. मिल भरमायारे ॥३॥ श्रयके श्रद्धा गाढ़ी राखो, शुद्ध पराक्रम को फोहोरे । अल्प दिनों के मांही पाठौं, कर्म को तोड़ारे ॥४॥ यह दश बोल की क्षीर मसाला, दार पुण्य से पाईरे । अंनत काल की भूख प्यास, थारी देगा भगाईरे ॥ ५॥ निर्धन को धनवान हुए.ज्यू धान्ध आंखां पाईरे । चन्द्रकान्त माती के मानिंद, नर देह साईरे ॥ ६॥ गुरु प्रसादे चौथमल कहे, कीजे धर्म कमाईरे । उन्नीसे और सतर साल में जोड़ वनाईरे ॥७॥ १४२ क्रोध के कटु फल. (तर्ज -दोन काय पट भणे, सुनो जगर्दाश पुकार ) कय तक हम समझायें, क्रोध को तजो जनाव ॥टेर ॥ क्रोध बराबर दुख नहीं है, जैसे अग्नि की ताप । क्रोध वगवर जहर नहीं है, क्रोध बराबर पाप । तपस्या करे खराव ॥ क्रोध० ॥ १ ॥ क्रोध बड़ा चांडाल है, प्रीति जाय सव टूट । जिसके घर में क्रोध घुसा है, कैसी मचाई फूट । उतर गया कई का प्राव ॥२॥ पत्थर टूटे तालाव की, मिट्टी यूं फट जाय । बालू नीर की लकीर ज्यूं.क्रोध चार कहलाय । गति चारों का हिसाव ॥३॥ क्रोध करी मर जावे नर्क में, मार गुर्ज की खाये । चौथमन्न कहे वह क्रोधी, फिर शेर रीछ हो जावे, हुश्रा नर भव का खुवाय ॥४॥ १४३ जैसा कर्म वैसा फल. (तर्ज-विना रघुनाथ के देख नहीं दिल को करारी है ) करो नेकी चदी जहां में, तो उस का फल पावेगा । यदी Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९४) जैन सुवोध गुटका। बदले बदी तैयार, पाराम नेकी दिखावेगा ॥टेर । यही है हुक्म ईश्वर का, रहम सब लह पर रखमा । छुरा जिसपे . चलावे यहां, छुरा वो वहां चलावेगा ॥ करो० ॥ १ ॥ दिवाना हो फिरे धन में, भूल के नाम ईश्वर का । जुल्म करता गरीवों पे, उसे वो भी दवावेगा ॥२॥ वे जवां को मार फर खाता, नफ्स तैयार करने को । जिस्म तेरे निकाली गोश वहां तुझको खिलावेगा ॥ ३ ॥ शराव से फेफड़ा सड़ता, शरावी नाली में गिरता । नरक में कर गरम शीशा, उसे वो वहां पिलावेगा ॥ ४॥ भूठे की जवां ऊपर, डंक विच्छु ल गावेगा। कटेगी जवां गवा झूठो, जो देवे और दिलावेगा ॥ ५॥ सच्चा यकीन कर मानो, बदी फूले फलेगा कव । नेकी मोक्ष दिलवाती, यहां इज्जत बढ़ावेगा ॥ ६ ॥ देवांगना नाच वहां करती, महल रत्नों जड़े उम्दा । चौथमल स्वर्ग की सैरे, वही नेकी करावेगा ॥७॥ sikision १४४ हुक्का निषेध. (तर्ज-मजा देते हैं क्या यार तेरे वाल घूघर वाले ) कैसा बुरा हुक का शोक, धर्म की राह भुलाने वाला ॥टेक ॥ प्रात ही हुक को नलवावे, भजन नहीं प्रभु का करे करावे। चलम को भर के दम लगावे, कुल मर्याद लोपानेवाला ॥ १॥ समझा हुका ज्ञान अरु ध्यान,यही नेम अरु यही दान । इसी को परम पद पहचान, दिल को शाह बनानेवाला ॥२॥ हुक्का बगल हाथ में रहावे, जहां जावे तहां साथ ले जावे । गुड़ गुड़ गुड़ गुड़ शोर मचावे, गौरव का धुवां उड़ानेवाला ॥ ३ ॥ हुक्का पीवे और पिलावे, हुकां से हु.मा जावे । चौथमल तो त्याग करावे, सबका हित चहाने वाला ॥ ४॥ ; -Sxas Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोष गुटका। (६५) १४५ संसार असार. (तर्ज-या हसीना यस मदीना, करवला में तू न जा, श्रय दिला दुनियां फनां, इसमें लुभाना छोड़दे । स्वाव या हो बाव-सा झांसे में अाना छोड़दे ।। टेर ॥ चार दिन की चांदनी क्यों, जुल्म पर वांधी कमर । हुक्म रव का मानले, दिल का दुखाना छोड़दे ॥ श्रय० ॥१॥ अदा कर अपना फर्ज तू , जिस लिये पैदा हुआ । कर इबादत जिन से, रुह का सताना छोड़दे ॥ २॥ अच्छे बुरे प्रहमाल का, वदला दशर में है सही। है नशा हराम तू , पीना पिलाना छोड़दे ॥३॥ जो गुन्हा हो माफ तो, दोजख कहो किसके लिये ? माफ फा हरवार तू , लेना वहाना छोड़दे ॥४॥ श्रये प्यारों ! अए अजीजों ! दोस्तों मेरी सुनो । सफर का सामान फर,जी यहां फलाना छोड़दे ॥ ५ ॥ कहां सिकन्दर कहां अकवर,फहां अली अजगर गये। तू भी अव मिजमान है, गफलत में सोना छोड़दे ॥ ६॥ गुरु के प्रसाद से, यूं चौथमल फहता तुझे। मानले नसीहत मेरी, रंडी के जाना छोड़दे ॥ ७ ॥ १४६ धर्मादर्श. (तर्जधन) इस जगत के बीच में, एक धर्म का आधार है । उठा के देखो निगाह, झूठा सभी संसार है। माता पिता भ्राता सुता, मतलव के पूरे यार हैं । मिजमान तू दिन चार का, किसले करे अब प्यार है । पुरुष जो पाप कमाता है । खता वो श्राप खाता है । चौथमल साफ जिताता है। वक्त अनमोल जाता Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) जैन सुबोध गुटका। है। जन्म तुम सफल करो अपना, समझ कर खल्क ख्याल सपनाजी जिन तूही ॥१॥ १४७ इल्म की महत्ता. . (तर्ज या हसीना वस मदीना, करवला में तून ना) इल्म पढ़ले अय दिला, इसका गरम बाजार है। आलिमों की हाजरी में, कई खड़े लरदार हैं । टेर ॥ जिल कौम में लिख पढ़े, उसका सितारा तेज है । जिस देश में विद्या हुन्नर, वह देश ही गुलजार है । इल्म० ॥१॥ दिवान, हाकिम, अफसर्ग, वील, वैरिस्टर बने । बदौलत इस इल्म के दुनियां कहे हुशियार है॥२॥ इल्म से अकल बड़े, और अकल ले जाने प्रभु । सच झूठ दोनों फैसले का, वो तजरबेदार है ॥३॥ विन इल्मके इन्सान और, देवान में क्या फर्क है। गौर कर देखो जरा, फक्त इल्म की ही बहार है॥४॥ पढ़लो पढ़ालो इल्मको, खेलना खेलाना छोड़दो । कहे चौथमल भित्रो सुनो, नसीहत हमारी सार है ॥ ५ ॥ १४८ दगेबाजों की दुर्दशा (तर्ज-शेरखानी दादरा) मत कीजो दगा समझाते हैं । टेर ॥ दगा तो है बुरा, मुहव्यत छुडायदे । दूध में कांजी पंड पेला वनायद । यही हरवार जिताते है । मत० ॥१॥ वातों में है लफाई, दिल में और है, अमृत का है ढकन, विष कुम्भ के तोर है। नहीं कोई भरोसा लाते हैं ॥२॥ बांस की जड़ के मानिंद, माँढे का श्रृंग जान । बैल का पेशाव, तिवंश की पहचान । ये चारों गति Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका । (६७) ले जाते हैं ॥ ३ ॥ मर्द की स्त्री बने, नपुसंक भी हो जाय । कदे चौथमल वह पापी, विश्व में भ्रमाय । फिर मोक्ष वह कय पाते हैं ॥४॥ १४६ दया दृष्टि. (सज-बिना रघुनाथ के देखे नहीं, दिलको करारी है ) अगर श्राराम चाहते हो तो, ये नसीहत हमारी है। किसी का ना दुखाना दिल, सबों को जान प्यारी है ॥टेर ॥ सभी जीव जीवना चाहें, नहीं खुश कोई मरने से । मेरे मकसद पे करना गौर, जो उसकी इंतजारी है। अगर० ॥१॥ हिन्दू दया पुकारे है, मुसलमा रहम कहते हैं । जिवा करते करे झटका, दोनों ने क्या विचारी है ॥२॥ जो जो जान रखते है, कहे रब वो मेरा कुनबा । पसद मुझको जो दे पाराम, ये हदीश जारी है ॥ ३ ॥ विष्णु भगवान का फरमान, पचावे जो किसी की जान । सब दानों में वहतर दान, गीता पुरान जहारी है ॥ ४ ॥ जैन शाख का करलो छान, श्रेष्ठ पतलाया अभयदान । सभी जैनी करें परमान, जैन शास्त्र जहारी है ॥५॥ कहे ईसा अहले इस्लाम, छटा हुक्म वाईचिलका । तू किसी को न मारियो पेसे, खत्तम बस दुई सारी है ॥६॥ मोही को शान मौला में, रूहे सब बदला मांगेगा । न छोड़ेगा कभी हरगिज, दीने इस्लाम जारी है ॥७॥ जैसी समझो हो अपनी जान, वैसी समझो बिगाने की। सच्ची सच्ची कही हमने, फेर मर्जी तुम्हारी है। गुरु हीरालालजी परसाद,चौथमल कहे सुनो पालम | घोही निजात पायेगा, दया को जिसने धारी है॥६॥ *究院介 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6) जैन सुवोध गुटका। १५० खामांश. (तंज-या हसीना वस मदीना, करबला में तु न जा) महावीर का फरमान है, खामोश वहतर चीज है। दिल पाक रखने के लिये, खामोश वहतर चीज है। टर ॥ शांति कहो चाहे क्षमा, और गम भी इसका नाम है । दोस्त जहां तेरा वने खामोश वहतर चीज है ! महा० ॥१: जोश खाके वीजेली, दरियाव के अन्दर पड़े । नुकसान कुछ होता नहीं, खामोश वहतर चीज है ॥ २॥ खामोश खञ्जर देखकर, 'दुश्मन की ताकत नहीं चले । विन काष्ट के पाक्क जैसे,सामोश बहतर चीज है ॥३॥ तप में ऋषि युद्ध में हरी, श्रेष्ठ विषमण दान से । अरिहंत की यह वीरता, खामोश वहतर चीज है॥४॥ खामोश कर श्रीराम ने, बनवाल का रास्ता लियां निजसुखमाल ने क्षेवल लिया, खामोश वहतर चीज है ॥५॥ खामोश ले राजा परदेशी, स्वर्ग के अन्दर गया। खंधक मुनि मुक्ति गये, खामोश बहतरं चीज है ॥ ६ ॥ ज्ञान ध्यान तंप दया, और सर्व गुण की खान है। तारीफ फैने मुल्क में, खामोश वहतर चीज है ॥ ७ ॥ पाप होवे भस्म जैसे, शीत से 'सब्जी जले ! चौथमल कहे ए दिला ! खामोश वहतर चीज १५१ मंदोदरी का रावण को समझाना (तर्ज-मांड) ... मंदोदरी कहे यूं कर जोड़, पिया अनीति कायको करे ॥टेर सौता नारी या रामचन्द्र की, लतियाँ माय सरे। हरन करी चुपके वन सेती, लाके वाग घरे ॥ पिया०.॥ १॥ दशरथ कुलवधु के निमित्त से, रावण प्राण हरे । सो बीतक यो दीसे Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन सुबोध गुटका। (६९) माने, क्यों ध्यान धरे ॥२॥ राम और लक्षमण शत्रुघन श्रा, लंका बाहर खरे । सीता दे मम लज्जा खो, तो सव काज सरे ॥ ३ ॥ सीता दिया पीछे सेती, जो श्रीराम लरे । तो होये जीत आपकी निश्चे, ना मम वाक्य फिरे ॥ ४॥रावण दोले मुर्ख नारी, श्रीगुन पाउ भरे । चौथमल कहे माने कर शिक्षा, भावी नांय टरे ॥ ४ ॥ १५२ उपदेशक का कथन (तज-या हसीना वस मदीना, कर बला में तू न जा) आकवत के वास्ते, कहना हमारा फर्ज है । मर्जी तुम्हारी मानना, कहना हमारा फर्ज है ॥ टेर .॥ मुसाफिर खाने में श्राकर, गरूर करना छोड़दे । नेकी करले ए सनम ! कहना हमारा फर्ज है । आक० ॥ १ ॥ माता पिता भाई भतीजा, साथ में पाता नहीं। तो फिर मुहव्यत क्यों करे, कहना हमारा फर्ज है ॥२॥ फिसका वसीला है वहां, दिल में तो जरा गौर कर । तूं याद में उसके रह, कहना हमारा फर्ज है ॥ ३ ॥ अव करले तू बड़ों का, महसान कर कोई और पर । रहम दिल में ला जरा, कहना हमारा फर्ज है ॥ ४॥ देता नसीहत चौथमल, करले इबादत जिन से ! चार दिन का हुश्न है, कहना हमारा फर्ज है॥५॥ १५३ मालिक का कलाम. (तर्ज समक्ति की देखी बहार ) मालिक का सुनलो कलाम-कलाम मेरे प्यारे, मालिक० ॥ टेर।। कत्ल का करना रवा नहीं है, है यह काम निकाम ॥निकाम० ॥१॥ नया का करना, शराय का पीना, लिखा Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) जैन सुबोध गुटका। हदीश में हराम ॥ ह० ॥२॥ जिनाहकारी का करना बुरा है, नाहक क्यों होते बदनाम ॥ नाम० ॥३॥ दिल में तो दगावाजी भरी है, खाली करते हो भुक २ सलाम ॥ स०॥४॥ ऐश और दौलत कुन्वे के अन्दर, करते हो उन तमाम || तमाम० ॥ • ॥५॥गफलत को छोड़ो, दिल में तो सोचो, कितना है यहां पे सुकाम ॥ मु०॥६॥ श्रालिमुलगेव है नाम उस रव का, देखे :: सब तेरे वह काम । काम०॥७॥चौथमल कहे रहम रस्त्रो |जो, तुम चाहते हो जन्नत मुकाम मु०॥८॥ १५४ सट्टे का फल. (तर्ज-दादरा, सांवरो कन्हैयो बन्सी बजा गयो) " देखो सुजान सट्टे ने पागल बना दिया, साहुकारी धंधे को इसने छुड़ा दिया ॥टेर लगे न दिल प्रभु में टिके न पांव घर। दिनरात इसी घाट में ऐसे बिता दिया ॥ देखो० ॥१॥नीलाम कई पूछते साधु फकीर से। गांजा भंग मिष्ठान्न, भोजन को खिला दिया ॥२॥ नींद में श्रावे ख्वाव, तेजी मंदी का । होते हैं गुस्सा उसपे जो किसने जगा दिया ॥३॥ कहे ज्योतिष इस मास में बहुत लाभ है । सुनके छक्का मानने, सव धन लगा दिया ॥४॥श्रात ध्यान नित रहे, धर्म ध्यान का न लेश। यह चौथमल ने कई को त्यागन करा दिया ॥५॥ १५५ हित शिक्षा, (तर्ज-समकित की देखो वहार ) मत भूल मेरे प्यारे दुनियां की देखी यह बहार ॥ टेर। अंधा तू लटका महिना नो उरमें, रज वीर्य का लोनाते आहार ॥आहार०॥१॥ भोगी कष्ट पैदा हुआ तू खुशी हुओ परिवार Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। (१०१) ॥२॥ लाइ लड़ावे भैया महतारी, खेले तू चौक मंमार ॥३॥ बीता वालपन.आई जवानी, सजता है तन पे सिंगार०॥४॥ बग्गी में बैठे मोटर में बैठे, जावे तू बाग मंझार ॥ मंझार० ॥ ॥५॥ काम में अंध नशे में धुंध हो, ताके तू गैरों की नार ॥ नार० ॥१॥ नदी का पूर ज्यूं गई जवानी, आयो बुढ़ापो जिवार ॥ जिवार०॥७॥ शीश हिले पग धूजन लागे, शुद्ध बुद्ध को दीनी विसार ।। विसार० ॥८॥ बाल युवा वृद्ध तीनों वस्त को, रत्नों सी दीनी निकार ॥ निकार० ।। ६ ।। वांधी करम गयो नरक अकेलो, खावे यमदूतों की मार ॥ मार०॥ ॥ १० ॥ चौथमल कहे जो सुख चाहे, सतगुरु के नमो चरनार ।। चरनार०॥११॥ १५६ कन्या विक्रय. (सर्ज-सत्य धर्म यह सवको सुनाय जायगे ) कन्या पेचो न शिक्षा हमारे ॥टेर । सुन्दर कन्या रत्न समानी, हिताहित का तो कीजो विचारीरे ॥ कन्या ॥१॥मात पिता का नाम धरावे। तो निर्दयता दिलमें क्यों धारीरे ॥२॥ साठ के पालम यह छोटीसी वाला । जैसे ऊंट गलेमें छारीरे॥३॥ प्रीतम मरे पे रो रो के बाला, उमर चीताती सारीरे ॥४॥ पैसे के लोभी नेक न सोची, कर दीनी जन्म दुखियारीरे ॥५॥अंधे अपंग रोगी पागल हो, पैसे की एक दरकारीरे ॥ पूखों ने महिमा कुलकी पढ़ाई । तापे लकीर निकारीरे ॥ ७ ॥ सत्बुद्धि धर्म नष्ट हो उसका । जिसने सुनीति यिसारीरे ॥८॥चौथमल हो भारत उदय कय । जो ऐसे पिता महतारीरे ॥६॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) जैन सुवोध गुटका । nwwwwwwwwwNANAM १५७ दया. .. .(तर्ज-गुलशनकी आई वहार ) मत लूटो तुम जीवोंके प्रान-प्रान मेरे प्यारे । मत० ॥टेर॥ दिलका सताना रवा नहीं है, खोलके देखो कुरान ॥ कुरान ॥१॥ गरीबों के ऊपर जुल्म करोगे, तो पहुंचोगे दोजन दरम्यान ॥ दर० ॥ २ ॥ श्रारामं प्यारा लगता है तुमको, ऐसी है औरोंकी जान !! जान० ॥३॥ खेलते शिकारी घोड़े पे चढ़ २, देते हो गोली की तान ॥ तान० ॥४॥ जो कोई कहे दया दान की, उसपे न रखते हो कानं ॥ कान० ॥ ५ ॥ जूतियों की नालोंसे मरते हैं प्रानी, पीते हो पानी विन छान ।। छान ॥६॥ पशुके वाल है जितने जनम में, होना पड़ेगा हेरान ।। हेरान ॥ ७ ॥ मनुस्मृति अध्याय पांच में, पाठों घातिक को लिखा समान ॥ स० ॥८॥ हरे दरखत को कभी न काटो, वो भी तो रखता है जान ॥ जान० ॥ चौथमलकी नसीहतों पे, जरा तो रक्खो तुम ध्यान ।। ध्यान० ॥ १० ॥ . GO १५८ कन्या कलाप, . (तर्ज-दादरा, सत्य धर्म यह. सवको सुनाय जायंगे) . कन्या पितासे जाकर पुकारीरे ।। टेर। मैने पिता सुना बुड्ढेके लंग में । शादीकी कीनी तैयारीरे ॥ कन्या० ॥११॥ यदि सच्ची हो तो मर्याद नजीने । अर्ज करूं इण वारीरे ॥२॥ यह वायका एक अवला पे गुजरा। मैं कम्पी लो बात निहा. रीरे ॥ ३॥ जहर का प्याला खुशीले पिलादो, इससे मुंसे न इन्कारीरे ॥४॥ तलवार चलाओं चाहें फांसी चंदादों। ऐसी शादीले मृत्यु प्यारीरे॥५॥ बेटीको धन ले सुखी हुआ नहीं। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (१०३) जरा देखो नेन पसारीरे ॥ ६॥ हाथ जोड़ तेरे पांव पढ़त हं, तुम कीजो दया हमारीरे।। ७ ।। गौ कन्या पे प्राहार उठा है। जव से यह भारत दुख्यारीरे ।। ८ । चौथमल की सीख श्रवणं कर. तुम दीजो कुरीति निवारी ।। १५६ प्रभुः ध्यान, तर्ज-रेखता). . लगाओ ध्यान प्रभु जिनका, जीना दुनियां में दो दिनका . ॥टेर ॥ उमर जाती है चली, चश्म खोल देखलो अली। भरोसा क्या जिंदगानीका, जीना दुनियां में दो दिनका ॥ जीना० ॥१॥ गफलत में होके मत सोवो, इस कुनबे में क्यों मोयो । नहीं कोई साथ उस दिन का ॥ २॥ जर जेवर खजाना देख, गुल बदन देखके मत वैख । बुलबुला जैसे पानी फा ॥ ३ ॥ जाना है तुझे जरूरी, क्यों सतावे है कर गलरी। इशारा लेगा किन २ का ॥८॥चौथमल कहे सुनो प्यारे,भज निरंजन निराकारे । भला जो चाहे गर दिल का ॥५॥ १६० सट्टे का परिणाम. (तर्ज-मेरे काजी साहब अाज सवक नहीं याद हुआ) मत कीजो सट्टा २ उजावे शिर के चोटी पट्टा, मत कीजो सट्टा, कई की इज्जत में लग गया वहा ॥ टेर॥ सट्टेवाज की कई हकीकत,जो कोई उसमें फमावे। फिर तो ऐसा इश्क लगे, सब घर का धन लगावे ॥ मत०॥१॥रात दिन चिन्ता रहे घट में, नेन नींद नहीं आवे । जो थोड़ी सी आंख लगे तो, सपने में दिखलावे ॥२॥ कहे सेठानी सुनो सेठजी, यह है Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) जन सुवोध गुटका । खोटो चालो । पुण्य विना नहीं मिले सम्पदा, क्यों थे घाटो घालो ॥३॥ एक श्रांक भाजावे श्रवके, स्वर्ण का गहना घड़ा दूं। नख से शिखा तलक पहिना के, पीली जर्द बना दूं ॥४॥ सट्टा में टोटों लग जाने, घर तिरिया पे श्रावे । गहनो देदे थारो प्यारी, तो इज्जत रह जावे ॥ ५॥ मना किया था थाने पहिला, थां म्हारी नहीं मानी । जो मागगहना लेवो तो, करूं प्राण की हानी ॥ ६॥ जहर खाकर कई मर जावे, कई फांसी को खावे । लेणायत दे गाली मुख से, कैसा कष्ट उठावे ॥७॥ गुरु प्रसादे चौथमल कहे, छोड़ोयोटा धंधा । समता रूप अमृत रस पीने, भजन करोरे वंदा ।। ८॥ १६१ हित योजना. (तर्ज-आखिर नार पराई है) सत्य शिक्षा सुनता नाहीं है, क्यों थे श्रफल गमाई है ॥टेर ॥ फागण में गाली गावे है। नित वैश्या के घर जावे है। लाज शर्म विसराई है। क्यों०॥१॥ मुख उपर वर्षे है. नूर । यौवन बीच छकियो भरपूर । ताके नार पराई है ॥२॥ साथी संग भांगा गटकावे, करे गोठ और माल उड़ावे । यह कैसी कुमति छाई है ॥ ३ ॥ सत्संग तो लागे है खारी । पापकरण में है होशियारी । धर्मी की करे बुराई है ॥ ४॥ लख चौरासी का मिजमान, अब तो तू भजले भगवान, यह ढाल चौथमल गाई है ॥ ५॥ १६२ दया ही मोक्षद्वार, (तर्ज-बिना रघुनाथ के देखे नहीं दिल को करारी है.) .. दया के विदुन ऐ.वादर ! भी नहीं मोक्ष पाश्रोगें। हजा Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | www रों ग्राफत सहकर, जन्म वृथा गमानोगे || टेर || चाहे तन खाक ही पहनो, चाहे भगवां करो वसतर । चाहे रक्खो जटा लंबी, कान क्यों न फड़ावोगे || श्या० | १ || चाहे बदरी चनारस जा, चाहे जगन्नाथ रामेश्वर । चाहे गंगा करो स्नान, द्वारका छाप लगाओगे ॥ २ ॥ चाहे मृदंग बजायो ताल, बांध घूंघर को नाचो । इससे मालिक न होवे खुश, कहो कैसे रिझाओगे ॥ ३ ॥ चाहे रोजा पुकारो वांग, चाहे निवाज कलमा पढ़ | अगर खतना करे क्यों नहीं, हाथ तसवी फिराओगे ॥ ४ ॥ चाहे सीस मूंड नंगा रद्द, चाहे फकीर क्यों नहीं हो । श्रधेशीस भी लटके, कष्ट खाली उठाओगे ॥ ५ ॥ चाहे पूजा करो संध्या, तपो धूनी तो होना क्या । रखो रद्दम दिल कर साफ, दमल में फिर न आओगे ॥ ६ ॥ गुरु हीरालाल गुणवंता, चौथमल शिष्य है उनका । कृपाकर संजम तो दीना, मोक्ष किस दिन पहुँचाओगे ॥ ७ ॥ ( १०५ ) १६३ संसार अस्थिर, (तर्ज- आखिर नार पराई है ) आखिर जाना छिटकाई है, क्यों बैठा ललचाई है ।। टेर । तू तो परदेशी है छेलो । यह तो हटवाड़ा को मेलो । क्यों सुध बुधको विसराई है । क्यों ॥ १ ॥ मृत्यु हवा बढ़ी यलघाम । उड़जाता ज्यूं पीपल का पान | चले नहीं ठकुराई है। ॥ २ ॥ नदी पूर ज्यूं ऊमर जावे । काम भोग में क्यों हालचावे | दिन दो की अकड़ाई है ॥ ३ ॥ छत्रपती हो राजा राना, नहीं थमर लिक्खा परवाना । एक ही रीत चलाई है ॥ ४ ॥ दया दान को ले' ले लाभ । उभय लोक में रहवे भाव । या चौथमल सुनाई है ॥ ५२ ॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~ (१०६) जैन सुवोध गुटका। mmmmmmmmmmmmmmmmmmmm १६४ रात्रि भोजननिषेध. (तर्ज-विना रघुनाथ के देखे नहीं दिलको करारी है)। तजो तुम रात का खाना । इसी में पाप भारी हैं । कहे सपुरुष यों तुमसे, मानो शिक्षा हमारी है। टेर ॥ अगर जो रातको खाते, उनके खाने के अंदर । पड़े परदार केई जीव, जिन्हों की जात न्यारी है ॥ तजो० ॥१॥ है अंधा रात का खाना, धर्मी को नहीं है लाजिम । पक्षी भी रात के अंदर, चुगादेते निवारी है ॥२॥ जलोदर जूं से होवे है, मक्खी से वमन होता है । कोढ़ मकड़ी से होता है, यही दुनियाँ में जारी है॥३॥ विच्छ गर कोई खावे तो, सिर में दर्द उसके हो। होय नुकसान रात्री में, अरे कुछ भी विचारी है ॥ ४ ॥ छोड़दे रात का खाना तू वारहमास के अंदर । हो छ मास की तपस्या, बड़ी पारामकारी है ॥५॥ सस्वत् उन्नीसे उन्तर, किया रतलाम चौमासा । गुरु हीरालाल के परसाद, चौथमल कह पुकारी है ॥ ६॥ . १६५ अवस्था दृश्य. (तर्ज-आखिर नार पराई है) जब गया बुढ़ापा छाई है, लव निकल गई अकड़ाई है ॥ टेर । यौवन का उतरा है पूर । दांत गिर गया मुख.का नूर । कोमल काया कुम्हलाई है । सब० ॥१॥ मुख से देखो लार पड़े है। नैन नासिका दोनों झरे है। बालों पे सफेदी आई है ॥२॥ डग मग डग मग चलता चाल । बैठ गये दोनों ही गाल | कानों से सुनता नाहीं है॥ ३॥ वेटों ने लिया सव धन बांट । दमड़ी नहीं रहने दी गांठ । फिर दिया उसे छिटकाई है ॥ ४ ॥ नवयुवक मिल हंसी उड़ावें । नहीं चले जोर Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोप गुटका। (१०७) ..........aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa चुदा चिल्लावे । साठी बुद्धि न्हाटी ठहराई है ॥ ५॥ बेटे पोते भी घुर्रावें । क्यों बूढ़ा दुकान पे श्रावे । मक्खी भिनक मचाई है॥६॥ खाट पड़ा मारे है टलका । कुछ हिसाय रहा नहीं घश का । अब दरवाजा परवत नाई है।॥ ७॥ यौवन के अव इश्क सतावे । मनका मन मांझी पछताये। मित्रों ने निगाह चुराई है॥८॥ युद्धे बैल को कौन खिलावे । सूखा समुद्र हंस उहजावे । स्वार्थ की सभी सगाई है ॥ ६ ॥ जोरु यचन साफ सुनावे । राम श्रापाने मौत न आवे । घर के गये घबराई है ॥१०॥रासरति नहीं गडपस होय । पहिले अंग कहीं जिन सोय । कर धर्म न आगे माई है ॥ ११ ॥ बाल जमाना गया है भूल । नखरा वाजी न रही विलकुल । तृष्णा ने तरूणता श्राई है ॥ १२ ॥ उगणीसे साल सतत्तर आवे । पूज्य प्रसादे चौथमल गावे । कार्तिक में जोड़ बनाई है ।।१३।। १६६ काल से सावधान रहो. (तर्ज-विना रघुनाथ के देखे नहीं दिल को करारी है) तुझे जीना अगर दिन चार, मलप्पन क्यों नहीं करता। खड़ी है मौत ये सर पे, भरे ! तू क्यों नहीं डरता ॥ टेर।। अरे! जाती है जिन्दगानी । जैसे वरसाद का पानी । खवर तुझको नहीं प्रानी, पशुवत् रेन में चरता ॥ तुझे० ॥१॥ मस्त है ऐश श्रसरत में, चना चातुर तू कसरत में । पहन पोशाक सज गहना, सेल करने को तू फिरता ॥२॥ हाथ लफड़ी घड़ी लटका, टेड़ा साफा झुका सर पे। घूमता तू गवरी से, नजर असमान में धरता ॥३॥ तर्फ कर जहां को जाना, वहां है मुल्क वीगाना । नहीं कोई यार साथी है, जो कर्ता है वही भरता॥४॥साल उन्नीले पैसट में, किया चौमास उदैपुर । तुझको नत में, चना फिर Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०८) जैन सुवोध गुटका। दिया उपदेश जीवों को, दया की नाव से तरता ॥ ५॥ . १६७ तिथि शिक्षा. (तर्ज-अाखिर नार पराई है) काल पकड़ ले जाता है, तू क्यों इतना अकढ़ाता है ॥टेर ॥ एकम एक उमर घट जावे। गया वख्त पीछा नहीं आवे । वृथा जन्म यह जाता है क्यों० ॥१॥ वीज वीजली का भलकारा । तन धन यौवन समझो सारा । झंडा जगत का नाता है ॥२॥ तीज त्योहार कामी मन भावे । विषय भोग में वह ललचावे । ज्यूं मिट्टी में कीट लिपटाता है ॥३॥ चौथ चार गतिका फेरा ।किया जीव अनन्ती वेरा । ल्यूं संतुष्ट नृप नहीं पाता है ॥४॥ पंचम पंच अग्रसर होय, कुरिवाज नहीं मेटे सोय । वह कैसा बड़ा कहलाता है ॥५॥ छट छकियो जवानी मांई । ताके तू तो नार पराई । जरा खौफ नहीं लाता है ॥ ६॥ सातम साथ तू खर्ची लीजे। 'मिला योग खाली मत रहिजे । एक धर्म साथ में आता है ॥७॥ आठम फंसा तू आठों पाहर । धन्धा करे तेज और मोहर। लोभी नर दुख पाता है ॥८॥ नम से नरक दुख है भारी। पापी की वहां जाय सवारी । मार मुद्गर की खाता है ॥६॥ दशम कहे दश उसके शिर । ऐसा रावण था शूरवीर । वह वादल ज्यू विरलाता है ॥ १०॥ ग्यारस के दिन सुन ले ज्ञान । कर तपस्या भजले भगवान । जो मुक्ति तू चाहता है॥ ११ ॥ वारस कहे वात ले मान । मत पीजो पानी अनछान । क्यों नाहक जीव सताता है ॥ १२ ॥ तेरस तेरी उलटी वुद्धि । करे फाटका रख्ने न सुधी। साहूकार पछताता है ॥ १३ ॥ चौदस Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | ( १०६ ) चतुर्दश रत्न के धारी । लक्षवाण वे सहस्र थी नारी । सो दीपक ज्यूं बुझाता है ॥ १४ ॥ पूनम पूर्ण करणी तो करले । भवसिन्धु से जल्दी तिरले । यूं चौथमल जितलाता है ॥ १५ ॥ शहर जोधपुर है सुलतान | श्रावक लोग वसे गुणवान् । सतत्तर कार्तिक में गाता है ॥ १६ ॥ १६८ जमाने की खूबी. (तर्ज-ना रघुनाथ के देखे नहीं दिलको करारी है) उलट चलने लगी दुनियां, न्याय को कौन धरता है । अगर सच्ची कहे किससे तो वह उलटी समझता है ॥ टेर ॥ सखी बखील बन बैठा, अजीज दुश्मन भये सारे । अरे ! धर्मी वने पापी, गीदड़ से शेर डरता है ॥ उलट० ॥ १ ॥ ब्रह्मचारी अनाचारी, त्रिया खाविंद को दे गाली । वह से सास भी डरती चाप से पुत्र लड़ता है ॥ २ ॥ उंच ने नीच कृत धारा, नीच जपता है नित माला | सच्चे बोलते हैं भूँट, नेक बदी में फिरता है ॥ ३ ॥ होके कुलवान की नारी, करे पर पुरुष से यारी । योगी भोग चाहता है, ब्रह्म निज कर्म छती है ॥ ४ ॥ देखते २ दुनियां, पलटती ही चली जाती। चौथमल वीर जो भजता, वही संसार तिरता है ॥ ५ ॥ १६६ झगड़े का मूल. ( तर्ज - आखिर नार पराई है ) तीनों की फक्त लड़ाई है। ज़र जोरू जमीन जग मांई है ॥ टेर ॥ चेड़ा और कौणक महाराज | लढ़े हार हाथी के काज वाई पद्मा ने आग लगाई है । तीनों० | १ | सीता के लिए Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) जैन सुबोध गुटका। लड़े रघुवीर । मारा गया रावण सा वीर । क्षण में लंक गमाई है ॥ २ ॥ भरत बाहुवल दोन भाई । आपस में हुई उनके लड़ाई । समझाया इन्द्र ने आई है ॥३॥ महाभारत का है परमाण । कौरव पांडव सा वलवान, दिये लाखों लोग कटाई है ॥ ४ ॥ कई बादशाह और वजीर । राजा राना और अमीर । रही धरा यहां की यहां ही है ॥ ५॥ चौथमल कहे धन्य मुनिराज। तजा खजाना सुन्दर राज । माहिमा जिनकी छाई है ॥ ६॥ -5+xs १७० मिथ्या ममत्व. (तजे-चिना रघुनाथ के देखे नहीं दिल को करारी है) चले जाओगे दुनियां से, कहना ये हमारा है । उठाके चश्म तो देखो, कौन. यहां पर तुम्हारा है ॥ टेर ॥ कहां से आए हो यहां पर, और क्या साथ लाए थे । बनो मुखत्यार तुम किसके, जरा ये भी विचारा है॥ चले०॥ ॥१॥ गुनाहों के फरश ऊपर, लगा जुल्मों का तकिया है मजे में नींद: लेते हो, खूब शैतान प्यारा है ॥२॥ दिन खाने कमाने में, ऐश मस्ती में खोई रात । भलाई कुछ न की ऐसी, जिससे वहां पर सहारा है ॥३॥ जहां तक दम वहां तक है, तेरे धन माल और कुनबा । निकलते दम धरे जंगल, करे . आखिर किनारा है ॥ ४ ॥ निगाह चौ तरफ तू उस वक्त, जो फैला के देखेगा। तो अकेला .आप खाली हाथ, लिए जुल्मों का भारा है ॥ ५ ॥ कजा आने की है देरी, फकीर सी दे Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "जैन सुवोध गुटका । चला फेरी | फिर मौका कहां | ल्हेरी, किया मानी, कहां ( १११ ) तुझ को इशारा ब्रह्मदत्त से भोगी ॥ है ॥ ४ ॥ कहां शम्भूम चक्र कहां वसुदेव से योधा, हुए ऐसे हजारों है हीरालाल के परसाद, कहे मुनि चौथमल धर्म के प्रेमी, तो सुधरे काज सारा है ॥ ८ ॥ ফঃ*ঃa ७ ॥ गुरु सबसे । बनो जिन १७१ साधु संगत सार. ( तर्ज - पनजी मुंडे बोल ) संगत करले २ साधु की संगत शिव सुखदातारे || ढेर || प्रत्यक्ष कल्प वृक्ष-सा जुग में, जाने पारस मिलियारे । तुरत होसी तिरो थारो ज्ञान के सुखीयारे ॥ संगत० ॥ १ ॥ कुटुम्ब कबीला धन दौलत में, मत ना कभी तुम राचोरे । विन मतलब बिन कोई न पूछे, सगपण काचोरे ॥ २ ॥ जूंश्रावाज चोर लंपट, और मद्य मांस खानारारे । इतनों की संगत मत कीजो, सुन बेन हमारारे ॥ ३ ॥ कुगुरु कनक कामिनी भोगी, लोभी और धूतारारे । आप ह्वे कैसे तुझ तारे, करो विचारारे ॥ ४ ॥ गौतम स्वामी पूछा कीधी, देखो भगवती माईरे । दश दोल की है। वे प्राप्ती, सुगुरु संगत पाईरे ॥ ५ ॥ कहे चौथमल गुरु हमारा, हौशलालजी ज्ञानीरे । चतुर हो तो समझो दिल में अति हित आनीरे ॥ ६॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११२) जेन सुबोध गुटका। NNNNNNA .१७२ कराल काल.. (तर्ज विना रघुनाथ के देखे नहीं दिल को करारी है). . . कजा का क्या भरोसा है, न मालूम फव. ये विगा। खड़ा रह जायगा लशकर, पकड़ तुमको ले जावेगा । टेर॥ तीतर को बाज पकड़े है, मेंडक को सांप असता है। विल्ली चूहा झपटती है, काल ऐसे दवावेगा ॥ कजा० ॥ १॥ कहां है वेद धनवंतर, कहां लुकमान जहां में है। मिलाया खाक में उनको, तू क्या वाकी रहजावेग ॥ २॥ जैसे सिंह हिरन को ले, कजा नर को लहे आखिर । नहीं माता पिता भाई तुझे आके छुड़ावेगा॥३॥ धरे रह जायंगे हथियार, क्या उमराव और साथी । घरे' रह जायंगे न्याती, नहीं कोई वचावेगा ॥४॥ चले नहीं जोर जादू का, चले नहीं जोर वाजू का । पड़े त्रिलोक में डंका, तू कहां जाके छुपावेगा ॥५॥ अरे! जिसकी धमक आगे, कांपते चांद व सूरज । मगर सोता तू गफलत में, अधर आके उठावेगा ॥६॥ गुरु हीरालालजी परसाद, कहे मुनि चौथमल ऐसे । करो क्रिया वरो मुक्ति, तो काल भी ताप खावेगा ॥७॥ १७३ स्वार्थी संसारं. : (तर्ज -परदेशों में रेमगई जान अपना कोई नहीं ). .. लव मतलय को संसार, तेरा तो कोई नहीं ॥टेर मात और तात कुटुंव और संजन, मतलव को परिवार ॥ तेरा० ॥ १॥ कंठी डोरा कानों का मोती, धरी रहेगी नारं ॥२॥ कसूमल पाग केशरियां यागा, सब झूठा सणगार ॥३॥"जों तू जन्म सुधार्यो चाहे, सेव २ अयगार ॥४॥ असल धर्म है 1 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | AAAA F श्री जिनवर का, धार २ हो पार ॥ ५ ॥ चौथमल कहे गुरु हीरालाल, जहां के नमो चरणार ॥ ६ ॥ १७४ कूंच का नकारा. ( तर्ज - बिना रघुनाथ के देख नहीं दिल को करारी है ) दिला गाफिल न रहे मूरख, कुंच का यह नकारा है । दमादम जा रहा मकलूक, कौन यहां पर तुमारा है | टेर ॥ मुसाफिर खाना है दुनियां, एक श्रता एक जाता है । उठाके चश्म तो देखो, चंद दिन का गुजारा है ॥ दिल० ॥ १ ॥ पचा के मुफ्त का खाना, फुलाया गाल को तुमने । सताते हो गरीबों को, वहां इन्साफ सारा है ॥ २ जुल्म करना न मुशकिल है, मुशकिल रहम का करना । नेकी करते रहम रखते । घो हो ईश्वर का प्यारा है ॥ ३ ॥ घूमते हो गरूरी से, बड़े सज धज के धागों में । मगर मत भूलना प्यारे, ऐसे हुए हजारां है ॥ ४ ॥ गुरु हरिलाल के परसाद, चौथमल कहे सुनो लोकों । बसे जिन ध्यान तजो अभिमान, तो सुधरे काज • सारा है ॥ ५ ॥ 2 ( ११३ ) h १७५ ममता. (तर्ज- तू, म्हारो बावो रे बाबा ) पापिन ममतारे ममता, या चाहे है मन गमता ॥ टेर ॥ पुराय योग मनुष्य भव पायो, जिस पर ध्यान नहीं धरता । पेश आराम में मगर मस्त तृ, होय चोकरां फिरता ॥ पा० ॥ १॥ तन धन यौधन कुटुम्ब सभी को, मेरा २ करता। दिन रेनी 'धंधा में लागो, श्रावण भैंस ज्यं चरता ॥ २ ॥ कर२ मंगता जगह बंधाई, अभिमान तू करता । पाप कमावे फिर हुलसाचे परभव से नहीं डरता ॥ ३ ॥ स्याल तमाशा रंग राग में, अग Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६.) जैन सुवोध गुटका। चलती वैरा थारे. कोई न लार ॥४॥.चौथमल.कहे मानो शिक्षा सुजान चालो मुक्ति में करोधिर्म ध्यान ॥ ५ . . . : १८० रावण मंदोदरी संवाद. .. .. . (तर्ज-दियो दान सुपातर, पाया.सुख सम्पत धना सेठजी) . सीता प्रीतमं दो पाछी सोपजी, यह अर्ज इमारी, सीता ॥ टेर। सीता नहीं देसां निश्चय जाएजे, करसां.पटराणी, सीता०॥टेर ॥ सीता पाछी सोपदो सरे, वाजी रहवे पेश । सुवागपणो म्हारो रहे-सरे, मानो लंक नरेश । नहीं तर श्राप का कुल विषे खरे, लांगे कलंक विशेष. ॥ यह० ॥१॥ नारी जाति अकल की हीनी, बात करे तू बेकी । सीता जैसी रूपवान मैं स्वप्ना में नहीं लेखी। मन धार्यों मारो करूं सरे तूं पण लीजे देखी । कर० ॥२॥थे प्रीतम छाया भोग विषे, थाने सूझे नहीं लगार । रामचंद्र संग, सेन्या .लेकर, आय रह्या ललकार । लक्षमण जिनके संग में सरे, है बांका सरदार ॥ यह० ॥ ३ ॥ राम लक्षमण दोनों बनवासी, फौज नहीं हैं पास । लंकागढ़ के पाड़ा प्यारी भरा. समुद्र.खास.। यहां पर . कोई नहीं भालके सरे, श्ख पूरा विश्वास ॥ कर०. ॥४॥ यह ; जनकराय की पुत्रिका सरे, सीता इसका नाम । सत्यवंती और है पतिव्रता, जाने मुलक.तमाम । पर पुरुष को कभी न वच्छे, क्यों होवे बदनाम ॥ यह? ॥ ५॥ विभीषण और कुंभकरण यह हैं मेरे दो भ्रात । सीता पाछी सोपते सरे, लानें क्षत्री जोत । मत बोलो मनोदरी-स. थारी नहीं सुहावे बात-॥ कर०॥ ६॥ सीता हाथ आसी नहीं सरे, लंक"हाथ : लेजावी काम अन्ध पहिलें नहीं समझे; पीछे ही पछतावे . चौथमल कहें भावी प्रचल, एक आस नहीं आवें ॥ यह ॥७॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | ✓ १-१ गफलत को छोड़( तर्ज इन्द्र सभा ) ( ११७ ) १८२ प्रबोधन, ( तर्ज भजन ) AAAAAAA A क्यों सोए भर नींद में, और श्रव तो नैन उघाएं | नहीं वसीला आगे तेरा, दिल में करले विचार | टेर || इस खलफत के बीच में, तुझे जीना है दिन चार । धन दौलत के चीच लोभाकर, मत तू पांव पसार ॥ क्या० ॥ १ ॥ मात पिता और सज्जन स्नेही, निज मतलब के यार । आखिर में वे बदल जायंगे, नहीं थायेंगे लार ॥ २ ॥ अती झरोखा रावटी, और चंचल गज तुखार | सोने की सेजां छोड़ेगा, सुंदर अवला नार ॥ ३ ॥ नित्य नई पोशाक बनावे, गले मोतियन के द्वार । दम निकले तन से खींचेंगे, तेरे सब शृंगार ॥ ४ ॥ परम " वसीला जैन धर्म का यही जग में आधार | चौथमल कहे वीर प्रभु भज, सफल करो अवतार ॥ ५ ॥ ऐसी देह पाई, भजो भगवंत तांईरे टेर ॥ मास सवा नव रह्यो गर्भ में, बहुत सी संकढ़ाई | नीट करीने बाहर निकल्यो, अब क्यों बंदा करे चतुराई ॥ ऐसी ॥ १ ॥ भांत २ का वस्त्र पहेरी, टेड़ी पाग भुकाई । गृह त्रिया में मग्न हुआ है, माया में रह्यो तु लुभाई ॥ २ ॥ मात पिता से मुख नहीं बोले, साला से गुस्ट लगाई । यम के दूत पकड़ेंगे थाकर, भूल जायगा वंदा घुमराई ॥ ३ ॥ गुरु हीरालाल प्रसाद चौथमल ऐसी जोड़ बनाई । नर तो नारायण वन जावे, वन्दा तेन ऐसी देह पाई ॥ ४ ॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११८) जैन सुवोध गुटका। १८३ अध्यात्मिक-भांग (तर्ज मांग के गीत की) अजी भांग पियोतो पिया म्हारे महलां श्राजो काई कुम. तिरे महला मती जाओ, हो राज पियो भांगडली ॥१॥ लो जो लगे जिकी लोड़ी बनाई, फिर शील शिला पर बंटाई, हो राज पियो भांगडली ॥२॥ भक्ति की तो भांग बनाई, जिमें समता की शकर डलाई, हो राज पियो भांगडली ॥ ३ ॥ पर तीत पानी से साफ धुआई, ब्रह्मचर्य की विदाम नखाई, हो राज पियो भांगडली ॥४॥ करणी की तो काली मिरचा मांई, और प्रेम का पिस्ता सांई, हो राज पियो भांगडली ॥५॥ अध्यातम का इलायची दाना, यह भी मांग के बीच नखाना, हो राज पियो भांगडली ॥६॥ सर्व मसाला सामिल मिलाई. या तो ज्ञान की घाट मचाई, हो राज पियो भांगडली ॥ ७ ॥ सुमता सखि ने वेतनताई, दम दुधीया भांग बनाई, हो राज पियो भांगड़लीप्रथम प्यालो या झट भरलाई सत चित्त श्रानंद के ताई, होराज पिया भांगड़ली ॥ ६ ॥ ऐसी भांग पिया प्याला भर पियो, फिर मुक्ति की लहर लेवो हो राज पियो भांगडली ॥ १०॥ गुरु हीरालालजी महा सुखदाई, चौथमल ने भाव भांग गाई,होनाज पियो भांगड़ली॥११॥ . १८४ संसार त्याज्य. (तर्ज-मांड, भजो नित त्रिशला नंद कुमार ) . तजोरे जिया झूठो यो संसार, जरा हृदे ज्ञान विचार ।। टेर ॥ यूं स्वपना में राजलक्ष्मी, मिले नार परिवार । नैन खुलते ही विरला जावे, इण विध ज्ञान विचार ।तजो० ॥ ॥१॥ रत्न जड़ित का मालियारे, सुन्दर अबला नार। नाना Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। ( १९६) प्रकार का मेवा मसाला, सो भोग्या अनंतीवार ॥२॥ छत्र चंवर शिर वीजतारे, खमा २ करता नर नार | गादी तकिया चैठतारे, सो चले गये सरदार ॥ ३॥ राजा राणा बादशाह रे, रहता संग सवार । माल मुल्क छोड़ी गया रे, देर न लगी लगार ॥ ४॥ चुना चंदन फुलेल लगाई, हीडे हीडा मंझार । नया २ लणगार सजीने, गर्व मती लगार ॥ ५॥ इम जानी जग जाल ने बोड़ो, निज प्रातम को तार । जंवूकुमार अतुल वैरागी, उतरया भवजल पार ॥ ६ ॥रंभा बत्तीसों तजोरे, शालिभद्र कुमार। मुनि अनाथी महा वैगगी, छोड्या धन भंडार।॥ ७॥ बाल ब्रह्मचारी गज मुनि रे,यादव कुल शणगार। नेम समीपे संयम लेने, कर गया खवा पार ॥८॥ गुरु हीरा. लाल प्रसाद चौथमल, जोड़ करी श्रीकार | मांडलगढ़ उन्नीसे बांसठ, फागण सेखे कार || १८५ मूर्ख को शिक्षा देना व्यर्थ. (तर्ज-आशावरी) सन्तां नुगरा का नहीं विश्वासा ॥ टेर ॥ इत उत डोलत माया कुं हूंढत, जेता मूंह तेता दिलासा । कोई यत्न वाहे सो करलो, कबहु न होता खुलासा ॥ सन्तां ॥१॥सर भूमि में चीज पड़े ज्यू वी चि जवासा | उ तवा पर बूंद पानी का, क्षण में होत विनाशा ॥२॥ दग्ध चीज अंकुर न मेले, मुरदा ले कव श्वासा,उड्डू मूंग कभी नहीं सीजे,जो नांच लगे पवासा ॥३॥ गुरु प्रसाद चौथमल कहे, सुन जोयानी खाला। जा घट अन्दर है विश्वासा, ता घर लील विलासा ॥ ४ ॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२०) जैन सुबोध गुटका। .: १८६ मोटा नाकर्ता • (तर्ज-मांड, भजो नित त्रिशला नंद कुमार) माटान एवं कर घटतुं नथी, हूं कहूंछं पाड़ी वूम अति . ॥टेर ॥ बचन श्रापी हाथ बीजाने, कहे आ शुं तारे काम । वखत आवे बदली जावे, नटत न आवे लाज । मोटा० ॥१॥ पोते बाग लगावे कोई, ते वाडी मोटी थाय । सिंचन की वेला जब श्रावे, टालो खाई जाय ॥२॥ बुडतां माणस ने पकड़ी निकाले, ला अधपच दे छटकाय.। एवा विश्वास घाती नुं प्रभु, मुखड़े नथी बंताय ॥३॥ मोटा थावे माणसोरे, पाले बोल्या बोल । मोटा ढोल जेवा नहीं थाये, माहे पोलम पोल.॥४॥ अठारदेशना. राजा मोटा, आन्या चढा नृप नी भीड़ । स्वधर्मी ने साज जो श्रापी, निज वचनों री पीड़ ॥ ५ ॥ साचा थाओ काचान थानो, रखो वचन अडोल । गुरु हीरालाल प्रसादे चौथसल, देवे सीख अनमोल ॥६॥ . १८७ श्रायु की अस्थिरता.. ..तः भर्तृहरिकी-घुणी तो धक्का द्यो वादल.महल में . श्रासन डोडिया के माय दिन दस अठे ही तापोजी. अमर कोई न छेजी, काची काया का:सरदार पटेर।। सुवर्ण का पलंग सेजा फुलां की जी, सोता सुन्दरी के साथ ।। अमर० ॥१॥ लाखां तो फोजी जांके संग रहती जी, उमराव जोड़ता था हाथ ॥ २॥ सोलह तो शृणगार Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका । ( १२१ ) तन सज करता जी, मोती पहनता था कान ॥ ३ ॥ काच तों देखी पाघां बांधता जी, मुखमें चावता था पान ॥ ४ ॥ धन तो योवन माया पावणी जी, जाता नहीं लागे वार ॥ ५ ॥ बड़ा तो बड़ा ने धरनी गल गई जी, गल गया हिन्दु मुसलमान || ६ || गर्व करी घोड़ा फेरता जी, हिन्दु पतं सुलतान || ७ | चांद ने सूरज जग में स्थिर नहींजी स्थिर नहीं इन्द्र ने नरेन्द्र ॥ ८ ॥ चक्रवर्ती वासुदेव कई जी गया दीपक ज्यू विरलाय ॥ ६ ॥ काया तो माया जैसे धूप छायांजी, प्रभु भजले दिन चार ॥ १० ॥ गुरु तो महाराज हीरालालजी, चौथमल देवे यों उपदेश ॥ ११ ॥ १८८ राजा हरिश्चन्द्र की सत्यता. ( तर्ज - मीरा थारे कांई लागे गोपाल ) कर्म गति कहिय न जावे राज हो कर्म० || ढेर || काशी नगर के वाम, हरिचंद्र करे विचार | देखी रानी फिकरमें, छूटी प्रांसु धार ॥ कर्म० ॥ १ ॥ सत्य को कैसे राखसुं, कौन देसी मुकने दाम । श्रव मुझको क्या जीवना हाथ कमाया काम || २ || सत्य गया तो क्या रहा, प्राण गया प्रमाण | जद राणी श्रजी करी, सुख लीजो घर ध्यान ॥ ३ ॥ निज प्यारा का. नेन सुं, लुहे प्रांसु चीर । मत झुरो थे साहवा, राखो सत्य शरीर ॥ ४ ॥ तारा कहवे मुझ भणी, वेच्यो मध्य बाजार । सत्य राखुं पीस पीसयो, Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२२) जैन सुवोध गुटका! : नीर भरु पणिहार ।। ५ ॥राणी वचन काने सुनी. राज होगये दंग । रानी कुंवर ने देखनेरे, करवत वेगई अंग ॥६॥ राजा मन विचारीयो रे, करनो कौन उपाय । नारी गहेने मेलतारे, जग बदनामी थाय ॥७॥ बदनामी से मत डरोरे, सुण प्राणेश्वर नाथ । कायर मत वे सायबा, क्षत्राणी अंग जात ॥८॥राजा कहे रानी सुनारे, पूर्व पुन्य प्रकार । धन्य थारी जननी प्रतिरे, मुझ घर ऐसी नार ।। ६॥ गुरु हीरालाल प्रसाद सुं, चौथमल यूं गाय । सत्यधारी के सत्य प्रभावे, मिले कुटुम्ब सुखदाय ॥ १० ॥ · १८६ नवधा भक्ति दिगदर्शन, (तर्ज-आशावरी) __ या नवधा भक्ति धारो, जासे सुधरे नर अवतारो॥ टेर॥ प्रथम ब्रह्मचर्य अवस्था में शिक्षा सम्भारो।मात पिता आचार्य गुरु की, हो भक्ति करनारो ॥ या० ॥१॥ श्रवण भक्ति पहली सो प्रभु, गुण सुनके धारो। कीर्तन भक्ति दुजी, सो गुण स्वयं उचारो॥२॥ स्मरण भक्ति तीजी है ये, स्वभावी जप विचारो। पाद लेवणा भक्ति चौथी, पर के प्राण उबारो॥३॥ अर्चन भक्ति पांचवी, करे सर्व को सतकारों। पाद वन्दन भक्ति षष्टी, नम्रता हृदय विचारो॥ ४॥ दास भक्ति कहो सातमी चाकर वन चरनारों । संखा भक्ति करों अष्टमी, मित्र भाव संसारों ॥५॥ श्रातम निवेदन भक्ति सो तो, परमात्म पद हो सारो। चौथमलःकहे ऐसी भक्ति, सर्व फल दातारो॥६॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुयोध गुटका। (१२३) - . - - - - १६० श्रात्म बोध. (सर्ज-बटवा गूंधन देरे) पलक २ श्रायु जायरे चेतनिया पलक २ श्रायु जाय।अरे! मेरे कहने से करलोरे सुकरत पलक २ श्रायु जाय ॥टेर ।। बाल पणो हंस खेल गंवायो, योवन तिरिया चाय । वृद्धपना के मायनेरे, फेर वने कछु नाय ॥ अरे० ॥१॥ मात पिता और सजन स्नेही, स्वार्थ भेला थाय । जो स्वार्थ पूगे नहीं तो, तुर्त ही बदली जाय ।। ।। च्यार दिनां की चांदनीरे, जिस पे रहा लोभाय । लाया पुन्य खूटी रहारे, फेर करेगा काय ॥३॥ गफलत में मत रहे दिवाना, सांची देऊं बताय । ऐसा वत फेर न मिलेरे, जाग तू प्रमाद उड़ाय ॥४॥ सूतर को सुणवो मिल्योरे, सद्गुरु सेवा पाय । जन्म सुधारो श्रापणोरे, धर्म करो चित्तलाय ॥ ५ ॥ उगणीसे चौसठ जाणजोरे, मन्दसोर के मांय । गुरु प्रसाद चौथमल यों, जोड़ सभा में गाय ॥६॥ १६१ झूठ पाप का मूल. (तर्ज-विना रघुनाथ के देखे नहीं दिल को करारी है.) सजन तुम भूठ मत बोलो साहय को सत्य प्यारा है। सत्य सम सरणा नहीं दूजा। सत्य साहब को प्यारा है ॥टेर ॥ सजन इस झूठ के जरिये, इज्जत में फर्क आता है । भरोसा नागिने कोई, झूठ निमक से खारा है ॥ सजन० ॥१॥ चाहे गंगा चाहे यमुना, चाहे सरजू किनारा है। चाहे मन्दिर चाहे मसजीत, चाहे ठाकुर द्वारा है ॥२॥ दोजन के बीच फरीस्ते, झूठों की जीभ कतरेंगे। फेर गुरजों से मारेंगे, करे यहां पर पुकारा है ॥३॥ सांच को शांच है नांदी, सांच भाकयत में Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२४) जैन सुवोध गुटका। - हो लहाई । चौथमल सांच नौका ने, कई पापी को तारा है॥४॥ १६२ भरतको श्रीराम की शिक्षा. (तर्ज--विना रघुनाथ के देखें नहीं दिलको करारी है) __ कहे. श्रीराम भरत ताई भैया वात सुन लीजे । बैठ के अवध की गादी, अदल इन्साफ ही कीजे ॥ कहे०॥ टेर ।। पर स्त्री मात सम जानी, कमी महोब्बत में मत फंसना । लोभ को त्याग पर धनमें, भंग मर्याद ना कांजे ॥१॥ नीच इन्सान की संगत, कभी मत भूल के करना। अदू के सामने भैया, सदा ही शूरमा रहजे ॥२॥ विपत् और सम्पदा दोनों, शुभाशुभ कर्म के फल हैं। धीयता धार जननी को, सदा विश्वास तू दीजे ॥३॥ नसीहत देके वन अन्दर, चले सीयाराम व लक्षमण । चौथमल कहे जाते यू, प्रजा की पालना कीजे ॥४॥ १६३ प्रभु से अपराधों की क्षमा मांगना. .::. (तर्ज-प्रासाबरी) - मैं तोह जी श्रोगनगारो, नाथ मम किस विधि पार उतारो ॥टेर ॥ कामी, क्रोधी, चोरं, अन्याई, लोभी और धूतारो । इत्यादिक औगुण बहु भरिया, कैसे सुधरे जमारो। बड़ो यो उपजे विचारो ।। नाथ ॥१॥ भक्त बनी ने तुझ कु समस, लज्जा आत तिवारो । मुझ कर्तव्य छीपे नहीं तोसुं, Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (१२५) सर्वज्ञ नाम तुम्हारो । झूठ नहीं वात लगारो ॥२॥ वेवार दशा देखी ने दुनियां, देत है जी झिकारो । करज उतरसी कैसे हो स्वामी, जो लावे मांग उधारो । चढ़े यो उलटो भारो॥३॥ महावीर जिनराज दयाकर,अपना विरष समारो चौथमल शरणे आ पड़ीयो, जिम विम पार उतारो । एक प्रभु तेरो ही सहारो ॥४॥ १९४ द्विलोक संतापिनी पर स्त्री (तर्ज-तुलसी मगन भये हरि गुण गायफे) चतुर न कीजो संग चौथा अधरमकी ॥टेर॥कामण युग में कामण कारी, जहर फेसी बेली जानो नागिन सार की ॥ चतुरन० ॥ १ ॥ परनारी है ऐंठ को सो कुण्डो, मुंडो डूबो नर मँडो असाचार की ॥२॥रावण राजा श्रीखण्ड को नायक, सीता हरण कीधी रामजी का घर की ॥३॥ हाथ न आयो कुछ अपयश लई मुंओ, होगई बात जांकी बिना शरम की ॥ ४ ॥ इस भव में तो धन जोवन लूटे, परभव में देने वाली है नारकी॥५॥ साँची २ देखी जैसी जिन माखी, तोरे तो न लगी जिया, तोरा करमकी ॥ ६॥ चौथमल कहे शीलवत धर, मान मान सीख - गुरु परम की ॥ ७॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२६) जैन सुबोध गुटका । ___ १६५ प्रात्मा पवित्र करने का उपाय.. . (तर्ज-चलत) मुगत में सुख है दुःख न न न न् ॥ टेर ॥ कर. तप संयम जोर लगाले, कर्म कटत है खनननन् ।। मु० ॥१॥ ज्ञान दर्शन चारित्र पाराधो, धर्म कथा कहो भनन न न न न् ॥ २॥ पाप करंता लज्जा आणो, धर्म करता गाजो धननन न न ॥ ३॥ इस विध करणी करो भव जीवां, आवागमन छटे छननननन् ॥ ४ ॥ शिव अचल स्थान पधारो, चाजो मही में धनन न न न ॥ ५ ॥ अनंत सुख की लहर में विराजो, फेर न आवो इन न न न न ॥६॥चौथमल कहे गुरु हीरालालजी, ज्ञान सिखायो सन न न न न् ॥७॥ . १९६ मनुष्यं जन्म की महत्ता. (तर्ज पणिहारी। __ मनुष्य जन्म को पायने, सुनचेतनजी, कीजे खूब जतन चेतनजी, मत पड़ो जग जाल में, सुन चेतनजी, सुधपुर थारो वतन चेतनजी ॥१॥ आयो आप जो एकलो सुन चेतनजी नहीं लायो कोई संग चेतनजी, फेर जाती वेलां एकलो. सुन चेतनजी, समझो धरी उंमग चेतनजी ॥ २ ॥ काला. का घोला हुआ सुन चेतनजी, अजुअन समझो आप चेतनजी, दूत आया यमराज का सुन चेतनजी, मैं कहूं छ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन मुबोध गुटका। (१२७) - साफ चतनजी ।।३।। इत्तर फुलेल लगावतां सुन चेतनजी.. पगड़ी बांधता टेड सुन चेतनजी, कुंकुम वरणों दे होती सुन चंतनजी, या बुढ़ापा लीधी घर चतनजी ॥४॥ अव चेतो तो चेतलो सुन चेतनजी, अभी हाथ में बात चेतनजी, चौथमल कहे धर्म करो सुन चेतनजी, भजलो श्री जगन्नाथ चेतनजी ॥५॥ १६७ कृपण का फोटू, (तर्ज पनजी मुंडे बोल) सुकृत करलरे, माया का लोभी, संग चलेगारे टेरा। ऐसो मनुष्य जमारो पाके, अब तो लावो लीजरे । कुटुम्म कवीलो धन दोलत में चित्त न दीजरे ॥ सुकृत ॥१॥ इस धन कारण देश प्रदेशां, धूप गीणी नहीं छायारे । करे नौकरी बहु नरनारी, जोड़े मायारे ॥ २ ॥ महंगो कपड़ो कभी न पहरे. दिन काढे कूकस खाइरे । सोनो रूपो नहीं पहरणदे, घर के मांहीरे ॥३॥तू जाणे धन लारे आसी, बांधे गाडी २रे। अंत समय हाथां की चींटी, लेगा कादीरे ।। ४ ।। नहीं खावे नहीं खरचे मूरख, दान देता कर धूजेरे । छाछ तो पाणी नहीं घाले, घर गायां दूजेरे ॥ ५ ॥ श्रयचित्यां को सुसले मुंजी, काल नकारा देगारे। कंठी डोरा मोहरां की थेन्यां, धरी रहेगारे ॥ ६॥ चौधमल कहे अखूट खजाना, धर्म का धन कमावारे । दया Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२८) जैन सुबोध गुटका ।" .. शील तप दान करी, मुक्ति में जाबोरे ॥ wimmmmmm . . १९८ उपालंभ. . . . . . . (तर्ज-कव्वाली) अरे देखी तुम्हारी अकल, क्यों मुम्भ से कहलाते हो। बस २ वाहजी वाह, खाली बातें बनाते हो। टेर ॥ अरे कोई नान के आलिम, दिया था ज्ञान हमने यह । अब मालूम हुआ हमको; धोखेबाजी चलाते हो। अरे॥१॥ नहीं दया दान के हो तुम, नहीं कोई लाज मर्यादा । नहीं कोई खोफ परभव का, मानो गुल्लर दिखाते हो ॥२॥ नहीं तप.जप है करणी, नहीं कोई त्याग पर परणी । नहीं जुल्मों से आते बाज, पंच खाली झुकाते हो ।। ३॥ नहीं भलपन बने खुद से, बुराई नेक की करते । बड़े. अफसोस . की है वात, थान को लजाते हो ॥ ४॥ खान पान ख्याल ऐशों में, सजी पोशाक युग वरती । तुम्हारी तुम जानो बाबा, इतने किसपे एंटाते हो ॥ ५॥ कहे यूं चौथमल तुमसे, बुरा मत मानियो प्यारे । सच्ची २ कही हमने, अमल में क्यों न लाते हो ॥६॥ "१६६ सुकर्त्तव्य. (तर्ज-तीलगी दादरा) दया करने में जिया लगाया करो ॥टेर ॥ चलो तो Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (१२६) पहिले, भूमि को देखो छोटे मोटे जीवों को बचाया करो ॥ दया० ॥ १॥ बोलो तो पहिले, दिल में सोचलो । ना किसके दिलको दुखाया करो ॥ २ ॥ बहक का माल न, खाओ कभी तुम । ना परधन पे ललचाया करो ॥३॥ चाहे हो गोरी चाहे हो काली । परनारी से निगाह न लगाया करो ॥ ४ ॥ पास हो माल खजाना तुम्हारे, पर जीवों का दुःख-भिटाया करो ॥५॥ चारों ही पाहार न रात में खाओ, ऐसी बातों को दिल में जमाया करो ॥६॥ चौथमल कहे पाठों ही पहर में, दो घड़ी प्रभु को: ध्याया करो ॥ ७॥ २०० उठो लक्षमण २. (तर्ज-विना रघुनाथ के देखे नहीं दिलको करारी है) लगा जो तीर लक्षमण के, पड़े गश खाके भूमी पर । कहे तब राम आसू भर, उठो लक्षमण उठो लक्षमण ॥ टेर ।। सीया रावण के कब्जे में, और तुमने करी ऐसी । मेरा इस बनमें घेली कौन, उठो लक्षमण उठो लक्षमण ।। लगा।॥१॥ अरे रन बीच सेना को, सिवा तेरे हटावे कौन । गिराया क्यों घनुप तेने, उठो लक्षमण उठो लक्षमण ॥२ ।। तेरी हिम्मत पे ही बन्धु, चढ़ाई की जो लंका पे | बंधावो धीर अब हमको, उंठो लक्षमण उठो लक्षमण ॥ ३ ॥ रहे गों यहां दुश्मन, इन्हों के गर्व फो गालो।नहीं यह वक्त सोने का, उठो लक्षमण उठो लक्षमण॥४॥ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म (.१३०) जैन सुबोध गुटका। ये..सुग्रीव और हनुमान , बंभीक्षण · पास है ठाड़े: । दे विश्वास अब इनको, उठो लक्षमण उठो लक्षमणं ॥ ५ ॥ अगर नफरत हो लड़ने से तो, फिर बन को चलें वापस.। कुछ भी.तो कहो भाई, उठो लक्षमण उठों लक्षमणं । बिन देख के हमको, माता रो रो के पूछेगी । कहेंगे क्या जबां से तब, उठो लक्षसण उठो लक्ष्मण ।। ७ । जिसके लिए लें लशकर, खाके जोश आये यहां । मिटावे कौन दुख उसको, उठो लक्षमण उठो लक्षमण ॥ ८ ॥ दयालू शख्स के कहने से, विसल्ला को लाये हनुमान । भगी शक्ति सती को देख, उठे लक्षमण उठे लक्षमण || हुआ आराम लक्षमण को,पाया सुख राम और सेना । जीत रावण को ली सीता, उठे लक्षमण उठे लक्षमण ॥ १० ॥ हुआ-मङ्गल अयोध्या में आये जब राम और लक्षमण । चौथमल कहे . खुश घर घर, उठे लक्षमण उठे लक्षमण ॥ ११ ॥ ।:: :: २०१ दया ही हिन्दुओं का खास धर्मः, . :: :: : (तर्गतलंगी-दादरा:). -.. . प्यारे हिन्दू से कहना हमारारे । दया करना; ही धर्म तुम्हारारे ।। टेर । उत्तम कर्तव्य थे जो तुम्हारे, क्यों तुमने उसको विसागरे । प्यारे॥१: ।। दारु..नं पीनो मासन खात्री, खेलौनाकभी शिकारारे ।। २.॥: हिंसा से दूर रहे सो हिन्दू दिल में तो करों विचारारे ।।३।। हिन्दू घटें Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका । (१३१) namannaamaamanamamiminarainemamaramnaamanamurde ईसाई बढ़े हैं, डूबे यह देश तुम्हारारे ॥ ४॥ विद्या पढ़ायो शास्त्र सिखायो, देओ एक दूजे को सहारारे ॥ ५ ॥ चौथमल कहे अब भी चतो, झटपट करो सुधारारे ॥ ६॥ २०२ फूट का दुष्फल.. "त::विना रघुनाथ के देखे नहीं दिल को करारी है] उठो बादर मिटाओ फूट, ये शिक्षा हमारी है।।.सम्प में फायदे हैं बहुत, फेर मर्जी तुम्हारी है ॥ टेर ॥ प्यारे मित्र ये सारे, तुम्हारे नैन के तारे । सभी दिल खींच पेठे क्यों, जरा यह भी विचारी है। उठो० ॥१॥चली अवतानाबाजी हैं, घने खुद मुल्ला काजी हैं । एक की एक नहीं माने, इसी सें गैरत भारी है ॥२॥ पढ़े लिखे की तबीयत पे, गजब छाई खराबी है । लड़े आपस में दुनियों तो, उन्हें देती धिकारी है ॥३॥ अलगरज होय के ड्वे, चाहें अपनी बड़ाई को। स्वारथ के ही लिये सबसे, भली तुमने विगाड़ी है ॥ ४ ॥ मुलामी धार के सय को, निगाह प्यारी से देखो श्राप ! तोड़ हो यूद, रसूमो को, पढ़े, इजत तुम्हारी है. ॥५॥ आप के सामने अब आज, कहो दम मारता है कौन । वनों संघ दुध मिश्री सम, यहीं तुमको हितकारी है ॥ ६॥ पड़ी जब फूट रावण घर गई जब लंका हाथों से। सम्प ले राम भरत अन्दर रही, मोहव्यत हजारी है,॥ ७॥ गुरु हीरालाल के परसाद, चौथमल कहे सुनो.लोगों । करो तुम सम्प जल्दी से, तो रदंती. यात सारी ॥ .. -Stoxs. Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३२) जैन सुबोध गुटका। . . . : । २०३ मांस परिहार . [तर्ज-तीलंगी दादरा] .. मांस अभक्ष नर का न खानारे ॥ टेर.॥ जाती है दयाः दूर इस मांस आहार से । होता है महा पातकी देखो विचार से । खास नके में उसका ठिकानारे ॥ मांस० ॥१॥ गोश्त । की जो उत्पत्ति कहो कैसे आब से | देख खुश होगये खाने खराब से । खाली दिल को सख्त बनानारे ॥२॥ डाक्टरों के लेख पे दिल में करो तो गौर । कितनी बढ़ी बीमारियां समझो तो जरा और । खाजलं जाजरु समानारे ॥ ३ ॥ एक मांसखोरे पशु एक घास करे आहारं । दोनों की सिंपर्ने देखलो नर किस में है शुमार । कहे चौथमल त्यागे सयानारे ॥ ४॥ ... .... . , . २०४ लोकोक्तिः .. .. २०४ लोकोक्ति. . . .. . [तर्ज-नागजी की] हंसजी थे मति जाओ छोड़नेरे या सुन्दर काया आपकी हो हंसजी ॥१॥ हंसजी तू भवरों में फूलरे कोई संयोगे आला लागा हो हंसजी ।। २ ।। हंसजी जग मग थारी जोतरे कोई काया महल में खुल रही हो, हंसजी ॥३॥ सुन्दरी थारा मोह में लागरे कांई: सुकृत करणी नहीं करी हो सुन्दर ॥ ४ ॥ हंसजी इण में म्हारों काई बांकरे कोई में हाजिर थारे खड़ी हो हंसजी ॥ ५ ॥ सुन्दरी सज तन पे श्रृंगाररे कोई इतरं' फुलेल लगावीया हो. सुन्दरी ॥ ६ ॥ बैठी बग्घी मांयरे कोई, बागों में Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका ( १३३ ) खाई हवा हो सुन्दरी || ७ || मानी मोजां खूबरे कोई, पट्रस भोजन भोगव्या हो सुन्दरी ॥ ८ ॥ मानी न सद्गुरु सीखरे कोई योवन छक व्याप्यो घणो हो सुन्दरी || ६ || वाज्या नकारा कूंचकारे कोई, विद्यतावो है खरो हो सुन्दरी ॥ १० ॥ हंसजी i धर्म करो त्रिकालरे कोई, में करती श्राड़ी नहीं फिरी हो हंसजी ॥ ११ ॥ जो तुम तजदो मोयरे कोई, साथे मैं थासुं सती हो हंसजी ॥ १२ ॥ चौथमल ऐसे कहे कोई धर्म सखा परलोक में हो हंसजी ॥ १३ ॥ 49 २०५ प्रभु से विनंति, (तर्ज-ठुमरी ) अतो नहीं छोड़ांगा प्रभु धांने ॥ ढेर || चोसारी लख भटकत आयो, श्राप मिल्या नीठ माने || अवे० ॥ १ ॥ जिम तिम करने शिव सुख दीजो, चोड़े कहूं के छाने || २ || मन विना म्हारो मन हर लीनो, शाशनपति वृद्धमाने ॥ ३ ॥ तरण तारण विश्व तिहारो, तीन लोक में जाने ॥ ४ ॥ चौथमल धारे शरणे आयो, तारो २ प्रभु माने ॥ ५ ॥ ? • २०६ फूट परिणाम, ( तर्ज-- दिलजान से फिश हूं ) इस फूट ने बिगाड़ा, मिटे फूट हो सुधारा ॥ टेर || देखो भाई २ झगड़े, कोरट के बीच रगड़े। अभिमान बीच अफ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२४) जैन सुबोध गुंटत anmamarawwanimaamaanmnmammummmmsww.amannawr. a ar. निर्लज्जपनं यह धारा.॥ इस० ॥ १॥ नहींन्यात २ भावे, नहीं जात २ चावे। सवः श्राप की जमावे, यह कायदा विगारा॥२. नहीं लज्जा.जात कुल की, वुड्ढे को देत लड़की । जरा पंचं लाज धरके, सुनते नहीं पुकारा ॥ ३॥ यह चाल कोई मिटावे, गस्ताखी पेंश श्रावे।वुजुर्ग की नसीहत पे,करते नहीं विचारा ॥४॥ गए डूब चाह वड़ाई, जाति में फर लड़ाई । स्वधर्मी धर्मी लड़के, नाइत्तफरक कर डारा ॥ ५॥ कैकई के वचन में पाके, दिया राज-यह भरत को। श्रीराम लम्म, रख, के, वनवाल को सिंधारा ॥६॥ कहलात जैन धर्मी, कंपाय माय वरते । अज्ञान अंधता से, वियरत्न को विसारी ॥७॥ प्यारे मित्र सब तुम, जैसे च खोल देखो । बर्वाद हुआ यह जाता, धन धर्म देश सारा ८॥ इसल्यूट से भारत में, नुकसान हो रहा है । कहे चौथमल जल्दी, वजा सम्प का तकारा ! ६".: kavi २०७ प्रभु जाप.:: : : (तर्ग-बिना; रघुनाय के देखे नहीं दिलको करारी है ), अरे जो श्वांस आता है, उसी में इसको रटता जा । अगर हो शौक मिलने का तो हरदम लौ लंगांता जा ॥ टेरे। अरे संसार है झूठा, इली ले 'दिल हटाता जा। शैतान का छोड़ी, पलक उरले सिलाता जा ॥१०॥ १ ॥ फंस मन एश के फंदे,करे मत हुक्म से बेजा । उली के कदमों के अन्दर, हमेशा सर झुकाता जागा २अरे लोते:अरे उठते, अरे क्या वैठते चलते । अरे हर वार हर मौके,..उसीले दिल मिलाता जा.॥३॥ नहीं कोई यार लाधी है; नहीं धत माल है अपना। उत्ती..दिन का है को वेली, उसीसे दिल लड़ाता जा ॥४॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुघोप गुटका. १३५) गुरु हीरालाल के परसाद, चौथमल कहे सुनो आलिम | शुभा उसका करो हरदम, विगानों से करता जा ॥ ५॥ २०८ योवन की अकड़ाई. ' (तजाखिर नार पराई है.) .. .. जो इतनी मस्ताई है, सब थोषन की अकड़ाई है ॥टेर ।। 'चढ़ता जय यौवन का पूर । निरखे तू दर्पण में नूर । टेडी पास मुकाई है। जो० ॥१॥ पोशाक सुदंर बदन सजावे । मूंछा घट दे बाल जमावें । घुमे इतर लगाई है. ॥ २: मात, पितासे करे लड़ाई । चले नार की आशा माई । नीति रीति विसराई है ॥ ३. मिलाराज का अब अधिकारी करें अन्याय और खेले शिकार । गरीबों की सुनता नाई॥४॥पीवे मंग मिनों संग जाई सिगरेट बीड़ी शफीम खाई। भूला काम : कमाई है ||घर ,त्रिया तो लागे खारी... पर नारी पातरिया प्यारी । संतू शिक्षा दर हटाई ॥६॥ चार दिनों की यहार दिखाये। खिला फूल वोही फुमलावें, ब्रह्मदस गयो 'पछताई हैं। ७ ॥' एक युवानी फिरधिन पल्ले जी रामें चलाये । तो रस्ते.बले करना मुशकिल भलाई है । महा मादर पधारे पूज्य । साल सतत्तर मगसर दूजा या चौथमल दरशाई है ॥ ६ ॥ . . . . ISon : - .::: २० अहिंसा प्रचार (तर्ज-विना रघुनाथ के देने नहीं दिलकों करारी है). सौहयेत संत की ऐसी अरे पापी भी तिर जावे। सुन एक बार जिन बानी भनी वैराग्य में छावें ॥ टेर. यात Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ('(३६ ) जैन सुवोध गुटका संजती • अगले जमाने की | कहूं मैं ध्यान धर नादरः । देश पंचाल के अंदर, कंपिल पुरं कहलावें ॥ सौचत० ॥ १ ॥ राजा है वहांका, साथ-चतुरंग दल - लेके । सजे शसतर केशरी वन, करन आखेट को जावे ॥ २ ॥ भंस लोभी हो याहू पर लगाया तीर को सांधी, भगा मृग बीच झाड़ीके, पीछा ले राजा संगे जावे ॥ ३ ॥ उसी जंगल की झाड़ीमें, ग्रध माली महा मुनिराज । तपोधन ज्ञानके पूरे, 'ध्यान जिनराज का ध्यावे ॥ ४ ॥ राजा तत्काल ही आया, घायल मृग वहां पढ़ा पाया। फेर वहां देख मुनिवर को, नृप दिल बीच घबरावे ॥ ५ ॥ अश्व को छोड़ मुनि तट श्रा करे बंदन झुका सरको । खता को माफ कर दीजें, मुनि तो मौन में रहावे ।। ६ ।। खोफ खाके कहे मुनि से, संजती नाम राजा हूं, कृपा दृष्टी से तो बोलो, मेरा ज्यों जीव सुख. पावे ॥ ७ ॥ ध्यान को खोलकर बोलें, अभै देता तुझें नर पत। श्रभै तू भी दे जीवों को, जुल्म क्यों ध्यान पर लावे. ॥ ८ ॥ डरा तूं देख के मुझको, ऐसे ही डरते तुझसे जीव । घड़ा जुल्मों से तू भरता, दया दिलमें न तू लांवे ॥ ६ ॥ किसके राज हैं भंडार, झूठे साज सब श्रृंगार । रूप चौवन विज्जु झलकार, जीव के साथ क्या आवे ॥ १० ॥ हजारों नाम पर होगये, नहीं किसका निशां वाकी । मुसाफिर चार दिन के हो, पड़ा सब ठाठ रद्द जावे ॥ ११ ॥ खता कर्ता वोही भर्ता, यही आगम की वाणी है। सुना मुनिराज से * Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | ( १३७ ) . यह धर्म, तुरत वैराग्य नृप पांव ॥ १२ ॥ छोड़ दी राज रिष सारी, जैन शासन के मंझारी । हुआ संजती व्रतधारी, केवल पा मोच में जावे ॥ १३ ॥ गुरु महाराज हीरालाल, सदा सुख संपदा पाजो | चौथमल को किया पावन, नित्य गुण थापके गावें ॥ १४ ॥ २१० आधुनिक शिक्षा अपूर्ण. ( तर्ज- आखिर नार पराई है ) जो वर्तमान पढ़ाई है, जिमें रुची धरम की नाई है. || ढेर || मिले नहीं धर्म का योग । लगे फिर मिथ्यात्व का रोग | नहीं समझे लिहाज के मांई हैं | जो ० ॥ १ ॥ कोट पतलून गेटिस को धारे। मुख में सिगरेट कुत्ता लारे | दिया ऐनक नेन चढ़ाई हैं || २ || गुड मोर्निंग कर मुख से बोले । राम राम हृदय से भूले । मिलते हाथ मिलाई है || ३ || घर में तो रोटी नहीं भावे, नित होटल में जाके खावे । चा-पानी की चाट लगाई है || ४ || सोड़ा वाटर सब मिल पीवे । जाति का कोई भेद न रहये । घूमे घड़ी लगाई है | ५ || खड़ा २ पेशाब करे हैं। पीवे गांडी जो चुद्धि हरे हैं | लगा कालर नकटाई हैं || ६ | श्रार्य चिन्ह चोटी कटवाई | ललांट पे लिये बाल रखाई | गये पहन अकढाई || ७ || कई नास्तिक होके डोले । साधु संत से मुख नहीं बोले | दया हृदय विसराई है || विद्या Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mmmmmmm innanaiviana (३८) जैन सुबोध गुटका । का तो किया है दोष । कुसंगत को लेबो रोक । यह चौथमल जितलाई है ।।६. २११ पर स्त्री परिणाम तर्ज--श्राखिर नार पराई है.] ___ यह सतगुरु सीख सुनाई है। खोटी नार पराई है ॥टेर ॥ पंच साक्षी फेरा खाया। उसी प्रीतम से कर कपटायां तो तेरी होने की नाई है ॥ या० ॥१॥ खुदकी नार करें पस्संग । सुनतें वचन बदल दे रंग । ऐसे ही जिसे व्याही है ।। २ ।। झूठा भक्ष पवित्र नहीं खावे । या कुत्ता या कौवा चावे । ऐसी गैर लुगाई है ॥ ३ ॥ अन्य पुरुषसे नैन मिलावे । वात अन्य मन में पर चावे । कहूं चरित्र कहां ताई है ।। ४ ।। देखो भर्तृहरी भूपाल । जान पिंगला बद चाल । तुरत गया छिटकाई है ।। ५ ।। कीचक ने निज प्राण गमाया । पद्मनाभ ने क्या फल पाया । रावण ने लंक गमाई है ॥ ६॥ सतत्तर साल मंगमर मझार । सोजतिय दरवाज बाहर । चौथमल आगाई है ॥ ७ ॥ २१२ सुसंयोग, (तर्ज-रेखता]. " ' सोच दिलंमें जरा गाफिल, वखत तुझको मिला.का: मिल । वनाले काम वो तेरा, हो जावे बहिश्त में डेरा ।। Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३३) सो० ॥ १ ॥ पिता मरता कुटुंब, भाई, सभी मतलब की 4 सगाई । लगाता जिग्र तू किस पर, अजल घूमे तेरे शिरपर 11 २ ॥ खलक ये वागसा तू जान, फूल नेकी का ले इन्सान मति जा हाथ खाली कर, लेजा फल फूल तू चहतर ॥ ३ ॥ गफलत की नींद से तू जाग । इन्हीं जुल्मों से दूरा भाग । नशे की चीज जिनाकारी, पाप यह जगत में भारी ॥ ४ ॥ चाहे आराम तू अपना श्री जिनराज को जपना | चौथमल कहे गुरु परसाद, कर जीवों की तू इमदाद || ५ ॥ जैन सुवोध गुटका | 4 4 95536 २१३ सराय की उपमा. ( तर्ज-- एक तौर फेंकता जा ) किस भरोसे रहे दिवाने, यह खल्क जारहा है। रास्ते की भूपही में, तू क्यों लुभा रहा है || ढेर || देखा सुबह सनम को, कूंचे में वन ठन निकले । सुना शाम को सनम का, कोई कफन लारहा है | किस० ॥ १ ॥ सज सज के सेज फूलन की, दूल्हा दुल्हन सोते । दुल्हन श्रावाज देती, उठाती न हिल रहा है ॥ २ ॥ था शहनशाह जबर चह, सरताज या भरत का । अजल ने थाके पकड़ा, अकेला वो जा रहा है ॥ ३ ॥ पोशाकं गुल वदन पे, दरपन में देख सजता । कहता था मुल्क मेरा, जनाजे में जा रहा है ॥ ४ ॥ होना हुशियार जल्दी, मत रहे देखवर तू । कर बंदोवस्त हशर का, चौथमल जिता रहा है ॥ ५ ॥ • Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४०) जैन सुबोध गुटका । NNN Ananewr २१४ निन्दा परिणाम. . . . (तर्ज आखिर नार पराई है) जो पर की करे. बुराई है । तो तेरे दोष उस भाई है ॥ टेर ॥ प्रश्न व्याकरण सूत्र मंझार । दूजे सम्बर में अधि. कार। श्रीवीर जिनंद फरमाई है ॥ जो० ॥ १॥ बुद्धिवंत धनवान वो नाहीं । प्रिय धर्मी कुलवान वो नाहीं। वो नहीं दातार युग मांही है ।। २ ॥ शूर वीर रूपचन्त है नाई। नहीं सौभाग्यवन्त गीतार्थी भाई। नहीं बहु. सूत्रों की पढ़ाई है ॥ ३ ॥ तपसी नहीं नहीं परलोक । निश्चय मति है निडर अयोग। नहीं पापी लेत भलाई है ॥ ४ ॥ टेकी धेकी मच्छरी अपकारी । छता गुण वो देत निवारी । या ठाणायंग बतलाई है ॥५॥ एक जमाली नामा साध, वीर प्रभु का करा अपवाद । वो कुल मुखी की पदवी पाई है ॥ ६॥ गुरु प्रसाद चौथमल गाया, सेखे काल पाली में आया, सतत्तर जोड़ बनाई है ॥७॥ २१५ समय की दुर्लभता.. . . (तर्ज-कव्वाली ) ए दिल मौका ऐसा हरबार दुशवार है । नरभव. की कुंज . गली का, मिलना दुशवार है. ॥ टेर ॥ दस्त चश्म तेरेः जर .. जेवर खजाने डेरे ।.. नहीं उस रोज तेरे हैरें, ये हरबार 'दुशवार है ॥.ए. ॥ १ ॥ सदा. न. हुश्न, तेरी मानिंद . दरिया बहता । क्यों गफलतं के बीच रहता, ये हर बार दुशवार है ॥२॥ ये ख्वाब सा जहाँ है, नां किसके साथ रहा है, खाली जलवा दिखा रहा है । ३ ।। जहां में दिल न लगा. तू जुल्मों से वाज आ तू। कुछ भी तो ध्यान ला तू, हर चार : Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | ( १४६ ) दुशवार है || ४ || होना मुनि है वहतर, पावेगा खास शिव घर | कहे चौथमल भला कर, ऐ हरवार दुशवार ॥ ५ ॥ থ २१६ नाटकादर्श. ( तर्ज- तू ही तू ही याद आवेरे दरद में ) मनुष्यों की जिन्दगी नाटक दिखावे । नाटक दिखावे ने ज्ञानी फरमाये || टेर ॥ मुष्टी बांधीने हुश्रोरे नानड़ियो, रमत गमत में यह वय जावे ॥ मनु० ॥ १ ॥ वीसे सुन्दर परगने नारी । चिन्ता रहित भोगों में लोभावे ॥ २ ॥ तीसे खुशी संसार मनावे । प्यारी से पुत्र लेह ने खेलावे ॥ ३ ॥ श्राईरे जिन्दगी वर्ष चालीसे । सत्य बुद्धि कोई सत संग चावे ॥ ४ ॥ भूत भविष्य विचार पचासे । साठे नीचे उत्तर वह आवे ॥ ५ ॥ सत्तर लाठी लांचीरे डोकरिये, अस्सी जितव्य अस रहावे || ६ || नउ में मृत्यु तोर पे सोयो । सौ में राम शरण होई जाये ॥ ७ ॥ खाली हाथ अकेलो प्राणी । दूजी मुसाफिर करण सिधावे ॥ ८ ॥ नाटक किया में प्रभु तुम जोया । दर्जि रीझ या मना करावे ॥ ६ ॥ फकीरसी फेरी देवेरे श्रज्ञानी । बुद्धिमान धर्म लाभ कमावे ॥ १० ॥ गुरु हीरालाल प्रसाद चौथमल, श्रागरे से चल जयपुर श्रावे ॥ १९ ॥ २१७ कटुवाक्य परित्याज्य. ( तर्ज- धीरा चालो व्रज का वासी ) 7 " मत दीजो चतुर नर गाली, पियो समता रत की प्यालीरे || ढेर || थे कटुक वाक्य मत बोलो, क्यों पैर धावो Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (.१४२) जैन सुबोध गुटका । खालीरे ॥ मत० ॥ १ ॥ मन मोती टूटी जावे, नहीं. जुड़ता लीजो सम्भालीरे ॥ २॥ दी गाली द्रोपदी रानी, फिर दुष्ट दुशासन झालीरे ॥ ३ ॥ दी चौथमल या शिक्षा, थे चालो उत्तम चालीरे ॥ ४॥ . २१८ सत्यादर्श.. (तर्ज-मांड) सत्य.कठिन करारी, ले कुन धारी, हरिश्चन्द्र टारी जी राज, हो सत्यधारी साहब, जननी थारी, थां उजवारी जी राज ॥ टेर ।। ऊभी तारा वाजार मेरे, देखे लोग. अपार । हरिश्चन्द्र कहे सव सांभलोरे, गिरवे मेलुं नार ।। सत्य० ॥ ॥१॥ लोग देख श्राश्चर्य कियोरे, दीसे राज कुमार । • मुख लूखो भूखो सहीरे, इण में दुख अपार ॥२॥. वस्तु बिके बाजार मेरे, नार विके नहीं कोय । घर धणी राजी - हाथसु सरे, यह भी आश्चर्य होय ॥३॥ हद बातां लोक मेरे नहीं सुनी किसी के पास । हरिश्चन्द्रं सोची वांतने, दिलमें हुए उदास ॥४॥ कौन देश का राजवी, कौन पूछे मम सार । काशी नगर के चौवटे, म्हारी विके तारा दे नार ॥५॥ तारा कहे कन्था ;सुनो, पड़ी आज आ : भीड़ । सामों सामी देखतारे नैना खलक्या नीर ॥ ६ ॥ हीरा पन्ना या पहनती, मणी मोत्यों का हार ! अब पहिनने Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | ( १४३ ) को वस्त्र न पूरा, दुख को छेह न पार ॥ ७ ॥ शूरवीर राजा तुम्हें, कहे रानी जोड़ी हाथ । श्रत्र तो सत्य दृड़ राखजो, कलियुग रहसी बात ॥ ८ ॥ तारा वचन कान सुनी, राजा सन हुलसाय | चौथमल कहे एक वचन में चिंता तुरत. मिटाय ॥ ६ ॥ २१६ मान्यता. (तर्ज- तू ही तू ही याद आवेरे दरद में ) 1 २ ॥ 1 ३ ॥ t ४ ॥ माना हुआ है. सुख तेरा ॥ टेर ॥ प्रथम तन से फीतो पो मोह माया ने फिर दिया घेरा || माना० ॥ १ ॥ मात पिता और राखन हारा, चक्री भमर गेंद करे मेरा ॥ भणि गुणी ने लग्न करीने, प्रेम बढावे रमणी. के. लेरा ॥ नीति कर्तव्य अपना बिसारा, जिम तिम कर रहा पैसा मेरा ॥ बेटा बेटी पोता दोहिता, होगया अवतो कुटुम्ब घनेरा ॥ यह धन म्हारो यह पर म्हारो, हिस्सादार से करे बिखेड़ा ॥ कोर्ट में अब फिरे खड़तो, इधर जराने दिना घेरा ॥ लहे तरुणता ममता दिन दिन, नहीं होथ करे फिकर घनेरा ॥ परभव साथ चला नहीं कोई, छोड़ चला बनजारा डेरा ॥ गुरु प्रसादे चौथमल कहवे । लेटर चला संग पुण्य पाप केरा ॥ ५ ॥ ६ ॥ ७ ॥ = ॥ ६ ॥ १० ॥ · Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४४) जैन सुबोध गुटका । २२० तारा राणी. . : [तर्ज-माड़] यह तारा रानी, प्राण से प्यारी होत जुदारीजी श्राज. । आवे याद हरवारी, लागी करारी, दिल मंझारीजी आजः ॥टेर।। या तारा प्यारी घणीरे, जूदी न रही लगार । सत्य के ऊपर या विकी, मैं वेची सदर बाजार ।। यह० ॥१॥ कल्प वृक्ष जान लियो थे, मैं तो निकल्यो आक । रन लियो कंकर हुओ काई मुझ सत्य ने तूं राख ॥ २ ॥ मुझ कारण संकट सहे तूं नाका सल नहीं लाय । धन्य २ जननी थायरी, कहूं कहां लग तांय ॥ ३ ॥ मुहरों की गठड़ी बांधतारे, हरिश्चन्द्र दियो रोय । इस काशी नगर के चौवटे, म्हारो सगो नहीं कोय ॥ ४ ॥ राज्य भी छूटो, पाट भी छूटो, छुटो धन भंडार । आखिर जाता यह भी छूटी, अब किसी का आधार ॥५॥ चौथमल कहे राजा हरिश्चन्द्र, धीरज को चितलाय । सत्य जोगे संकट टल, सख सम्पत फिर आय ॥ ६॥ २२१ चेतावनी . (तर्ज-तूही तूही याद श्रावेरे दरद में): जोग बटाउं क्यों करे मोड़ो । क्यों करें मोड़ो २॥ र ।। बांगण जैसी जरा अवस्था, सुन्दर तन. पै कर रही दोड़ों ॥ जाग० ॥ १॥ शत्रु समान रोग कई मांति, प्रगट तो यह पटके फोड़ो ॥२ ।। फूटा घट से पानी निकले, ऐसे आयु हो Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (१४) रखो भोड़ो॥३॥ अवतो मनुष्यों विषयासक्ति से प्रेम भाव को क्यों नहीं तोड़ो ॥ ४ ॥ चौममल रहे उत्तम जागे, पापी जन तो कर रह्यो जोड़ो ॥५॥ ..२२२ सत्यसार, (तर्जदादर) सुनो सुजान सत्य को यह कैसी बहार है । सत्य के पिना मनुष्य का जीना धिकार है ।। र ।। आना हुआ हरिश्चन्द्र का, गहा के तौर पर । रानी भी प्राई उस समय, पनघट पनिहार है ॥ सुनो० ॥ ९॥ पड़ी निगाह सनी क, अपने प्राणनाथ पर । तन में देख दूबले, करती विचार है ॥२॥ आंखों में जान आ लगी, हाय ! या गजब हुया गुल हुस्न मह कहां गया, कहां वह दीदार है॥३॥ गुरु हीरालाल प्रसाद, चौममल हे सुनो। भपना हुए सो आपका, करता विचार है 11 ॥ “२२३ विश्वमोह निदर्शन. . . .(तर्ज-च ही तू ही याद भावरे दरद मैं) ... क्यों सू भूला. झूठ संसारा. झूठ. संसारा २ ॥ टर इन्द्रधनुष रैन को स्वमो, नैन खुले यह कहां गया सारा ॥क्यों ॥ ९॥रज्ज़ में.सर्प रजत सीप में। मृग प्यावत क्यों फिरे मारा ॥ २ ॥ सुपुप्ती जागृत अवस्था, पृथक् या Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। पें करो विचारा॥ ३॥ चौथमल कहे तू अविनाशी। पाप पुण्य संग रूप आकारा ।। ४ ।। man २२४ तारा.का प्रत्युत्तर. (तर्ज-चनजारा) - . कहे तारा अर्ज गुजारी, पिउ चाकरणी मैं थारी ॥टेर ॥ मेरे सिरके ताज, कहलातो, थे इतना कष्ट उठावो जी । देखो तकदीर हमारी । पिउ० ॥१॥ कहां राज तख्त मंडारा, कहां मणी, मोतियां के हाराजी,करी हारी ॥ २ ॥ अहो लखते जिगर तुम प्यारे, अहो ! मुझ नैनों के तारेजी प्रभुःविपदा कैसी, डारी ॥ ४ ॥ कहे हरिश्चन्द्र रानी ताई, नहीं उठे घड़ो दे उठाइजी, जब रानी करत पुकारी ॥ ४॥ कर जोड़ी चोली रानी, मैं भलं विष के पानी जी, लगती है छोत यह भारी ॥ ५॥ पिऊ जैसा सत्य तुम्हारा, मुझे मेरा भी सत्य प्याराजी, इस कारण यह लाचारी ॥ ६॥ पिउ देखी दुख तुम्हारा, मुझे लगता , है बहुत कराराजी,लेकिन सत्य भी न छुटे लगारी ॥७॥ फिरः रानी तरकीब बताई, लियोः हरिश्चन्द्र घड़ो उठाइजी, गया:दोनों निज.२ द्वारी ॥८॥ ऐसे विरले मनुष्य हैं. पाना, संकट में सत्य निभाना जी,:- हुआ हरिश्चन्द्र जहारी ॥६॥ सत्य से लक्ष्मी पावे, मन वंछित सम्पत आवेजी, Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन सुपोध गुटका। {१४७) सत्य धारो सब नर नारी ॥१०॥ गुरु हीरालालजी ज्ञानी, चौथमल को सिखाई जिन वाणीजी,मेरे गुरु बड़े उपकारी ॥१९॥ शहर जावद के माई,मैने वीच समा गाईनी, सडसठ के साल मझारी ।। १२॥ . २२५ धर्म ही एक मात्र सहायक, (तर्ज-तू ही तू ही याद सावरे दरद में) फेवल तेरे धर्म सहाई २ टेस। मुख परम दाता धर्म त्यागी। शास्त्र वाक्य को दूर हटाई । के०॥१॥ शान्ति समाधी भंग करी ने,परदेशों में भटके जाई ।। २।अन्याय विरुद्धाचरण करिने, यद्यपि ने द्रव्य सम्पदा पाई ॥३॥ काल आयु तुझ कंठ पकड़सी । सो धन पाछे न लेत बचाई ॥४॥ लाख कोई चाहे अब खर्च दे। सिंह मृगवत् सके न छुड़ाई ॥५॥ माता पिता भगिनी सुत नारी। धन घांटन होत सखाई ॥६॥ गुरू प्रसादे चौथमल कहे । वीर प्रभु को भजले भाई ॥ ७॥ .. २२६ कस्मों का खेल.. . (तर्ज यानन्द पर्ते हो जिनन्द तेरे नाम स). . . फैसा कम्मों का यह खेल बताया केवलीमाटेतामनुष्य सो किस गिनती में सरे, देवों का हाल सुनावे । सूत्र पत्र Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। वणा इक्कीस में पद, वीर जिनन्द फरमावे।। कैसा०॥१॥कोई असुर ताजी नरक तले सहलं करण को जावे। त्यांथी चवीने सिद्ध शिला में, एकेन्द्री हो जावे ॥२॥ क्षीर समुद्र में व्यन्वर देव कई,मन की मौजा करता त्यांथी चवी ने अपकाया ने, जन्म तुरंत वो धरता ॥३॥ ज्योतिष देव कोई देवीके संग . मान सरोवर मांही । त्यांची चवीने कमल बीच में उत्पन्न होके जाई ॥ ४ ॥ दूजा वर्ग को कोई देवता, देखे नाटक सारी । त्याची चवी ने निज कुण्डलमें, लेतजन्म वह धारी । ॥ ५॥ संसारं स्वर्ग का कोई देवता, पंएडकवन में आयो। त्यांथी चवीने बीच वावडी, मच्छ तणो तन: पायोः॥६॥ अच्चू स्वर्ग को कोई देवता, मनुष्य लोक मझार । स्त्री के संग क्रीडा करतो, चवीं ले तहां अवतार ॥७॥ चेतचेत! कर धर्म अज्ञानी, खबर काल की नाहीं। गुरु हीरालाल प्रसादे चौथमल । जोधाणे जोद बनाई.॥८॥. २२७ सत्य सर्वस्व.. (तर्ज इन्द्रसभा) सत्य धरजो सब मानवी, लई मनुष्य जन्म अवतार। सत्य सोही.भगवंत है, सत्य: सुख :सम्पत दातार | टेर।।. अग्नि.मिट्टी पानी हुए है सत्य की महिमा अपार । सत्य. धारी हुा राजा. हरिश्चन्द्र जिसका यह अधिकार ॥ . Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका ( १४६ ) सत्य० ॥ | १ || जय हरिचन्द्र ने मयन से, तलवार निकाली बहार | चोटी पकड़ नीची करी, रोने लगी है नार ||२|| कहाँ पीहर कहां सासरो, और किससे करूं पुकार | तेरे कदमों में पहूं, कीजे जरा विचार || ३ || हे प्रीतम तारागति का, फिर मिलना दुशवार । कर जोड़ी थरजी करूं ना लिना मैंने हार ॥ ४ ॥ इन कर्मों में क्या लिखा सुखजो प्राण आधार | देख व्यवस्था रानी की, राजा करे विचार || ५ || चाकर हूं चंडाल का, हुक्म का तावेदार | सत्य मेरा सुन्दर डिगे, इसका मुझे विचार ॥ ६ ॥ कहे इन्द्र यूं श्रायकेरे, म्यान करो तलवार | धन्य तुझे धन्य रानी को, धन्य तुझं राजकुमार || ७ || रानी पुत्रकां दुःख टला है, मिला सकल परिवार । सुखी होयेने राजा हरिचन्द्र, पहुंचा अयोध्या मंझार ॥ ८ ॥ गुरु हीरालाल प्रसाद से कहे, चौथमल हितकार । सत्यं धारी ऐसा नर सूरा, विरला है संसार ॥ ६ ॥ • २२८ शिवपुर पथ प्रदर्शक कौन १ [ तर्ज मांने मोतीड़ा मोलायदो म्हांके यही झगड़ो ] शु कौन बतावेगा शिवपुर नगरी || ढेर || दाय न आवे भागोरे, दाय न यावें बीकानेर । जैपुर दिल्ली दाय न भावे, भावे ना दा अजमेर || के० ॥ १ ॥ चम्बई ने Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५०) जैन सुबोध गुटका:। कलकत्ता केरी, शोभा करे नर नार । सुरलोक तो मेरे दाय न आवे, तो ओरां को काई शुमार ।। २.॥ अरिहंत भगवंत ना मिलेरे, उपन्यो पंचम काल । केवल ज्ञानी न मनःपर्यवज्ञानी, नहीं मिले लब्धी का धार ।। ३ ।। चौथमल शिवपुर के काजे, रह्यो. घणो लुभाय । ज्योति में ज्योति किस दिन समाऊं सफल मनोरथ थाय ॥ ४॥ २२६ दान की महत्वता. (तर्ज पंजी मुंडे बोल ) : .:: दान नित्य कीज़ेरे, अणी. छती लक्ष्मी को लाको लीजेरे:॥ टेर-॥ चार प्रकार है धर्म जिन्हों में, दान प्रथम कहावरे । चित्त वित, पातर शुद्ध मिल्या; संसार, घटावरे ॥ दान ।.१॥ चणा का छोड़ नदी की बेरी, पर: को ज्ञान सिखावरे । कलम किया वृक्ष :बळे: ज्यू, दानी: सुख. पावरे ॥२॥ मिथ्यात्वी से सहस्त्रगुणों फल, समदृष्टि ने दीधारे । तेथी मुनि मुनि से गणधर तेथी जिन लीधारे ॥३॥ भरयो सरोवर रन खान में,प्यासी निरधन रहावरे। .. ऐसे छत्ती पाय लक्ष्मी लास गमावरे.॥४॥ वृक्ष निष्फल और वन्ध्या नारी; कोई. कर्म योग रह जावेरे । दया दान फल: जान कभी निष्फल नहीं जावरे ॥ ५॥ अभय दान सुपात्र दान से गोत्र तिर्थकर होरे । ज्ञाता सूत्र अध्याय Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (१५१) पाठवें, क्यों नहीं जोवरे ॥६॥ धन्ना सेठं भव दान दिया से, हुश्रा ऋपम जिरायारे । नम राजुल दाखा का धोवन पूर्व वहरायारे ॥७॥ तीजा स्वर्ग का इन्द्र हुभा देखो भगवती महिरे । चार तीरथ ने पूरवभव,साता उपजाइरे ॥८॥ ऐसा जान के दीजे दान, तू सीख हृदय में धरजेरे । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, भव सागर तिरजेरे ॥६॥ २३० शिवपुर पथ प्रदर्शक गुरु, (तर्ज-म्हाने मोतीड़ा मोलायदो म्हांको यही झगड़ो) मुझे गुरुजी वतावेगा, शिवपुर नगरी ।। टेर।। सुमति सुन्दर दो कर जोड़ी, ऐसी करी अरदास । सोच करो मत वालमारे, पूर्ण होगा पास | मुझे० ॥ १ ॥ जो लब्धी धारी नहीरे, जो नहीं जिनराज । अणगार भगवंत आज विराजे; तरण तारण की जहाज ॥२॥ मंदसोर में बड़ा मुनिवर, जवाहिर मुनि अणगा। ऐसा सद्गुरु थान मिल्या, तो निश्चय देगा तार ॥ ३॥ पूज्य महाराज है गुणवंता, और घणा मुनिराज गुरु हीरालालजी सर्वे सुधारे, चौथमल का काज ॥ ४ ॥ -~___.२३१ कुचाल त्याज्य. . . (तर्ज-चालो २ मुगतगढ मांई) कुचाल चतुर तज देना, मानों २ सद्गुरु का तुम Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५२) जैन सुबोध गुटका। कहनारे । टेर.।। उत्तम कुल नर जिन्दगानी, हर बार मिले नहीं प्राणीरे ।। कुचाल०॥१॥थे गांजा भांग ने छोड़ो, पर त्रिया से स्नेह तोहोरे ॥२॥ यह मांस भक्ष मंद पीना, त्याग २ तुझे कम जीनारे ॥३॥ मत पिओ तंबाखू नर नारी, यह लग देह के कारीरे ॥ ४ ॥ थे कमती तोल निवारों, चौरी ने दुरी टालोरे ॥ ५ ॥ याने सेव्यां दुर्गति जोक, याने त्यागे सो सुख पावरे ॥ ६॥ कहे चौथमल सुन भाई, मैंने सांच २ बतलाइरे॥७॥ २३२ धार्मिक उदासीनता (तंज-जारी) : .. सीख सद्गुरु ने क्या दईरे, भूल गयो याद जरा नहींरे ॥ टेर। मनुष्य सव माही आवियो, कुल उत्सम तू पायो । दया धर्म नहीं सुहायो, जन्म तेरो फिट फिट सहीरे ॥ सीखः ॥ १॥ दया धर्म-दियो छोदी प्रीति, गुरु से जोड़ी: मून्य होगा फूटी कोड़ी, जिमशंकाः तो काई नहींरे ॥ २॥ काम भोग-माही राच, रिना तज लियो काचा, रीति करे तीन पांच, कीच में डाल दियो मांहीरे ॥३॥ मानी हिंसा में धर्म, बांध्या चीकना कर्म, यमः राखे नहीं, शरम, मारेगा मुद्गर तेरे ताईरे॥४॥ चौथमल गुरु प्रसाद, दया धर्म ले आराध आंगावेगा स्वाद, ले सुख शिव पुर में जाईरे ।। ५ || ......... Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (६५३) arrermummmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm were..... २३३ कुमता नारी. (तर्ज-बुढ़ाने परणाचे बेटीरे ) प्रीति पर घर मत कीजेरे, कुल मर्याद से रीजरेटर। प्यारी से अंतर करी, पर घर मांडे प्यार | नाति शास्त्र मांही कह्यो, ते प्रीतम न धिक्कार ॥ प्रीति ॥ १॥ कुमता नारी कामण गारी, कर मीठी मनुहार । चेतन वालम को बिल मई, ले जाये बाग मंझार ॥ २ ॥ अनन्त शल तो हो गयो, रमता इनके संग । बड़ो अफसोस विटल हुारे, कैसे सुधग्गा ढंग ॥३॥ सुमता सुन्दर को तुम्हें, मुजरो लीजो झेल चौथमल कहे गुरु प्रसादे, दसी मुक्ति महेल ||४|| २३४ गुरु प्रार्थना. (तर्ज-मीगं ऊंचा राणाजी का गोखरा) गुणों का धारी हां यो उग्र विहारी तारो २हो गुरुजी मांने वेग सं॥टेर । इसी घोर संसार समुद्र में, एक श्राप तणो श्राधार हो ॥१॥ मेरी नाव पड़ी मध्य धार में, जिन्हें वेग लगायो पहिले पार हो । गुणा का धारी० ॥२॥ मैं शरणे पड़ायो अब श्राप के, आप ही हो प्राणाधार हो॥३॥ मेरे कलेजे की कोर किकी अांख से, मेरे श्राप हो हृदय का हार हो ॥ ४ ॥ फूल मुगंध घृत दूध में, ज्यूं बसे मुझ हृदय मंझार हो ॥ ५ ॥ पूर्व केशी श्रमण मुण्या महामुनि, जाने तारयो परदेशी भूपाल हो॥६॥ संजती ने गृव माली Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५४ ) जैन सुबोध गुटका | मुनि, श्रेणिक ने अनाथ अणगार हो ॥ ७ ॥ इत्यादिक तारया आपने, मारो करोजी उद्धार हो ॥ ८ ॥ मैं तो इस भव आपको भेट्या, सच्चा पंच महाव्रत धार हो ॥ ६ ॥ गुरु हीरालालजी से या विनंती, चौथमल को दीजो मुक्ति वास हो ॥ १० ॥ उन्नीसे छासठ श्रगण विदि, ग्राम नाई उदयपुर के पास हो ॥ ११ ॥ . 1 २३५ सर्व परिचय, · ( तर्ज - लावणी छोटी कड़ी ) वही शूरवीर जो इस मन को बस काले, वोही तेरु भवसिन्धु से तिरले || ढेर || वह सती जो पति की श्राज्ञा माने, वही पुत्र रहे पिता वाक्य परमाने । है वही संत जो राग द्वेष नहीं ताने, वही पण्डित जो पर प्राण श्रान्भवत जाने । है वही बींद जो शिव सुन्दरको वरले || वही ० ॥ ॥ १ ॥ वही धनवंत जो निर्धन को पाले है । बढी खानदां जो उत्तम चाल चाले है । है वही भ्रात जो बन्धु का कष्ट टाले है । है वही ज्ञानी, जो पर संशय गाले है । है वही होशियार जो आत्म कारज करले ||२|| वही व्यसनी प्रभु भजन का रंग लगावे । है वही सिद्ध जो गर्व बीच नहीं आवे | वही मासुख जो आशक के हृदय रहावे । है वही जन्म जो परमार्थ 'सद् जावें । है वही पापी जो धन बेटी 1 Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन मुबाघ गुटका। (१५५) का हरले ॥ ३ ॥ है वही जे पी (M. P. ) जो जाति देश सुधारे। है वही मित्र जो मित्र का दःख निवारे । है वही वहा जो क्षमा, धैर्यता धारे।वहा सत्यवादी जो प्राण प्रण पर वारे। कहे चौथमल वही श्रोता जो शिना धरले ॥४॥ २३६ सुशिक्षा. (तर्ज-लावणी चाल लंगडी) चंतन पाके मनुष्य जन्म को, प्रभु ध्यान ध्याना चाहिये । , हित शिक्षा उसीको अमल वीच लाना चहिये ॥ टेर ॥ शुभ कृत्य में विलम्ब न करना, भवसागर तरना चाहिये । ज्ञानी होके गर्व तुझको न कभी करना चाहिये । वुरे भले सुन थैन क्षमा कर पापों से डरना चाहिये। पंडित होकर अकाल मृत्यु न कभी मरना चहिये । चाहे जैसी स्ववान हो पर नारी के जाना ना चहिये ॥ १० ॥१॥ सी पुरुष के मर्म किसी को कभी नहीं कहना चाहिये । घर के भेद को किसी दुश्मन को ना देना चाहिये । कोई जीव के गुण को तज कर अवगुण लेना ना चहिये करना भलाई, गई में न तुझे रहना चाहिये । पाखंडी के जाल चीचमें तुझको थाना ना चहिये ।। २ ।। अपने मित्र को विश्वास देकर कशी बदलना ना चाहिये । उत्तम कुलकी चाल तब नीची ना चलना चहिये । जो अपने से मिले खुशी से उससे हर्ष मिलना चहिये । रांड भांड और अधम पुरुष से सदा टलना चहिये। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) जैन सुबोध गुटका । धर्मी होकर रात्रि भोजन, तुझको ना करना चहिये ॥३॥ देश बोलों का योग- मिला गफलत में सोना ना चहिये । गई वात को याद करके तुझे रोना ना चहिये । श्रावक की उत्तम करणी हाथों से खोना ना चहिये । माया जाल के झूठे नातों में तुझे मोहना ना चहिये । पुद्गल सुख को जान विनासित निजानंद पाना चहिये ॥४॥ शुद्ध भावों से देना दान और विद्या को पदना चहिये । गुरु कृग से चौथमल कहे ऊंचे दरजे चढ़ना चहिये । तप जप करके खास मुक्ति के बीच वरना चहिये । सफल जिन्दगी करना तुझ श्री वीर के गुण गाना चहिये ॥ ५ ॥ . . २३७ भावना की उत्कर्षता. (तर्ज-पंजी मुंडे बोल) " . महिमा फेलोरे २ इस शीलवत की, सुनजो बेलौरे । टेर। उत्तम ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप जप गुण को आगररे । मोक्ष नगर जाता संग बटाउ, सिंह के ज्यूं पाखररे ॥ महिमा० ॥१॥ शील संध्या सर्व धर्म सधे, हुआ शील भंग सब भागेरे। इस कारण कर जतन शील का कहूं.हूं सांगेरे ॥२॥दान : मांह तो अभयदान है, सत्य में निर्वध वानीरे । तप में मोटो ब्रह्मचय्य, जग में वीर नाणारे ॥ ३ ।। वे मन. धारे शील नर नारी, तो स्वर्ग बीच में:जावरे । त्रशला नन्दन सूत्र उववाई में फरमावरे .॥४. ॥ बतीश ओपमा. शीलनत की, पश्न व्याकरण में जहारी। Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | सुरेन्द्र नरेन्द्र गुण गावेरे जिनका, धन्य ब्रह्मचारीरे ॥ ५ ॥ सुदर्शन को संकट भेटयो, सुर नर होगया साखीरे । द्रोपदी की सभा बीच में लज्जा राखीरे || ६ || सिंह प्रजा हो विष अमृत हो सर्प पुप्प की मालारे । शील प्रभवे अग्नि हो वारि, टले जंजालार ॥ ७ ॥ शीलवंत भगवंत बराबर सदा पवित्र रहावेरे । स्वर्गापवर्ग में जाय विराजे, सुख सम्पत पावरे ॥ ८ ॥ उन्नीस बहत्तर की होली, ग्राम समदड़ी महिीरे | गुरु हीरालाल प्रसादे चौथमल जोड़ बनाइरे ॥ ६ ॥ ( १५७ ) ५०० २३८ श्रायुष्य की चंचलता. ( तर्ज कोई ऐसी चतुर सखी ना मिली, मोधी पिच के द्वारे ) क्यों गफलत के बीच में सोता पड़ा, तेरा जावेगा हंस निकल एक पल में । ये तो दुनियां है देख मिसाले रगडी, कभी उसकी बगल कभी उसकी बगल में || टेर || तूं तो फिरता है आप दूल्हा बन ठन, तेरे साथ वराती हैं कौन सजन | यहां किस से करे अपना सगपन क्यों खोता है वख्त खाली कलकल में || क्यों० ॥ १ ॥ जो हिन्द के ताज को शीस घरे, जो लाखों करोड़ों का न्याय करे | वो राज्य को त्याग के फिरते फिरे, जो नूर से पूर थे तेज अकल में ॥ २ ॥ कहां पाडव कहां पृथ्वीराज चौहान | कहां बादशाह अकबर प्रोरंगजेब यह राज-तम्ल सदा न सज्जन, कभी उसका अमल कभी उसके अमल में || ३ || इस माल थौलाद जमीं के लिये, कई बादशाह मार Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५८) जैन सुबोध गुटका। के मर भी गये । यह मुल्क मेरा यूं कहते. गये, तो तूं कौनसी बाग की मूली असल में ॥ ४ ॥ जो प्यारी के महल में रहते अमन में, वो खाते हवा सदा बाग चमन में । मुनि चौथमल कहे तो सजन, जो ऐसे गय न समझत अजल में ॥ ५ ॥ २३६ कलिकालादर्श, (तर्ज- लावनी अष्टपदी) कहूं पंचम आरे का बयान, पहले ही फरमागये भगवान ॥ टंर । शिष्य कहे भापो गुरुदयाल, वर्तसी कैसा पंचमकाल, गुरु कहे शहर गांवड़ा होय गांवड़ा श्मशान सा जोय ॥ दोहा ।। कितनेक कुलकी स्त्री, वेश्या के सार । राजा होसी जम सरीखा, अल्प सुखी नर नार ॥ मिलतः ।। लालची होवेगा परधान ।। १०॥१॥ पुत्र न माने शाप की कहन, शिष्य कम चले गुरु की एन, दुर्जन के होवेगा धनधान, सज्जन अल्प सुखी धनवान ॥ दोहा।। परचक्री भग देश में, वस्ती अल्प कतार । होसी ब्रह्मण धन का लोभी, जमी दुर्मिक्ष विचार ।। मिलत ॥ साधु भी छोड़ेगा निज स्थान |॥ २॥ समदृष्ट देव मनुष्य कम होत, मिथ्याति देव मनुष्य है बहुत । विद्या मंत्र का कम परभाव, मनुष्य को दुर्लभं देव दर्शाव ।। दोहा । गोरस में रस थोड़ो जानजी, नहीं धर्म में चित्त उदार । ताकत धन जिन्दगानी Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सेवाप गुटका । (१५६) वस्ती, कम हो पंचम भार ।। मिलत ।। जहां रहे मास मुनि गुणवान ॥३॥ साधु श्रावक की पड़मा मत जान । गुरु कम देगा शिष्य को ज्ञान । शिप्य पण ऐमा होवेगा, गुरु का अवगुण जे वेगा ।। दोहा ।। शुद्ध साचारी महा मुनि, ऐसे अल्प अणगार । दया दान निषेध कई, होये भेप का धार ।। मिलत || समाचारी गच्छ, जुदा जान ॥४॥मलेच्छ, राजा होगा बलवन्त, चलेगा हिन्दू जिसके पंथ, उत्तम के घा में नीच निशान, हिन्दू राजा कम होती मान ॥दोहा।। 'मुख मांगी वर्षा नहीं, नहीं भाई २ के प्रेम । चौथमल कहे सुखी होगा, जो धरे प्रभु को नेम ॥ मिलत । मुन अब चेतो चतुर सुजान ।। ५ ।। noirien २४० सम्प से लाभ. (तर्ड-लावनी छोटी कड़ी) देता हूं ज्ञ न की चूगल, एक चित्त सुनना । अब फूट छोड़ के शीघ्र सम्प कर लेना ॥ टेर ॥ एक ही ईट से दीवार कहां चनती है । एक ही हाथ से ताली कहां बजती है । एक ही पहिये से गाड़ी का ना हो चलना । अय० । ॥१॥क्रया ज्ञान एक २ से सिद्धि नहीं पाव, दानों मिलने से शिवपुर माही जारे । तकदीर और तदबीर दोनों ऊचरना ॥२॥ जो दो के होचे सम्म उसके कौन तोले । हजागें प्रालिम में सिंह के मानिंद वोले । दुश्मन भी जाये Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६० ) जैन सुवोध गुटका । चमक इन से नहीं अड़ना ॥ ३॥ चार ओरड़ी मिलकर रस्सो गूंथे । करे बहुत जोर नर वो तोड़ा कहां टूटे । जुदीर दोरड़ी तोड़े न मुशफिल वरना ।॥ ४॥ एक से एक मिले दश गुणों बल थावे । तीन चीज मिले सोरो देखा हो जाये फिर पर्वत नाखे तेड न्याय उर धाना ॥५॥ जिसके घर में सम्प उसे न डर कोई । इस फूट वश रावण ने लंका खोई । ऐसी जान आपस में अदावदी परिहरना ॥६॥ इसी सबब से हिन्दुस्थान के माहीं । औरो ने आकर अमला दिया जमाई । स्वभला के ख्वाहिश जरा ध्यान तो धरना ॥७॥ गुरु हीरालाल परसाद चौथमन कहवे । कोई अकलबंद गायन के भेद को लेवे । यों शहर जावरे उन्नीसे चौसठ में वरना ।। ८॥ २४१ मिथ्या ममत्व त्याज्य. (तर्ज-कन्याली) '. सुनरे तूं चेतन पारे, किस लुभा रहा है। दुनियां तो जैसे सपना तूं क्यों बहका रहा है ।। टेर ॥ कहां खास बतन है तेरा, कहां पै लगाया डेरा । किसको कहे तूं मेरा क्या तुझको दिखा रहा है ।।.सु० ॥१॥ तू तो अखंड अविनाशी, अनंत गुण को राशी । पुद्गल तो है विनाशी, नाहक भ्रंमा रहा है ॥ २॥ कषि घट कर फसाना, घटाकास Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन सुबोध गुटका। सा वखाना । इस न्याय से बंधाना, वक्ता सुना रहा है ॥३॥ जड़ चतन भिन्न जानी, वन निज श्रात्म ध्यानी । कहे चौथमल ज्ञानी-सत्र में समा रहा है ॥४॥ २४२ प्रिया प्रलाप. (तर्ज-दिलजान से फिदा ई.) ' पिया की इन्तजारी में जोगन बन फिरूंगी। जो कह जहां पै द्वंद्व, जाने से ना डरूंगी ॥ टेर ॥ किसी ने कहा पिया तो, पग्यत की नोख पर है। यहां पर भी जाके. देखा, ना मिला क्या करूंगी ! पिया ॥ १॥ किसी ने कहा जा मथुरा, किसी ने कहा जा गोकुल । ना मिला, वृन्दावन में, अब ध्यान कहां धरूंगी ॥२॥ कुमति के झांसे में श्रा, पिया विछड़ गर हैं। वह मिल जाय एक विरीयां, तो प्यार से लरूंगी ।। ३ ॥ पिया को.संग लेकर, रहूं ज्ञान के भवन में । कहे चौथमल पिया की, पहिया पकर तिरूंगी-11४11: : । –3x6+s. २४३ उपदेश. (तर्ज-- एक तीर फेंकताजा) जाती है उम्र तुम्हारी, प्रभु को भोरे भाई । गफलत में क्यों पड़े हो, अनमोल देह पाई ॥टर ।। सेना के बीच Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६२) ज़ैन सुबोध गुटका । - - सोते, नारी का रूप.जोते । अरे हरें सुख थात, तू क्यों. रहा लुभाई ।। जा० ॥१॥..पोशाक. तनं सजाते, इतर फुलेल लगाते । बांगों के बीच जाते, सैले करें साई. ॥ २॥ दुनियां तो है तमाशा, पाना में जूं पताशा । जब निकल जाय स्वांसा, दे मिट्टी में मिलाई ॥३॥ कौन किसी के साथ जाता, नाहक तु दिल फसाना । कर धर्म साथ आता, दिया चौथमल चताई ।।.४ ।। २४४ दया दिग्दर्शन (तर्ज-म्हारोश्याम करेला अवधार घनश्यामरी मामा अपार है) __दया को लेव दिल में धार, वो भव सिन्धु तिरे ॥ टेर। दया धर्म सब में परधान, सब गजहर करते पर मान, देखो सूत्र दरम्यान, वो भव सिन्धु तिरे ॥ १॥ देखो नेम नाथ भगवान, त्यागी राजुल महा गुणवान, पशुओं पे करुणा अान, वो भव सिन्धु तिर ॥२॥ धर्म रुची तरसी अणगार, कीडियां की दयाः दिल धार । कड़वा हुंचाको कीनो आहार, वो भव सिन्धु तिरे ॥३॥ मेघरथः राजा हुआ भूपाल, शण परे वारख्या दयोल । कीना है काम कमाल, वो भव सिन्धु तिर ॥४॥फेर हुमा शिवी राजान, कबूतर की वचाई जान । है विष्णु में लिखा बयान, वो भव सिन्धु तिरे ॥ ५॥ नबी महम्मद हुआ. हजूरः तन को देना किया मंजूर । फांकता पै कीनी दया पूर, वो भव Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका । (१३) mmar.murranamannHASnnuA सिन्धु तिरे ॥६॥दया हीन मत तजा तमाम, सब मजहब में वही निकाम । मानो यह सच्चा कलाम, वो भव सिंध तिरे ॥ ७॥ बैठो दया की जहाज मंझार,भवसिन्ध दे पार उतार । यही है तप जप को सार, वो भव सिंधु तिरे ॥८॥चौथमल कहे सुनो सुजान, दया धर्म महा सुख की खान । यह है वीर फरमान, वो भव सिन्धु तिरे ॥६॥ २४५ रेत! तर्ज-पव्याली) - करो दिल में जरा विचार, क्यों जुल्मों से नहीं डरते हो । टेर ॥ ये माता पिता सुत दारा, तुम करो इसीसे प्यारा। नहीं चले तुम्हारे लार, फिर वृथा स्नेह करते हो ॥ करो ॥१॥ ये राज्य तख्त भंडारा,जर जेवर माल हजारा नहीं पाती साथ छदाम, नाहक फिर पच २ क्यों मरते हो ॥२॥ खूबसूरत प्यारी तुम्हारा, यह काया गुलाब सी क्यारी। ये होगा आखिर छार, फेर तपस्या क्यों नहीं करते हो ॥३॥ यह जवानी हैगी दिवानी । नहीं इसमें छना प्रानी बिजली का चमकार, फुसंगत से नहीं हटते हो॥४॥ श्रीवीर जिनन्द्र को 'ध्यारे, तो जनम मरण मिट जाव । कहे चीथमल हितकार, भव’ सागर क्यों नहीं तिरते हो ॥५॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६४) जैन सुबोध गुटका.। २४६ कर्मादर्श. .. (तर्ज-पंजाबी) सजन मत बांधो कर्म, सत गुरुजी समझाये ॥ टेर ॥ लिखा भागवत दरम्यान, पालि के माग राम ने वाण । हरि का सुनो मर्म, पुनः वाण पांवमें खावे ।। सत० ॥ १॥ स्थावर जंगम प्राणी, पहुंचावे इनके प्राण को हानी । बिगड़ जा सेकी सनस, कमे उदय जब आवे ॥२॥था हरिश्चन्द्र सत्य धारी, चेची काशी में उस ने नारी। तजा नहीं अपना धर्म, खद मरघट पर रहावे ॥३॥ लक्ष बावन सहस्त्र जो रानी, मांगी ब्रह्मदत्त अभिमानी । बांधकर पाप कर्म, सीधा नर्क में जावे ॥ ४॥ ऐसी जान कर्म ना कमा ओ, सभी जीवों पर करुणा लावो । मेटो कुल मिथ्या मर्म, मुनि चौथमल सत्य गावे ॥ ५ ॥ .:२४७ स्त्रो धर्मः . . (तर्ज--मजा देते हैं क्या यार) . . जो होवे सच्ची नार,कुल धर्म निभाने वाली. पतिव्रता के आचार, उन पर ध्यान लगाने वाली ।। टेर ।। तन रखे अपना छुपाई, ना बोले नैन मिलाई । ना करे छल. पतराई, नहीं हो सीना दिखलाने वाली ।। जो० ॥१॥ ना पति से सामना करती,नित नीचे नैनों से रहती। ससुर की लजा करती, ना पर घर के. जाने वाली ॥२॥ ना Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन सुबोध गुटका। (२६५) . . . . . . . . . .. " " . .. . कभी उदासी..छाचे, सदा सुख बोच दिन जावे । परोपकार चित्त चावे, मुख सौम दिखाने वाली ॥३॥ सत्य वदे सरल स्वभावे, दया दान करे हुलसावे । दीर्घ दृष्टी खूब लगावे, न लड़ लड़ानेवाली ॥४॥ पति सिवा पुरुप जग माही, जानें समझे बाप और भाई । उसकी करते सर्व बड़ाई, ऐसे गुण धरने वाली ॥ ५॥ दमयंती सीता रानी, चलना को वीर वखानी । रुखमन और तारा नार, सत्य धर्म निभाने वाली ॥ ६ ॥ चौथमल को शिप्य बनाया, गुरु हीरालाल मुनिराया । सत्तवती का जिकर सुनाया, जो शोभा बढ़ाने वाली ॥ ७ ॥ २४८ मान त्याज्य. (तर्ज--पंजार) सद्गुरू देव ज्ञान, सजन मत करना मान || टेर || मान वरावर श्ररि नहीं रे, मान करे अपमान । मान करे चिंता को उत्पन्न, बहु अवगुण की खान, फर्क इसमें मत जान ।। सद्॥ १॥ मद कहा है मदिरा जैसा, नहीं थाने दे ज्ञान । जाति, कुल, चल रूप लाभ तप, सूत्र माल की स्थान । विनयकी करता हान ॥२॥ मगरूरी वश मूछ मरोड़े. टेडो २ झांके । श्राप बड़ाई परकी नीची, वात चातमें फांके । फूल रहा फूल समान ॥३॥ बज दांत और चत, ण, लिजो मिन पहिचान, ये चारों गनिके Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ womaamananmmmwwwwwwwww ६.१६६) जैन सुवोध गुटका। देने वाले चार किस्मके मान ॥४॥.मानी हो चाकर का चाकर, सदा परतंत्र रहावे । मुनि चौथमल कहे वह मानी फिर, कृत्य का फल पावे । न संदेह इसमें पान ॥शा ... .. .. २४६ श्री गुण. . (तर्ज-मजा देते हैं क्या यार तेरे वाल घुघर वाले) , उसे जानों धारनी नार, गुण इकवीस के धरने वाली ॥ टेर ।। सोम महा सुख दाय, सत्य वदे सरल स्वच्छकाय । नहीं क्षुद्र रूप रसाल, पापों से डरने वाली ॥ उसे० ॥१॥ लज्जा भी रखे धनरी, सम दृष्ट दया बहुतरी । गुन रागन सरल स्वभाव, धर्म कथा के करने वाली. ॥२॥ शुद्ध कुल जात की जाई,करे काम सोच मन माही। धर्मात्मा गुण की जान, शिक्षा सिर धरने वाली ॥ ३ ॥ सब घर का दिन जो करती । पर हित में दृष्टि वह धरती । लब्ध लखी वो नार वहीं कुल उद्धार ने वाली ॥४॥ गुरु हीरालाल मनि राई कहे चौथमल हुलसाई। ऐसी जानों रुकमण नार, जो गोविन्द वरने वाली ॥५॥ ..२५० शिक्षा. . (तर्ज-लावणी बेर खड़ी).. . ..पा मोका सुकृत नहीं करता, वह जहां में इन्सान नहीं। हीरा त्याग मुकर..को . लेवे, वह जौहरी प्रधान नहीं Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (१६७) ॥ टेर । जिमके दिल में रहम नहीं, उसके दिल में रहमान नहीं । जिसने सतसंग नहीं करी, उसको शहर और ज्ञान नहीं । जिसके बदन में नहीं नम्रता, उसको मिलता मान नहीं। वह वैद्य है क्या दुनियां में, जिस नवज पहिचान नहीं। वह मोक्ष कैसे जांव, जिसका सारित ईमान नहीं ॥ हीरा० ॥१॥ जो अनाथ की करे न रक्षा, उसे कहे श्रीमान नहीं । जोराग द्वप को नहीं छोड़े, वह भी साधु महान नहीं। विश्वास दे जावे बदल, उससा फिर बेईमान नहीं । जिसने इस मन को नहीं जीता, वह बहादुर बलवान नहीं। उसे सम दृष्टि कैसे कहें, जिसे पाप पुण्य पहिचान नहीं ।। २ ॥ उस भरोसा कैसे पाये, जिसके एक जवान नहीं । जो पक्षपात से कथन करे उसको भी कहे गुणवान नहीं । नेक काम से गुम रहा करता, उससा फिर शतान नहीं । जो जुल्म करे कातिल कहलाये, उसका पहिश्त मकान नहीं । जो इबादत नहीं करे, वह हिंद मुसलमान नहीं ॥ ३ ॥ जिसकी इज्जत नहीं दुनियां में, उसका होता जमान नहीं। जो लालच में था बेटी बने, यह भी बुद्धिमान नहीं। जो देश, धर्म की करे न संव', उसका जन्म प्रमाण नहीं। मुनि चौथमल कहे शिक्षा न धार, उससा कोई अज्ञान नहीं। जो वीर प्रभु का भजन करे, तो उस जैसा धनवान नहीं ॥ ४ ॥ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६८) जैन मुंबोध गुटका । . . . . . . २५१ दुराचरण से हानि. . . . . .. . . .(तर्ज-मज़ा देते हैं क्या यार तेरे) : कैसे इजत रहे तुम्हारी, हो पर नार के जाने वाले। पर नार के जाने वाले, कुल में दाग लगाने वाले ॥टेर।। इतर फुलेल लगाई, फिर टेड़ा पेंच झुकाई । पोशाक को खूब सजाई, हवा के खाने वाले ।। कैसे० ॥१॥ गलियों में चक्कर लगावे, कोई नार नजर आजावे । फिर वांही गात खावे, नहीं पैर बढ़ाने वाले ॥२॥ नहीं नींद रात को आती, सुपनेमें वही दिखाती । रोटी भी पूरी नहीं भाती,कड़े न भूख बहाने वाले ॥ ३॥ जब गरमी रोग बढ़ जावे, घरे पांव चला नहीं जाये। कहने में बहनं शरमांव, ऐसे दुखं उठाने वाले ॥ ४ ॥ फिर पति वात सुन पावे, जूतों से मार लगावे । खा मार चुग रह जावे, नहीं मुख के उठाने, चाले ॥ ५ ॥ हो खबर मुकदमा चढ़ता, हाकिम भी न्याय यहीं करता। वहां पर भी सजा वही पावे, तन धन को गाने वाले॥ ६ ॥ देखो जैसी नार तुम्हारी, वह करे और . से यारी, । नहीं बात लगे तुम्हें प्यारी, समझो कहे समझाने वाले ।। ७ ।। सुनोरे शोकीन लाला, क्या युवा वृद्धा । वाली । पर त्रिया का मुंह काला ! बचो कहे बचाने वाले ॥ ८॥ गुरु हीरालालजी ज्ञानी, कहे चौथमल यह बानी । उत्तम ने दिल में ठानी, अच्छी नजर लगाने वाले ॥६॥ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका । (१६६) २५२ हर भजे सो हरका. (तर्ज-लाघनी बहर नदी) . . दया धर्म जो करे उसीका, श्री महावीर का यह फरमान । तप.संयम की महिमा जैन में, नहीं जाति का कोई अरमान ।। टेर | राज वंश में प्रगट हुए, श्री तारण तरण चौबीस भगवान । जैसे अंधकार मेटन को, सुबह प्रगट होता है मान । चक्रवर्ती छ खण्ड के नायक, एक छत्र धारी थे महान तिज कंचनके महल पधारे, बनके बीच लगाया ध्यान।। हरि हलधर महा पली, श्रेणिक जैसे भूपति । । जैन धर्म धारण किया, शास्त्र में महिमा की । राजा और युवराज कई, सेट और सेनापति । तप संयम धारण करी, गये स्वर्ग कई शिव गति ।। [मिलत] तप संयम ने भगु पुरोहित, जेथोप विप्र का किया कल्याण ।। तप संयम० ॥१॥ पैदा हुए चंडाल के कुल में, हरकैसी कुरूप प्राकार, तप संयम को किया आराधन, उत्तराध्येन में है अधिकार । तिदुक वृक्ष का यत मुनि की, सेवा में रहता हरवार । मासखमन का भाया पारना, यज्ञ बीच गये लेने थाहार ।। शर. ‘विप्र देख मुनिको, करने लगे तिरस्कार जी । राज सुता परजे नमाने किया विन सुर उप वारजी। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७०). जैन. सुबोध गुटका । माफी मांगी विप्र ने, लिया मुनि ने आहार जी । अशर्फी जल पुष्प बरसे, हुई दुंदुभी ललकारजी। मिलत] धन्य धन्य धन्य कहे विप्र, फिर गये मोक्ष केवल ल ज्ञान ॥२॥ अर्जुनमाली विदुषमति संग, पहुंचे यक्ष मंदिर दरम्यान । छ शख्शों ने करी अनीति, नारी से जब वहां पर आन । दैव योग से.माली ने उन . सातों के लिए लूट प्रानं । आस पास वो फिरे पधारे, उसी वक्त वहांपर वर्धमान । .: शेर.... । गया सेठ सुदर्शन दर्श को, माली मिला बीच आनजी । जोर चला नहीं सेठो, गया देव निकल निज स्थानजी ।। सेठ संग उस मालीने, भेटे श्री भगवान जी । : ज्ञान सुन संयम लिया, तपस्या करीप्रधानजी ।। [मिलत] अन्तगढ़ में हुआ केवली सुनो भाविक जन . घर के ध्यान ॥ ३॥ ::.....:.; सकडाल नामा प्रजापति था, तीन कोड़ सोनया पास ! : दस सहन गौ दुकान पानसे, मानमति नारी थी खास। . गौशाले का था ये शिष्य, देव योग भाग हो गया.प्रकाश । वीर प्रभु का होगया श्रावक, व्रत धारी सद्गुणी की रास . सुनके गौशाला आगया, कई कदर समझायजी। मगर पक्का नहीं डिगा, दृढ़ रहा धर्म के मायजी ॥ . Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन सुबोध गुटका। (१७१) तन मन से पडिमा वही,करणी करी उत्सायजी। सलेखणा कर सुर हुआ, पहिले कल्प में जायजी ।। [मिलत] उपासकदसा में लिखा जिकर, महाविद पीच पावे निर्वाण ||४|| दया धर्म के झंडे नीचे, जो कोई शख्म भी प्राता है । तप संयम को धारन करके, वही मोक्ष में जाता है। भगवान और भन्नों के नीच, नहीं न्यात नात का नाता है। गुड़ लगता है सबको मीठा, जो कोई इस को खाता है। शर इसी तरह से धर्म भक्ति, सब को तारण हारजी। उठावे उसके पापकी, भूमि पड़ी तलवारजी ॥ जहाज उतारे सकल को, नहीं करे इन्कारजी । केवली के वचन को, ले धारके हो पार जी ॥ [मिलत] गुरुप्रसादे चौथमल कहे, सुत्रों का देकर प्रमाण ।५ । २५३ रावण को विभीक्षण ने कहा.. (तर्ज-मजा देते हैं क्या यार) सुनो रावन मेरी बात, पर नार के लाने वाले ॥ टेर।। कहे लक्षा के लोग लुगाई, रावण लागो नार पराई। बांधव के नहीं समाई, अपयश के उठाने वाले ॥ सुनो० ॥१॥ यों कहे विभीषण भाई, ये क्या कुबुद्धि कमाई । कहे जगत फरी भन्याई, Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७२) . जैन सुवोध.गुटका । तुफान उठाने वाले.॥२॥ या रामचन्द्र की रानी, सतियां में श्रेष्ठ बखानी । तेने यह क्या दिल में ठानी, कुल के दाग लगाने वाले ॥३॥ मेरे दिल में यह नहिं भाई, मैं घर में दूं समझाई। दे पीछी इसे पठाई, निज लाज ममाने वाले ॥ ४. 11. कहे रावण कोप भराई, मत कहना बात फिर आई । बस समझो मन के माही, निजसुख के चाहने वाले ॥५॥ लगे रामचन्द्र तुझे : प्यारा, तो जा उसके पास ततकारा । जब शरणं राम का धारा, 'बिभीक्षण सत्य पे रहने वाले ॥ ६॥ कही बात बहुत सुखदानी, रावण ने उल्टी तानी । वदे चौथमल सत्य बानी, कहे कहां तक कहने वाले ॥७॥ २५४ अज्ञात का उपदेश असार. तर्ज-लावणी वेर खड़ी] जो खुद ही नहीं समझा, वह गैरों को क्या समझावेगा। जो खुद ही सोया पड़ा हुआ, सोते को क्या जगावेगा ॥ टेर ॥ जो हर सूरत से लायक नहीं, वह गैरों पे क्या ऐसान करे । जो जहाज खुद ही फूटा, वह क्या पार इन्सान करे। जो खुद ही दरिद्री है, वह गैरों को क्या. धनवान करे। जिसकी बात माने नहीं कोई, वह क्या वृथा मान, करे । जो खुद ही बन्धा हुआ है; वह गैरों को क्या छुड़ावेगा ॥ जो० ॥१॥ जो खुद ही व्यसनी है, वह गैरों को क्या उपदेश करे । जो खुद खत लिखने Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | ( १७३ ) वाला हैं, वह क्या उसमें विशेष करे। जिसका दिमाग काम नहीं देता, वह क्या हर एक से बहस करे । जो असली में है झूठा, वह सच्चा ऊजर क्या पेश करे। जो विषयों में रहे रक्त वह कैसे गुरु कहलावेगा || जो० || २ || खुद की जिसको खबर नहीं, यह शख्स ख़ुदा को क्या जाने । जो खुद ही पक्षपाती वन बैठा, वह इन्साफ को क्या छाने । जिस में नहीं है सहनशीलता, उसको कौन बड़ा माने । जिसका जिसको नहीं तजुर्बा, वह उसको क्या पहचाने । जो खुद ही भूला हुआ है, वह गैरों को क्या बतलावेगा || जो० || ३ || जिसके दिल में दया धर्म नहीं, बड़ दुनियां में क्या इन्सान | जिसका चित्त चंचल भोगों में, उसको कठिन याना धर्म ध्यान । श्राराम श्राकवत में कब पावे, दिया नहीं जिसने यहां दान । हिताहित का बोध हो कैसे, जिसने सुना नहीं गुरु से ज्ञान | मुनि चौथमल कहे बबूल बोके, कैसे श्राम वह खावेगा || जो० ॥ ४ ॥ 1 -- २५५ रक्षक की आवश्यकता. [ तर्ज--मजा देते हैं क्या यार तेरे ] कोई नर ऐसा पैदा हो, भारत घीर बंधाने वाला || ढेर | जो होते प्राज गोपाल, तो न करते किसी से सवाल | कैसा श्राया है दुष्काल, सत्य मर्यादा मिटाने वाला || कोई० ॥ १ ॥ पढ गए ठग हत्यारे चोर, खरीदें धन २ हिन्दू दोर । निर्देवी जुल्म Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७६) : जैन सुबोध गुटका। ; . जोर नहीं । कोई ऐसा सनमः मुझे देवे मिला, उससा उपकारा पार नहीं:॥ टेर ।। आप बसो हो मे.क्षनगर, जहां बादल न विज़ली अगन का खतर । वहां शाम सुबह नहीं शमसोकमर, फिर हजूर मजूर का तौर नहीं ।। मेरा०॥ ॥१॥न रूप न रंग संयोग वहां, न योग न भोग न रोग.न शोक । न खान न पान न तान: न मान, वहां. जन्म मरण की ठौर नहीं ।। मेरा०॥.२ ॥ मैं मोहके मुल्क : में नाहीं रहूं, मुझे प्यारी लगे शिव की नगरी । मनभाता यही मिलुं वहाँ पे आई, जहां जुल्म का कोई शोर नहीं। मेरा० ॥ ३ ॥ संजम देना था बहुत कठिन; अरे ! चौथमल को सुनो सज्जन । डर दूर किया जिम जो दिया गर हीरालाल सा और नहीं। मेरा०॥४॥.. .. २५८ उपमित विश्व.. (तर्ज-ठुमरी-रथ चढ़ रघुनंदन पावत है) कसा विश्व का रेल बनी, एक आवत है एक जावत है॥टेर ॥ चारों गति के लम्बे चीले । चारों दृग विछा वत है ।। कसी० ॥ १ ॥ चौरासी लक्ष योनिसे फिर, कोई छोटे बड़े कहावत है ॥ कैसी० ॥२॥ कई सवारी आकर उतरी, वहां बाजा कई बजावत है ॥ कैसी० ॥. ॥३॥ कहीं सवारी.लदी पड़ी है, वहां पर रुदन मचावत Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन गुयोध गुट। (१७७) हैं ॥ कैसी० ॥ ४ ॥ रीति भरी भरी की रीति, इम गाडी चक्कर खावत है ।। कैसी० ॥ ५ ॥ ऐसा तार लगा कुदरत का, गाड़ी नहीं टकरावत है । सी०॥६॥ टौर २ पर हे स्टेशन, नहीं श्रागा पीछा पहुंचावत है कैसी० ॥ ७ ॥ सिद्धपुर में एक शहर अनोखा, वहां गये बाद नहीं श्रावत है ॥ कैसी. ॥ ८ ॥ पाप पुण्य धर्म ये तीनों, कृत्य व यू टिकिट वटावत है ।। कैसी० ॥६॥ नरक तिर्वच मनुष्य देवता, न्यारे न्यारे पठाचत है कैसी० ॥१०। चौथमल कई काल है इञ्जन, दिन रात यह धूम मचावतह ।। कैसी०॥१६॥ । २५६ राजल प्रार्थना. . . (तर्ज-ऐसी चतुर सम्खी न मिली) . मेरा पिउ गिरनारी पर जाय बसे, मैं किसको कई भैरी कौन सुने । श्राप विराजते हममे निकट तो वहां की खबरिया भंगालेती॥१॥ मेरे दिल में प्राव जोगनिया रन, मैं तो छोड़ शहर उसी वन में चलूं । ऐसी प्रभुनी की चानी जबर, मेरी नींद अनादि की उड़ादेती ।।३। मैं तो पिया तेरे दर्शन. की प्यासी, मुझे सांवरी सूरत दिखायोग कर । जो नेम पिया मिलते यहां तो चरणों में शीश मुकादेती ॥३॥सती राजिमति भेटे नेम जती, गई मांद गती नहीं झूठी कथी। चौथमल की रती व नित्त प्रति. लगी प्रीत मेरी नेम जिन सेती ॥ ४ ॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७८) जन सुबोध गुटका। टका। : २६० कृष्ण माहमा... (तर्ग-घनश्याम की महिमा अपार है) ___पावे न कोई पार श्री कृष्ण की महिमा अपार है. ।।टेगा वसुदेव देवकी रानी । जिनके जनमें सारंग प्राणी । भाद्रव जन्माष्टमी सार ।। श्री० ॥ १॥ वसुदेवजी फौरन आया, कोमल हाथ से नन्द उठाया।निकल भवन से बाहार |श्री०॥ ॥ २॥ लगे कंस का पहरा भारी: । सिंह शामा विविध प्रकारी लेवे नींद रस्त्रमार ।। श्री० ॥३॥श्रे कृष्ण का अंगुल अड़िया । ताला टूट तुरंत सब पड़िया। आये य. सुना तट पे तिहि बार ।। श्री० ॥ ४॥ गाज बीज ने वरसे पानी, करी सहाय देवता आनी । पहुंचा है मथुरा के द्व र ॥ श्री० ॥ ५॥ उलट पूर यमुना को जावे । मागे नहीं निकलवा पावे । करे वसुदेवजी विचार श्री० ॥६' कृष्ण पांव गया जल के लाग, यमुना जल का हुआ दो भाग। पैठा गोकुल के मंझार |.श्री०॥ ७ ॥ नन्द अहीर यशोदा रानी । जिनको सोपा मारंग प्राणी । लियो घर हर्ष अपार श्री० ॥८॥ सुदेवजी पीछे पाए । इस. भेद को कोई न पाए । किया नन्दने महोत्सव श्रीकार ।।श्री० ॥ ला द्वितीय चन्द्रवत बढ़े गोपाल । निरख यशोदा रहे खुशहाल..। करे ' देवकी दर्शन वारंवारः। श्री०॥ १० ॥ गिरिराज पर्वत को धारा । काली नाग को नाथी डारा | धेनु चरावे मुरार |श्री॥ ॥११॥वंशी राग अलापेटेर। गोपियां फिरे हरि के लेर । Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन पोटका | ( १७६) 1 वर्ष सोलहका अधिकार || श्री० ||१२|| देखा उनके पुण्य सवाया। तीन खंड का नाथ कहाया। शोभा करे नरनार ॥ श्री० || १३ || धर्म साज दे अधिक मुरारी । गोत्र विर्येकर के अधिकारी । यह थागम में अधिकार ||श्री ० ||१४|| गुरु प्रसाद चौथमल गये । उन्नीसे साल सत्ततर श्रावे | जोधाणे जोड़ी जिंवार ॥ श्री० ॥ १५ ॥ ... ན་ २६१ राजुल उपदेश. ( तर्ज-घरे रावण तु धमकी बताता किसे ) अरे रह नेमी ! क्यों मन को बिगाड़े, तेरे झांसे में श्राने की हूं ही नहीं । तेरा रूप इंद्र पुरिंद्र चन, तो भी मैं ललचानेकी हूँ भी नहीं || ढेर || तेन सीस मूंडा लेकिन मन न मुंडा, कह दिया वाक्य सोचा नहीं ऊंडा । पर लोक चिगदे यह लोक भृंडा, और मैं तुझे पानकी हूं भी नहीं ॥ श्ररे० ॥ २ ॥ क्यों गज चढ़ खर पर सूरत घरे, तुझे बार २ विकार पड़े । इस जीनसे तो मरना ही सरे, फिर और तो कहने की हं भी नहीं ॥ घरे || २ || कई गांव नगर पुर शहर फिरे, खूब सूरत नार पे नैंन घरे। ऐसे जो नियत तेरी बिगड़े, तो संजन पलने का है भी नहीं || अरे० ॥३॥ सती राजिमतीजी के चैन सुनी, भाए ठिकाने रहनेम मुनि । चौथमल दोनों हुए हैं गुनी, गये मोच फिर थाने के है भी नहीं || अरे० ॥ ४ ॥ 1 Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८०) जैन सुवोध गुटका। mmmmmmmmmmmmmmmmmmmm. minimum २६२ राम सेना.. (तर्ज-ख्याल) आया रामचंद्र महाराज लंका गढ़ ऊपरे ॥टेर ॥ राम लखन सुग्रीवजी सरे, अंगद और हनुमान । भामण्लादिक शूरमा सरे, फौजों संग बलवान || आया० ॥१॥ मागे बीच कई नृपति जीती, उनको भी संग लीना । सेतू बांध समुद्र उतर डरा, हंस द्वीप में दीना || आया० ।। २ ।। रावन सुन कर कोपियो सरे, सेना पे हुक्म चढ़ाया । मारो ताड़ो फर्ज बजाओ, जो नमक हमारा खाया ।।. आया० ॥ ३ ॥ आय विभीषण कहे प्रात को, जल्दी से बिनशे काज । बिना सोचे फर्म कमाया, तूंने खोई कुल की लाज || आया०॥४॥ जिनकी 'लाया कामिनी सरे, लेवा आसीः न्याय । दियां से पाला फिरे स थारी, इज्जत सब रह जाय ।। आया० ॥ ५ ॥ इंद्रपुरी सी: लंका नगरी, क्यों खो- खुद हाथ । इंद्रजीत कहे काका डरकन, मतं कर ऐसी बात || ओया० ॥ ६ ॥ प्रथम भ्रात से कपट करी, दशरथ के ताई बचाया । अब भी उबायो चाह, भैद तेरे मनका हमने पाया || आया० ॥ ७ ॥ इंद्रजीतलू सो बल मेरा, राम लखन क्या चीज । अब नहीं छोड़ो साबता सरे; नहीं होवे बीज की तीजः॥ आया० ॥ ८॥ नहीं अरि से हेतः हमारे, सुन बेटा नादान । देखं जैसी मैं कहुं सरे, होने वाली हान आयाणा॥ काम अंघ है पिता तुम्हारा, तूं जन्मान्ध संमान | पुत्र नहिं तूं . अरि बराबर, अब जाती लंक पहचान । आया०॥१०॥रावन Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - जन सुवोध गुटका। सुन कर कोपियो सरे, मांडया आत से जंग । दोनों बार जब अड़गया सरे, लांग होगया दंग || आया० ।। १२ ।। इंद्रजीत और कुंभकर्ण मिल, दोनों के ताई छुड़ाया। मन मोती गया ट फर, अब मिलता नहीं मिलाया ॥ आया० ॥ १२ ।। रावन कहे मत रहे नगर में, जा तूं राम के पास । पगे लाग ने चले अन्नोणी तीस संग है खास || थाया० ॥ १३ ।। देखो राम का पुण्य सवाया, शरण विभीषण आयो । अवसर पर सेवक बने सरे, मिलियो मान सवायो | आया०॥ १४ ॥ हंसा को मोती घणा सरे, भंवरा ने बहु फूल | सच्चे को सच्चा नहीं जाने, है उसके मुख धूल || श्राया० ॥ १५ ॥ गरु प्रसाद चौथमल को रक्खों आत से प्रेम । जहां संप तई संपत्ति नाना, वरते कुशल और क्षेम ॥ श्राया० ॥१६॥ __२६३ ग्रायुश्चंचलता (कन्याली) अरे जाती है चीती यह तेरी ऊनर, जिसकी तो तुझको खबर ही नहीं। क्यों वांका घमंडी हो भूला फिरे, तेन ज्ञान की सीखी सतर ही नहीं टेिस तूं ने जुल्मों पे बांधी है अपनी कमर, जरा नर्क निगोद का डरही नहीं। जहां पे गुजोसे पीट फरिस्ते तुझे, कुछ नानी, दादी का तो घर ही नहीं ॥सरेगा। खाली ऐशों में दी तेने उम्र विता,और भागे का किया फिकर ही नहीं। Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८२) जैन सुबोध गुटका। - नहीं खाने का साथ सामान लिया, खुद देश की वह तो सफर ही नहीं ॥ अरे ॥२॥ न तो तीन में है न तुं तेरह में है न तूं सत्तर और बहत्तर में नहीं । चाहे दिलसे तूं अपने उमराव बने, तेरी दुनियां में कुछ भी कदर ही नहीं ।। अरे० ॥३॥ जो तूं माल खजाने को अपना कह, सच कहूं तूं उसका अफसर ही नहीं । न मकान दुकान न होगी तेरी, तेरा खास तो इस पे उजर ही नहीं ।। अरे० ॥४॥तुझे है भी खबर कैसे हुए जवा, जो नूर नूरानी कसर ही नहीं । जिनके पांव स.जमीं करे थरथर, वो कहां गए उनका वशर ही नहीं ॥ अरे०॥ ५ ॥ मत किसी को सता कहां हुक्म-वता, खूब गुनाह किया तो भी सबरं ही नहीं। और बातें तो लाखों करोड़ों कगे, खास मतलब है जिसका जिकर ही नहीं ॥ अरे. ॥६॥ यह तो योवन है चार दिनों का सनम, इस पे करना तुझे है अकड़ ही नहीं । कहे चौथमल जिनराज भजो, भाभिमान तजो फिर खतर ही नहीं अरे० ।। ७ ।। .. ... . २६४ मोह महत्त्वता. . (तर्ज शरद पुनम की रातरे काई. जां दिन जनमिया नागजी ) ____ हंसजी, आठ करम के मायनेरे कोई, मोह कर्म मोठो महिपति, हो हंसजी । हंसजी सब पापन को सेवरोरे कोई हैं इनकी मोठीथिति हो हंसजी ॥ १॥ हंसजी, एकादश Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . .. ..MIN जैन सेवाय गुट । (१३) गुण स्थान सरे कोई, पहले पटक पान के हो हंसजी । हंसजी चौरासी लक्ष योनिमेरे कोई, यही रुलाये नान के हो हंसजी ॥२॥ हंपनी, पाएटलीपुर एक नगर मेरे कोई, सेट धनाउ है सर हो हंसजी । मजी, दो गोरी को साहयोरे कोई, छोटी से मोह अति करे हो हंसनी ॥ ३ ॥ इंसी, सेठ के पाप संयोग सेरे कोई वेदना होगई एकदा ही हंसजी । हंसजी, श्रीपधी लेवा काजर कोई, घर में गई लघु परमदा हो हंसजी॥ ४॥ हंसजी, नारी के लगी शिर चाटरे कोई, जीव उणरो घर गयो हो हंसजी । मजी, बात सुनी ने सेठजी कोई, मोह वश में हो मर गया हो हंसजी॥५॥ हंसजी, तस प्यारी के शीश मेरे कोई, कीट पणे हुयो सेठजी हो हंसजी । हंसजी एसे श्रम संसार मेरे कोई, मोह वश में वो सेटजी हो हंसजी ॥६॥ हंसजी, माह कमललो जीतो कोई तो मिल जावे शिवपुरी,हो हंसजी । हंसजी, गुरु होर - लाल प्रसाद सेरे कोई, चौथमल शिचा करी हो सजी || २६५ योवन की अस्थिरता. (तय प्याली) क्यों न इतना अकड़ के फिर, तेरा हुश्न सो रहने का है ही नहीं। जो दरिया का पूर सा जाता चला, यह तो किसी के कहने में है ही नहीं ॥टेर ॥ पोशाक Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८६) जैन सुवोध गुटका। बालक बुढा ना गिने,फकीर अमीर को । तीतर को दबाता है वाज, मिशाल यहीं धर ॥ अजल० ॥ १ ॥ तलवार बाल वांध के, फिरता है शूरमा । उसके मुकाबले में वो, डरता है सरासरं ॥ अजलं० ॥ २॥ गढ, कोट, किल्ला वीच, भुंवारे में उतरजा। नहीं छोड़ता है. एक मिनट, उपाय कोड़ कर ।। अजल० ॥ ३ ॥ क्यों न बादशाह हो सरदार सबों का.। चलता न उसके सामने किसी का भी उजर ॥ अजल०॥४॥ गुरु हीरालाल परसाद, चौथमल कहे तुसे। कर जाप वर्षमान का तो, पावे मोक्ष घराजिलपाशा २६६: राजुल का कहना (वर्ज-फाफी की होली ) ... ... मैं कैसे करूं अरररर, सांवलियो न जाने मेरी: पीर : ॥ टेर।। तोरन..से : फिरे सुन सोनी, तब तनसे उघड़ियो. चीर । फटयोरी वह तो चर रररर सांवरियोः ॥१॥ यादव की सब जान हुई लजित, मैं तो बनी अधीर । कॉपीरी मैं तो थर र । सवि० ॥२॥ लोकन में सुन कर बदनामी, नैनों से वाल्यो मेरे नीर । रोई री मैं तो धर ररर ॥ सांब० ॥ ३॥ चौथमल कहे राजुखं दे वोले, प्रभु हरो मारी पार । कहूं री मैं तो चरणो में पर र र र ॥ सांव०॥४॥ mirikisini Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "जैन सुबोध गुटका | २७० उम्र. ( तर्ज--गजल दादरा ) ● ( १८३ ) संधी WHEN HE COPY "AND" "AS दुनियां से चलना है तुझे, चाहे श्राज चल या कल | अनमोल व शथ से, जाता है पल पे पल || ढेर || याता है श्वांस जिस में, प्रभु रटना हो तो रट । चेत चत उमंदा बाई, बाहार की फसल || दुनियां० ॥ १ ॥ हुआ दिवाना ऐश में, पाखिर का डर नहीं। सर पर तेरे हमेशा रहे, घूमता अजल || दुनियां ॥ २ ॥ नेकी वदी सामान को, उठाके पीठ पर | खुद को ही चलना होगा, बढ़ी दूर की मजलं || दुनियां० || ३ || मात्र कफे दस्त ज्यूं जाती जिन्दगी । बदकार की बदी में गई, राखीने की सफल ॥ दुनियां० ||४|| कहे चौथमल गुरु वकील, थागाई दे तुझे । करले अपील जीव थर, हाथ में मिसल २७१ परस्त्री परिणाम..... ( तर्ज-कर्दी मुशकिल जैन फकीरी राग पंजायी ) यह इश्क बुरा परनार का, कभी भूल संग मत करना ॥ ढेर || जो परनार के फन्दे में आया, तन धन यश उसने गंवाया, फिरतो वह बहुत पछताया, न घर का रहा न महार का । जरा दिल में ध्यान तो धरना || यह ० ॥ १ ॥ राजा रावन था बलकारी | रघुवर की लायो बह नारी । च Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) जैन सुवोध गुटका। राम ले फौजों भारी। रहा गर्वधरा परिवार का । हुआ क्षण में उसका मरना । यह० ॥२॥ पद्मोचर ने कुमति कमाई, सती द्रोपदी को भंगवाई। पीछे तो वह गया घबराई । देखा तेज मुरारका, जब लिया सती का शरना ॥ यह० ॥३॥ देख कुरान शरीफ माही, खोल सिपारा अठारवां भाई । गैर औरत से लो सर्म वचाई । है फरमान परवर दिगार का, जरा पाकवत से डरना ।। यह० ॥ ४॥ तिनो न्याय दिये सुनाई, चातुर का दिल रहा हुल साई । मूर्ख के दिल जरा नहीं भाई, वह वासी नई द्वार का, उसे है चौरासी फिरना ॥ यह ॥५॥ चौथमल तुमको समझावे, नाहक पर नारी के जावे, फिर इसमें क्या नफा उठावें । मत बने पात्र धिक्कार का,,गुरु कहा मान हो तिरना ॥ यह० ॥ ६॥ .: २७२ मनुष्यं भव. (तर्ज-गजल दादरा) अब पाकें मांनुवं भव रत यत तो करो । सद्गुरु से सुन के.बेन हिये ज्ञान तो धरे ॥ टेर । यह राग द्वेष जाल बीच, मत कोई परो, यह सात व्यसन बहुत बुरे तक तो करो । अब०॥१॥ अब बांध बांध पाप पोट, सिर पे क्यों धरों । होगा हिंसाब फेर, आंकवत से डरो। अब० ॥३॥ यह हिंसा झूठ चोरी; मैथुन परिग्रहो। विन त्यागे मिजमान, दोजख को खरों ॥ अव०॥ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन गुरोध गुटका। (TE) - . un-0. . . . ph . . ॥ ३ ॥ यह कर भलाई सन के साथ, न कीजिये पुरो। नहीं याचे साध धन माल, कुटुम्ब रहे धरी ॥ अव०॥ ४॥ यह जैन धर्म दान तप की, नाव प चढ़ो। कहता है चौथमल चार, गत से टरो।। भव ॥ ५ ॥ २७३ सखियों की वाता. (तर्ज-लापसी लंगड़ी) व्यसन बाज सातों की पदमन, पनघट पे गई नीर भरत । सातों के.पति हैं, व्यसनी भापस में गुफ्तगु लगी करन । टेर।। पहली सली कहे मुनोरी सजनी, मेरा पिया ध्रुवारी हैं । सर पर की पूंजी, लेजाके जुश्रा बीच में हारी है । लफा चौक लीलान फाटका में, उमर निताई सारी है। कहां तन पर गहना, पासा रहा लहंगा या रही सारी है । मेने समझाया अति उनले राजा नल का करा मुमरन । सातो.॥१॥ दृनी सखी कहे सुनोरी सजनी, मेरा पिया पीता है शराव । वन पन दोनों, इसी के बीच करता है सारा खराब । बेहोश हो गरे जमी पर कुरो भी करते पैशाव । में शरमाऊ नगर नहीं प्रीतम छोड़े गंधा याम । भारत दो गारत इसी में, यादव का होगमा गरन ॥सातो० ॥ २॥ तीजी सली कहे सुनारी सजनी, मेरे पिया खाता है. मांस सरत दिल है. दया देवी नहीं करती हृदय निवास I जिसका करे पास परी! वो मनु प्रापि लिखते है स्वास । आव नरस में, भौर यहाँ पर वो पाये अति वास । बप तप नी दान पुण्य फल, Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९०) . जैन सुबोध गुटका । wwwwwwwwwwwwwwwwwwwww सुकृत करनी करे हरन ।। सातों०॥ ३. ॥ चौथी सखी कहे सुनोरी सजनी, वैश्या से पिया की लगी लगन । कहा न माने, रात दिन उसके इश्क में रहे मगन । बड़ी गजब की . बात माल योवन दोनों का करे हवन । दुनियां कहती, आज कल इनके बिगड़ गये चाल चलन | आगे नरक यहां बे मतलब वो नहीं रखने दे घर में चरन ॥ सातो. ॥ ४ !! सखी पांचवी कहती पिया मेरे तो बड़े शिकारी हैं । हथियार बांध के, रात दिन घूमे विपिन मुझारी है । हिरन, सिंह, खरगोश को मारे, करुणा दिल से बिसारी हैं । जो मरे हाथ से बदला वह लेने खड़ा तैयारी है.। मैने सुना ऐसे पापी को, ईश्वर भी नहीं रक्खे शरण ॥ सातों० ॥ ५ ॥ छटी सखी कहे मेरे पिया की बुरी आदत चोरी की पड़ी । वो छुप छुप रेवे, रात दिन घर में रहे नहीं एक घड़ी। नहीं ख्याल जरा भी उनको, इस. में बात है बहुत बड़ी मै तो हार गई सखीरी ! शिक्षा देती कड़ी कड़ी । ऐसे बन कर्मों से सजनी एक रोज वह बैठे धरन । सातो० ॥ ६॥कहे सखी सातवीं सुनोरी सजनी, मेरा पिया ताके परनार । भूल कमा-. ई, सदा रहे.चन्द्र बारवां बड़ा विचार । यहां तो फर्क इज्जत में आव; आगे खुला है नरक द्वार । चौथमल कहे व्यसनों से बचो, निसे होना हो.पार । उन्नीसे सत्तत्वरं माधुपुर में, कथा जिकर सुनो चारों वरन । सातो० ॥ ७॥.. . . Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध शुष्टया। - - - - -- - २७४ सेवा फल. (तजे-दादरा) अब खोल दिल के चश्म जरा गौर कीजिये । चाहे भला तो सतगुरु की, सेवा कीजिये ।। टेरा मिला मनुष्य जन्म, नेक काम कीजिये । मात तात कुटुम्ब चीच चित्त न दीजिये । अब० ॥१॥ जेवर खजाना देखके, मत इसमें रीझिये । गुल बदन हुस्न पायके, मत गर्व कीजिये ।। ॥ २॥ इस खल्क बीच प्राय के, पर दुख हर्गजिये । प्राता साथ धर्म माल, सो भरीनिये ॥ श्रव ॥ ३॥ मद मांस और परनार के, संग से टरीजिये । जुल्मों जहर के प्याले को न, भूल पीजिये ।। अर।।४॥ सत शील शुद्धाचार जिगर में रूचीजिये । कहे चौधमल जिनेन्द्र चरण, चिच धरीजिये। अब ॥५॥ २७५ रात्री भोजन निषेध, (तर्ज-शेरखानो दादर) मना रात का खाना सरासर है। टेर। चिरियां कपोत, कौमा,नहीं रात चुगन जाय ! इन्सान होकर बेहया, तू रात को क्यों खाय ! क्या मनुष्य पशु बराबर है । मना० ॥१॥ पतंग, कीट, कुन्धुसा, भोजन में पड़े भाग दीपक की लो पर घमते, देखोनिगाह लगाय । अरे जीव भरत चराचर है। मना०॥२॥ करुया कोवो की विदा, जीदों Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका । को भक्ष कर । वह पापी यहां से मरकर, पैदा हो जम के घर । जहां गुजों की सार धड़ाधड़ है ॥ मना० ॥३॥ कहे चौथमल रात का, तू खाना छोड़दे । रोगों की खान जान के, दिल इससे मोड़दे । नहीं तो लक्ष चौरासी का बड़ा घर है। मना० ॥४॥ २७६ ज्ञान.. (तर्ज-दादरी) सबसे बड़ा ज्ञान है तू इसके ताई पढ़। ज्ञान के बिना न मोक्ष, उपाय कोढ़ कर ।। टेर। पानी में मच्छ नित्य रहे नारी के जटा शीश ! नाखून लंरे देखले, सिंहो के पांव पर ॥ सर्व०॥ १॥ वुक ध्यान राम शुक, गाड़र मुंडात है. । ये नाचे हिंज राख तन, लपैटता है खर ।। सब० ॥२॥एसे करेसे मोक्ष हो, तो इनको देखले । वेको न बद सख़्मों के झांसे में धानकर ।। अव० ॥३॥ हैवान और इन्सान में, क्या फर्क है बता । ज्ञान की विशेषता, जुल्मों से जावे टर। सब० ॥४॥ पाकीजा दिल को कीजिये, कर रहिम जान पर । जिन बैन का ऐनक लगा, 'चल राह नेक पर ॥ सब० ॥ ५॥ गुरु हीरालाल परसाद, चौथमल कहे तुझे । वैशक मिलेगा मोक्ष तुझे वे किये उजर ॥ ६ ॥ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन मुरोध गुटमा (१६३) -deew २७७ सत्य उपदेश. (त-माड-मीरा थारे काई लागे गोपाल ) : मना तूं भजलेरे भगवान । थाने देवे सद्गुरु नान ॥ टेर। छः खंड केरो साहबोरे, सुन्दर रतन निदान । हुश्रा निवाला कालकारे, चक्रवर्त-सा जान ।। थाने० ॥१॥ रावण भी चल्यो गयो, जो रख तो अभिमान । उसका मारन हार रामचन्द्र, छोड़ गये दश प्राण ॥ थाने० ॥२॥ कहां गये विरूपात जगत में, पाण्डव-से बलवान । हाग दाम ठाम के मालिक, कौरव से सुलतान ।। थाने०॥३॥ काल के पंज पड़ारे, पृथ्वीपतिराजान । जन्मे अजन्मे हो गयरे, कई पामर का प्रमान.॥थ ने० ॥४॥ उतम ना तन पायकर, करले पर धर्म ध्यान । गुरु प्रसाद चौथमल कहे, हो तेरा कल्पान ॥थाने० ॥ ५॥ २७८ क्या करा? [तर्ज दादरा) . दुनिया के बीच प्रायनें, क्या मला किया। क्या भला कियारे, तने क्या नफा लिया ॥ टेर'। यह मात तात.कुटुम्ब बीच, तूं लुमा रहा। जुल्मों जहर का प्याला तेने हाघों से पिया ॥ दानेयां० ॥ १ ॥ श्रमोस तेरी तकदीर पे, नर भव गमा दिया। इस दुनिया में ऐसा गया, Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (. १६४). जैन सुबोध गुटका। न पैदा भया भया ॥ दुनियां० ॥२॥ लीलम की खान पाय के, मोताज तूं रहा । दरियाव में रहे प्यासा, वह पछतायगा जिया ।। दु०॥३॥ लाया था माल बांध के, वह यहां खरच किया। अब आगे का सामान तेने, साथ क्या लिया ।।दु०॥ ४ ॥ गुरु हीरालाल प्रसाद, चौथ- . मल जिता रहा । कर दया दान पावे. मोक्ष, दुख नहीं तिया ॥ ५ ॥ २७६ काल का जासूस. (तर्ज-रजवाड़ी माडः-सरदार थांको पचरंग पेचो) . ' अयोध्या को. अधिपतिरे, हिरण गर्भ है खास । एक दिन बैठा शयनमरे, करता हांस विलास । हो. महाराज निज की रानी से करे वाता म्हांका राज ॥१॥ दीवार पर शीशो लग्योरे, ता बिच भूप निहार । अचानक चेहरो ऊतर गयोरे, चिन्ता का नहीं पार । हो महाराज देखी रानीजी घबरानी म्हांका राज ॥ २ ॥ विलास जगह उदासीनतारे, रंग में पड़ायो भंग । गलानी बाई गईरे, यह क्या होगया, ढंग हो महाराज रानी.दीन वचन ऊवारे म्हांका राज.॥३॥ कंचन थाल भोजन भलारे, पान का बीड़ा हाथ । ज्योति जगमग आपकीरे, कहो वितक वात । हो अन्नदाता आपकी सरत. क्यों कुम्हलानी म्हांकाराज ॥४॥ हुक्म लेयने श्रावीयोरे, यम को दूत इस वार, Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन मुयोघ गुटका। (१६५) an- manmommenuineer दुश्मन यही जाननारे, ले जासी यम द्वार । हे सुन सुन्दर ! चिन्ता लागी यह अति भारी म्हांका राज ॥५॥ देई रिस्वत यम ने रे, देदं नवसर हार । देई हाथ की मुदडी रे, रा कर मनवार । हो अन्नदाता रंग रस की करिये बातां म्हांका राज ॥६॥ गेली सुन्दर बावरीरे, गैला चैन यह होय । यम रिस्वत जो श्रादरे तो जग में मरे न कोय है सुन्दर ! थांका बोल पे हंसी आये म्हाका राज ॥७॥ हाल अभी श्राया नहीरे, पासी जमकी बात । सो रमो आनंदमेरे, मोजां को दिन रात । हो अन्नदाता माकी अर्जी पर चित्त दीजे म्हांका राज |॥८॥दत तो अब श्रा गयोरे. मैं तो देखा नाय । बाल उखेड़ी सीससेरे, धोला नजर देखाय । हे सुन्दर यम को जासुम अगवानी म्हांका राज ।। || काल भृप अब पावसारे प्रत्यक्ष रहा चेताय । तेरा मेरा प्रेम यह अब रहने का नाय । हे सुन सुन्दर ! खान पान ऐश सब त्यागा म्हांका राज ॥ १०॥ मृगावती रानी तजीरे दियो कुंवर ने राज । सद्गुरु से संयम लईर नृप साध्या सब काज । हे सुन चेतनजी थे या विधि ज्ञान विचारो म्हांका राज ॥ ११ ॥ गुरु हीरालाल प्रसाद मुर चौधमल यं गाय । उन्नीसे सत्तचर चौमासो नोधपुर के मांय हो जीवराज थान देई ज्ञान समझावा म्हांका राज।।१२॥ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (१६६) जैन सुबोध गुटका । २८० मोह नींद. ': (तर्ज-दादरा): . ___ क्या अमोल जिन्दगी का यत्न नहीं करे। सोता. है मोह नींद में, जगाऊं किस तरे ॥ टेर।। कंचन के पलंग पर, सुन्दर से स्नेह घरे । लगा भोग का तरे रोग, नसीहत क्या करे ॥ क्या० ॥१॥ ले मुखत्यार नामां और का वकील हो फिरे । निज मिस्ल का पता नहीं, समझ यह धरे ॥ क्या० ॥२॥ माया के बीच अंध तुझे सूझ ना परे करता मजाक और का जुल्मो से ना डरे ।। क्या० ॥३॥ नं किया न लिया साथ, रहे खजाने सत्र भर देगा जबां से क्या जबाव, पूछे उस घरै ।। क्या ।। ४ ।। गुरु हीरालाल प्रसादे, चौथमल कहे सरे । कर कब्जे माल धर्म का संसार से तेरे ।। क्या० ॥ ५॥ . ." . . २८१.साग्य. त: मेरे काजी साहिब श्राज सवक नहीं याद किया) चाहे जाओ दिल्ली कोटा, फल खोटा का खोटा टे॥ जो वोए पेंड वूल का, आम कहां से खाय । वचन बदल विश्वास घाती, सीधा नरक में जाय । पड़े यम का सोटा ॥ चाहे० ॥१॥ रोजी में लात मारो गरीव के,चुगली परकी खाओ। पर नारी के रसिया बन के,मदिरापान उड़ाओ। कह : Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन मुबोध गुटका। (१७) AAAAAAAA - - - लामो फिर मोटा ।। चाहे ॥२॥ पक्षात का लिखा फैसला संञ्च को करे झूठा। कपट कमाई करी दीन, दुखियों को नूने लूटा । पड़े क्यों नहीं टोटा । चाहे ॥३॥ दान-दया, पापी नहीं समझे, सत्संग लागे सारी । चीथमल कहे घाणी घेल ज्यु, फिरे संसार मुभारी। मिले नहीं थाली लोटा ॥ चाहे० ॥४॥ २८२ प्रभु उपकार. (त-दादरा) स्वामी मेरा कैसा जबर, उपकार कर गया । सोते हुए मोह नींद में, सबको जगा गया। टेर|ार्य क्षेत्र बीच में मानिंद गुलाब के। धर्म जन का प्रभुजी फैला गया। स्वा०॥१॥अर्धमागधी भाषा में, द्वादश अंगका। शीघ्र चोध के लिए, अच्छा रचा गया ॥ स्वा० ॥२॥ गृहस्थ मुनिराज का,तिरना हो किस तरह । यह दोनों धर्म भिन्न भिन्न, कर बता गया ।। स्वा० ॥३॥ भूला हुया अनादि का, रास्ता यह मोन का । ज्ञान का उद्यात करके श्राप दिखा गया ।। स्वा० ॥ ४ ॥ जो धीर प्रभु को जपे, शुद्ध मात्र लायके । तो न प्रियंच के, ताला ही लग गया ।। स्वानी ॥ ५ ॥ कहां तक तारीफ इम करें, चारों ही संघ की। मानों लगा के बाग प्राप, सींच के गगा Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६८) जैन सुवोध गुटका। .amannamronnanoramannmandarmanorammarnama ॥ स्वामी ॥ ६॥ त्रशला के लाल आप मुझे तार दीजिए। अब चौथमल चरण शरण, वाच आगया ।। ७॥ . . २८३ सद्गुरू वाणी. . (तर्ज--थारो नरभव निप्फल जाय जगत का खेल में) तुझे देवे सद्गुरु ज्ञान चलो अब मोक्ष में || टेर ।। पुण्य प्रभाव सम्पति पायो,आयो मानिक चोक में । दया दान तप जप करले, मत रहे खाली शोक में || तुझे० ॥१॥ गर्व करे मत धन योवन को, मत राचे घर थोक में। राजा राणा छत्रपति कई, हुश्रा हजारों लोक में ।। तुझे० . ॥ २ ॥ धीरज धार तार निज आतम, सार कछु नहीं तोप में। क्षम्या करे पवित्र होजावे, समझ एक श्लोक में ॥ तुझ०॥३॥ रतलाम शहर योग मुनिवर को; मत. खो नरभव फोक में । चौथमल उपदेश सुनावे, सदर चांदनी चौक में ।। तुझ०॥४॥ २८४: इया. त्याज्य. .. " [तर्ज दादरा] देखी सुखूबी औरकी, तूं दिलमें क्यों.जले रख रख दिलको साफ वो, साहब तुझे मिले. ॥ टेर ॥ पैदा होना इन्सान. का, हर वख्त कहां मिले । फिर फंपके गुनाह Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन गुरोध गुटका। (१६६) - .. बीच में क्यों बैठता तले ।। देखो० ॥१॥ करले तो जरा गौर लाया, क्या बांध के पले । कुल ठाठ पढ़ा रह गया अकेले श्राप चले ॥ देखो० ॥२॥ पहनी पोशाक हीर चीर, महंगी मलमलें । फिरता है किस गरूर में, ये काल तुझे छले । देखी० ॥ ३ ॥ जो हुक्म है मालिक का, ला ईमान मत टले । जान का अंजान हो, नसीहत को क्यों गले ॥ देखी० ॥ ४ ॥ इस सल्क में जिन धर्म का, दर्जा जो है अले । कहे चौथमल गुरु प्रसाद, श्राशा सब फले ।। देखी० ॥५॥ -5+ xs२८५ भोगोंसे अतृप्त. [तर्ज-कव्याली] कमी भोगों से इस दिलको सबर हरगिज नहीं पाता। चाहे हो बादशाह क्यों नहीं, सबर हरगिज नहीं पाता टेर।चाहे हो महल रत्नों का, सजी हो सेज फूलों की मिल अप्सरा अजर सुंदर, सबर हरगिज नहीं पाता। कमी ॥ १॥ होके चक्रवर्ती राजा, रखा सर ताज भारन का। चले है हुक्म लाखों पर, सबर हरगिज नहीं माना ( कमी० ॥२॥ सनी पोशाक लगा इत्तर, बैठ कुसी पे मुंदर संग। गले हो हार मोत्यों का, सबर हरगिज नहीं खाना । कमी० ॥३॥ चाहे गुलशन की करलो बहार, अजयघा की हवा खालो । सवारी रेल मोटर की, समर लगिज नहीं Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२००१) जनसुोध गुटका । आता। कभी० ॥४॥ दुल्हा दुलहनके सग, मिला के दस्त श्रापस में घने कल्प वृक्ष की छांया.सनर, हरगिज नहीं श्राता ॥ कमी० ॥ ५॥ त्रिखण्डी नाथ भी कहला, हो मण्डल का अधिकारी । स्वर्ग के भोग भी भोगे, सबर हरगिज नहीं आता ।। कभी० ॥ ६ ॥ चौथमल कहे भोगों सें, गया नहीं तम हो कोई। निजात्म ज्ञान के पार, सबर हरगिज नहीं आता ॥ ७ ॥ تصفین . २८६ हमारा फर्ज. (तज:-दादरा) चेतो तो जल्दी चेतलो, चताते हैं जी हम । मोक्षका जो रास्ता दिखात है जी हम ! टेर ॥ लेना है क्या आपसे दिलमें करो तो गौरं । फक्त नर्क पड़ते को बचाते हैं जी हम ॥ चेतो० ॥ १॥ धर्मोपदेश परोपकार, करना है मेरा । अपने फर्ज को अदा अब, करते है जो हम चतो० ॥२॥ जुल्म छोड़ प्रति जाँड, रूद्गुर से अब । जाहिल की सौवत तर्क कर, कहते है जी हम ॥ चतो० ॥३॥ यह राग द्वेष की अंगन, अनंत काल से लगी। छांट छांट ज्ञान जल, बुझते है जी हम ॥ चेतो ।। ४ ।। गुरु हीरालाल प्रसाद चौथमल कहे सुनो । दया धर्म साफ तोर से, जिताते है जी हम ॥ चेतो० ॥ ५ ॥ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन बोध गुटका! . . (२०११ २८७ रसना सीधी बोल.... । . (तर्ज-पनजी मुंडे बोल) . रसना सीधी बोल । तेरे ही कारण से जीवन दुखड़ा ऊपजे ए | रसना० ॥टेरसापांची माही तूंहीज मुखिया, अजय गजब नखरारीए । ऊंच नीच नहीं सोचे बोले, मीटी खारी एारसना॥१॥ माधव से सीधी नहीं बोली, संक जरा नहीं राखीए । कौरव पाण्डव का युद्ध कराया महाभारत सामी । ग्सना०।२।। वसू राज वी झूठ बोलने,नके बीच में जावए । तुझ कारण से जल की मच्छी प्राण गंवावे ए ॥ रसना ॥३॥ एक एक अवगुण सर्व इंद्रियां में, चौड़े ही दर्शाए । वाय बिगाड़े बोल बिगाड़े. तुझ मे दोय रहावे ए । रसना० ॥४॥ ख्याल गग तोचिना सिखाया,तुझ ने केई शात्रए । धर्भ तणा अक्षर की कहे तो तूं नट जावे ए । रसना ० ॥ ५ ॥ लपर २ बोल क्षण पल में, दे तूं राइ कराई है। पंचों में तूं काज विगादे, गांव में फूट पडाई ए। सना ॥ ६॥ लाल बाई और फूल पाई, यह दो नाम ६ थारा ए । मान बहाई की यात करीने जन्म विगाहा ए । रसना ॥ ७ ॥ पर का मम प्रकाशे तूं तो, अहोनिशि करे लपराई ए । साधु सतियों से जूं नहीं चूके, कर बुराई प रसना० || मत बोले बोले तो मोके, मन में गुम विचारी। प्रिय पोले मर्म रहित तं. मान निवारी पारसना० ॥ सन के अनुमारे बोल्या, सर्व जीव मुन्न पाए । महावीर Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०२ ) जैन सुबोध गुटका | भगवान कहे वह मोक्ष सिधांव ए ॥ रसना ॥ १० ॥ श्रसत्य और मिश्र भाषा, वीर प्रभु ने वरजी ए । चौथमल कहे सत्य व्यवहार भाषे मुनिवरजी ए ॥ रसना० - ॥ ११ ॥ २८८ शिक्षा. ( तर्ज - दादरा ) इस हराम काम बीच नफा क्या उठायगा, बदनामी के सिवाय और क्या ले जायगा || देर || नहीं वसीला वहां तेरा, जरा दिल में सोचले ! करले जो वन्दोवस्त तो बरी हो जायगा | इस ॥ १ ॥ जिसको सताया तैने वहां वो सतायगा । जिसको जलाया तेने यहां, वहां वो जलायगा । इस ॥ २ ॥ जिसको फँसाया तेने यहां, वो वहां नायगा । जिसको दबाया तैन यहां, वहां वो दवायेगा || इस || ३ || जिसको रुलाया चैन यहां वो वहां रुलायगा । जिसका दुखाया दिल यहाँ, वो वहां दुखायेगा || इम० ॥ ४ ॥ दिन चार की हैं चांदनी, फिर वोही रात हैं । किया जो काम * नेक बंद, वो पेश आयगा | इस० ॥ ५ ॥ खोलकर • दृष्टि जरा, मेरी बात को सुनो। ये चौथमल हरवार - कब, कहने को आयगा ॥ इस० ॥ ६ ॥ २८६ गफलत छोड़ (तर्ज- बनजारा :: क्यों गफलत में रहत दिवानाः । इस तन का क्या है • Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन गुबोध गुटका। (२०३) LA-AA- . AAAAream - - - ठिकाना ॥टेर || जिया दम आवे या नहीं पार, उट चला एकदम जावेजी, ना रहत किसीका रखांना ।। इस ॥ ॥१॥ गुलबदन देख घुमरावे, तू अत्तर फुलल लगावेजी टेडी पगड़ी बांध अकड़ाना इस ॥ २ ॥ गृनि हितकर बचन सुनावे, तूं जरा खौफ नहीं लायेसी, रहे कुटुम्ब बीच लिपटाना ।। इस० ॥ ॥ देखो होरा काभन मोती, सन् मुख कई अबला जोतीजी, सन घरा रहत खजाना || He ॥४॥ जिया जैसे मिट्टी का मटका, जब तक नहीं लगता ठपकाजी, तेरे भरना होसो भराना ।। इस० ॥ ५॥ मुनि चौथमल का कहना, जिया नाम प्रभु का लेनाजी, मत पुद्गल में ललचाना ।। इस० ॥६॥ २६० लोभ जवर. ' (तदादरा) लोभ जबर जगत में समको डुबो दिया। मात तान पुत्र का, नावा तुड़ा दिया ।। टेर ॥ इस लोभ की लगन में, कुछ सूझता नहीं । निजदेश छोड़ के कई, पादेश में गया । लोम० ॥१॥ करते हैं कई चाकरी, हथियार बांध के । बड़े बड़े समीर को, गुलाम कर दिया। लोग० ॥२॥ लोम से वो कोध होय, क्रोध से फिर द्रोह । द्रोह से ठी नर्क होग, शास में फया । लोम० ॥ ३॥ हो राज में Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०४ ) जैन सुबोध गुटका. | · गलतान, काका भोज के लिए । बे रहम. होके कत्ल का हुक्म लगा दिया || लोभ० ॥ ४ ॥ कई भूप छोड़ गये जमी, क्या तूं लेजायगा । सुन काका ने फिर भोज को पीछा बुला लिया || लोभ० ॥ ५ ॥ कहे चौथमल पुकार, गुरु कहना मानलो | अब धार के संते.प लोभ टालरे जिया ॥ लोभ० ॥ ६ ॥ · २६१ चेतनाभिमान.. ( तर्ज - बनजारा ) . E | ऐसे चेतन को समझाना, मत रख तनका अभिमाना || टेर || देखो सन्त कुमार था चकरी, गुल बंदन देख रहा कड़ी जी । दुख इन्द्र ने जिनको बखाना || मत रख० ॥ १ ॥ पुनः सूरन ख्याल नहीं कीना । कर रूप विप्रका लीनाजी | यह देख बहुत हुलसानां ॥ मत० ॥ २ ॥ सुनी राय मान बीच छाया, अधिक श्रंगार सजाया जी । बैठ सभा में छत्र धराना || मतः ॥ ३ ॥ गले मणी मोति येन के-हारा, सिर दूले चवर न्याराजी ॥ श्रत्र निरखो कहे महाराना || मत० ॥ ४ ॥ अहो मन मोहन, भूपाला, खूबसूरत हुश्न रसालाजी, सो देखत ही पलटाना ॥ मत ५ ॥ नृपति भेद सब पाई । तुरंत अशुचि भावना भाई जी । सुन रानियो का दिल घबराना ॥ मत ॥ ६ ॥ रमझम से चली झट दोड़ी, कहे मधुर बेन कर जोड़ी जी, मत म्हाने Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन दुबोध गुटका । (२०५) छोड़ो सुलताना । मत० ।।७॥ प्रिया.धन दोलत राजघानी, नहीं पाती संग दिवानीजी, अल्प मुखों पे नाहक बेखाना।। मंत० ॥८॥ मुनि चौथमल यं कईवे, नृप संयम मारग लेबेजी, पा फेवल मोक्ष सिधाना || मत० ॥६॥ २६२ विश्व मोह. (तजदादरा) संसार है असार तू किस पे लुभा रहा, दिन चार की बहार न. किस पं लुभा रहा ॥ टेर ॥ टेदा दुपट्टा बांधक, मिजाज छा रहा । मेरे समान और ना, ऐसा दिखा रहा ।। संसार० ॥ १ ॥ मालो-योलाद देखना, फिसाद की है जड़ | इसको किया है तर्क, मजा नहीं पारहा ।। संसार० ।। २ ।। ए दिल ! तूं किसकी याद में दिवाना बन गया । क्या कोल करके पाया था, उसको विसर रहा। संसार० ॥ ३॥ गफार ने हुकम क्या, कुरान मंदिया । जुल्मों से सात वाज, अब किसको सता रहा। ।। संसार० ॥ ४॥ गुरु हीगलाली का शिष्य चायनल मया । गा 'दादरे । के बीच में, तुमको जिना सा ॥ संसार० ॥ ५॥ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०६ ) जैन सुबोध गुंटका | २६३ शरीर नाशवान् · (तर्ज - पनजी मूंडे बोल ) : १. काया काचीरे, २ कर धर्म ध्यान में कहूं छू सांचीरें || टेर || देखी सुन्दर काया काची, जामें जीव : रह्यो राचीरे । भीतर भगार है बहार कलि, या लिजे जांचीरे ॥ काया० ||१|| इस काया का लाड़ लड़ावे, मल मल स्नान करावेरे । निरख काच में पेच झुका, पोशाक सजावेरे || काया० || २ || गुलाब मोगरा को श्रत्तर डारी, मूंछो वंट लगावेरे । केशर चंदन को तिलक लगा, सेलों में जावरे || काया० || ३ || कंठी डोरा गोप गला में, काना मोती सोहेरें । तन छाया निरखतो चाले, पर गोरी से. मोहेरे || काया० ॥ ४ ॥ सीयाला में विदाम का सीरा, ग्रीष्म भांग ठंडाईरे । चौमासा में खावे मिठाई, बाग में जा रे || काया ||५|| इष्ट कन्त रत्न करिन्डिया ज्यू. रखे ! शीत लग जावेरे । चाहे जितना करो यतन यह नहीं रहावेरे || काया० || ६ || सन्त कुमार चक्रवर्ती की प्यारी देह पलटारे । काया के वश वन का हाथी, दुःख उठावेरे ॥ काया ० || ७ || इस काया का क्या विश्वास पानी बीच पताशारे । होली जैसे देवे. फूंक, जावे जब श्वासारे || काया० ॥ ८ ॥ उत्तम मनुष्य की काया ऐसी, फिर. मिले कब पाछीरे । दया दान तप करणी करले, या ही आच्छी रे || काया० ॥ ६ ॥ उन्नी से बहोत्तर वसन्त पञ्चमी, [ a Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन मुबोध गुट (२०७) JAN+Amirmana v ar बालोतरा के मांहीरे | गुरु प्रसादे चौधगल यह, जोड़ बनाईरे । काया० ॥ १० ॥ MeGo २६४ सप्त व्यसन निषेध. (तर्ज दादरा) . यह सातों व्यसन वपुत बुरे तर्क तो करोपा अमोल जन्म जरा ध्यान तो घरो० ॥ टेर । जुना का ख्याल टाल मान कहन तो खरो । शराब खराब प्याला भूल न भरो || सातों ॥१॥ मांग को अमन जान शीघ्र पर हरो । वैश्या जो नार धनकी यार दर से टरो ॥ माता । ॥२॥ प्राणी को समझ प्राण सम शिकार पर हक चोर को कठोर समझ के टरो ॥ सातो० ॥ ३ पर नार त्याग वीतराग भाव ने करो। गुरू.हीरालाल प्रसाद चौथ. मल कहें तिगे ॥४॥ २६५ बाल्यावस्था.. .. (तर्ज-जसोदा मैया श्रय ना घराज नेरी गा) मोरा दे गया. प्यारा लगे तेरा या टेर। मस्तक मुकुट कानों युग कुण्डल । तिलक ललाट लगेगा। रतन यांगनिए रम मम खेले । त्रिलोकी के रिमा रिमा Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०८) जैन सुशेध गुटवा । मैया वाला लगे तेरा जैया ॥ मोरा ॥ १॥ कोई इंद्राणी प्रभु को खिलावे । कोई एक ताल बजैया । कोईक नृत्य करे प्रभु भागल, नाचे ताता थैया ।। मोरादे० ॥ २ ॥ छुम छुम छुम छुम बाजे धूंधरा, छुम छुम पांव धरैया । द्रव्य । खल खली ने होगये, श्रातम खेल खिलैया ।। मोरा० ॥ ३ ।। सबसे पहिले निज जननी को,शिवपुर बीव पढ़या। चौथमल कहे नित्य उठ ध्यावो:। ऐसे ऋपम कन्हैया । कन्हैया भैया प्यारा० ॥ मोरादे० ॥ ४॥ २९६ नींद छोड़ो. . (तर्ज-दादरा) सोए हो किस नींद में, उठो होस सम्हारो ॥ टेर।। कहां राम और लक्ष्मण, कहां लंका के सिरदारों । कहां गर्वी है वह कंश, कहां कृष्ण अवतारो । सोए० ॥ १ ॥ ख्वाब के मानिंद जहां, झूठ पसारो । सब ठाट पड़ा रह जायगा, जरा चश्म उघारो ॥ सोए० ॥ २॥ कोई गरीव जीव की मत जान को मारो। वो मालिक है जुल जलाल, नरा दिल में विचारो ॥ साए ॥३॥ चलना है तुमको यहां से सोंचलों पियारों। यहां मुल्क है वेगाना जहां कौन तुम्हारो ।। सोए० ॥ ४॥ पूछेगा संभी हाल; क्या कहोगे विचारो। चुप चाप ही बनोगे वहां कौन को Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ল বাশ । (२०१) सहारो। इसलिये कर दया धर्म, आत्मा नारी । कई चौथमल जिन्दगी को, अब तो सुधारी ॥ ५ ॥ and . २६ हंस काया संवाद. (तर्ज-धो उमराय यारी सूरत प्यारी लागे मांजगज) काया कर जोड़ी कहरे, सुन व्हाला मुभ-वात । बाल पना की प्रीतडीरे, मत छोड़ो मुझ सात हो हंसराजाथांमु न्यारी में नहीं रहसा म्हारा राज ॥ ईसराजनी हो प्याराजी ।॥ १ ॥ध मांही जैसे घी बसेरे, फूल में बसे सुगन्ध । ज्यं म्हारा तन में बसोरे, तिल में नेल सम्बन्ध । हो हंसराज वर जोड़ी को न्याय विचारो म्हारा राज हंसराजनी हो० ॥२॥ विन प्यारा, प्यारी किसीरे, चंद्र, विना ज्यू रेन । साप बिना आदर नहींरे, कोई न राखे रोन, मो सराज मेरी विनतड़ी अवधारो म्हारा राज ।। हंसराजजी होम्हागराज।।३॥ सुन्दर सेजां बीचोरे, की धी परत किलोल । नेनों से शांमु गिरे मुख से सने न बोल हो जीवराज तुमने मुझसे मरजी उतारी म्हारा राज ।। हंगराजजी हो० ॥४॥ वन कहे गुन सुन्दरी रे, मेरे तुम प्रीत । स्वमा में छोटनहारे मन में बात चीत । हे मुन पारी काल के भागे न जोर हमारो म्हारा राज | हंसराजनी ॥ ५ ॥ कान री माने नहीर खानी में नहीं नन। Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ rrrrrrrrrn mmswwmwwwamrammamwamme , (२१०) ... जैन सुबोध गुटका । चिन्ता है इस बात कीरे, पर भव मोटो पंथ ॥ हो सुन सुन्दर इसमें सलाह कहो क्या थारी म्हांका राज |सगजजी० ॥६॥ इस तन से सुन साहिबारे तिरिया जीव अनन्त । जप तर करनी तुम करोरे, सेवो गुरु निग्रंथ ॥ हो हंसराज यह नर कर्तव्य मैं बतलायो म्होका राज ।। हंसराजजी हो० ॥७॥ पहले तो सुध थी नहारे, तेरे मोह में लाग। भोगों में फंसियो हुओरे देखा ख्याल सुना राग । हो सुन्दर थारी मनकी मौजों किनी म्हांका राज ॥ हंसराजजी० ॥ ८ ॥ धर्म करता नहीं नटीरे, फिर भी कहूं हजूर । पीछे खेती नीरजेरे तब भी दारिद्र दूर । हो हंसराज पारा वृथा दोप मत दीजे म्हाका राज ॥ हंसराजजी हो० ॥६॥ अपि हैं. जहां तक मैं रहूंरे फिर बल जल होती खाक । झूठी जो इसमें हुए तो लोक भरे मेरी साख । हो हंसराज़ यो सती को धर्म बतायो म्हांका राज ।। हंसराजजी ॥१०. जीव तणा संकल्प समीरे, काया बोले नाय । चौथमल या चोच लगाई दीवी ..सभामें गाय:। हो हंसराज तुझको ज्यूं. यूं कर समझावा म्हांका राज ॥ हंसराज जी० ॥ ११ ॥ २६८ क्षमा याचना, तज-दादरा) .. · : कसूर मेग माफ, करो गुनहगार हूं । टेर ॥ छाया है जोश मोह का, कुछ दिखता नहीं । दरदी को खबर नाह Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जनाची गुटका A . y रहे. करती पुकार हूँ ॥ कसूर० ॥ १॥ जोर मेरा नहीं चले. दिल मानता नहीं । जो कुछ कहे तो यह कहें, में तो लाचार हूं। सूर० ॥२॥ हाजिर हे सर्व धन सेज इरन श्राप के। चाहे मान चाहे तान मैं अबला नार हूं ।। कसूर ॥शा करके महरवानी मेरी बात को सुनो । चरन गिलं हाथ जोड़ तांदार हूं। कमर० ॥ ४ ॥ कह चौथमल जसे प्यारी अर्ज यह करे । घर रहो चाहे बन रहो संग में तयार । कसूर० ॥५॥ २६६ ब्रह्मचर्य पालने का उपाय. (त-घड़ी मुशकिल कठिन फीरी) जो ब्रह्मचर्य धरता है, तो उसका चंदा पार है ।।टेर।। महावीर स्वामी फरमाचे, शील तगी ना यालाये, स्त्री पशु पंडग वहां रहावे, वहां से नहीं मागचारी, विनी चूहा डरता है ।। जो० ॥१॥ कथा करे नहीं नार की प्यारी, निम्य इमली न्याय विचारी, बैटे स्त्री, दे टारी, घृत श्रमि के अनुसार है, नहीं फो जरा पड़ना है ।। जो. ॥ २ ॥ त्रियाः तन को नहीं निहारे, करे नैन j सूर्य से टारे, पेचान्तर सो नर नारे, मानु जैसे मेघ गुमार है, गुन मयूर नृत्य करता है जो० ॥६॥पूर्व काम नहीं चिन्ते लगारी। पढाइ छार न्याय उरधारी । वनीट मद Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१२) . जैन सुबोध गुटका । mmmmmmmmmmmmnaramanmarammaraan na नित्य देत निवारी, ज्यू रोगी का करत विनाश है, नहीं नफ़्स कभी मरता है।जो०॥४॥शीत भोजन अति न खावे, ज्यूं छोटी हंडी फटजाव, तन स्नान शोभा नहीं चावे, नहीं सजता तन श्रङ्गार है, रंक रत्न.न्याय वरता है। जो०॥॥ प्रश्न व्याकरण सम्बर जाहरी, वृत्तीस उपमा हेगी भारी,व्रत में दुश्कर-दुश्कर कारी, वह स्वयंभूरमण से : पार है, रही गंगा तुरत तिरता है । जो० ॥ ६॥ उन्नीसे बहत्तर का साल है, पालनपुर चौमासा रसाल है, गुरु मेरे हीरालाल है, कहे चौथमल श्रेयकार है, तो सर्व कार्य सरता है । जो० ॥ ७॥ . ३०० सुअवसर... । . . . . . (तर्ज दादरा) ... ___यह मनुष्य जन्म पुन्य योग से मिला सरे । तप संयम को आराध क्यों नहीं मोक्षःको वरे टेर-जो स्वर्ग बीच देव सोविपियों में मग्न है। न त्यागः धर्म उनसे हो चित्त, अप्पसरा हरे । मनुष्य०॥ १॥ हैवान तो.विवेक हीन, दीन से फिरे। घास पानी के लिये वो घूमते फिरे ।। मनुष्य०-२| कर कर के जुल्म खूब जाय:नके में-परे। भोग सदैव दुःख वो धर्म क्या करे ।। मनुष्य० ॥३॥ ऐसा अमोल वस्त पा जो भोग में फंसे । कञ्चन की थाल वीच जैसे, धूल शठ भरे ॥ मनु०॥ ४॥ जिगर के चश्म खोल, तोल बात सही को। Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन योषा | कहे चौथमल इस देह से, अनन्त जी तरे ॥ मनुष्य० ॥५॥ 109 ३०१ दया दिग्दर्शन. ( तजे लावनी अष्टपदी ) / २१३ ) दया को पाले है बुद्धिवान, दया में क्या समझे हैवान ॥ टेक ॥ प्रथम तो जैन धर्म मांही, चौवीस जिनराज हुए भाई, मुख्य जिन दया ही बतलाई, दया दिन धर्म को नांई ॥दोहा॥ धर्म रुची करुणा करी, नेमनाथ महाराज | मेघरथ राजा परेवा शरणे, रख कर सान्या काज ॥ हुए श्री शांतिनाथ भगवान । दया पाले हैं || १ || दूसरा विष्णु मत भुंकार, हुए श्रीकृार्दिक अवतार, गीत और भागवत कोनी और पेड़ों में दया लोनी || दोहा || दया सीखो पुन्य नहीं, अहिंसा परमोध | सर्व मत थोर सर्व ग्रंथ में, यही धर्म का मर्म || देखलो निकाल घर ध्यान, दया को पाले || २ || तीसरा मत हैं मुसलमान | खोल के देखो उनकी कुरान, रहम नहीं हो जिसके दिल दरम्यान उनीको स्ट्रीम लो जान || दोहा || कहते महमद मुस्तफा, सुन लेना इन्सान | दुख देवेगा किसी जीव को गोदी दोजख को खान | गार जहां मुद्गल की पहचान || दया० ॥ ३ ॥ है उसी मत ताई, कि जिस में जीव दया नाहीं | जीव रक्षा में पाप कहेबे, दुख दुर्गा का सहये || दोहा ॥ मा हग २ चनन है, देखो | सूत्र राजाने नहीं मुख्य Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१४) जैन सुबोध गुटका। खाली करें झकझोल || कहो चातुर कहें के अज्ञान, दया कों .. पाले है बुद्धिवान ।। ४ ॥ तीनों मजहब के कह दिये हाल, इसी पै करलेना तुम ख्याल | दो अब कुगुरु का संग टाल, बनो तुम षट् काया प्रतिपाल ॥ दोहा || गुरु होरालालजी हुक्म से, नाथदुआरा मांय, किया चौमासा चौथमल, उन्नीसे साठ में आय । सुन के जीवरक्षा करो गुणवान ।। दया० ॥ ५ ॥ nyasin___३०२ वीर कर्तव्य. . ' (तर्ज-दादरा) ___ जो धर्म वीर पुरुष है, वह धर्म को करे । उठाके पैर आगे को, पीछे नहीं फिरे ।। टेक ।। तन धन इज्जतं सर्व एक, धर्म के लिये। करते रहे प्रचार न, किसी से वे डरे । जो० ॥१॥ अार्य के जो हीरे वह, पत्थर से कब दबे । न हटते रणं के बीच हो शूग्मा र ॥ जो० ॥ २ ॥ दुश्मन को पीठ दीष्टं परनारी को न दे। ये वस्तु देते नहीं, और दातार में खरें ।। जो० ॥३॥ मर्द दद न गिने परोपकार को। नामर्द से उम्मेद, कहो कौन . तो करे ।। जो० ॥ ४ ॥ गर गंगा जा उलंट, आग शीत उर धेरे । ऐसा न होय होय, तो भी सत्य नहीं टरें ।। जो०॥५॥ महाराज हरिश्चन्द्र वा, अर्णक को देखलो । धर्म ग्रंथ वीच नाम, उनका है सरे ।।.जो० ॥ ॥ ६ ॥ कहे चौथमल जन्म लेना, उनका श्रेष्ट है । वाकी तो भूमि भार, मनुष्यं मृगसा चरे ।। जो ॥ ७॥" -sxits-' ' . . Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन गुषोध गटका। (२१५) .... .............. ३०३ सुगोग. (तर्जनपदी लादनी) मुगुरु संग धार धारे धार, गुरु संग टार टाररे टार ॥ टेक ॥ मनुष्य को जन्म अमोलक पाय, अरे चाता मत पहल गमाय । हाथ से बाजी तेग जाय, जिनन्द गुण गाना हो तो पर गाय ॥ दोहा । वरून अमोलक पायक, मत हो मित्र अचेत । गफलत में मत रहो गत दिन, काल मपटा देत ॥ माह की नींद निधार निवार || सुगुम । ॥१॥ मति तेरी गुरु दिनी विग इ, कोतुं हिमा २० का लाड़ । दीनी तेने शिव सुन्दर को नाइ, बोल्या तेने दुर्गति के किवाड़ ॥दोहा॥ अनन्त काल तो खोया हस विधि, फर गंवाय एम । अमृन छोड़ जहर को खांब, केस उपजे सम । सपर नहीं पड़ती तुझे लगार ।। मुगरु० ॥ मगर मस्त होके तूं फिरता, जुल्म करने से नहीं डरना, गरीबों की टवा करता, सत्य उपदेश नहीं धान ॥ तं जाने में बड़ा चतर हूं, मेरे सिवाय नहीं और जिन धर्म को मर्म न पायो, मोटोरको टोर ॥ तस्या नहीं क्रोध मान अहंकार || मुगुरु ॥ ३॥ धर्म को नहीं पहनने मृध नर अपनी ताने है | जैन की रहस्स में जाने, मिथ्या मत में मामाने है ॥ दोहा । तर मान बजे में पाव, पिन खो नहीं पाए । मन ना कोई रिला लेगए, छाछ जगत भरमार । ममन यू बोगी गुमर Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१६) जैन सुबोध गुटका । - ॥ सुगुरु० ॥ ४ ॥ मेरे आनन्द का दिन आया, दर्श जिनपर का मैं पाया, हुआ सत्र कार्य मन चाया, मिली मुझे समकित की माया ॥ दोहा । उन्नीसे सट साल में, कानोड़ चौमासो ठाय, गरुं हीरालाल प्रसाद चौथमल, जोड़ सभा में गाय खोजना करों अरे नर नार ।। सुगरुक ३०४ कर्म . (तर्ज-दादरा) अजब तमाशा. कर्म संग, जीव यह करे । नशेके बीच होके, जैसे सूझ ना परे ॥ टेक । कभी तोराजा होके, शीश छत्र यह घरे । कभी मुहताज होय दर, मांगता फिरे ॥ अजब० ॥ १॥ जो देव हुा सामने, नृत अप्सरा करे। कभी हार वनी पुष्पका, सुन्दर के मन हरे ।। अजय ॥ २॥ कभी तो हीरा होके, कनक बीच में जड़े । कभी तो वैर होके दवा, जूतों के तले ।। अजय ॥ ३॥ सेठ होके नाम किया मुल्क में सरे। कभी गुलाम होय, देखो नीर यह भरे ॥ अजव०॥४॥ कमी.हुआ बलवान, कभी हो निवल...डरे । . कहे चौथमल निजरूप, सुमरने से दुख ढरे । अजब ॥ ५॥ ... ३०५ सखा : (तर्ज-भर भर जाम पिलाओं गुल लाला बना के मतवाला) ' एक धर्म साथ में श्रावेरे चेतन, धर्म साथ में आय Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 .mom- - -- - --- मन मुबोध सुटका । (२१७) ।। टर | राज तख्त और भरा खजाना,सभी धरा हजाग। घर को नारी प्रान से प्यारी, यह भी साथ नहीं . साय क० ॥१॥दर्पन में मुख निरस २ क, इल सो मन मांय ।हान मांस मल मूत्र को थलो, पाखि विनशी जाय । एक धर्म ॥२॥ माईबंध और कुटुम्ब के खातिर, क्यों तूं कर्म कमाय । शमसान भूमि तक छाहे, परव मित्र के न्याय ॥ एक०॥३॥ हीर पन्न के कंटे पहन के. मोटर माय । श्रांग पीछे मरना तुमका, मोहन भोगांचर काय ।। एक० ॥४॥ राजा राना छरपति के, कोई साथ नहीं याय । सच्चा मित्र धर्म है जीया, परभव में सुखदाय ।। एक० ॥५॥ रजन शहर में साल गुएयासी । किया चौमालो धाय । चौधमल उपदेश सुनावे, लुगा मएड़ी के माय ।। एक.. ॥६॥ • ३०६ कलियुग की करतूत, - (तर्ज-समं पा सय को मुनाय जायंगे ) कैसा भाया या कलियुग भागेरे ॥ टेर॥ वार्षिक को जोर, घर में घमकावें । वादि धम महनारी कैसा ॥१॥ लड़की के धन मे, पेली भगवे जह उरावे, जाति सारीरे सा२॥ लगने लगी में चोल है हंस हंस, सेना की भक्ति विसारी सा ॥ ॥३॥ दया दान से दूर भी है। इट मनीति लगे पारी Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१८) जैन सुवोध गुटका । रे॥ कैसा ॥ ४॥ निज कुटुम्ब से रक्खे लड़ाई, करे वेश्या परनारी से यारीरे ॥ कैसा० ॥ ५॥ कोट पतलून पहन. सिगरेट पीवे । संग कुत्ते ले खेले शिकारीरे॥ कैसा ॥ ६ ॥ अधर्मी तो तप जप माला को फेरे, ऊंचं बने अनाचारीरे ।। कैसा० ॥ ७ ॥ शेर का गीदड़, गीदड़ का शेर वन, वीर अधीयता धारीरे ।। कैसा० ॥८॥ चौथ मल कहे पापियों के कलियुग, ज्ञानियों के सतयुग त्रिकारीरे ।। कैसा० ॥६॥ ३०७ कंजूम . (तर्ज-में तो मारवाड़ को बनियो) - मैं तो मुजी साहुकार, पैसा खरचु नहीं लगार ॥टेर।। साधु संत के कबहूं न जाऊं, वे कहे वारंवार । सुकृत करलो लाभ लूटलो, मुनता जागे खार ॥ मैं० ॥१॥ दूध दही कवहूं नहीं खाऊं, जो खाऊं-तो छ छ । एक वस्त जो वस्त्र पहनूं, वर्षे चलाऊ पांच ।। मैं ॥ २ ॥, मूंजी के घर व्याह रच्यो जब, त्रिया को समझावे. घर की मिल सब गीत गायलो, सोपारियां. बच जावे ॥ मैं०॥-३ ।। मरूं तो सिखला जाऊं कुटुम्ब को, दान पुण्य नहीं करना । नहीं खाना और नहीं खिलाना, जौड़ जमी बीच धरना मैं ॥ ४॥ कौड़ी २ संचय कर सब पर भव में लू लार गुरु प्रसादें चौथमल कहे, ऐसी लीधी धार ।। मैं ॥५॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका | ३०८ पाप से छुटका. (तर्ज- तरकारी तो मालन शहरे बीकानेर की ) (२६६) इस पाप कर्म से, किस विधहोसीरे थारो को || टेर || शिकार खेलतो फिरे रात दिन, रंच दवा नहीं लावे | बोले झूठ जहां पानी बतावे, कादो भी नहीं पाये || इस० ॥ १ ॥ चोरी करे हरे पर धन को नहीं खौफ राम को लावे | परनारी को रूप देख, धारी नीत भ्रष्ट होजावे || इस० || २ || करे परिग्रह संचय तूं तो करी क्रोध अभिमान | छल से छले लोभ के कारण सुने न शिक्षा कान || इस० || ३ || राग द्वेष के वश हो प्राणी, निय को कलह मचावे | तोमत घरे गैर के शिर पे, लुगली पर की खावे || इस० || ४ || पर अपवाद बड़े तूं निश दिन, हो धरम में राजी | रति धर्म में माया मृपा, बने मिथ्यात में माजी || इस० ॥ ५ ॥ सुन्दर रसोई बनाके भाई, जैसे जहर मिलावे | जिसे बाद परगमें तन में, फेल वही पछतावे || इस० || ६ || मारवाड़ में शहर सादी, साल कपास यावे | गुरु प्रसादे चौथमल कड़े पाप, बजे तिर जाये || इस० ॥ ७ ॥ Sar ३०६ यहीं की सप पाते. ( तर्ज पर नयोस ) यांदी की यांदी की बातें करे सब आगे का करने Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२०) जैन सुबोध गुटका । जिकर ही नहीं। आगे का सामां विना ए दिला ! तेरा होने का हरगिज गुजर ही नहीं ॥टेर ॥ मैंने लाखों का माल कमाय लिया, मैंने बाग में महल झुकाय दिया। मैंने क्रोड़पति घर व्याह किया, मेरे जैसा जहां में वशर ही नहीं ॥ यांही० ॥ १ ॥ मने पासा सजा है यह गुल बदन, मैं तो देखुं जिसदम ले दरपन । मेरा दिल होजाता है भरके चसन, मेर सामने तू किस कदर ही नहीं। याही।। ॥ २ ॥ मैं जो कुछ कहूं मेरा माने वचन, मेरे कितने ही न्याती और कितने सजन । मैं आलिम मैं फाजिल में जानूं हरफन, मेरे बिन किसकी होती कदर ही नहीं ॥ यांहीं ॥३॥ वहादुर हाकिम मैं राजा सही । मेरे 'धन है जितना किसी के नहीं। मैंने जीते हैं जहां तहा युद्ध कई, मेरा जता निशाना टल ही नहीं। यही॥ ॥ ४ ॥ ए गाफिल तू गफलत में सोता पड़ा, खाली घातों में लो क्या हेगा धरा । तेने अपना फरज अदा न किया चौथमल कहे वहां चाची का घर ही नहीं ।। यहां ॥ ५॥ ३१० मत्सरता त्याज्य. (तर्ज-पंजी मुंडे बोल) दूर हटाओ जी २ मत्सरता दिल से जो सुख चाहो जी।। टेर ॥ मत्सरता कर आपस में, मत वैर विरोध Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MINARose जन मुदोष गुटरा बढ़ायो जी। मत्सरता को देश बटो दे प्रेम बढ़ाया जी ।। दुर० ॥ १ ॥ देखी सुखी और के ताई, तुम प्रसन्न हो जावोजी । गुण ग्राही हा गुणी पुरुप का, तुम गाणु गाथाजी ।। दृ०॥२॥ दया धर्म जो कोई दीपाय, तुम सामिल हो जानोजी । उत्तम कार्य का विरोधी बन गत धका लगायो जी ।। दुर० ॥३॥ मत्ार परियो कौरव पाण्डव से, चाया राज्य लुड़ावा जी । जीत हुई पाण्डव की परयो, कारख पछतावानी ।। दृर० ॥ ४॥ पीठ महापीठ मुनि हृदय में, लायं मत्सर भायोनी । नाही सुन्दरी चनी ध्यान, इन ऊस लामोजी ।। दुर० ॥ ५॥ मारवाड़ में शहर मादड़ी, हुयो इक्यासी श्रावोजी। गरु प्रसाद चौथमल कडे, पाप हटायोनी ।। दुर० ॥ ६ ॥ ११ ध्यानादर्श. (तई-तरकारी यो मालन ) गुन मनुश्शा मेरा, ध्यान लगायो ऐसा देश से टि। ज्यू पनिहारी सर जल लाये, करे पान लगाई। नाली लगावे दोनों करम, ध्यान गगरिया मांही । सुन० ॥१॥ जैसे गैया रे विपिन में, शरत चरिमा मांही पनिकता का चिच पनि में, कमी पिसानी नाही ॥ मु ॥२॥ मानी का चित्त रहे पान में, गी नित निगालोमी Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : (.२२२.) जैन सुबोध गुटका। के मन धन धान्य ज्यू, भोगी के मन भोगरे । सुन० ॥ ॥ ३ ॥ कम्पित काच बीच में देखो, सूरत नजर नहीं . श्रावे । ऐसे मन चंचल भोगों में, प्रभु नजर नहीं आवेरे .॥ सुन० ॥४॥. पदमासन कर हाथ मिला, नासाग्र दृष्टि लगावे। ओष्ठः बन्ध कर. मन में बोले, निजानन्दः मिल जोवरे ॥ सुन० ॥.५ ॥ मारवाड़ ..में शहर सादड़ी, साल इक्यासी आवे ! गुरु प्रसादे चौथमल कहे, ज्योति में ज्योति . समावरे ॥ सुन० ॥ ६॥.. .. . .. wism. ३१२ राजुल का सखी से कहना..." ": । (तर्ज-अम्मा मुझे छोटी सी टोपी दिलादे) . .' . सखी गिरनारी की राह बतादे, “राह बतादे, चल के दिखादे । एरी मेरे बालम से प्लुझको मिलादे । टेर। मैं नव भव की रानी, प्रीत पुरानी, फिर गये क्यों उनको जितादे ॥सखी०॥।॥ पशु की बानी पे करुणा जोआनी, उस श्याम को यहां पे बुलादे॥सखी०॥२ ।। आर्जका बनूंगी, दर्शन करूंगी, और बातों को दूर हटादे ॥ सखी० ॥ ३॥ राजुल को तारी, वरी शीव नारी, चौथमल को भी. मोक्ष दिखादे सखी० ॥४॥... . .. . .. .. ... .' _ . . . . . . ३१.३ विषय परिणाम :: : : , (तर्ज-यह कैसे बाल विखरे है, क्यों सूरत बनी गम की.) .. फंसा जो ऐश के फन्दे, नहीं पाराम पाया है। मगर.. Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन मुशोर गुट (९९३) थाराम के बदले, तदफते दिन बिताया है ॥टर ॥ युला ललितांग को रानी, बिठाया सेज के अन्दर । बड़ी मुहन्धन से शाई पेश, किया जो दिल में चाया है । मा० ॥१॥ श्राया नृपति उसदम, उदाजी होश दोनों का किराने का कही प्यारी, सण्डासे में गिराया है। सा० ॥२॥ ऊंच पांव नीचा सर.फंसा वह तरह उसमें । वहा सीने पे मल मृत्र, फार उच्छिष्ट खाया है । फंसा० ॥शा रहा ना माय वहां पे, हुश्न साग मुरझाया है।हुई बरसाद पानी की निकल नाली में पाया है।। फंसा || पिता सुन लेगया उसको, तनुन यह जानके अपना । करीफिर पावरिश उसको,बदन सुन्दर बनाया है। फंसा ॥ ५॥ट कही यश्च पनिकला, पुनः रानी बुलाया है। मगर जाता नहीं क्योंकि,रंज वहां पर ऊठाया है ॥ फंसा० ॥ ६ ॥ लिया गू गर्भ में वासा, तना तुम भोग की भाशा, चौथमल कहे कवर जम्न न नारी को सुनाया है। ३१४ संबोधन परदेशीको. (त-निहारी) विषम वाट उलंघ ने परदेशी जो। पागो नर बन शहर परदेशी । योग मिल्यो सन्मंग की परदेशी को। पिलम्ब करे मन फेर परदेशी ॥१॥ ना धन बनाता Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२४) जैन सोध गुटका । कई परदेशी लो । नर तन शहर में प्राय परदेशी । उलट पुलट कई होगया परदेशी लो, तूं मत जाना ठगाय परदेशी ॥ २ ॥ मंहगी मानव कोटड़ी, परदेशी लो । लीवी सदर बाजार परदेशी । समय कमाई को मिल्यो परदेशी लो । तूं सोया टांग पसार परदेशी ॥३॥ मत खो पूंजी मूनकी परदेशी लो, लेखो लेगा सेठ परदेशी धर्म धन करो चौगुना परदेशी लो । जमें सवाई पेठ परदेशी ॥ ४ ॥ चौथमल शिक्षा करे परदेशी लो । साल इक्यासी माय परदेशी। मारवाड़ में सादड़ी परदेशी लो। कियो चौम सो आय परदेशी ॥५॥ ३१५ मोहफन्द से बचना. . (सर्ज-ना छेड़ो, गाली दूंगारे भरवादो मोय नीर) . मत पड़ मोहनी के फन्द मेरे, तं मान मानः मान बोटेर।। जो मोहनी के फन्द में आया । वह पूरा फिर पछताय।। रावण ने राज्य गंवायारे ॥ तूं० ॥ १ ॥ जाने माया भेरी । की कमा कमा कर मेरी । पर साथ चले नहीं तेरीरे तूं मान० ॥ २ ॥ सुन्दर देखी काया। तेने इतर फूलेल लगाया। पर है वादल.ज्यूं-छ'यारे दूं।। ३.।। सज, सोलह शृंगारा । फिर बार करे नखरारा । तूं मत लागो. इस चारारे तूं० ॥ ४॥ जो मोह के फन्द में अासी । तुझे Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन गयो गुटका। (०२५.) चन्दर तरह नचासी । फिर लोग कर तरी हासीरे नू० ॥५॥ यह चौथमल जितलावे | तज मोह प्रभु गुग गाये, तो धावागमन मिट जावरे ।। तूं० ॥ ६ ॥ यह मारवाड़ के माई । सादड़ी में जोड़ बनाई, इक्यासी स ल सुनार तूं० ॥ ७ ॥ ३१६ कृतयुगादर्श, (तर्ज-पयांधी यद संभलाय, मधुर स्वर ) केसा पाया यह काल, राजन सा पाया यह काल ॥टेर ।। बेटा वा बहिन भानजी । पाप घर निहाल ॥ सजन० ॥१॥ हाथ उधार लई नट जावे । उलटी देर गाल ।। सज्जन० ॥ २॥ धर्म हेत पैसा नहीं खरने, दुप्कृत में दे माल || मज्जन० ॥ ३ ॥ उत्तम घर नारी नाश । वेश्या से खुश हाल | सज्जन ॥ ४॥ बटी का पैसा ले ले कर पनते हुण्डीवाल || सान ॥ ५ ॥ चौधमल उपदेश मुनाद । देखी जग की चाल सिजन०॥ ॥६॥ मारवाड़ में शहर सादड़ी। भाग एक्यामी गाल।। ससन० ॥७॥ ३१७ जीवात्मा को ज्ञान, (तर्ज-तरकारी लता मासिन शार पोपानर ) सेलानी जीवदामों न माया माचा लाज मानना Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२६ ) जैन सुबोध गुटका | देखी गेरी फूल गुलाबी, जिस पे तूं ललचावं । मगर युवानी कल दल जावे, जैसे फूल कुम्हलावेरे ॥ सेलानी० ॥ ॥ १ ॥ झूठ कपट कर माल कमाई, ऊंचा महल झुकाया । श्रोड़ दुशाला सोवे सेज में, मान वदन में छायारे || सेलानी० || २ || मुख में पान गले विच गहना, जब घड़ी लटकावे । शिर टेड़ी पघड़ी चाले अकड़ी, फूला अंग नहीं मांवेरे || सेलानी ० || ३ || सज श्रंगारी सुन्दर नारी तेरे श्राज्ञाकारी । सम्पति देखी कर तू सेखी, ताके पर की नारीरे ॥ | सलानी ||४|| हुए भ्रा हजारी छत्र धारी, पाण्डव से तपकारी | बादल छाया ज्यूं विरलाया, रावण सा चलकारीरे ॥ सेलानी० || ५ || निकले श्वासा हो वनवासा, चले साथ नहीं कौरी । छीने भूषण बना नगन तन, फूंकगा ज्यू होरी रे || सेलानी० ॥ ६ ॥ एम विमासी, तज मोह फासी, भजले तू शिव वासी । गुरु प्रसाद चौथमल ये सत् शिक्षा प्रकाशीरे ॥ सेज्ञानी० ॥ ७ ॥ ३१८ भक्त प्रार्थना. ( अम्मा मुझे छोटीसी टोपी दिलादे ) प्रभु मुझे मुक्ति के मार्ग लगादो । मार्ग लगादो पाप हा हां मुझे आपकी राह बता दो || ढेर || अर्ज करूं मैं पैया परूं मैं, भव सागर से जल्दी तिरादो || प्रभु० ॥ १ ॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोप गुटपा। (२२७) ...raneerutra. माह का फन्दा, काट जिनन्दा, जालीम का ग मृग को चचादो ॥ प्रभु० ॥ २ ॥ प्रशला का जया, पकरके या. खास शिवपुर में मुझको पहुंचादी ॥ प्रभु० ॥ ३॥ नृ तारन तिग्न है, तेरी शरन है। हां चौथमल को सही बनादो । प्रभु० ॥ ४॥ ३१६ महावीर प्रम से अमी. (~ना देशोगानी दंगा भरवायो माप निर) पापा से मुड़ादार, नशलाका लाइला टेर नही स्वामी अन्तरवामी, सारे जगत में नामी नहीं किंचित तुझ में स्वामीरे वशता फा० ॥१॥.मी नामा शिव गुरारी, तूं ही जगदीश जयकारी । नेश सम्म मोहन गारीरे प्रशला ॥२॥त ही मधम उधारन पायन, गन पकड़ा तग दामन नही मिला मोक्ष पानावर शला ॥३॥ गू चौथमल गुण गाये, नित मन बच्छिन मुख पाये, मेरे दिल में ही रामावर ।। शेला०॥४॥ ३२० देश सुधार. (तपयांधी या माता मधुर गर) लीने देश गुधार, मिज सुब तीन दंग सुधार टिगा भनाया तीस फरक, पार विद्या प्रसार || Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२८) जैन सुबोध गुटका। वैर विरोध तजी आपस में, सम्प करो हितकार ॥ मिल० ॥२॥ गिन्ती बढ़ी विधवा की ज्यादा, कन्या विक्रय निवार || मिल० ॥३॥ बेटी घर पानी नहीं पीते । अब ले वीस हजार ॥ मिल० ॥ ४॥ गर्भ पात से दुष्कृत होते, फैल गया व्यभिचार ॥ मिल० ॥५॥ चौथमल कहे अब नहीं चतो, तो डूबो मंझधार ॥ मिल० ॥६॥ ३२१ अभिमान त्याज्य. [तज-तरकारी ले लो मालिन आई है बीकानेर की ] अभिमानी प्रानी, डरतो लाओरे जरा राम को टेर।। योवन धन में हो मदमादा, कणगट ज्यू रंग आणे । तेरे हित की बात कहे तो, क्यों त उलटी तानेरे । अभिमानी ॥ १ ॥ कन्या.बेची, धन लियो एंची, बात करे तूं पेची। मुरदा को ले कफन खेची, हृदे कपट की कैंचीरे । अभिमानी॥ ॥२॥ घर का टंटा डाल न्याति में, तूं तो धड़ा नखावे । अापस वीच लड़ा लोगों ने,सदर पंच बन जावेरे।।अभिमानी०॥ ॥३॥धर्म ध्यान की कहे वतावे, हम को फुरसत नाही। नाटक गोठ व्याह शादी में,देतूं दिवस विताइअभिमानी ॥४॥ उपकार कियो नहीं किसी के ऊार, खा खा तन फुलावे। हीरा जैसा मनुष्य जन्म ने, क्यों तूं घृथा गंवावरे। अभिमानी० ॥ ४ ॥ मारवाड़ में शहर सादड़ी, साल इक्यासी Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जग गुरोध गका (२२६) माहीं । गुरु प्रसाद चौथमल, श्रावण में जोड़ बनाईरे । साम मानी० ॥६॥ ३२२ मान निध. [नर्ड-सयाल की मान मत करना कोई इन्सान, मान से होता है नक. सान ।। टेर ।। क्रिया मान दशारण भद्र, इन्द्र उतारा यान । मुनि ने इन्द्र वही फिर, नमा चरग दरम्यान || मान॥ ॥२॥ श्याण न मानी बाहरलीजी, निज धान की जान। पि होय अहंकार तजा जब, लीना कपलशन || मान Iराकानक शंभृग चक्रवर्ती ने कीना था अभिमान बिठी सातवीं गये नर्क में, छत्रधारी मान || मान ॥३॥ मानन ज्ञान, ज्ञान दिन ध्यान, ध्यान बिना शिव स्थान हगगन मिलने का नाही,मुन जो चतुर सुजान || मानसामान से कोप, कोप से द्रोह, द्रोह नरक की खान । वहां निकली हीन दीन हो, सागम का परमामा मान० ॥ ५ ॥ सदा इस रहे गुल गुलशन में, कभी मुना नहीं कान दिवग बीच हो तीन अवस्था, पट देखलो मान || माना ॥ ६ ॥ गुरु प्रमादे चौथमल , की शिक्षा प्रदान । अभिमान तज धार नमना, दो तारन्यान ।। मान जा Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३०) जैन सुवोध गुटका। . ३२३ जालिमों का जीवन, .. (तर्ज-गजल, इलाजे दर्द गर तुमसे मसीहा हो नहीं सकता) __ कमी ज़ालिम फला फूजा, कहीं हमने न पाया है। मगर मुश्किल से मरते तो, निगाह में बहुत आया है ।टेरा॥ कल गुल ने दुल्हा सर पे, जो शासन जमाया है। देखलो आज पेरों के, तले जाकर दवाया है ॥ कभी० ॥१॥ करके कैद गैरों को, खूप जिनको सताया है । वही कैदी बनी जहां में, खास दण्डा हिलाया है | कभी० ॥२॥ देने और को फांसी, समां जिसने मंगाया है। उसी फांमी से खुद उसने, प्रान देखो गंवाया है | कमी० ॥ ३॥ टिकाते पैर न भू पे, जो ऐसा मान छाया है। मिले मिट्टी में जाकर वे, निशां बाकी न रहाया है ॥ कभी० ॥४॥ शुल के शूज, फूल के फूल, यह प्रभु ने बताया है। चौथमल कहे वो चंबूल, आम किसने न खाया है। कभी० ॥ ५॥ -sxe+s३२४ ज्ञान उद्योत. [ तर्ज दादरा] । करो कोशिश, ज्ञान पढ़ाने को ॥ टेर ॥ छोटे २ बच्चों को, ज्ञान नहीं देते । खाली रखते हो मूर्ख कहाने को ।। करो० ॥१॥ गफलत की नींद में, सोते पड़े हो । सिर उठा के तो देखो जमाने को ॥ करो०॥ २॥ ज्ञान Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जग सोध गुटर।। विना विद्या को मिखाने । क्या नास्तिक उन्हें बनाने को ।। करो० ॥ ३ || कोट पनलुन बूट पहन के चाले । सिगरेट का धुश्रा उड़ाने को ।। करो० ॥ ॥ में गुधरंगी संतान तुम्हारी । खुद अगवा हरा रहा दिवाने को करी ॥ ५ ॥ धार्मिक ज्ञान दिन विद्या मजल गर । ई खानी पेट भराने को ।। करी० ॥६॥ नवतत्व पदव्य न्याय सिखायो । शुद्ध श्रधा उनकी रवाने को ।। करो० ॥ ७ ॥ चौथमल कहे जिन चानी सुजानी । यही निरने सिरान को ॥ करो० ॥८॥ ३२५ कर्म गति. ति-पंजी कर्म गति भारीरे २नहीं टले कभी गुनजी नावार ॥ देर॥ मेरेब पर भेष धरे नहीं, देखा को बना । शाह को रखना को परदे छत्तर धारी नहीं ॥१॥ गजानन को राज्य तिलक, मिलने की हो रही सयालीरे । कम्मा ने ऐसी की, गले विपिन मुमारी का॥२॥ शीलवती थी सीता माता, जनक गज दलारीरे ! ने बनवाग दिया, फिरी मारी मारी की ॥३॥ सत्यधारी भिन्द्र गजा मनी नाग नारी बाप रहे मंगी के घर पर, भरे नित वारी कर्मः ॥ नगी Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३२) जैन सुबोध गुटका। अंजना को पीहर में, राखी नहीं लगारीरे । हनुमान-सा पुत्र हुआ, जिनके वलकारीरे ॥ कर्मः ॥ ५ ॥ खन्दक जैसे मुनिराज की, देखो खाल उतारे । गजसुक्रमाल सिर मार सही, समता उर धारीरे ॥ कमे० ॥ ६॥ सम्बत् उन्नीसे अस्सी साल, धम्मोत्तर सेखे कारीरे । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, दया सुख कारौरे । कर्म० ॥ ७॥ TA३२६ बाग ले उपमित संसार, (तर्ज दादरा) मत पक्षी तूं चाग में, ललचानारे ।। टेर ।। संसार मानो यह बाग लगा है, जिसमें गर्भ गुलाब महकानारे ॥ मतः॥ ॥१॥ ममता की मंहदी, और मान मोगरा । फिर अधर्म का आम लगानारे ।। मत० ॥ २ ॥ कर्म के कैले और दर्द की दाड़म । क्रोध केवड़ा वुवानारे । मत० ॥३॥ इस वाग के अन्दर, काल शिकारी | तक तक के मारे निशानारे । मत० ॥ ४॥ चारों गति के चारों दरवाजे जिसमें आते कई राणारे ।। मत०॥५॥ अय भोला हंस! आया तूं कहां से । कहां तेरा असल ठिकानारे ।। मत० ॥ ॥ ६ ॥ चौरासी लक्ष जीवा योनी का लंवा । मोह माली है इसका पुरानारे ।। मत० ॥७॥ काम भोग फल फूल खिले हैं । जिससे इस दिल को हटानारे ॥ मत० ॥८॥ राग द्वेष दो बीज पड़े हैं। जरा रूपी यह बिल्ली का अ.नारे Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन गुढीप पुरा (२३३) ।।मत |||| इस बाग अंदर एक धर्म च । यही विराम का टिकानारे ।। मत० ॥ १० ॥ ज्ञान दर्शन चरित्र तप फन है । बेशक त इनली खानारे । गत११॥ यह फल खाला, अमर होजाना । प्राशगमन को मिटानारे ॥ मत० ॥ १२॥ चौथमल रहे। मन पत्नी ! गुरु हीरालाल गुण गानारे || मत० ॥ १३ ॥ ३२७ अनिवार्य गमन. । तज-याला न साद याला दिस जाग में फिदा) करना जो चाह करले, जाना जर होगा। यहां तक रहांग पेंट, जाना जरूर होगा ॥टर ।। कहां गम और लक्षमन, गये भीम सौर अर्जुन । एक दिन तो तुमको यहां से, जाना असर होगा। काना० ॥ १॥ हंस हंस के जुल्म करते, नहीं शास्वत से डरते । अाखिर नतीजा इनका पाना जस्र दागा। करना०॥ २॥ गुलशन की पहार देखी, पुल खुल रही है चेखी । पाने ही पाज फोरन, जाना जरूर होगा ॥ करना। कोटी पाग गाड़ी, नारी जो ग्रा-स्यारी सपछोर की सवारी, जाना जरूर होगा। परना०॥४॥ चौथमल गुनाय, एक धो साथ भाव । चाह मानो या न मानो, बाना जरूर होगा। करना० ॥ ५ ॥ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३४) जने सुवोध गुटका। टक्का ३२८ जुत्रा त्याज्य. . (तर्ज-दादरा) जुआ खेलो न शिक्षा हमारीरे ॥ टेर ॥ जुंबा ही इजतमें, धब्बा लगावे । दौलत की होती है ख्वारीरे ॥ जुत्रा० ॥ १ ॥ जुंबा ही चोरी करना सिखावे । सर्व व्यसनों में यह सरदारी रे ।। जुत्रा० ॥२॥ जीता जुआरी बन जावे लाला । हारे से होता भिकारीरे ॥ जुत्रा० ॥३॥ राजा नल और पांडव पाचों । जब जुआ ने विपदा डारीरे । जुत्रा० ॥ ४ ॥ चौथमल कहे जूश्रा को छोड़ो। है इससे भली साहुकारीरे ॥ जुत्रा० ॥५॥ ___ ३२६ अाधुनिक अधार्मिकता. . . : - [तर्ज-हिवरे हिन्दू पणो जाय हालियो] . प्राणिया कैसे होवेगा निस्तारो, जरा हृदय तो ज्ञान विचारोरे ॥ टेर ॥ मनुष्य तन चिन्तामणि पाया, फिर विषयों में क्यों ललचाया। जग समझो सुपना-सी मायारे ॥प्राणिया०॥ १॥ तूं रात्री भोजन खावें । कन्दमूल पे करुणा न लावे। बीड़ी सिगरेट का धुंवा उड़ावरें ।प्राणिया० ॥.२ ! पर नारी पे दृष्टिं घरेहै; कईके जुतियों की मार पड़े है, तो मी निर्लज्ज होयके फिरें हैं रे।। प्राणिया ॥३॥ दारु पीवे व मांस को खाने । फिर हिन्दू का नाम धरावे । Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म मुधो गुटकः। (२४) पलि बकुंट में जाना चावर ॥ प्राणिया ॥४॥ नौल माप में कम ज्यादा कराये। अच्छे के अंदर वोटा मिलाये। फिर जाली कागज बनावरे ॥ प्राणिया० ॥ ५॥ वर्ष अठारह की कन्या बना । देवे पांच हजार तो च्यावे, लौकिक लाज सभी विसगरे।। प्रागिया० ॥ ६॥ दोला से खजाना भरूंगा । चौगुना पाठ गुना तो कलंगा,, नहीं जाने के मैं भी महंगार ॥ प्राणिया० ॥७॥ सारा जन्म अमोलक खोया । खरा खोटा पंथ नहीं जोया । अब काई होवे जोर मु रोयारे ॥ प्राणिया० ॥८॥ पिना धर्म घणा पछतासो, जैसा किया वैसा फल पासो । मनुष्य जन्म में फेर कर आसारे । प्राणिया० ॥8॥ सेटस्वारामजी के बाग के मांही। चीथमल ने यह शिना मुनाई । कर धर्म जो सुधरे कमाईरे । प्राणिया०॥ १० ॥ ३३० नशा निपेय. त-दादरा मन कीजो नशा मुख पायोगे॥टेर ॥ तदानुसा पीना बुरा, पहिले मंगाती भीख । ऊंच नीन एका होग, रहती जरा न ठीक । हाथ मुंह में चदयू फैलायोग । मत ॥१॥ पीने से गांजा तन पर, रदना कमी न न फिर जाय रंग नेमका, गुस्मा चढ़े कदर । कमी पाने पागन हो जायोगे ।। मनः ॥ २॥ चरस और चंद को, घर में Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३६) जन सुबोध गुटका । ‘दो छोड़। उत्तम को नहीं पीना, कुल में लगे है खोड़ । 'लगे इश्क फिर पछताओगे । मत० ॥ ३ ॥ लगात रगड़ा भंग का, रहते नशे में गर्क । बिगड़े हैं कई साहकार इसमें नजरां फर्क । अति भोजन कर रोग बढ़ानोगे ।। मत० ॥ ४॥ छोटे मोटे आदमी, कैसे हुए निडर । सिगरेट को पीते शोक स. शुद्ध अशुद्ध की नहीं खबर । क्या फायदा इस में उठावोगे | मत० ॥ ५॥ महुअा ओर कीडों का, शराब है अर्क। आंखों से खुद देखलो, करके ठकि तर्क। कम उम्र में जान गंवानोगे ।। मत० ॥ ६ ॥ अफीम का खाना खराव, बे वख्त नींद आय । कहे चौथमल नशे को तज, आराम गर तूं चाय । मेरी नसीहत पे ध्यान लगाागे ।। मत० ।। ७ ।। . . ३३१ भावी भविष्य. (तर्ज-पंजो की। सुमति जब अावेगा, सत्संग में तेरो जीव रमावेगा !! टंर ।। सुमति के आया विन प्रानी, लक्ष चौरासी गोता खावेगा। वार २ मनुष्य देह उत्तम, कब तुं पावेगा । सुमति ॥ १ ॥ बालपना गया आई जवानी, यह भी कल दल जावेगा। आगे बुढ़ापा बीच में, कुछ नहीं बन आवेगा ॥ सुमति ॥ २ ॥ खावे सो निवीज़ हुए, और लुणेगाजो Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - " - -- जन मुबोध गुटकाः। (२३७) घोवेगा। कौन चेटा कौन चाप है। करनी फल पावेगा। गुमति ॥ ३॥ चोरी करी चोर धन लाये, चाटुम्ब मीली वाला चेगा । भुगतण समय एकलो, नहीं कोई सुहागा गुमति ॥ ४ ॥ पापी की सौयत मत कीजे, उल्टो पाट बढ़ायेगा। इतना को होसी होसी, समझायेगा ।। गुमात०॥ ॥ ५॥पापी जो वतुएट नायतो, धम्मी नरक जावेगा। नहीं हुई नहीं होने की, पापी पछतायेगा । मुमति ॥६॥ धम्मी ने नहीं देवेसहायता, पापी ने पढ़ायेगा। पंट पत्थर की नाय में, वो इसी जावेगा। मुमति० ॥७॥ गुरु प्रसादे चाथमल कहे, धर्म कियां तिरजांधगा । असी साल नीमन कमांही, जोड़ मुनायगा ।। सुमनि ॥८॥ - ३३२ रहीवाजी निपध, - (रा-दादरा) पिया रंडी के जाना मना हरे ॥ टेर ॥ जात होटी के घर, तुमको शर्म नहीं फिजून इक्षत को सोने, रहदा धर्म नहीं । शारा में बहुत गुनाह रे ॥ पिया० ।। १॥ रंडी जो पिया हमसे सरती दुध प्यार लिटती धन, शार योवन की बहार ! इस सोचत में नुकसान पना । दिगा० ॥२ ॥ पोशाक उसके लिये, मनी लस । फर्ना बजार से ले, शिरपे चढ़ाने हो । मप यह कानों में सुनारे पिया ॥३॥ यहां पर नो पाशिर Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३८) जैन सुबोध गुटका। - आगे को नर्क है । कहे चौथमल इसमें, कुछ भी न फर्क है। अरे जुल्मी ! क्यों पारामी बनाहै रे ॥४॥ - ~३३३ धार्भिक अस्पताल. (तर्ज-मालिन श्राई है विकानेरकी). आएं वैद्य गुरुजी, लेलो दवाई विना फीसकी ॥टेर॥ लेलो दवाई है सुखदाई,देर करो मत भाई । नब्ज दिखाओ रोग वताओ, दो सब हाल सुनाईरे ॥ श्राए० ॥१॥ सत्संग की शीशी अन्दर, दवा ज्ञान गुण कारी । एक चित्त से पियो कान से, सकल मिटे विमारीरे ॥ आए० ॥२॥ टिटिसकोप और थर्मामेटर, मति श्रुति ज्ञान लगाओ। साध्य असाध्य भवी अभवी, भेद रोगका पाओरे ॥श्राए।। ॥३॥ दया सत्य दत्त ब्रह्मचर्य है, निर्ममत्व फिर खास । शम दम उपशम कई किसमकी, दवा हमारे पास आए। ॥४॥ रावण कंश मरे इस कारण, रोग हुत्रा अभिमान। लोभ रोग ने भी पहुंचाई अनन्त जीव की हानरे॥पाए, ॥५॥ जुना मांस मदिरा है वैश्या, चोरी बुरी शिकार । परनारी यह सब वद परहेजी, बचे रहो हुशियारे ॥ पाए ॥ ६ ॥ त्याग तप से ताव तिजारी, रोग शोक मिटजावे । हो निरोग शिव महल सिधावे, मन इच्छित फल पावरे ॥आए०॥ ७ ॥ चर्चा चूरण वड़ा तेज है, जो कोई इसको Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न बोध गुर साव । यद हाजमा संशयरूपी, तुरत पुग्न मिट जायरे ॥ श्राए॥ सम्बत उन्नीस अस्सी साल में, देवास शहर मुझाग गुरु प्रमादेनीयमल यह, दवाखाना किया जहागर आए० ॥६॥ १३४ विपर वासना. (सर्ज-छिनगारीका ढोलादाला लाभा मेरे ) विषय अनर्थकारी, तनो नग्नारी, गुरु मीन धारी जी श्राज ॥ टेर । सुन्दर शहर को अधिपतिो, विजयसेन भूपाल । मोग गरेपी पूगे ऐयाशी, लागी यह जंजालको । विपय० ॥ १ ॥ सहल करन को निकन्योरे, गज पर हो असबार । रस्ते में एक नारीदेखी, यमर के उनिहार हो । विपय० ॥२॥रलात्कार नने ग्रहोरे, रानी ली। चनाय । मणि मोती का भृपण पत्र, तन पर दिया सजाय हो । विपर० ॥ ३ ॥ एक सपना तन भूषण, नीजो नखरो चाप क्यों नाहि कामी मृगकार, पदे फांमम पाय हो । विषय० ॥४॥राज्य कार्य मंत्री करेरे, पाए दुमा मस्तान । प्रजा भी निन्दा कोरे, रामा धेरै नहीं ध्यान हो ॥विपय० ॥५॥ रानियां अने फरे सुन सादिय: मि. न खावे पास । रोने युन्हे एक देव , पार कर निराशझो ॥ विषय ॥ ६ ॥ पर मर मिल गिरतापगी Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४०) : जैन सुवे.ध गुटका। कैसा वना कुसंगासिंह होय शुनि से राच, बिगड़ गयो सब ढंग हो । विषय० ॥ ७ ॥ इस पापिन ने श्रायको, दिदा मान उतार । सुध न लेव बालमारे, यही दुःख अपार हो ॥ विषय० ॥ ६ ॥ निर्दय हो ऐसी कगरें, मति एक मिलाय । कामिनी को विष खिलाई, दी यमलोक पहुंचाय हो । विषय० ॥ १०॥ दग्ध क्रिया करने नहीं देरे मोह वश महाराज । अन बोला मुझसे लियोरे, रूठ गई है आज हो ॥ विषय० ॥ ११॥ चौथे दिन खुद राजवी रे, देखी बूंघट हटाय । दुर्गन्ध सही जावे नहारे, दी फिर तुरत जलाय हो । विषय०॥ १२ ॥ नित्य पणो विचार नेरे, पुत्रको राज भोलाय । संयम ले करणी करीरे, गया स्वर्ग के माय हो । विषय० ॥ १३ ॥ साल इक्यासी मायनेरे, चार भुजा के माय । गुरु प्रसाद चौथमल तो, सब ने रहा चेताय हो । विषय० ॥१४॥ ३३५ अहिंसा. (तर्ज-दादरा) क्यों प्राणियों के प्रानं सताओरे॥टेर ॥ आठों जाम तृण लिए रहें मुंह में, उस पे क्यों तेग उठाओरे, ।। क्यों. ॥१॥ खा खा के गोश्त तुम अपने जिस्म पै, क्यों हिंसा का बोझ उठानोरे ॥ क्यों ॥२॥पढ़ पढ़ के., मंत्र पशु. Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरोप | ( २४१ ) ॥०॥ को विनाशो, नाम जन्मों में दर्ज करा || ३ || लई उससे जो पल में सन हो, मन दोनों पर जोर जिताथोरे ॥ क्यों० || ४ || मरने के बाद सम गे तुमको, जिसको तुम यहां पर ॥ ॥ ॥ ५ ॥ चधमन्तु कहे दवा को धारो, दिवा को दूर इटाभोरे ।। क्यों० ॥ ६ ॥ ++ * ( नर्म-भर भर जाम पिता Pos ३३६ अवसर. मनुष्य जन्म अनमोल पाथकर, मन गुललावा बनाके बनवाला ) वाशय !! भत व वृधा गंवाय चैन || देर | उनन कुन चा भूमि की, को देवता चहा | कौड़ी बदले देव स्तन यह तेरे हाथ से जाय || अब भूत० ॥ १ ॥ गोरे अंग को देव देख कर, फूला अंग न माए । चार दिनों की यह जवानी नदी पर ज्ं जाय || मद २० || २ || मात पिता की मोह माया में, प्राणी रह्यो लुमाय | राजा बाग्ना और दिवान से, की हे मित्रता जाय । मन व्ययः ॥ ३ ॥ जर जेवर का भरा बजाना, नहीं बने कुन गांव ॥ न कुएट में पड़ते तुझको रखने वाला नांय ॥ मन० ॥ ४ ॥ चेती, ज्ञानी यह परमाव | मंग नमाम् रात्रि भोजन, पेटीने यान | म ॥५ ॥ सारे Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४२ ) जैन सुबोध गुटका ! जग का नाज मिलाके, भिन्न भिन्न करना चाप | मेले बीच में रतन बेच के, फेर कभी नहीं पाय || मत० ॥ ६ ॥ दुर्लभ हैं पर देवयोग से, यह भी गर मिल जाये । क्रांडे यतन कर नर तन खोया, नहीं मिले फेर आय || मन० ॥ ॥ ७ ॥ गुण्यांसी के सालं चौमासो, उज्जैन से गये उठाय । चौथमल कहे या वागसे, दोलत गजक मांय ॥ ० ॥ ३३७ चोरी निषेध. ( तर्ज- दादरा : मत की जो चोरी कहे ज्ञातारे || ढेर || चोरी जो करते पर द्रव्य हरते, कोई जेल के बीच मरजातारे || मत० ॥ ॥ १ ॥ लेने में चोरी देने में चोरी, कोई ग्रुप चुप से माल को खातारे ॥ मत० || २ || जेबों को कतरे, थैलियों उड़ावे, जाल का कागज बनातारे || मत: ॥ ३ ॥ चोर पुरूष कभी, सुख से न रहने, छुप के दिन को वितातारे ॥ मत० ॥ ४ ॥ चौथमल कहे चोरी को छोड़ो, जो तुम चाहो कुशज्ञतारे || सत० ॥ ५ ॥ c+3xs - ३३८ श्रायुगति( तर्ज - पंजी की ) '. वय पलटावेरे, या संदा एक सी नहीं रहावेरे ॥टे A Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंग Any गुहा सरज की भी नीन अवस्था, दिवा बीच दोजावरे । बाल युवानी वृद्धा अवस्था, पलटा खादरे ॥ ॥१॥ कर कराह नृप चम्पा नगरी को, नीनि से राज पलांवरे। रधि से तेज पुन, भूप कई मुजर शायरे ॥ ३० ॥२॥ एक दिन बन जाता मार्ग में, गी वत्स दरशावरे । खूब पिलायो दुध इसे यू. एकम मुनयः ।। क्य० ॥३॥ गोवन में दुलो मस्त दूध मल, सांडनान ठेगरे। कालान्तर का योग, बुढ़ापा उसे दवाधेरे ॥षय० ॥ell पहा पथ के बीच, उठाया नहीं किसी से जारे देख व्यरच्या सांड की, नर चिन्ता लावरे ।। ५ ।। निर्णय किया भूम मंत्री न, भेद सकल जद पारे । निज व्यवस्था सांच नृप, मेदों को अलावा ॥ ॥ ६॥ हम नहीं मरें अमर रहे जग में, नहीं बढ़ायो साव। जागिरी पतीस को, जो दवा बिलावरे । वय. ॥ ७॥ नहीं हुई नहीं होन की, यह मंत्री मिन्न समगावपाल रूप वायु के मागे, सय बिग्लाघरे वयः ॥ ॥ होच चरागी राज कुंवर ने, गही तुम्त पिटाने प्रत्येक पहिया ले फिर, मोन सिधावर ॥ यय० ॥६॥ शहर भिलार गानि. स टागा, इस्पासी साल में सवि। गुरुप्रसाद नशमन सुख सम्पनि पावरे । बम ॥ १० ॥ २३६ प्रिया का उपदेश पिया गरों में हमारे द्वारा पानी Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४४) जैन सुवोध गुंटका जिस्म पै,कूचे में घूमते हो। खूब सूरत देखके,अकल को भूलते हो । धन योवन की बहार लूटांते हो । पिया०॥ १॥ पर की औरतं बक रही, जिसका न ध्यान है। घर में न टिके पांच, फंसी उसमें जान है ॥ नहीं मजा क्यों. इज्जत घटाते हो ॥ पिया० ॥ २॥ हुश्न भद्दा पड़ गया, नहीं मुंह पर नूर है। बुढ़े सीभड़क दीखे, जवानी जरूर हैं !! चना नुक्सा दवा तुम खाते हो ।। पिया०॥३॥.थोड़े दिनों में बद चलन, बाधा बनायेगा। देकर के तुम्बी हाथ में, यहां से भगायगा। इन बातों पे ध्यान न लाते हो | पिया। ॥४॥ मेरी कहन पे पिया कुछ भी ध्यान दो। परनार को पिया जी, जल्दी से त्याग दो । उर चौथमल की शिक्षा न लाते हो ॥ पिया० ॥ ५॥ .३४० प्रमाद त्याज्य (तर्ज-बनजारा). तुमं रहना यहां हुशियांरा, जीवराज मुसाफिर प्यारा ॥टेर ॥ ऐ भोले परदेशी ! दिन कितना यहां पर रहसी जी कुछ दम का समझ गुजारा ॥ जीव० ॥१॥ इस शहर में कुमता..नारी | कई राजा दिए फंद डारीजी ।। जिसका है अजब नखरारा: ॥ जीव: ॥२॥ धर्म कही हिंसा करावे, तुझे भोग बीच ललचावेजी । छल: बल की Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) Parinterp . . भरी पारा ॥ जीव० ॥३॥ . इससे बचना दिली । निज माल जायत रखियोनी । उपकारी देन पुलाम जीया || यह दनियां याग को जानो दरबार होच कहानी जी। लेनकी-फल दो चाग ।।जीब० ॥५॥ जर बाल पजा की याद । टम चला तूं जावनी मय पदार यह पसास || जीव०॥६॥ कहीं जल में माल बनाया। थल पर बाग लगायाजी। चौथमल को, सेराजारा || जीव० ॥७॥ ३४१ विद्या, (तारा) विद्या पढ़ने में जिया लगाया करी। टेर ॥ विद्या की नर और नारी का भूपण । मालग पो दर भगाया को विद्या||१|| विधा से इज्जत निघास कीम, मदाशा अभ्यान महाया प.गे। विधा १२ माला हंसी मजाक में । वमी भूल के बा तुमचाया पर "विधा }1३॥ हंगना लस्ता गाली का देना !ी शाता जापन जाया करो। विद्या गोधमन फा मुनो १६ पाटक नशेपानये. पान जाया ? . . .. . . . . . Admiseo Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका ३४२ मन शुद्धि. ( तर्ज़ - वनजारा ) 1 क्यों पानी में मल मल व्हावे । नहीं मन का मैल भंडारा । नित करते हैं नव २ कहांवे ॥ नहीं० ॥ १ ॥ होगा निस्ताराजी : क्यों नहीं तजा क्रोध अहंकारा, कैसे इधर उधर भटकावे |! नहीं० ॥ २ ॥ ज्ञान रूप हैं निर्मल पानी । इस में लगाले गोवा प्रानीजी । शुद्ध क्षण में तूं हो जावे || नहीं ० || ३ || कहे चौथमल हितकारी । प्रभु सुम रन कर हो पारीजी । नहीं आवागमन में श्रावे ॥ नहीं ॥४॥ ( २४६ ) [नटावे ||टेर || तन मल मूत्र का द्वाराजी । हाड़ मांस का थैला " · : ३४३ पति को उपदेश .. ( तर्ज- अनोखा कुंवरजी हो साहिया झालो दूं घर श्राय ): : अर्ज म्हारी सांभलो हो· साहिया ! मंत निरखों पर नार || टेर || सोना रूपा मिट्टी तथा हो साहिबा, पाले दूध भराय । रूप तणों तो फर है, हो साहिबा, भेद स्वाद में नांय ॥ श्ररज० ॥ १ ॥ धन घटे योवन हटे हो साहिबा, तन से होय खराब | दण्ड भरे फिर रावले हो साहिबा, रहे कैसे मुख आव | अरज ० || २ || दंभ करे निजं कंथ से, हो साहिबा, सो थारी किम होय । चोर कर्म दुनियां कहे हो साहिबा, प्राण देवोगा खोय || ३ || रावण पद्मोत्तर Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बन मुऔष जपा, हो माहिया कानी पर घाग्रीन हनी धानाने योग से. हो सादिया, पूरा दृश्या फनीत | अ ॥ ४॥ पर नारी रत मानवी हो साहित्र, जातिमाये बहार । बाल घात होती धनी, हो मादिया जाये न वार || रा ॥ ॥५॥ मोटा कुन का कान्या, हो माहिया नानो गाल विचार । पर नारी माता गिनो, हो माहिया शोमा हा संसार ।। ज० ॥ ६॥ उन्नीसे इमामी साल में, हो साहित्रा प्राया सेग्मे काल | गुरु का कोई चयन न हो साहिया, या मदारिया में नाल ॥ई० ॥ ॥ ३४४ अमोल बड़ी. (सर्ज-पिती राजीय EER चमी चनार ने न सिी मनोज पढ़ी । कहाँ सुगुरु लगाई जान सी. काही मिनि कोमर सांगलोरे, गोमार तार र विमन जानन लागे वार 1000 उस नर, घा में चलियो जाप माया कागल होगीर, पन में पिनमो जाय ॥ चनो० ॥ २॥ गा इन गुना कर पाखिर यादलाय मे यूसानो पार दिन काका यादा जाध ॥ 31ोगा माता वा की, मोगा मा नाद । फास मिगे मारे Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४८) जन सुबोध गुटका श्रावे वींद ।। चतो० ॥ ४॥ मौत हवा ऐमी चलेरे, ठहरे नहीं सुलतान । जैसे वायु योगसेरे, झड़े वृक्ष का पान . ॥ चेतो० ॥ ५ ॥ गज सुखमाल - सुन कर वानी, लियो संयम भार । सौ सुन्दर जैसी तजोरे, अप्सरा के उनिहार । चेतो० ॥ ६ ॥ गुरु प्रसादे चैःथमल यूं, बार बार चेताय प्रमाद तजो संवर ग्रहोरें, जावो मोक्ष के माय चेतोगा। . ३४५ परस्त्री त्याज्य. . . . (तर्ज-अनोखा भंवरजी हो साहिया झालो हूँ घर भाय) सुगड़ा मानवी हो चतुरां मत ताको परनार ।। टेर।। चीर पुरुप की कामिनी हो चतुरां, जल भरवाने जाय । पणिक सुत बैठो हाटे, हो चतुरां देखी रूप लुभाय। सुगड़ ॥ १॥ प्राता जाता छेड़ करे हो चतुरां,नारी करे विचार । मन करने इच्छं नहीं, हो चतुगं भर्म धरे संसार ।। सुगड़।। ॥ २ ॥ पानी ला मल्यो घरे हो चतुरां; पति पायो उस बार ! सा कहे छेड़ करे मेरी, हो चतुरां.पुरुष एक.गंवार ।। सुगड़० ॥३॥ खड्ग निकाल्यो म्यान से हो चतुरां नाम बता इस वार । सा कहे इम.कीजे नहीं, हा चतुरा कीजे काम विचारः ॥ सुगड़० ॥ ४॥ मैं लाऊं उसको घरे हो चतुरां, दीजो फिर समझाया। पति गयो फिर बारणे, हो __ चतुरां, सा जल भरवा जाय ।। सुगड़० ॥ ५॥ आती. देख Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (२४८) खांसी करे, हों चतुरां ऊमी चूंघट हटाय । आज रजनी घर आवजो हो चतुरां, सुन मुख दिया पुलकाय । सुगढ़व॥६॥ रजनी हुई श्रायाःवरे हो चतुगं, पुनः आयो पति खास । लम्पट नारी रूप. करी, हो चतुरां, बैठो चक्की पास । सुगड़ ॥७॥ पति कहे सुन सुन्दरी हो चतुरां, या कौन बैठो आज । सा कहे दासी दाणो दले हो चतुरां, निज घाड़ी के काज ।। सुगड़० ॥८॥नींद आवा देवे नहीं हो चतुरा उठी ने मागलात । पांव पोस से पीटियो,हो चतुरां निकल रांड बदजात ।। सुगड़।। 8 ।। बायो जावतो निज घरे हा चतुरां, नारी यूं समझाय । अब पर घर मत जावजो, हो चतुरां सोगन दिया पलाय ।। सुगड़.॥१०॥ बैन करी सा नार ने, हो चतुरां यूं त्यागो पर नार । गुरु प्रसादे चौथमल कह हो चतुर्ग शिक्षा दे हितकार ।।सुगढ़ ॥११॥ .३४६ जिन स्तुति... .(छोटी.बड़ी सईयाए)... - श्री चौवीस जिनराज के नित्य गुणं गावना ॥टेर । पभ अर्जित संभव अभिनन्दन, संभव अभिनन्दन । सुमति पदम सुपास, चन्दा प्रभु यावना ॥१॥ सुविधि शीतल श्रीयांस वासपूज्य, श्रीयांस वासुपूज्य । विमल अनन्त धर्म नाथ, शान्ति तो वतावना ॥२॥ कुंथु अरह मल्ली मुनि Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५०) जैन सुबोध गुटका । सुव्रतंजी, मुनिसुव्रतजी । नमी नम पार्श्वनाथः महावीर लागे सुहावना ॥ ३ ॥ ग्यारह तो गणधर वीस वेहरमान, वीस . वेहरमान, सकलं साधु, अनगार, चरणों में शीश नमावना ॥४॥ गुरु प्रसाद चौथमल कहें, चौथमल कहे । जन्म अरण दुख टाल, परम सुख पावना ॥ ५ii . . .... ३४७ यश ही एक जीवन है.", ... ... ... . (तर्ज-पंजी मूंड वोल ). .. . सुयश. लीनरे २ मनुष्य की उत्तम काया पाइरेटेर। सुयश जीनो, राम भरत ने. राजऋद्धी भोलाईरे। पिता वचन सिर धार गये, विपिन सिधारे ॥ १॥ सुयश लीनो भूप विभीषण, राम शरण में आईरे । असत्य पक्ष नहीं कियो नहीं, नीति विसाईरे ॥ २ ॥ भामा शाह जो धन देईने, लीनी आप मलाईरे । जीता धनी ने रोक धर्म की, विजय कराईरे ।। ३ ॥ निश्चलं नहीं है तन धन योवन, देखो निगाह लगाईरे । यश जीवन अपयश मरण, समझो मन. माईरे ॥ ४ ।। भले भलाई. बुरे चुराई, प्रत्यक्ष रही दिखाईरे । फूल से फूल शूल से शून है, संशय नाईरे॥५॥ पश्चिम. खान देश में धुलिये, साल पिचासी माईरे । गुरु प्रसादे चौथमल या, जोड़ बनाईरे ॥ ६ ॥ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका । : ३४८ स्वम सम संसार ((तर्ज-किस से करिये प्यार यार खुद S /1 क्यों भूला संसार यार, स्वप्ने की माया है ॥ ढेर || स्वमे में राजा चना, शिर पर छेत्र घराय । लाखों फौन लार है, बैठा गज पै जाय, खुशी का पार न पाया है ॥ १ ॥ स्वमे में शादी करी, निरखी सुन्दर नार । सौया पलंग विछाय के, गले गुलाब का हार । पान मुख बीच दबाया है || २ || वन्ध्या ने पुत्र जना, स्वप्ना कैरे मंझार नारियां गावे गीत मिली । बाजा बजे दुवार, अङ्गी टोपी कई लाया है || ३ || दीन बना स्वप्ना विपे, कोडी ध्वज साहुकार । लाखों की हुडियां लिखे, मोटर बग्वी तैयार, नाम मुल्कों में कमाया है ॥ ४ ॥ चारों की निद्रा खुली, मन ही मन पछताय । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, देखो ज्ञान लगाय, मूर्ख तूं क्यों ललचाया है ॥ ५ ॥ ३४६ ऋषभ देव से प्रार्थना. . ( तर्ज-- छोटी बड़ी तैयाएं ) PA 1 ( २५१ ) * : श्री ऋषभ देव भगवान् करो तो मेरी पालना |टिका - मैं चाकर हूं तुम चरणन को, हां तुम चरणन को । सहाय करो महाराज, दुखी को दुख से टालना ॥ १ ॥ भवसागर में, मेरी नौका, हां मेरी नौका । ज्ञानं पड़ी मझधार, जल्दी' MA Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५२) जैन सुपोध गुटका । से संभालना ॥ २ ॥ संकट मोचन बिरदः आपको, हां विरद आपको निराधार अाधार, कम रिपु.गालना ॥३॥ श्रोम् उपभ, तूं ही मम रक्षक, तूं ही मम रक्षक। तुं ही मेरे शीरताज, फन्दे से निकालना ।। ४ ॥ गुरु प्रसादे, चौथमल यू, चौथमल यूं, अर्ज करे हरवार, जरा तो निहालना ॥ ५॥ : . . . . ३५० मनुष्य को विशेषता... (तर्ज-किस से करिय प्यार यार खुद गरज जमाताहै:) . मनुष्य पशु से श्रेष्ठ, धर्म से ही बतलाया है॥टेर।। आहार, निन्द्रा, भय, भोग में, दोनों एक समान । है अविकता मनुष्य में, एक:धन पहचान, इसीसे बड़ा कहाया है ॥ १॥ पशु सदा खाता रहे, नहीं भक्षाभक्ष विचार। मनुष्य अमन पाहार का, तुरत करे परिहार, नीति में यह बतलाया है ॥२॥ पशु को.निन्द लेने का मित्रों, किञ्चत नहीं परमान । मनुष्य निन्द को छोड़ के घरे प्रभु का ध्यान, जान झूठी मोह माया है ॥ ३॥ पशु के भय बना रहे, हरदम दिल के म्यान । इजत और परलोक को, नर रखता औसान, पाप से दिल को मुडाया है ॥४॥ नहीं भान. मां: बहिन का, सेवे पशु व्यभिचार, मनुष्य रहे. में, त्याग करे परनार, धार के शील संवाया है ॥५॥ असरः फूल मखलुकात है, इसी लिये इन्सान, श्रवण मनन Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५६) जैन सुवेध गुटका। धन से कर उपकार, दुखी के दुख मिटाना ॥ ५ ।। गुरु प्रसादे, चौथमल कहे। हां चौथमलं कहे, पावोगे केवल ज्ञान, राखों तो शुद्ध भावना ॥ ६॥ . . ...३५४ तीन मनोरथ. . (तर्ज-सभिल हो श्रोता. शूगने, लागे ओ बचन जो ताजणा) ... सांभल हो श्रावक, तीन मनोरथ 'शुद्ध मन चितवो ॥ टेक ॥ श्रारंभं परिग्रह से कचं निवृतूं, दुर्गति को यो दातार । विषय कपाय को यो. मूल है, भमावे. अनन्त संसार ॥१॥ अत्तरण अंशरण अंनित्य अशाश्वती, निग्रंथ के निन्दनीक स्थान । जिस दिन इसको मैं त्यागन करू, सो दिन मारे परम कल्याण ॥ ॥ द्रव्य भाव कब मैं मुण्डन होऊ, दश विध यत्ति धर्म धार । तप जप संयम मार्ग. श्रादरी, वरूं अप्रतिवन्ध विहार ॥३॥ आज्ञा प्रमाणे श्रीवीतराग की, चालू यथार्थ धर ध्यान । जिस दिन निग्रन्थ-पथ में विचरूं, वह दिन मारे परम कल्यानं ॥४॥ कब ..सब पाप स्थानकः छोड़ने, करी आलोचना जीव खमाय । जिस शरीर. ने प.ल्यो प्रेम से; उससे.ममता मिदाय ॥ ५॥चारों ही श्राहार को त्यागन करी, मृत्यु पण्डित परधान .चारों, ही शरणा मैं धारण करूं, वह दिन है. परम कल्यान ।। ६॥ धार. काएठे में प्रसिद्ध नागदों, Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन सुबोध गुटका । (२५७) me श्रआया पिचासी सेखेकाल । गुरु प्रसादे चौथमल कहे; पॉप दशमी मंगलबार ।। ७ ।। . ३५५ राजनति की विनंती. (तर्ज छोटी बड़ी सईयाए) श्री जादुपति महाराज, तोरण से तुम . मत जावना ॥ टेक ।। मिन्द वनी जब श्राप पधारे, हां आप पधारे ।। हो गज ५ असवार, लागो तो तुम सुहावना.॥ १ ॥ पशुओं की तुम टेर सुनीने, हां टर सुनीने । पलट गये उसवार, कोई तो समझावना ॥२॥ छोटी बड़ी सैयाएं, नेम को मनावना, हां नेम को मनावना । नेम गये गिरनार, यही तो पछतावना ॥३॥ राजीमति को, संयम लूंगा, हां संयम लूंगा । छोड़ सभी परिवार, यही है मेरी भावना ॥ ४ ॥ चौथमल कहे संयम लेकर, हां संयम लेकर । किना श्रातम कल्याण, मुक्ति का फिा पावना ।। ५ ॥ .. . ३५६ दया की महत्वता. .... [तर्ज-मेरे स्वामी वुलालो मुगत में मुझे ] गुरु तिरने का मार्ग बताया हमें, मिलती मुक्ति दया से जिताया हमें ॥ टेक ॥ दया ही संसार में, भवसिंधु Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५८ ) जैन सुबोध गुटका | तारणहार है । पापियों का शीघ्र ही, करती या बेड़ा पार है, कुपंथ में जाते वचाया हमें ॥ १ ॥ पाप हजारों हो चुके, परदेशी नामा भूप से । जब दया धारण करी, वह बच गया भव कूप से । उनका देकर के न्याय सुनाया हमें || २ || राजा भेघरथ ने बचाई, फाक्ता की जान है । उसी दया के योग से हुए शांतिनाथ भगवान हैं, उन्ह ने शांति का पाठ पढ़ाया हमें || ३ || सरून दिल को जो बना के, पाप करते लापता । श्रकत के बीच में होगा सजा वह अफता | नहीं फर्क इसी में दिखाया हमें ॥ ४ ॥ प्रभु नाम का आधार है, भवसिंधु रूपी पूर में साल पिच्चासी पौष का कहे चौथमल केसूर में, पालो दया राखुन यह सिखाया हमें ॥ ५ ॥ , 1 ३५७ शान्ति स्तुति, ( तर्ज - छेटी बड़ी सईयांएं ) शान्ति जिनन्दजी श्रो, शान्ति तो वरतावना ॥टेक॥ विश्वसेन, राजा के नन्दन, राजा के नन्दन । हुए अचला के कुंख, स्वार्थसिद्ध से श्रावना ॥ १ ॥ जन्म लेते ही, मृगी निवारी, हां मृगी निवारी | घर घर मंगलाचार, गावे तो बधावना || २ || पट् खण्ड केरी, विभूति जो त्यागी, विभूति जो त्यागी । लेकर संयम भार, केवल का Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (२५६) - हुआ पावना ॥३॥ शान्ति नाम है,-परम जगत में, हां परम जगत में । सुख सम्पत दातार, विधन विरलावना ॥४॥ शान्ति जाप से, जहर हो अमृत, हां जहर हो अमृत । निधन हो धनवान ,फलेगा सब ही भावना ॥५॥ प्रातः उठ ओम, शांति जप तो, हां शांति जपे तो। रोग शोक मिटजाय, मुक्ति में फिर जावना ।। ६ ।। गुरु प्रसादे, चौथमल कहे, हां चौथमल कहे । मनका मनोरथ पूर, दर्शन की मेरे चावना ॥७॥ ३५८ पयूषण पर्व (तर्ज-गुरुजी ने शान दियो भारी) पयंपण पर्व श्राज पाया के, सजनों ! पर्व आज, आया, के, मित्रों ! पर्व आज आया। सर्व जीवों की करो दया, यह संदेशा लाया टेका। अठों दिन तुम प्रेम धरीने बांयां और भायां । खूब करो धर्म ध्यान, खास सद्गुरु ने. फरमाया ॥१॥ त्यौहार शिरोमणि यही जगत में, तज दीजे परमाद । देव गुरु और धर्म आराधो, अनुभव रस आस्वाद ॥२॥ ज्ञान दर्शन. चारित्र पोपवा, पोपा करो जरूर । पद आवश्यक,संबर समाई,करे पाप हुवे दुर॥३॥ र.त्रि भोजन और नशा सव, छोड़ो वणजव्योपार । दरी लिलोती मिथ्या त्यागी, शील रतन लो धार ॥४॥ उत्तम करणी कीजे पुण्य से, मनुष्य जन्म पाया । वेला तला करो पचोला, पचखो Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२६०) जैन सुवोध गुटका। NA अट्ठाया ॥ ५ ॥ रतलाम शहर में पूज्य समीपे, चौमासा ठाया । साल पिच्चासी सभा पीच में, चौथमल गाया ॥६॥ . ३५ पार्श्वनाथ स्तुति...' . [तर्ज-छोटी बड़ी सईयाए । ... हे प्रभु. पाच जिनन्द, भव सिंधु तिरावना ।। टेक ॥ काशी देश बनारस नगरी, वनारस नगरी । वामा रानी के कुंख, जन्म हुआ पावना ॥ १ ॥ चौसठ इंद्र मिल, मरु गिरि पै, हां मेरु गिरि पै। कियो महोत्सव घर प्रेम गावत वधावना ।। २ ।। नील वर्ण नव, हस्त है काया, हस्त है काया । एक सहस्त्र अरु पाठ, लक्षण शोभावना ।। ३ ।। मस्तक मुकुट, काना युग कुण्डल, काना युग कुण्डल । हदे अमोलक हार लटक लोभावनः ॥ ४॥ जलता नागन, नाग बचाया, हां नाग बचाया । बालपना के मांय, किया तो 'सुर' सुहावना ॥ ५ ॥ इतना उपकार, मुझ पर कीजे, हा मुझ पर कीजे । दीजे आशा अव.पूर, फलेगी' सारी कामना ॥ ६ ॥ गुरु प्रसाद चौथमल कहे, हाँ चौथमल' कहे। साल पिचासी के मांय, आनन्द वर्तावना ।। ७ ॥ या हा नाग इतना उपका फलेगी .:. . ३६० तीर्थकर गोत्र के कारण तिज-लाभल हो भवियन श्रोता ने लागेश्रो बचन जो ताजणा] : 'सांभल हो गौतम, बीस बोलां से तीर्थकर हुवे Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका । ( २६१ ) || टेर || अरिहंत सिद्ध सूत्र सिद्धान्त को, गुणवंत गुरु चौथा जान । स्थावर बहु सूत्री तपसी तथा करे स्तुति हित श्रान ॥ १ ॥ वार वार उपयोग देतो ज्ञान में, शुद्ध समति लेवे पाल | विनय करे जो गुरु देव को, आवश्यक करे दोई काल ||२|| व्रत पचखाण पाले निर्मला, परमाद टाली ध्यावे शुभ ध्यान । तपस्या जो करे बारे प्रकारनी, देवे भय सुपातर दान || ३ || व्यावच करे गुण कुल संघ की, सर्व जीवां ने सुख उपजाय । अपूत्रे ज्ञान नित पढ़तो थको, सूत्र की भक्ति करे चित्त लाय ॥ ४ ॥ जिन मारग ने खूब दिपावतो, बांधे तीर्थकर जीव गोत, चारों ही संघ में होय शिरोमणि, तीनों ही लोक में करे उद्योत ॥ ५ ॥ सम्मत उन्नीले चौरासी साल में, नाथद्वारे से खे काल | गुरु प्रसादे चौथमल कहे, लागो है नवो यो साल ॥ ६ ॥ ३६१ सदुपदेश. . (तर्ज--- मारो मन सुधर्म सेवा में ) आठों पहर धंधा में फैलियो, विषय भोग को होकर रसियो । लाग रयो तूं बढ़पन में, घणो मजो प्रभु स्मरण में || टेर ॥ १ ॥ न्हाय धोय पौशाक सजावे, इतर लगा बाग़ा में जावे | देखे मुख तूं दर्पण में, घणो मजो प्रभु. स्मरण में ॥ २ ॥ ल खों रुपे का माल कमाया, दया Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६२ ) जैन सुबोध गुटका | दान में नहीं लगाया | नाम लिखायो कर्पण में, घणों मजो प्रभु स्मरण में || ३ || घर की तज के उत्तम नारी, अपयश ले ताके परनारी । देखो रावण नर्कन में, घणो मजो प्रभु स्मरण में || ४ || दुर्लभ पां नरं की जिन्दगानी, तिरना सीख भव सागर प्रानी । लगा ध्यान गुरु चरणन में, घणो मजो प्रभु स्मरण में || ५ || तियांसी साल सैलाने आया, चौथमल उपदेश सुनाया । क्षा करेगा गढ़पन में, घणो मजो प्रभु स्मरण में ।। ६ ।। 1922 ३६२ दया की महत्वताः ( तर्ज-- गौत्रों की सुनलो पुकार ) प्यारे दया को हृदये लो धार, धाररे सुखी बनोंगे तुम बन्दे || ढेर || दया धर्म को जिन जिन ने धारा, पाप कलिमल उसने निवारा, पहुंचे वो मोक्ष मंकार, झाररें ॥ १ ॥ पशु पक्षिको मत ना सतावो, प्रेम घरी सब को अपनावो, तो पावोगे भव जल से पार पाररे || २ || हिरे पन्ने, रत्न, जवाहिर से, कण्ठी डोरा हर चीर से, करुणा अमूल्य पार पारे || ३ || रंक को छिन में धनवान बनादे, राजा महाराजा के पद पै बिठादे बनादें सब का सरदार, दाररे ॥ ४ ॥ उन्नीसे साल तियांसी खासा, उदयपुर में किया चौमामा, कहे चौथमल हरवार, वाररे ।। ५ ।। . Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन सुबोध गुटका | ३६२ प्रभु से प्रार्थना. ( तर्ज- अनोखा कुंवरजी हो के ) अर्ज मारी सांभलो हो के प्रभुजी, महावीर भगवन् || टेर || अर्जी पर मर्जी करो, हो प्रभुजी, गर्जी करे पुकार । महर नजर अत्र कीजिए, हो प्रभुजी, करुणा के भण्डार || १ || सेवक खड़ो दरबार में, हो प्रभुजी, टुक एक मुजरो झेल | धन माल मांगू नहीं हो प्रभुजी, सांगू मोक्ष की सैल || २ || अनन्त ज्ञान दर्शन धनी, हां प्रभुजी, अनन्त शक्ति के धार । तुम सम देव दूजा नहीं, हो प्रभुजी, श्रधम उधारण हार || ३ || शरणे श्रायो यापके, हो प्रभुजी, तारक विरद विचार । हुकम होय मुझ मिसल पे, हो प्रभुजी, चरते मंगलाचार ॥ ४ ॥ जो से शुद्ध भाव से, हो प्रभुजी, पग पग सुख प्रगटाय | ग्रह गोचर पीड़ा टले, हो प्रभुजी, रोग शोग मिट जाय ॥ ५ ॥ पिच्चासी साल सोले ठाणा, हो प्रभुजी, भेड़ते सेखे काल | गुरु प्रसादे चौथमल कहे, हो प्रभुजी, आप मेरे रिछपाल ॥ ६ ॥ ३६४ ओलंबा.. " ( तर्ज-- चिड़ो थने चांवलियां भावे ) ( २६३ ) wwwww सासुजी थांकी बड़ी बजर छाती श्रो, सासुजी थांकी बड़ी बजर छाती, कंवरा ने तो संयम दिलायो म्हाने वरज · Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६४ ) जैन सुबोध गुटका | राखी || ढेर || मन की तो मन में रही सरे, कहाँ कणीने बात | विश्वासघात म्हां कर गया सो कांई आप तणा अंग जात || १ || खाना पीना पहरना सो, म्हाने सूना लागे महेल | प्रीतम ऐसी कर गया स जूं, बादीगर को खेल || २ || कागद होतो वांचला स कांई, कर्म न व च्या जाय । कोई कांई लियो अणी कर्म में सरे, ज्ञानी बिना कुरण फरमाय || ३ || बहुवां कहे श्रत्र करें करा स म्हाने, हुकम देवो फामाय | चौथमल कहे धर्म आराधो, जन्म सफल होजाय ॥ ४ ॥ ३६५ गौतम स्नेह. [ तर्ज- कांटो लागोरे देवरिया ] मारा वीर प्रभु का दर्शन की, म्हारे मन में रेगईरे २ मारे दिल में रहगईरे || ढेर || देव समय को प्रति बोधवा, आज्ञा दीनीरे | पिछे से गए आप मोक्ष, या कैसी किनीरे ॥ १ ॥ रात दिवस में सेवा करतो, थी मुझपे अति महेर । तदपि स्वाभी आप मुझे कहो, क्यों नी लेगए लेर ॥ २ ॥ गोयम गोयम कौन कहेगा, कौन लड़ावे लाड़ | किसको जाय कहूंगा स्वामी, बड़ा पड़ गया पहाड़ ||३|| श्रभुत छटा आपकी समरी, उठे हृदय में लहेर । कहाँ गई वह मोहन सूरत, लाऊं कहां से हेर ॥ . > ४ ॥ जो जो संशय Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोव गुटका। (२६५) मेरे हात, तत्क्षण लेता पूछी, कौन बतावेगा आगम की; भिन्न २ करके कुंची ।। ५ ।। मैं तो ऐसी नहीं जानतो. छुटगा गुरु साथ । अतो स्वरमा की हुई माया, देखो दीनानाथ ॥ ६ ॥ वृथा मोह करे तूं चेतन, प्रभुजी हुवा निर्वाण । चौथमल कहे इन्द्रभूतिजी पाये केवल नाण :७॥ संवत् उन्नीसे साल चौरासी; जोधपुर के माई, दीपमालिका के दूज दिन, जोड़ सभा में गाई ।। ८॥ . ३६६ शिकार निषेध. (त-पंजी मुंडे बोल.) दया नहीं लावेरे २ पापी नित उठके पाप कमायेरे , ॥ टेर । तृण भक्षी पे खड्ग चलाके, बहादुरी बतलावरे । बराबरी से अड़े जदी, मालुम होजावेरे ॥ १॥ निर अपरांधी पशु बिचारे, कहां पुकारूं जावरे । उन अनाथ पे छलसे ताक, बन्दूक चलावर ॥ २ ॥ थर थर कम्पै जीव बिचार, जिम तिम प्राण बचावरे । पत्थर जैसा करकं हृदय उन्हें मार गिरावेरे ॥ ३ ॥ मादा मरे पे बच्चै उनके, तड़फ तड़फ मर जावर । इसी पाप से श्रेणिक राजा, नर्क सिधा-.. वेरे ॥ ४ ॥ जोवे बाट जमराज वहां पर, कदी पामणो .. श्रावेरे । पापी जीव को पाप का बदुला, वो भुगतावरे ॥५॥ . ओठ तरह के घातिक परकट, मनुऋषि जितलावरे । पोछा Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६६ ) जैन सुवोध गुटका । बदला लेवे भागवत, भी दशोवेरे ॥ ६ ॥ गुरु प्रसादे चौथमल तो, साफ साफ़ जितलावेरे । बिना दया नहीं तिरे, चाहे तीर्थ कर पावरे ॥ ७॥ .... .. 11::: ~ . :, : : ३६७ संयति राजा को उपदेश. (तर्ज-पन्नजी की , ' . राजन् मानरे, मान मान तूं छत्रधारी, मुनि समझावरें ॥ टेर । पञ्चालदेश कम्पिल पुर को, यो संयति भूप कहावेरे । अरि कण्टक को दूर करी, आणा वरतावरे ॥ १॥ एक दिवस कौसुम्बी वन में, सेना क संग आवेरे । मारा हिरण के तीर, तीर खा मृग भग जावरे ॥ २॥ वन के चीच द्राक्ष मण्डप, जहां मुनिवर ध्यान लगांवरे । वह मृग आ तज प्राण सामने मुनिके गिरजावर ॥३॥ भूप आय तुरंत वहां देखे, मुनि ध्यानारूढ पावरे । मुनि का पाला जान मृग. राजा धवरावरे ॥ ४ ॥ शीघ्र उतर घाड़े से राजा, निज अपराध खमांवरे । रसना के वश हना श्राप, मांफी बक्सार ॥ ५॥ ध्यान खोल मुनि गृद्ध भाली, राजा से यूं फरमावरे । मैने दिया अभय दान तूं मत डर लावरे ॥ ६॥ मुझे देख तूं डरा, तुझ देखी वनचर कम्पावरे । दे. जीवों को अभयदान, पर भव सुख पावरे ॥ ७ ॥ तूंण : भक्षी मशकीन दीन को, क्यों तूं भूप सतावरे । करे कम. Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | ( २६७ ) वही भर, नहीं कोई ध्यान बचावेरे ॥ ८ ॥ रूप यौवन विज्जू को भलको, देखत ही पलटावरे । स्वार्थी यो संसार साथ, पर भव नहीं थावे ॥ ६ ॥ सुन उपदेश मुनि को राजा, वैराग्य बीच में छांवरे । राज्य तख़्त को त्याग करी, फिर तपस्या ठावेरे ॥ १० ॥ करणी कर केवल पद पाई, संयति मोक्ष सिधावेरे | गुरु प्रसादे चौथमल, गुणी का गुण गांवरे || ११ || पन्दरे ठाया साल चियांसी, उदयपुर में वेरे ||दल्ली दरवाजे धानमण्डी में, ज्ञान सुनावेरे ॥१२॥ | amava ३६८ त्रुटि की पूर्ति, ( तर्ज - मनाऊं महावीर भगवान ) पाय व मनुष्य को अवतार, करो शुभ काम सदा नर नार || टेर || करनी बीच में रहगई त्रुटि, पूर्व जन्म मंकार | जिस की पूर्तिकाज श्राज यह, मिला है अवसर सार || १ || क्यों राचे परमाद बीच तूं, आयो मोक्ष के द्वार | मानां कल्पवृक्ष को काटी, बोवे याक गंवार ॥ २ ॥ मत पड़ मोह के फन्द मान तूं, है झूठो संसार | हरगिजें जावे नहीं साथ में, देखो किस के लार ॥ ३ ॥ बड़े बड़े रईस के संगमें, एक न गयो सवार । ऐसी जान सुयश ले प्राणी, करके पर उपकार ॥ ४ ॥ संवत् उन्नीसे साल चौरासी, लसानी बाग मंभार । 'चौथमल उपदेश सुनावे, भव जीवां हितकार ॥ ५ ॥ • 1 · Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६८) जैन सुबोध गुटका । ३६६ कुटिल नर. ' तंज-दया करने में जिया लगाया करो) · इन्हीं पापियों ने देश डुबायारे ॥ टेर । मात पिता से करते लड़ाई, नारी के मोह में मोवायारे॥१॥ घर नारी पतित्रता जो छोड़ी, वेश्या के घर सोयारे ॥ २॥ सत्संग से संह को मोड़े, नशाबाजी में दिन खायार ॥३॥ लालच के वश दे बुढ़े को बंटी, राण्ड बनी तब रोयारे ॥४॥ गुरू प्रसाद चोथमल कहे, श्राम इच्छा से निम्न थें बोयारे ॥५॥ ...३७० सत्य ही कहना, (तज-पहलू में यार है मुझे उसकी ] : . : सत्व वात के कहे बिना रहा नहीं जाता। वुगले को हंस हमसे, बताया नहीं जाता ।। टेर ॥ मिलता है राज्य तख्त छत्र, एक धर्म से । अघी से सुखी होय, सुनाया नहीं जाता:॥१॥ अमृत के पीने से मरे, जीवे जो जहर से । यह आग के.बीच बाग, लगाया नहीं जाता ॥२॥ दानियां भी अगर लोट जाय, अफसोस कुछ नहीं । एरंड, को कल्पवृक्ष, बताया नहीं जाता ॥३ ॥ कहे चौथमल, दिल. बीच जरा; गौर तो करो । तारे की ओट चन्द, छिपाया नहीं जाता॥४॥ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका । ....... ३७१. क्षमा. [तर्ज-कोरो काजरिये ] सब नर धारोरे, यह क्षमा मोक्ष दातार . ॥ टेर।। महिमा उपशम की प्रभू, या वरनी सूत्र मंझार ॥१॥ जिन शासन को मूल है, है तप संयम' को सार ॥२॥ कर कर के क्षमा कई, तिर गए समुद्र संसार ॥३॥ खन्दक मुनि क्षमा करी । जब लिनी खाल उतार ॥४॥ धन्य धन्य : मेतारज.. मुनि, जाने सह्या परिसो अपार ॥५॥ गज सुख मुनि शिर खीरा धरिया, मुनि सही अगन · की झार ॥ ६॥सूरी ता निज कंथ ने, दिया जहर जिस वार ।।.७॥ क्षमा करी. ने सुर हुवो, यह पहले स्वर्ग:मुझार ॥ ८॥ चौथमल कहे क्षमा करो, हो. जावो भव जल पार ॥६॥ ३७२ कन्या विक्रय निषेध. .. (तर्ज-प्रेम बढ़ावोजी.) ... कलियुग. छायोजी, धर्म छोड़ अधर्म में दुनियां चित्त लगायोंजी ॥टेर ॥ पांच सात दलाल मिली; बुढा को सम्बन्ध करायोजी ॥ १ ॥ और , धन्धो सब छोड़, ही व्योपार चलायोजी । अपशकुन कर मूछ मुण्डाई, पिठी मर्दन करायोजी । बुढो बनडो, बन्यो खूब, श्रृंगार: सजा Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७० ) जैन सुबोध गुटका | यांजी ॥ २ ॥ वान्ध सेवरो घोड़ा पर चढ, सुसरा के घर आयोजी । लोग देखने हंसे सांग यो, आछो वनायोजी || ३ || सुरत देख बुढ़े चालम की, कन्या को जी घबरायोजी ] कहे बाप से बेटी पे क्यों, कुठार चलायोजी ॥ ४ ॥ सुन कौन कन्या की चानी, लोभ जंगी के छायोजी । भटजी भी गर्जी दमडे का, परत करायोजी ॥ ५ ॥ लड्डू खाण्यां पंचो ने भी, नीति धर्म विसरायोजी | रक्षक भक्षक बनी घोर, अन्धर मचायोजी ॥ ६ ॥ कान पकड़ छारी के न्याय, बुढ़ो लाड़ी लायोजी । कहे लोकां से परमेश्वर, मारो घर मंडायोजी || ७ || बेटा पोता दौड़ दोहिता, कुटुम्ब देखवा श्रायाजी | माता दादी, नानी कहा किम, वाक्य सुनायोजी ॥ ८ ॥ तन की सरंदा कम जान, बुढ़ा ने वेद झुलायोजी | ताकत बढ़े इन काज श्राप, नुसखा लिखवायोजी || ६ || इम करता अल्प काल में, बुढो परलोक सिधायाजी । खुये बैठ विचारी वाला, रुदन मचायोजी ॥ १० ॥ पिता श्राय बेटी के धन पैं, अपनो अमल जमायाजी | मात कहे मत रोए बेटी, यही भाग्य लिखायोजी ।। ११ । होनहार के आगे जोर नहीं, चाले किसको चलायोजी | पत्थर फेंक. शिर माण्ड भावी को, 9 " मिश ठरायोजी || १२ || कांई देख्यो यूं कही माता, हाथां को चुड़ो रखायोजी । श्राई अवस्था कठिन विरह ने, जोर ननायोजी ॥ १३ ॥ लज्जावान उत्तम नारी तो, तप कर 1 Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन बोध गुटका। (२७१) man जन्म बितायाजी। गई स्वर्ग के बीच धर्मे जो, पूर्ण निभायोजी ॥ १४ ॥ कई नारी व्यभिचार कर्म कर, विधवा धर्म गमायोजी ! पाप आय जब उदय हुवो, तब हमल रहायोजी ॥ १५॥ वात हुई प्रगट पंचा मिल, नौतो बन्ध करायोजी गर्भपात जनकरियो, जाति बकवाद मिटायोजी ॥ १६ ॥ गर्भपात नहीं हुवो तात, तीर्थ को मिश ठहरायोजी । लेई सुना को साथ श्राप, परदेश सिधायोजी ॥ १७ ॥ औषध किया नहीं गर्म पड़यो जो, पूर्ण आयु ले प्रायोजी। घबराय तात सुता को छांद, निज घर पर आयोजी ॥ १८ ॥ ढूंढे पाप को बेटी स्टेशन पर, कहीं पतो नहीं पायोजी । राव वृक्ष तल बैठ, राम आछो करवायोजी ॥ १६ ॥ इतने में एक अधम जाति नर, विश्वासी घर लायांजी । मांसाहारी पापी ने मांस को, आहार करायोजी ॥ २० ॥ मुण्डो पकड़ जबरन से पापी, फर शराब पिलायोजी । विगल्या मांही गया बिगड, बाकी न रहायोजो ॥ २१ ॥ कई गर्भवती विधवा को, घर का जहर पिलायोजी । कई विधवा को जाति वहार कर, अनर्थ करवायोजी ॥ २२ ॥ ऐसी जान वृद्ध विवाह करो बन्ध, जो जन निज हित चायाजी। बाल लग्न भी बुरो जगत के, बीच चलायोजी ॥ २३ ॥ छोटी उमर में सुता सुत को, नष्ट वीर्य करवायोजी । कलि कुमलाय जूं उन वालों ने, प्राण गमायोजी-॥.२४॥ विन वर जोड़ी व्याव करो मत, यो भी थांने चेतायोजी । अनर्थ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : . . ""cs (२७२) जैन सुबोध गुटका । manumminmuramiranom होसी घणो, जो नहीं प्रबन्ध करायोजी ॥ २५ ॥ की अजी या पेश आपसे, समय देख लिखलायोजी । जज समान जनता ने सोच, कोई हुक्म लगाये.जी ।। २६ ॥ गुरु प्रसाद चौथमल, यो छन्द बना कर गायोजी । जाति, प्रेमी, देश हितेच्छ के मन भायोजी ॥ २७ ॥ .. . . . . .aaane: - . ३७३ पहले सोचें. (तर्ज- यह क्यों बाल विखर है ) उलझ जाते जो बेढंग से, वही नर फेो.रोते हैं । नहीं. श्राराम पाते हैं, उमर फिजूल खोते हैं ।। टेर ॥ काम करने के पहले. ही, सोचं अंजाम जो लेते । नहीं तकलीफ वो पाते, सुखों निन्द सोते हैं । १॥ बिना सोचा किया रावण, गई जब लंक हाथों से । डुंबर ललितांग भी फंसके फेर गमखुवार होते हैं ॥ २॥ दिवाना इश्क का उनके नफा किसने उठाया है । काट के सुरतरु कर से, देखो यह श्राक बोते हैं ॥ ३ ॥ अलि पुष्पों में उलझा है, मच्छी कांटे से जा उलझी । चौथमल कहे मुनो सजन, खास कर्तव.. के गोते हैं ॥ ४॥ . . ३७४ पापों के फल. (तर्ज-लाखों पापी तिरगये सत्संग के परताप से). . कहां लिखा तूं दे बता, जालिम सजा नहीं पायगा । Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (२७३) याद रख तूं पाकवत में, हाथ मल पछतायगा ॥१॥ आप तो गुमरा हुआ' फिर; और 'को गुमराह करे । ऐसे अजावों से वहां पर, मुंह सिया होजायगा ॥२॥ हो खतर तकलीफ पहुंचाता, किसी मशकीन को । बबूल का तूं वीज चोकर, आम कैसे खायगा ॥३॥ रुह होगा कब्ज तेरी, जा पड़ेगा गोर में । बोल चन्दा है तूं किसका, क्या कहीं बतलायगा ॥४॥न हुकुमत वहां चलेगी, न चलेगी हुञ्जते । न इजारा वहां किसी का, रियाही कैसे पायगा ॥५॥ जवानी बातों खरच से, काम वहां चलता नहीं। चौथमल कहे कर भलाई, तो वरी होजायगा ॥ ६॥ ३७५ सावधान हो. [तर्ज-स्वामी चरणों का दास वनालो मुझे] प्यारे गफलत की निंद भगा तो सही, जरा प्रभु से लोह को लगा तो सही ॥टेर॥ साथ वाले चल बसे और, तूं भी अब मिजवान है। किस ऐश में भुलाःफिरे, रा.किधर को ध्यान है, तेने साथ क्या लिना बता तो सही ॥१॥ हुश्न तोदिन चार का, आखिर में यह ढल जायगा। जालिम बुढापा श्रायके, तेरे जिस्म पै छायगा, लेगा किसका तूं शरना जिता तो सही ॥२॥सर पर कजा यह घूमती, जिसकी तुझे खबर नहीं । बद काम में उमर गई अब तक तुझे समर Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७४ ) जन सुबोध गुटका । नहीं, तेरे दिल से ग़रूर हटाती सहीं ॥ ३ ॥ नेकी, करले ऐ दिला, तारीफ यहां रहजायगा । चौथमल कहे नेकी से, श्राराम हर जा पायगा, मिले मोक्ष हवीस- मिटा तो सही ॥ ४ ॥ : ३७६. भलाई कर चलो. • [ तर्ज-लाखों पापी तिरगये. सत्संग के परताप से ] : मान मन मेरा कहा तारीफ जहां में लीजियो । अपनी तरफ से जान कर के, दुख न किसको दीजियो ॥ १९ ॥ तकदीर के बल से हो, इन्सान पन्न तुमको मिला। अपना विगाना छोड़ के, मलपन्न सत्रों से कीजियो || २ || गर तुमें कोई जान करके, वे जबां मुंह से कहे। जमीन के माफीक रहो, हरगिज न उस पै खीज़ियो || ३ || मिला तुम को डर सुनाने वाला व डरियो जरा । नेक नसीहत का यह शरचत, शोक से तुम पीजियो || ४ || गुरु के प्रसाद से कहे, चौथमल . ऐ साहियो । आराम जो चाहो भला, नेकी पै हरदम : रीजियो ॥ ५ ॥ 1 . ३७७: परस्त्री निषेध.: ; ( तर्ज-मथुरा में आकर जन्म लिया, देखो जब बंशी वालेने) जो जोबन के हो मद, माते; परनारी को गरं चहाते Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , जैन सुबोध गुटका । (२७५) namruna.....maamaraamaaaaaaaaaaaa........ हैं। वे सर्वस्व को बरबाद करी, आखिर पापी पछताते हैं ॥१॥ दीपक की लो वत नारी पे लंपट पतंग परे जाके । वर्जेन रहे दुख पावत है, जल जल के प्राण गमाते हैं ॥२॥ 'देखी गरों की औरत को, कामान्ध फिदा होजाते हैं। खतर जीना करने को, जाहिल आमाद होजाते हैं ॥३॥ इज्जत का कुछ भी ख्याल नहीं, निर्लज्ज निडर बनके जालिम । पापों से लेटर भर भर के, दोजख को अपनाते हैं ।। ४ ।। गरम बना लोहेकी पुतली,उसके सीने से चेंटाते हैं । गुजों की उन्ह पै मार पड़े, रो रो के वहां चिल्लाते हैं ॥५॥ लंकपति की लंक गई,और पद्मनाभ का राज गया। लाखों नरका नुकसान हुअा, लो तब भी बाज नहीं आते हैं ।। ६ ।। श्रागम वैद्यक पुराणों में, कुरान अंजील भी मना करे । हाकिम भी पीनलकोड खोल के, फौरन दफा लगाते हैं ॥ ७ ॥ दिन चार का है महमान यहां, मत जुल्म पै अपनी बांध कमर । कहे चौथमल धन्य उस नरको, परनारी को बहिन बनाते हैं ॥ ८॥ 2. . ३७८ भाग्य बलवान्, . . (तर्ज-पूर्ववत् ) ___ चाहे जितनी तूं तदबीर करे तकदीर लिखा वही पावेगा। चलती नहीं हुज्जत यहां किसकी, चाहे कितना Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७६.) जैन सुबोध गुटका । • मगज लड़ावेगा ॥ १ ॥ तूं चाहे बनूं फोजी अफसर, या रईस बनूं सिर चमर दुरे । जो लिखा जेल मुकद्दर में, तो | इसको कौन हटावेगा ॥ २ ॥ प्रभु आदिनाथ फिरे घर घर, नहीं बारे मास उन्हें हार मिला । नल राजा सा चनवास रहे, जो होनी होके रहावेगा || ३ || पढ़े लिखे श्रलिम फाजील वो, सिख हजारो हुन्नर को । मकसुम, बिना न रखे कोई, दर दर यह फिर फिर आवेगा ॥ ४ ॥ जर 'जेवर मेल तिजोरी में, दे ताला कुंजी पास रखे । तकदीर 'बिनाधन कहां रेहवे, वह यूं का यूं ही उड़ जावेगा ||५|| चित्र मयूर गया हार निगल, विक्रमसा भूप चउरंग हुवे । घांची के घर फेरी वाणी, फेर भावी क्या दिखलावेगा ॥ ६ ॥ कटपुतली वत् यह कर्म विश्व में, कैसा नाच नचाते हैं । कहें चौथमल विधना की रेख पर, कहो कुण मेख लगावेगा ॥ ७ ॥ 1 f ३७६ कृष्ण लीला... ( तर्ज - बंशी वाले ने ) मथुरा में आकर जन्म लिया, देखो जब वंशी वाले ने । और कंश की भूमि दी थर्रा देखो जब बंशी वाले ने || टेर ॥ थी अर्ध निशा अंधेरी वो, घनघोर घटा भी छाय रही । तनु तेज़ से किना उजियाला, देखो, जब वंशी वाले ने ।। १ ।। कर कमलों में वसुदेवजी, ऊठा चले वो झट पट से । 4 Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन सुवोध गुटका। (२७७) फेर यमुना के दो माग किये, देखो जब वंशी वाले न ॥२॥ सहस्र नागने छन किया, नहीं पड़ा बूंद जब पानी का । किनी जब गोकल को पावन, देखो जब बंशी वाले ने ॥३॥ मात यशोदा प्रसन्न हुई, और नन्दने महोत्सव खूब किया । घर घर में श्रानन्द मना दिया, देखो जब वंशी वाले ने ॥ ४ ॥ वीज कला जूं आप बढ़े, खेले घुमे फिरे श्रांगन में । दी धूम मचा लड़कों के संग, देखो जब घंशी चाले ने ।। ५.॥ यमुना के तट पे खेल करा, गई डूब गेंद कालीदह में । फेर नाग. नाथके गेंद लिया, देखो जब बंशी वाले ने ।। ६ ।। दही दूधका दाण लियां, ग्वालन से आप मुरारी ने । गिरीराज उठाया अंगुली पे,जय काली कम्बली वाले ने ॥ ७ ॥ सज्जन का संकट दूर हरा, और मारा कंश अन्याई को। फिर जीत का डंका त्रिखएड में, बजवा दिया वंशी वाले ने ॥ ॥ त्रियासी साल उदयपुर में, यह चौथमल चौमास किया। उपकार कराथा भारतमें, नन्दजी के कनैयालाले ने ॥ ६॥ ... ... . ३८० समय से सावधान.. (तर्ज-यह फैले घाल विस्नरे), : वक्त हरगिज.न सोने का, बनो होशियार तुम झटपट.! 'जमाना रंग बदलता है, करो विचार तुम अटपट ॥ टेर॥ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७८) जैन सुवोध गुटका। नशा करके सुना. गाना, और खाना फर्ज माना।। ऊंच हो नीच नारी संग करो क्यों प्यार तुम झटपट ॥१॥ ले हथियार जंगल में, जाकर बैठ जाते हों । बड़ी खुशी मनाते हो, खेल शिकार तुम झटपट ।। २॥ एड़ो इतिहास और देखो, करा क्या काम पुरखों ने. । सत्यता वीरता दिखला, वनो सरदार तुम भ.टपट ॥३॥ था पृथ्वीराज वो चौहान वना अयासी एकदम स । ख.या राज. यह सोची, बनो तैयार तुम झटपट ।। ४-॥ हुए प्रताप से भूपत, सहे' सदमें विपिन में जा । रखा था धर्म यह बातें, न दो विसार तुम झटपट ॥ ५ ॥ रखेगा धर्म को कोई, उसे करतार रखता है। चौथमल | करेः शिक्षा, उसे लो धार तुम झटपट ॥६॥ . ३८१ उपदेशक का कर्तव्य, (तर्ज-पूर्ववत्) ___तुमारी देख के बादत, नहीं उपदेश दे सकते । मगर सच्ची कहे विन हम भी हरगिज रह नहीं सकते ॥ टेर ।। असली शेर होकर आप, साथ कुत्ति के रमते हो । इसी तुफैल से तारीफ, जां में ले नहीं सकते ॥ १॥धरा रख के दबाते हो, जाल का खंत बनाते हो । जुल्म ऐसे कमाते हो, लिहाज से कह नहीं सकते. ॥ २॥ नशे में चूर रहते हो, सत्संग से दूर रहते हो।.नर्क के दुख हैं ऐसे, जिसे तुम संह Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन: सुबोध गुटका ! (२७६) नहीं सकते ॥३॥ चौथमल कहे प्रभु भजलो, पाप का फैसला करलो । बनालो काम मौके पे, फेर तुम कर नहीं सकते ||४|| - ३८२ उपदेश. ( तर्ज - पूर्ववत् ) करो कुछ गोर दिल अन्दर, साथ में क्या लेजावोगे । सचाव का काम तुम करलो, सदा आराम पावोगे || टेक ॥ अमूल्य वक्त को पाके, निन्द गफलत की सोते हो | सुनी को बे सुनी करके, नतीजा क्या उठावोगे || १ || कहे सत्संग की तुमको, बताते हो नहीं फुरसत । महफील में रात . खोते हो, गुना यह कहां छिपावोगे || २ || चले नहीं पेर. वाई वहां, मुलाजा ना गिने किसका । पालसी सामने • उसके, कहो कैसे चलावोगे | ३ || यहां चन्द रोज के लिये, चनाया आपने बंगला | करो महोबत यहां जिससे, उसी को • छोड़ जावोगे ॥ ४ ॥ बना यह खाक का पुतला, सदा रहता ..नहीं कायम | चौथमल की नसीहत पे, अगर ईमान लावोगे ॥ ५ ॥ • रु ३८३ महावीर का भण्डा [ तर्ज-मथुरा में आकर जन्म लिया ] ." दया धर्म का डंका दुनियां में बजवा दिया त्रशला Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८०) जन सुवोध. गुटका नन्दनने । अहिंसा, धर्म को पालम में, फैला दिया त्रशला नन्दनने ॥ टेर । अग्नि कुण्ड रचात थे, वे अपराधं पशुको जलाते थे । दे उपदेश उन अनाथों को, बचा दिया त्रशला नन्दनने ॥१॥ वस्त्र रुद्र से सराहुया नहीं, शुद्ध रुद्र से होता है । हिंसा से धर्म न होय कभी, जितलाया त्रशला नन्दनने ॥ २॥ आम खाने की बाईस से, वोया पाक इसी वायस से । कहो उनको कैसे आम मिले, फरमाया त्रशला नन्दनने ॥ ३॥द्वादश अंग रची बानी, सब जीवों के हितको जानी । प्रश्न व्याकरण सूत्र विषय, बतलाया त्रशला. नन्दनने ॥४॥ अगर आराम को चाहते हो, क्यों नहीं दया अपनाते हो । कहे चौथमल यूं, श्री मुख से फरमाया . त्रशला नन्दनने ॥ ५॥ .. ::, · Tara ३८४ वीर जन्मोत्सव . [तर्ज-पूर्ववत् ] ' अवतार लिया जब भारत में, जिस समय या त्रशला नन्दनने । उद्योत हुआ त्रिलोक विषेलिया, जन्मश्रा त्रशला नन्दन ने ।। टेर ॥ इन्द्र इन्द्राणी पाकर के, सुमेरु गिरि लेजा करके । फिर अति आनन्द मनाया है, जब निरखी त्रशला नन्दनने ॥ १ ॥ इन्द्र के हृदय संशय श्राया, देखी प्रभुजी की लघु काया । फिर पांव अंगुष्टे मेरु को, कंपाया Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (२८१) प्रशला नंदन ने ॥२॥ गुन्नतीस वर्ष गृहवास रया, एक वर्ष का वर्षी दान दिया । एक क्रोड़ अष्ट लक्ष सौनया दिया, नित प्रति त्रशला नंदन ने ॥३॥ फिर लेके संयम भार प्रभु भव जीवों का उद्धार किया । उपदेश दिया जीव रक्षा का कर करुणा त्रशला नंदन ने ॥४॥अभिमान बीच में छाकर के, खड़े इन्द्रभूति जो आकर के । जब संशय उनका दूर किया, स्वामीजी त्रशला नंदन ने ॥ ५॥ कई जीवों को तार दिया, प्रभु अब तो हुक्म हो मेरे लिये। गुरु प्रसादे 'चौथमल की अर्जी यह प्रशला नंदन ने ॥६॥ . ३८५ जप महत्वता . . [त पूर्ववत् । सुख सम्पत की गर चाय दुवे, कर जापतूंत्रशला नंदन का रोग अरु शोक मिटे तत्क्षण, कर जाप तूं प्रशला 'नंदन का ।।टेर । यही तारण तिरण जगत स्वामी है घट २ कि अन्तरयामी । मन वंछित फल सब पावेगा, कर जाप तूं अशला नंदने का ॥१॥मात अरुं तात जोन्याती है । सब । स्वार्थ का जग साथी है। शिवपुरी की तुम्हें चाह हुवे, कर जाप • तूं त्रशला नंदन का ॥ २॥ यही ब्रह्मा, विष्णु, महेश सही, , यही पुरुषोत्तम जगदीश सही। चित्त की वृत्ति को शुद्ध करे। · कर जाप तूं त्रशला नंदन का ॥३॥बयांसी साल चौमासा Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८२) जैन सुबोध गुटका । किया, नये शहर विष आनंद भया । गुरु प्रसाद चौथमल कहता है, कर जाप तूं त्रशला नंदन का ॥४॥ ३८६ पूर्व परिचय [तर्ज-भारत में प्रालिजाएं थी इन्लाने किसी दिन] दुनियां में कैसे वीर थे, मोजूदा किसी दिन । तारीफ जिन की करते थे, हर जा में किसी दिन ॥ टेर ॥ लवजी ऋषि लोकाशाह, धर्मसी महात्मा । करने को परहित जान तक, देते थे किसी दिन ॥१॥ गणधर ग्यारे हो चुके, चरचा में वीर थे । उन से शरमाया करते थे, विद्वाने किसी दिन ॥२॥ बाहुबली योद्धा 'हुवे, भारत के बीच में। पहाड़ तक थरराते थे, सुन वाज किसी दिन ॥ ३॥ .विक्रम प्रजा के वास्ते, कर सहन आपत्ति । घर घर पूछा करते थे, आराम किसी दिन ॥४॥ है कीर्ति मौजूद श्राज, कर्ण भूप की । दीनों का पालन करते थे, दे : दान किसी :दिन ॥ ५ ॥ संघरथ शिवी-सा भूपति, दया के वास्ते । काया को खंडन करते थे, वे वीर किसी दिन ।। ६॥ उठा लिया गिरिराज को, अंगुली पे पलक में । अवतारी ऐसे होते थे, जहां में किसी दिन ॥ ७ ॥ अपने धर्म के वास्ते, राणा परतापसिंह । बनवा कर रोटी घास की, खाते थे किसी दिन ॥ ८॥ कहे चौथमल चेतो जरा अए हिन्द Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका । (२८३) वासियों। वरना तुम पछतावोगे, लो मान किसी दिन ॥६॥ ३८७ क्षमा [ तर्जकही मुश्किल जैन फकीरी ] गम खाना चीज बड़ी है, कोई नर देखोरे गम खाय के ॥टेक ॥ गम खाई महावीर जी वन में, घोर परीषा सहे हैं तन में, राग द्वेष को जीता छिनमें, शुक्ल ध्यान को ध्याय के मिली केवल ज्ञान शिरी है ॥ १॥ गम खाई मुनिराज उदाई, भाणेजे दिया जहर दिलाई, समता दिल में ऐसी ठाई. दिने कर्म खपायके, गए मोक्ष में उसी घड़ी है॥२॥ गम खा राम बनवास सिधारे, पिता बचन शीप पर धारे, कैकई पै न किया रोप लगारे, गए विपिन बीच हुलसाय के, जाके कंधे वीर पड़ी है ॥३॥ दिया जहर और किया अकाजा, राणी ने नहीं रखा मुलाजा, गम खाई परदेशी राजा, हुवा देव स्वर्ग में जाय के, देवियां कर जोड़ खड़ी है ॥ ४ ॥ सुदर्शन सेठ ने भी गम खाई, शूली पर दिया भूप चढ़ाई, देव सिंहासण दिया बनाई, सकल विषन हटाय के, सत्य धर्म की महिमा करी है ॥५॥ ऐसे जो कोई गम खावे, सो नर मन वंछित फल पावे, चौथमल तो साफ सुनावे, उलट भावना लायके, पियो संमता रस जड़ी है ॥६॥ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८४) जैन सुबोध गुटका। . . . ३८८ भागम: का लहत्वता.:. . . . (तर्ज-भारतमें आलिजाएं थी इन्साने किसी दिन) इस कलिकाल के बीच में, है सूत्र का आधार । करो आराधन भावसे तो निश्चय हो उद्धार ॥ टेक ॥ तीर्थकर न केवली, भारत के बीच में । मन पर्यव अवधि ज्ञानी भी नहीं संशय के हरनार ॥ १॥ जंघाचारण विद्याचारण मुनि यहां नहीं । श्राहारिक लब्धि के भी धारी, नहीं कोई अरणगार ॥२॥ अङ्ग उपाङ्ग मूल छेद, और आवश्यक । जो कुछ भी है तो इन पर ही है, सारा दार मदार ॥३॥ जिन वन परं श्रद्धान रख लाखों का द्रव्य त्याग । वे साधु साध्वी बनते हैं, तज मोह माया इसवार ॥४॥ कहे चौथमल जलगांव के श्रोता सभी सुनो. । तुम. पढ़ो.. पढ़ावो प्रेम से, करो अागम का प्रचार ॥ ५ ॥ . . . ... -sxe+s- . : ३८६ झूठ निषेध . . . (तर्ज-दिल चमन तेरा रहे, जिनराज का स्मरण किया ) . .. सोच नर इस झूठ से, अाराम तूं नहीं पायगा । हर जगह दुनियां में नर, प्रतीत भी उठ जायगा । टेर ।। सांच भी गर जो कहे. ईश्वर की खाकर कसम । लोग गप्पी जान के, ईमान कोई :नहीं लायगा ।। १ ।। क्रोध भय अरु हाग्य चौथा, लोम में हो अंध नर । बोलते हैं Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका । (२८५) MARAN झूठ उन्ह के, हाथ में क्या पायगा ।।२।। झूठ पोशीदा रह, कहां तक जरा तुम सोचलो । सत्यता के सामने, शिरमन्दगी उठायगा ॥३॥ भूठे पोले शख्स की, दोजख में कतरे जवाँ । बोलकर जाव बदल, उसका भी फल वहां पायगा ॥ ४ ॥ बोलता है भूठ जो तूं, जिसलिय अए बेहया । वह सदा रहता नहीं, देख देखते बिरलायगा ।।। झूठ बोलना है मना, सब धर्म शास्त्र देखलो। इसलिये तज झूठ को, इजत तेरी बढ़ जायगा ॥६॥ गुरु के प्रसाद से कहे चौथमल सुनलो जरा । धारले तूं सत्य को, पावागमन मिटजायगा ।। ७॥ ३६० ममत्व त्याग, [त-पूर्ववत् ] क्या पाप का भागी बने नूं,अए सनम धन के लिये । जुल्म कता.गेर पर तूं , ए सनम धन के लिये ॥ टेर ॥ तमन्ना ऐसी बढ़ी, हक हलाल को गिनता नहीं । छोड़ के अजीज को, परदेश जा. धन के लिये ॥१॥ स्वमा रंदा भी न देखा, नहीं नाम से जाना सुना। गुलामी उनकी करे, तुं देखले धनके लिये ॥२॥ फकीर साधु पास जा, खिदमत करे कर जोड़ के | बूंटी को ढूंढे सदा. तूं, अए सनम धन: के लिये ॥३॥ इसके लिये भाई . वधुओं से, मुसदमा बाजी. करे । कोरटों के बीच में Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८६ ) जैन सुबोध गुटका । तूं घूमता धन के लिये ॥ ४ ॥ इसके लिये कर खून चोरी, फेर जावे जेल में । झूठी गवाह देता चिगानी, अएं सनम धन के लिये ॥ ५ ॥ तकलीफ क्या कमती उठाई जिनरक्ष जिनपालने | सेठ सागर प्राणं खोया, समुद्र में धन के लिये || ६ || फिसाद की यह जड़ बताई, माल और औलाद को | कुरान के अन्दर लिखा है, देखलो धन के लिये ॥ ७ ॥ भगवान श्रीमहावीर ने भी, गूल अनरथ का कहा । पुराण में भी क्या लिखा है, फेर इस धन के लिये ॥ ८ ॥ गुरु के प्रसाद से, करे चौथमल ऐसा जिंकर 1 धारले संतोष को तूं, मत मरे धनके लिये ॥ ६ ॥ ३६१ राग परित्याग. [ तर्ज- पूर्ववत् ] मान मन मेरा कहा, तूं राग करना छोड़दे । श्रवा गमन का मूल है, तूं राग करना छोड़दे || टेर ॥ प्रेम श्रीति स्नेह मोहबत, आशक भी इसका नाम है । कुछ सूझता इसमें नहीं, तूं राग करना छोड़दे ॥ १ ॥ लोहकी जंजीर का बंधन नहीं कोई चीज है । ऐसा है बंधन प्रेम का तूं राग करना छोड़दे ॥ २ ॥ सुरासुर और नर पशु, इस राग के फंद में फंसे । फिरते फिरे वे भान हो, तूं राग करना छोड़ दे ॥ ३ ॥ धन कुटुम्ब यौवन जिस्म से, स्नेह " 1 • · Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुयोध गुटका। (२८७) AAAANAAAAAA.. MMn. निश दिन कर रहा । ख्वाब के मानिंद समझ, तूं राग करना छोड़दे ॥ ४॥ जीते जी के नाते सब, ये प्राणप्यारी और अजीज । आखिर किनारा वो को, तुं राग करना छोड़दे ॥ ५ ॥ इन्द्री विषय में मुग्ध हो, गज मीन मधुकर मृग पतंग | परवा न रखते प्राण की, तूं राग करना छोड़द ॥ ६॥ हिरण वो है जड़ भरतजी, भागवत का लेख है । सेठ एक कोड़ा बना, तूं राग करना छोड़द ॥७॥ पृथ्वीराज मशगुल हुआ, संयोगनी के प्रेम में। गई बादशाही हाथ से, तूं राग करना छोड़दे ॥८॥ वीर भापे वत्स गौतम, परमाद दिलसे पहरो । श्रान प्रगट ज्ञान कंवल, राग करना छोड़दे ॥ 8 ॥ गुरु के प्रसाद से कहे चौथमल वीतराग हो । कर्म दल हट जायगा, तूं राग करना छोड़दे ॥ १० ॥ ३६२ द्वेष परित्याग. (तर्ज पूर्ववत् । चाहे अगर श्राराम तो तं, द्वेप करना छोड़दे। कुछ फायदा इसमें नहीं तं, द्वेप करना छोड़ दे।। टेर ।। द्वेषी मनुष्य की देख सूरत, खून बरसे श्राखसे । नसीहत असर करती , नहीं, तूं द्वैप करना छोड़दे ॥ १ ॥ बहुत अरसे तक उसका .पाक दिल होता नहीं। बने रहे पद ख्याल हरदम, द्वेप Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 (२८) : जैन सुधोध गुटका । करना छोड़दे ।। २ ।। पूछा हमें हम हे बड़े, मत बात करना गरकी । दुवैल बने यश औरका सुन, द्वेप करना • छोड़दे ।। ३.॥ देख के जरदार को,या संखी धनवान को। क्यों जले ए वहया, तू द्वप करना छोड़द ॥ ४॥ हांकमी . या अफसरी गर, नौकरी किसकी लगे। सुन के बने नाराज क्यों, तूं द्वप करना छोड्दै ।। ५ ॥ देख गजसुखमाल को द्वष सौमल न किया । दुर्गति उसकी हुई, तूं द्वेप करना छोड़दे ॥ ६ ॥ पाण्डवों से कौरवों ने, कृष्ण से फिर कंस न । विरोध कर के क्या लिया, तूं द्वेष करना छेड्दे ॥ ७॥ माता पिता भाइ भतिजी, दास अरु.५क्षी पशु । तकलीफ जया देता उन्हें, तू द्वंप करना छोड्दे ॥ ८॥ गुरुं के प्रसाद से, कहे चौथमल सुनल जरा । ज्यारमां यह पाप है, तूं द्वेष करना छोड़दे ॥ ६ ॥ . .. ' www.::: 5/३६३ क्लेश परित्याग. (तर्ज-पूर्ववत्) । श्राकवत से डर जग तुं, क्लेश करना छोड़ दे। महापीर का फर्मान है, तुं क्लेश करना छोड़दे ॥ टेर ।। जहां लड़ाई वहां खुदाई, हो जुदाई ईश से.. इत्तफाक गौहर क्यों सजे, तं क्लेश करना.छोड़दे ॥ १॥ ना बटे लड्डू लड़ाई, बीच कहावत जक्त में.। बेजा कहे बेजा-सुने, तूं क्लश करना 19. Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (२८६) छोड़दे ।। २ ।। पूजा करे ले जूतियों से, बल के ले हथियार को । सजा अाफ्ता भी बने, तूं क्लेश करना छोड़दे ॥३॥ सन्टर जेल के बीच तुझको, याद रख रखवाऊंगा एब तक जाहिर करे, तूं क्लश करना छोड़दे ।। ४ ।। रावण विभीपण से लड़ा, पहुंचा बिभीषण राम पां दिखो नतीजा क्या मिला, तूं क्लेश करना छोड़ दे ॥ ५॥ हार हाथी के लिये, कोणक चड़ा से भिड़ा । हाथ कुछ आया नहीं, तूं क्लेश करना छड़दे ॥ ६॥ कैकई निज हाथ से, यह बीज बोया फूट का । भरतजी नाखुश हुए, तूं क्लेश करना 'छोड़दे ॥ ७ ॥ हसन और हुसेन से, बेजा किया यजीद ने। हक में उसके क्या हुश्रा, तूं केश करना छोड़दे ॥८॥ गुरु के प्रसाद से, कहे चौथमल सुनले जरा । पाप द्वादशमां बुरा, तूं क्लेश करना छोड़दे ॥ ६ ॥ ३६४ तोहमत निषेध. .. (तर्ज पूर्ववत्).. ' . इस तरफ तं कर 'निगाह तोमत लगाना छोडदे। तुफैल है यह तेरवां, तोमत लगाना छोड़दे ।। टेर । अफसोस है इस बात की, ना सुनी देखी कभी । फौरन कहे तेने किया, तोमत लगाना छोड़दे ॥१॥ तंग हालत देख किसकी, तुं बताता चोर है। बाज आ इस जुल्म से, तोमत लगाना Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९०) जैन सुवोध गुटका। mammúrinnamanniminimininterromania छोडदे ॥२॥ मर्द औरत युवान देखी, तूं बताता बद चलन । बुढ़िया को कहे डाकण है, तोमत लगाना छोड़दे ॥३॥ सचे को झूठा कहे, ब्रह्मचारी को कहै लंपटी। कानून में इसकी सजा, तोमत लगाना छोड़दे ॥ ४॥ अपने पर खुद जुल्स दुनियां, देखलो ये कर रही । मालिक की मरजी कहे, तोमंत लगाना छोड़दे ॥ ५॥ जो देवे कलंक गैर के सिर, आचे उसी पर लौट कर । जैनागम यह कह रहा, तोमत लगाना छोड़दे ॥६॥ गीता पुराण कुरान अजील, देखले सवमें मना। इस लिये तूं बांज आ, तोमत, लगाना छोड़दे ॥७॥ गुरुके प्रसाद से कहे, चौथमल सुनले जरा। मान ले नसीहत मेरी, तोमत लगाना छोड़दे ।।८।। ३६५ चुगली निषेध. तर्ज-पूर्ववत् ].... साफ हम कहते तुझे, चुगली का खाना छोड़दे। चतु. दशवां पाप है, चुगली का खाना छोड़दे ॥टेर । चुगल खोर खीताय तुझको, नसीय वर होगा सही। ऐसे समझ कर बाज आ, चुगली का खाना छोड़दे ॥१॥ इसकी उसके सामने, और उसकी इसके सामने । क्यों भिड़ाता है किसे, चुगली का खाना.छोड्दे ॥२॥ जिसकी चुगली खाता है, इन्सान गर वह जानले । बन जायगा दुश्मन तेरा, चुगली का खाना Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mimin जैन सुवोध गुटका। (२६१) छोड़दे ॥३॥ इसके जरिये हो लड़ाई, कैदमें भी जा फसे । जहर खा कई मरगये, चुगली का खाना छोड़दे ॥४॥ शोको भिंडाई रामने, बनवास सीताको दिया । आखिर सत्य प्रगट हुवा, चुगली का खाना छोड़दे ॥५॥ गुरु के प्रसाद से कहे, चौथमल सुनलो जरा | पाकवत का खोफ ला, चुगली का खाना छोड़दे ॥६॥ ३६६ निन्दा परित्याग. ...[तर्ज पूर्ववत्] . आवरु बढ़ जायगी, निन्दा पराई छोड्दे। मानले कहना मेरा, निन्दा पराई छोड़दे ॥टेर ॥ तेरे सिर पर क्यों धेरै तूं,खाख लेके और की । दानीसमंद होवे अगर, निन्दा पराई छोड़दे ॥१॥ गुलाब के गर शूल हो, माली के मतलव फूल से । धार ले गुण इस तरह, निन्दा पराई छोड़दें ॥२॥ खूब सूरती कव्वा न देखे, चींटी न देखे महल को । जरोख जैसें मतं बने । निन्दा पराई छोड़दे ॥३॥ पीठीमै सं इसको कहा, भगवान श्री महावीर ने । मीसाल शूकर की समझ; निंदा पराई छोड्दे ॥४॥ गिन्वत करे नर गेर की, वो भाई का खाता है गोश्त । कुरान में लिखा सफा, निन्दा पराई छोडदे ॥।॥ सुन भी ली चाहे देखली, गर पूछली कोई शख्स से । झूठ हो चाहे सांच हो, निन्दा Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६२) जन सुवोध गुटका। wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwimminimirmire पराई छोड़दे !॥ ६॥ गुरु के प्रसाद से. कहे, चौथमल सुनले जरा । है चार दिन की जिन्दगी, निन्दा पराई छोड्दे॥७॥ - --- ३६७ पाप. [ तर्ज--पूर्ववत् ] वीर ने फरमा दिया है, पाप यही सोलमां। अखत्यार हरगिज मत करो, है पाप यही सोलमांटिरा सत्संग तो खारी लगे, कुसंग में रहे रात दिन । जुआ वाजी बीच राजी, पाप यही सोलमां॥१॥ दया दान - सत्य शील की, नसीहत करे गर जो तुम्हें । बिलकुल पसंद आती नहीं, है पाप यही सोलमां ॥ २ ॥ गांजा. चड़स चंडू: तमाखू, बीड़ी सिगरेट संग को । पी पी मगन रहते सदा, है पाप यही सोलमां ॥ ३ ॥ ज्ञान ध्यान. ईश्वर भजन.में, नाराज तूं रहता सदा । गोठ नाटक में मगन, है पाप यही सोलमा . ॥४॥ऐश में माने रति, अरति वेदे धर्म में । कुंडरिल ने खोया जनम, है पाप. यही सोलमां ॥५॥ अर्जुन मालाकार ने, महावीर की. वाणी सुनी । चारित्र ले त्यागन किया, पाप यही सोलमां ॥ ६॥ गुरु के प्रसाद से, कहे चौथमलं सुनले जरा । चाहे भला तो मेट जल्दी, पाप यही सोलमां ॥ ७॥ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६६) जैन सुवोध गुटका। mernamaANAAN A-AAAAAAAMKARNarna. ॥३॥ कौन है मादर फादर, कौन तेरे सज्जन हैं । धन माल यहां रह जायगा, तेरे लिये तो कफन है । ऐसी जान के पाप कमावो, मती ॥४॥ साल छियासी भुसावल, आया जो सेखे काल में । चौथमल उपदेश श्रोता को, दिया बाजार में जाके होटल में धर्म गमावो मती ।।५।। ४०२ उपदेशी पद. . . [तर्ज-पूर्ववत् ] महावीर से ध्यान लगाया करो, सुख सम्पत इच्छित पाया करो ॥ टेर ॥ क्यों भटकता जल में, महावीर-सा दुजा नहीं । त्रशला के नन्दन जक्त चन्दन, अनंत ज्ञानी है वही । उनके चरणों में शीश नमाया करो ॥१॥ जगत भूषण विगत दूपण, अधम उधारण वीर है । सूर्य से भी तेज है, सागर के सम गम्भीर है। ऐसे प्रभु को नित्य उठ ध्याया करो ॥२॥ महावीर के प्रताप से होती विजय 'मेरी सदा मरे वसीला है उन्हीं का, जाप से टले आपदों। जरा तन मन से लोह लगाया करो ॥ ३॥ लसानी ग्यारे · ठाणा, भाया चौरासी साल है। कहे चौथमल गुरु कृपासे, "मेरे व मंगल माल है। सदा आनन्द हर्ष मनाया करो ॥४॥ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेन सुवोध गुटका। (२९७) , ४०३ उपदेशी पद. .(तर्जना छेड़ो गाली दूंगारे) जो श्रानन्द मंगल चाचोरे, मनावो महावीर ॥ टेर ॥ प्रभु त्रशला जी का जाया, है कञ्चन वर्णी काया । जाँके चरणा शीश नमावोरे, मनावो महावीर ॥ १॥ प्रभु अनंत ज्ञान गुणधारी, है सूरत मोहनगारी | जां का दर्शन कर सुख पावोरे, मनाचो महावीर ॥ २ ॥ या प्रभुजी की मीठी वाणी, है अनन्त सुखों की दानी । थें धार धार तिरजावोरे, मनावो महावीर ॥ ३॥ जांके शिष्य बड़ा है नामी, सदा सेको गौतमस्वामी । जो रिद्धि सिद्धि थे पावोरे ॥४॥ थारा सर्व विषन टलजावे, मन वंछित सुख प्रगटावे । फेर आवा गमन मिटाबोरे, मनावो महावीर ।। ५ ॥ ये साल 'गुण्यासी भाई, देवास शहर के माई । कहे चौथमल गुण गावोरे, मनावो महावीर ॥ ६ ॥ ....४०४ क्षमापना (तर्ज-कन्चाली). श्री संघ से विनय कर के, आज सवको क्षमाते हैं। मन वच कर्मणा करके, आज माफी चहाते हैं। टेर ॥ उपसम सार संयम का, होय शुद्धि निजात्म की । वीरवाणी हृदय धर के, आज सबको.क्षमाते हैं ।। १ ।। अईन सिद्ध Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६८) : जैन सुबोध गुटको । mamanannnnnnnnnnnnnnnnn AAAAP श्राचारज,उपाध्याय सर्व संतों को । नमा के शीश करजोड़ी, आज सबको क्षमाते हैं ॥ २.॥ चौरासी लक्ष योनी के प्राणी भूत जीव सत्तच । प्रातमवत् समझ करके, आज सबको क्षमाते हैं ॥ ३ ॥ क्षमाना और क्षमा करना, है . सवोत्तम यही जग में । समझ के धर्म यह अपना, प्राज सबको क्षमाते हैं ॥ ४ ॥ जो गलती हुई हो मुझसे, आप क्षमजो सकल भ्राता | चौथमल शुद्ध भावों, आज सत्र को क्षमाते हैं ॥ ५ ॥ . स्तवन नम्बर ४०५ ( तर्ज-तूही तूही याद अांबरे दर्द में ) शान्ति शान्ति शांति चाहूं, शान्ति प्रभु से शान्ति चाहूं ॥ टेक । शान्तिमयी हो जग यह सारा, सदा भावना ऐसी चाहं ॥१॥ राग द्वेप दोई दर हटा के, शान्तिमयी जीवन बना हूं ॥ २ ॥ शान्ति रूप स्वरूप है मेरा, इसी बीच में चित्त रमा हूं ॥३॥ओं३म् शान्ति ओ३म् शान्ति,इसी मंत्र से ध्यान लगा हूं.॥४॥.चौथमल कहे शान्ति जपी, मैं सुख सम्पत आनन्द फल पाहूं ॥ ५ ॥ स्तवन नम्बर ४०६. . . . . (रा- मेरे मोला की मैं तो) · वीर प्रभुका मैं तो दर्श किया । टेक ॥ हाथ जोड़ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन मुबोध गुटका। (२६६) कर मेघ कुंवरजी, कहे माता से श्राय । भेटे आज प्रभु को मैंने, सफल करी निज काय ॥१॥ अद्भुत वाणी,सुन कर. जाना, यह संसार असार । है स्वार्थ की दुनियां सारी, कोई न आवे लार ॥२॥ छाया घद वैराग्य हमारे, लगा. संयम भार । दीजो आज्ञा जननी गुमको, कगे न किंचित् वार ।। ३ ।। मुनि वनूगां मैं तो गाना, छोड़ी सब घरवार । सुनकर माता पड़ी जमी पर, छूटी आंसू धार ॥ ४॥ सहल नहीं है संयम जाया, है खाएडा की धार । विविध भांति समभाया पर नहीं, मानी मेघ कुंवार ॥५॥ महोत्सव करके संयम दिलाया, माता धारनी नार । मेघकुंवरजी करणी करके, पहुंचे स्वर्ग मझार ॥ ६ ॥ साल सित्यासी बारा संत मिल, पारामति में आया । गुरु हीरालाल प्रसाद चौथमल, जोड़ सभा में गाया ।। ७॥ नम्बर ४०७ तर्ज-चर्खा चला चला के ] अंघ को जला जला के, मुक्ति का राज लेंगे ॥ टेक ॥ "क्षमा का. खड्ग लेकर क्रोधादि दुश्मनों को । सम्पूर्ण नष्ट करेंगे, मुक्ति का राज लेंगे ॥ १॥ चारित्र पालने में होती है. जो कठिनता । उस से न हम डरेंगे, मुक्ति का राज.लेंगे, ।२॥ जो धर दिया है आगे, हमने कदम हमारा । पीछे Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३००). जैन सुबोध गुटका। न हम हटेंगे, मुक्ति का राज लेंगे॥३॥ निज देश वा हमारा, है प्राण से भी प्यारा । सुख से वहां रहेगें, मुक्ति का राज लेंगे॥ ४॥ यों चौथमल 'सुनाता, अब जागो सर्व भ्राता। सत्य सत्य हम कहेंगे, युक्ति का राज लेंगे। नम्बर ४०८ (तर्ज-कांटो लागोरे देवरिया) श्राए रूप मुनि का करके,स्वर्ग से देव विप्र के द्वाराटे मुख पर मुंहपत्ति सोहे तिनके, रजोहरण है कांख में जिनके। कर में झोरी उज्वल उनके, नीची निगाह निहाल, श्रावत देखे पुरोहित अनगार ॥१॥ कहे पुरोहित धन्य भाग सवाया । आज मुनि का दर्शन पाया। मेरे घर तुम चरण पठाया । कर गुन ग्रान वेरायो अन्न जल, तत्र बोले अनगार ॥ २ ॥ नहीं खुशी चेहरे पर तेरे, क्या कारण कहे भक्त तुमेरे । सांच सांच जाहिर करदे रे । है सब सुख महाराज, पुत्र नहीं जिसका बड़ा विचार ।। ३॥ मत कर चिन्ता मुनि फरमाया । संत श्राङ्गण परं आया । होगा संब-श्रानन्द सवाया। दो पुत्तर होवेंगा पर वे लेगा संयम भार ॥ ४ ॥ सुन कर प्रोहित मन में हर्षाया । देवं कोल कर स्वर्ग सिधाया । चौथमल ने यह पद गाया । अब कैसे ले जन्म प्रायके सों आगे अधिकार ॥ ५॥ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। ( ३०१.) नम्बर ४०६ . . . . . . . . (तर्ज-भजन). - एक दिन कजा. जबः आयगी, ये कोल हो जाने के. बाद । फिर बनेगा कुछ नहीं, मृत्यु निकट आने के बाद ॥१॥ पुण्य उदय नर तन मिला, खोते हो इस को इश्क में। आंसू बहाांगे वहां, मौका निकल जाने के बाद ॥२॥ सारी उमर धंधे में खोई, निज कुटुम्ब पोषन किया'। होगा लेखा पाकवत में, दम निकल जाने के बाद ॥३॥ जुल्म मस्कीनों पै करते, तुम दया लाते.नहीं। बदला देना होगा तुमको, नर्क में जाने के बाद ॥४॥ जीतेजी सुकृत न कुछ भी, हाथ से कीना नहीं । जाति रक्षा कब करो, खाख होजाने के बाद ॥ ५॥ चाहते हो मुक्ति तुम गर, पर दुख मिटाना सिखलो । अहंकार को तुम कब तजोगे, प्रीति निकल जाने के बाद ॥ ६ ॥ जाति के दुश्मन क्यों बनो, गांवों में धाड़े डाल कर । फूट को अब कव तजोगे, तादाद घट जाने के बाद ॥ ७ ॥ गुरु के प्रसाद से यों, चौथमल तुम से काहे । धर्म क्रिया कब करोगे, मनुज तन खोने के बाद ॥८॥ नम्बर ४१०. (तर्ज-मेरे खामी बुलालो) पर नियासे प्रति लगावो मति,उनके दरपर भूलके जावो मति Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०२ ) जैन सुबोध गुटका | 4" || ढेर || पाप है इस में जबर, हर ग्रन्थ में बतला दिया । कुरान और पुराण देखो, सब जगह जितला दिया । रूप देख के कोई लुभाश्रो मति ॥ १ ॥ जो जो लगे इस कर्म में, उनका फजिता हो गया । प्राण तक भी खो दिए, अपकीर्ति यहां पर बो गए। ऐसी जान कुपंथ में जाओ सती || २ || रावण कीचक पद्म नृप की, देखलो हुई क्या दशा । कुछ नहीं सुझा उन्हें । योवन का छाया था नशा । नर जन्म अमूल्य गमात्र मी || ३ || शीलन्त का यत कर लो तो प्यारो तुम सभी । चौथगल कहे गर्भ में, तुम फिर न आयोग कभी । सत्य शिक्षा को तुम विसरात्र ' मती ॥ ४ ॥ नम्बर ४११ ( तर्ज- मैं तो दासी बनी ) - सिया दूंगा नहीं, मैं तो दूंगा नहीं, रावणं कहे सुन भ्रात विभिक्षण, नहीं तेरे में ज्ञान । करता दुश्मन की कीर्ति और मुझे दबाता यान || १ || नीति और अनीति मैं तो, नहीं जानता भाई | जब तक जान जिस्म में मेरे, तब तक दूंगा नाई || २ || राम लखन दोई भील रण्य के, क्या कर सकते श्राके । नहीं जानते बल वो मेरा, अभी हटाऊं जाके || ३ || होनहार है बुरा जिसी का, सद्बुद्धि कब श्रावे ! गुरु प्रसादे चौथमल यूं, नगर शहर में गावे ||४|| Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAAAAAAA "जैन सुबोध गुटका | नम्बर ४१२ ( तर्ज - घोसो बाजोरे ) . ( ३०३ ) wwwwww श्रानंद छायोरे श्रानंद छायोरे, माता त्रशला महावीर ने जायोरे || टेर || तीन लोक में हुई खुशी, जब जन्म आपने पायो | स्वर्ग नर्क मनुष्य लोक से, तम हटायेोरे ॥ १ ॥ लप्पन कुंवारी मिल कर आई, उन्हने मङ्गल गायोरे । शक इन्द्र ले प्रभुजी को, मेरु पै सिघायोर ॥ २ ॥ चौसठ इन्द्र महोत्सव कीनो, सब ने हर्ष मनायोरे । महावीर दियो नाम आप, जब मेरु पुजायारे ॥ ३ ॥ तीस वर्ष गृहवारा रहे फिर, जग सारो छिटकायोरे । घोर परिपढ़ सहन करी, केवल प्रगटायो रे || ४ || जग जीवों पर दया करीने, द्विविध धर्म बतायोरे । कर्म काट आखिर में प्रभु, अमर पद पायोरे ॥ ५ ॥ साल व्यासी चौथमल कहे, मङ्गल श्राज मनायोरे | बम्बई शहर कान्दावाड़ी में जोड़ सुनायेोरें ॥ ६ ॥ नम्बर ४१३ ( सर्ज - कमलीवाले की ) - देकर सद्बोध जगाया हैं, भारत को वीर जिनेश्वर मे । सुपंथ सिधा दिखलायां है, भारत को वीर जिनेश्वर ने ||टेर ॥ एक क्रोड श्रष्ट लक्ष सोनैया, नित्य बारें मास तक दान • Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०४) जन सुवोध गुकटा। . ... . . . . . . . . . . . दिया। यों चनो दानी तुम बतलाया, भारत को वीर .. जिनेश्वर ने ।। १ ।। राज ऋद्धि और भोग सभी, एक छिन में त्यागन कर दीना । यो मार्ग त्याग का बतलाया, भारत को वीर जिनेश्वर ने ॥ २ ॥ अहिंसा सत्य दत्त वाचर्य, अकंचन व्रत खुद धारलिया। यों. धारन करना सिखलाया, भारत को वीर जिनेश्वर ने .।। ३ ।। कठिन तपस्या श्राप करी, और घोर परिपह सहन किए। यों करम काटना दिखलाया, भारत को वीर जिनेश्वर ने ॥ ४॥ लेकर केवल फिर मोक्ष गए, अन्तिम सन्देश सुनाया है। ' कहे चौथमल यों जाना मोक्ष, जितलाया वीर जिनेश्वर ने ॥ ५ ॥ नरवर.४१४ (तर्ज--एक तीर फेंकता जा) . पैदा हुआ है जहां में, एक दिन तो वह मरेगा। जैसे मका बना है,आखिर तो वह गिरेगा ।। टेक ।। संयोगी जो पदारथ, उसका वियोग होगा। हरगिज़ रहे न कायम, सो यत्न भी करेगा ॥ १ ॥ धातु अनल वायु, पानी पशु मनुज भी 1.संयोगी नाम सारे; कवं ज्ञान यह धरेगा १॥ २ ॥ किस को तूं रो रहा है, किस में तूं मोह रहा है। अज्ञान के हटे विन, नहीं आतमा तिरेगा 1.३:1, जीव Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। ( ३०५। अजीव दोनों, नित्य निज स्वभावी । कहे चौथमल समझले, तो कार्य सब सरेगा।॥ ४ ॥ -sx+s नम्बर ४१५ (तर्ज-छोटी बड़ी सैयांए ) - अंए मन मेरारे, प्रभु से ध्यान लगावना ॥ टेक॥ शुभाशुभ जो, वरत-रहे हैं, है यह कर्म स्वभाव । आश्चर्य नहीं लावना ॥ १ ॥ उपादान है, अपना पूर्व का २ नहीं निमित्त का दोष । द्वेष विसरावना ॥२॥ सौख्य रहा नहीं तो, दुख किम रहेसी २ यह भी जावेगा विश्लाय । सन्तोष उर लावना ।। ३॥ जो जो भाव ज्ञानी, देखे है ज्ञान में २ वरतेगा वही वस्तात्र । नाहक पछतावना॥४॥एक अवस्था रहेन किस की २ जैसे कृष्णादि राम। उन्हों पे ध्यान लगावना ॥५॥ गुरु प्रसादे, चौथमल कहे २ शहर बम्बई के माय । पुना से हुआ श्रावना :॥ ६॥ नम्बर ४१६ [तर्ज-श्रानन्द कन्द ऐसा] ... तुम द्वेपता तजोरे, चाहो अगर सुधारा ॥ टेक ॥ है पाप महान् जवर यह, दिल में जरा तो सोचो। ये हाल होंगे आगे, परं भव में वहां तुमारां ॥ १॥ निज स्वार्थ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०६) जैन सुवोध गुटका। maa. . .... ...... .... ... पूर्ति के, खातिर करे जुल्म क्यों । मरना तुझे है एक दिन, बान्धे क्यों पाप भारा ॥२॥ कर खून न्याय का तूं, दिल में खुशी मनावे । लेजायगा क्या यहां से, रहेगा सभी पसारा ॥ ३॥ करके तुराई क्यों तूं, आदत को पोपता है। जहां तक सहायी पुण्य है, सुधरेगा काज सारा ॥४॥ करले तूं प्रेम सब से, अब छोड़ पता को । होगा भला इसी में, अए दिल समझ प्यारा ॥ ५ ॥. यह पाप ग्यारवां है, महावीर ने बताया । कहे चौथमल समभाले, तुझ को , किया इशारा ॥ ६॥ . .. . नम्बर ४१७ (त-कमलीपाले की) ___ यह अधम उधारन जन्म लिया, भारत में पीर जिनश्वर ने। अंज्ञान तिमिर को दूर किया, भारत में वीर जिनेश्वर ने ॥ टेक | मिथ्यात्व भने में पड़ करके, भूलें थे जन सत्य पथ को भी। उन को सुमारंग दरसाया, भारत में वीर जिनेश्वरने ॥ १॥ समवशरण में सुर नर सिंह, बकरी पशु आदि आते थे । पर राग द्वेष को विसराया भारत में चीर जिनेश्वर ने ॥२॥ अहिंसा तत्वं सब के दिल में,प्रभु कूट कूट के भर दर्दाना । फिर हिंसा को वनवास दिया, भारत में वीर जिनश्वर ने ।। ३.॥ खूब धर्म प्रचार किया, ले दीक्षा अन्तर्यामी ने । अव रखो प्रेम.यो. सिखलाया, भारत में Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका । । ३०७) वीर जिनेश्वरन ॥ ४ ॥ साल अठयासी बम्बई बीच,निर्विघ्न चौमासा पूर्ण किया । कहे चौथमल उपकार किया, भारत में वीर जिनश्वर ने ॥ ५॥ : vyaka नम्मर ४१८ गौतमजी कर अभिमान, आडम्बर से आया है। संग में अपने कई पढ़े लिखे, छात्रों को लाया है । टेक ॥ समवसरन के बीच में, आकर के जब खड़े। देखी आनन्द जिनराज का; अति विस्मय पाया है ॥१॥ ऐसी न कला है कोई, इनको मैं जीत लूं । पड़ गए द्विधा में इन्द्रभूति, मन में पछताया है ॥ २॥ पीछा भी फिरना हैं, नहीं, अच्छा मेरे लिए करना क्या अब यों मन ही मन, संकल्प ठाया है॥३॥ बोले हैं वीर उस समय, सब ही के सामने । आओ गौतम यों आपने, श्रीमुख फरमाया है ॥ ४ ॥ जाने न कौन सूर्य को, जाहिर मेरा है नाम । इससे नहीं पूर्ण ज्ञानी, जब संशय मिटाया है ॥ ५॥ लिनी है दीक्षा आपने, संसार त्याग के । नियों में हुए शिरोमणी, गणधर पद पाया है ॥ ६॥ प्रातः ही रटो सदा, गणधर के नाम को। कहे चौथमल पाओगे ऋद्ध, नासिक में गाया है ॥७॥ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०८) जैन सुबोध गुटका । . marrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrwammam नम्बर ४१६ - (तुर्ज-इलाजे दर्द दिल तुम से) जगत के बीच नारी की, बड़ी अद्भुत माया है। सुरासुर इन्द्र लो मानव, नहीं कोई पार पाया है ।। टेक ।। निशाना नैन से मारे, लगा के हाथ के झाले । बिना कसूर कइयों के, शीष इसने.कटाया है ॥ १॥ बड़े प्रालिम व फाजिल हो, बेरिष्टर या कोई हाकिम । करे पागल उन्हें छिन में, पास नापास बनाया है ॥ २॥ सरासर हार हाथों से, छुपाया देखलो इसने । अरे निर्दोष कन्या पे, तोमत कैसा लगाया है.॥३॥ नृप परदेशी की प्यारी, थी सूरीकता वह नारी । खिला कर जहर प्रितम को, गला उसने घुट:या है ।। ४ । इसी मुभाफिक हुई यह वात, जो मंत्रि ने सुनाई है । कहे यों चौथमल यहां सार, थोड़े में ही बताया है ॥ ५॥ . नम्वर.४२०. : . : . (तर्ज-बापुजी फेरी भिटियेरे ) माता कहे थे उसवार, जम्बूजी केरी माता कहेरे । माता कहे छे उसवार, कवरजी केरी मावा कहेरे ।। टेक ।।; साधुपणा की जाया कठिन छ क्रिया, चलनो है.खाण्डा की धार । हारे जाया चलनो है खाण्डा की धार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥१॥ हाथी घाडानी यहां तो करो Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - जैन सुबोध गुटका । (३०६) सवारियां, वहां तो परवाणे विहार । होरे जाया वहां तो अरवाणे विहार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥ २॥ यहां तो पोदो छो जाया मुखमल के दोलिये, वहां कंकराली भुंवार । होरे जाया वहां कंकराली मुंवार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥३॥ यहां तो बने छे विविध भोजन तरकारियां, वहां पर तो निरस आहार । होरे जाया वहां पर तो निरस श्राहार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥ ४॥ यहां तो हाजिर छे साना रूपानी थालिया, वहां दारु पात्र मझार । हारे जाया वहां काष्ट पात्र मझार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥ ५ ॥ यहां तो किया न हाथ नीचा उमर भर, मांगे वहां हाथ पसार । होरे जाया मांगे वहां हाथ पसार, जम्बूजी केरी माता कहेरे ॥ ६ ॥ दो वीश परिपा जाया जितना दोहिला, तूं सुखमाल कुंवार । होरे जाया तूं सुखमाल कुंवार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥ ७ ॥ विविध भांति से समझायो कुंवर ने, मानी न एक लगार । होरे जाया मानी न एक लगार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥८॥ संयम दिलायो माता महोत्सव करीने, होगए जम्बू अणगार। हारे जाया होगए जम्बू अणगार, जम्बूजी केरी माता कहेरे ॥६॥ चौथमल कहे छोटी में आय के, साल इठ्यासी मझार.। होरे जाया साल इठयासी मझार, जम्बूजी केरी . माता कहरे ॥१०॥ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९०) जैन सुबोध गुटना। नम्बर ४२१ [तज--पूर्ववत् । बेटियाँ वाले छे उसवार, ऋषभजी केरी बेटियाँ बालरे। बटिया बोले छ उसबार, बापुजी केरी बेटियाँ बोलेरे ।।टेक ॥ मारा प्रभु के शत कुंबरा की जोड़ियाँ, सौ बचे पाच्या छे भाग ! हाँरी बेनी सौ बचे पाब्या छे भाग, ऋषभजी केरी बेटियाँ बालेरे ॥ १ ॥ मोटो. चाहे छ षट् खण्डनी सायबो, नानो न माने छे भान । हारी बेनी नानो न माने छे आन, ऋषभजी केरी बेटियाँ बोलेरे ।। २ ।। मोटो कहे छ मानो प्राण हमारी, नानो करे छे इन्कार । हाँरी बेनी नानो करे छ इन्कार, ऋषभजी करी बेटियाँ बोलेरे ॥३॥ मोट करी छे बेन ! युद्धनी तैयारी, नाने गृही छे तल-. वार । हाँरी बेनी नाने गृही छे तलवार, ऋषभजी केरी बेटियों वालेरे ।। ४ ।। मोटे उपाड़ी मुष्टो बन्धुने मारवा, नाना ने पुण्य रखवाल ! हारी येना नाना ने पुण्य रखवाल, ऋषभजी केरी बेटियाँ बोलेरे ॥ ५॥ मोटाने प्रायः शकइन्द्र समझावियो, नाने लिनो है संयम भार । हारी बेनी नाने लिनो है संयम - भार, ऋषभजी केरी बेटियाँ बोलेरे।। ६ ।। मोटो रमे छ राज रंगनी वाडिमां नानो. डूंगरड़ा नी ढार । हाँरी बेनी नानो ढूंगरड़ा नी दार,ऋपभ... जी केरी बेटियाँ बोलेरे ॥ ७॥ चौथमल कहे इगतपुरी Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका । (३११) mmmmmmranamammimammanmmmmmmmmwwmarwarnmarrrrrnwormonam में, धन्य धन्य ते अणगार । हारी बेनी धन्य धन्य ते अणगार, ऋषभजी करी बेटिया बोलेरे ॥ ८ ॥ . नम्बर ४२२ [ तर्ज-कैसे गुरु गुणवानों ने] . महावीर ने अहिंसा का,झण्डा फरराया है। जब से ही. भारत देश में,आनन्द छाया है । टेक ॥ हर जगह पै. घूम कर, प्रचार जो किया । दे दे कर के सत्य बौद्ध,फिर अज्ञानहटाया है.॥ १ ॥ थे अज्ञात तत्व के, कुछ भी न जानते । . भूले हुए को रास्ता, सीधा दिखलाया है ॥२॥ लाखों पशु को होमते, लाते नहीं दया । उन्ह के हृदय में करुणा.. का, अङ्कुर प्रकटाय है ॥३॥ तारीफ हमसे आप की,जो हो, नहीं सकती । महान् किया उपकार, सब को ही जगाया है ॥४॥ कहे चौथमल भूले. न हम, अहसान' आपका, इगतपुरी में प्राय के, चक्कर में गाया है ॥ ५ ॥ ४२३ नम्बर [तर्ज-बापुजी केरी] तप की झले छे तलवार, प्रभुजी केरी तपकी भूलेरे। तप की झूले छ तलवार,वीरजी केरी तप की झूलेरे।।टेक। Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१२) जैन सुबोध गुटका। मारा प्रभुजी राजपाट तजीने, वैराग्य हृदय विचार । हारे देखो वैराग्य हृदय विचार, प्रभुजी केरी तपकी झूलेरे ॥१॥ मारा प्रभुजी ज्ञान घोड़ा पे चदिया, लिनी है तप की तलवार । हारे देखो लिनी है तप की तलवार, प्रभुजी केरी तपकी झूलेरे ॥२॥ सतरे विध संयम की सेनाले साथ में, इरिया का उड़े निशान । हारे देखो इरिया का उड़े निशान, प्रभुजी केरी तपंकी झूलरे ॥३॥ बावीस परिषद की फोजां को जीती, समता का ले हथियार । हारे देखो समता का ले हथियार, प्रभुजी केरी तप की भूलेरे ॥४॥ शुक्ल ध्यान का बाजे नकार, कांपे है पाप उसबार । हारे । देखो कांपे है पाप उसवार, प्रभुजी केरी तप की झूलेरे ॥५॥ खप्पक श्रेणी चढ मोह नृप को, छिन्त्र में है डाला विडार। हारे देखो छिन्न में है डारा विडारः प्रभुजी केरी तपकी झूलेरे ।। ६॥ मारा प्रभु की जब विजय हुई है, लीनो है मुक्ति को राज । हारे देखो लीनों है मुक्ति को राज, प्रभुजी केरी तप की भूलेरे ।। ७। चौथमल की यही है विनति, कीजोजी नैया को पार । हाँजी प्रभु कीजोजी नैया को पार, प्रभुजी केरी तप की भूलेरे।।८॥ - ~ नम्बर ४२४ ...(तर्ज-कमली वाले की)... : दया धर्म का परिचय प्रालिम को, दिखला दिया Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • जैन सुवोध गुटका। (३१३) PnAmAhhoh मेघरथ राजा ने । सब जीवों की तुम करी दया, सिखला दिया मेघरथ राजा ने ॥ टेर ॥ बाज़-फाक्ता पन करके सुर, आये परीक्षा काज वहां । गिर गया फाक्ता गोदी में, अपना लिया मेघरथ राजा ने ॥ १॥ कहे चाज यो नृपति'से, देदो यह मेरा भक्ष मुझे । नहीं देंगे इसको हम हरगिज; फरमा दिया मेघरथ राजा ने ॥ २॥ गिरिछुआरे मेवादिक, खाने की चीज़ हैं कई। देंगे "तुझको ' मांग वही, जितला दिया मेघरथ राजा ने ॥ ३॥ अगर • बचाना चाहत हो, निज तन का देदो मांस मुझे । सुनकर के फौरन आप छुग, मंगवा लिया मेघरथ राजा ने ॥४॥ सजनम्नही मिल कर के, कहे हाथ जोड़ यों, भूपति से। करते हो गजब क्यों स्वामी जव, समझा दिया मेघरथ राजा ने ॥ ५ ॥ कर दीना तन नृपति अर्पण,परहित करन सत् धारीने । नहीं चला धर्म से, पक्षी को बचवा दिया मेघरथ राजा ने ॥ ६॥ हो प्रकट देव कहे स्वामी की, कीनी प्रशंसा इन्द्रःने । निजे मुख से फिर धन्यवाद देव, दीना है मेघरथ राजा ने || ७॥ साल सित्यासी नगर बीच कहे, चौथमल श्रोता सुनियो। बनके तीर्थकर करुणा, रस, वरसा दिया मेघरथ राजा ने ॥८॥ - re नम्बर ४२५ . (तर्ज-मेरे स्वामी वुलालो मुगत में मुझे) प्रभु-ध्यान से दिलको हटावो मती । दुनियां-दारी Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१४) जैन सुवोध गुटका। में वक्त गमाओ मती ।। टेर ।। है फना यह दुनिया सारी, साथ में नहीं आयगा । छोड़कर सारा पसारा, कूचं नु कर जायगा। इसमें फँस के उसे विसराबो मती॥ १ ॥ प्राण प्यारी द्वार तक, रोती खड़ी रह जायगा ! मित्र-दल तेरा तुझे, शमसान तक पहुंचायगा ॥ करके अनीति द्रव्य कमाओ सती ॥ २ ॥ पर लोक में ले जायगा, पुण्य-पाप गठड़ी बांधकर, लेंगे वदला तुझसे जो, मारे थे बाण से सांध कर ॥ ऐसी जान किसी को सताओं मती ॥ ३ ॥ एक धर्म ही सच्चा सखा, आराम इससे पायगा । कहे चौथमल बिन धर्म के, आगे तू वहां पछतायगा | मिथ्या माया के बीच लोभाओ मती ॥ ४ ॥ . नम्बर ४२६ : [ तर्ज-कसली वाले की] यह सदा एक-सी रहे, नहीं, तुम देखो ज्ञान लगा • करके । करलो जो वरना हो तुमको, यह क्वत मिला है श्राकरके ॥ टेर । तीन खंड का राज लिया, कर दमन आप सब ही जन को । देखो जंगल में प्राण तजे, फिर तीर योग से जाकर के ॥ १ ॥ मगध देश का मालिक था यह श्रेणिक नामा भूप जंबर ।. एक दिन हाथों से मरे वही, देखो जहर को खाकर के ।। २ ।। सीता के लिये वन Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका । (३१५) चन में फिरे, श्रीरामचन्द्रजी ढूंढन को । जब दिन पल्टे तब वही सीता, छोड़ी जंगल में ला कर के ॥ ३ ॥ वीर विक्रमादित्य हुआ, देखो कलियुग में सत् धारी । दिन पल्टे जब रहे घांची, घर वह सूखी- रुखी खाकर के ॥ ४ ॥ राज महल में रहते थे, आनन्द से हरिचन्द प्रणधारी । वहीं काशी में फिर जाय विके, आराम - ऐश बिसरा करके ||५|| साल सित्यासी नगर बीच, कहे चौथमल श्रोता सुनलो । मत फूलो सम्पत देख देख, रहो राग द्वेप विसरा करके || ६ || Britis :: नम्बर ४२७ ( तर्ज- मेरे स्वामी ) जो हो मोक्ष के बीच में जाना तुझे । होगा दुनियां से प्रेम हटाना तुझे || ढेर || सत्य-शील दया- दान को, दिल में बसाना चाहिये । काम क्रोध मद लोभ को, एक दम भगाना चाहिये || नहीं विषयों के बीच ललचाना तुझे ॥ १ ॥ बैठ के एकान्त में, तू ढूंढ अपने आप को । श्रभ्यास से मनं रोक के, हरदम जपो प्रभु-जाप को ॥ घट के पट में ही दर्शन पाना तुझे || २ || ढेर कर्मों का जला अनि लगा के ज्ञान की । खटपट सकल मिटजायगा, जब लो लगेगी ध्यान की । नहीं आवागमन में फिर आना तुझे ॥ ३ ॥ निज-स्वरूप में तू रमण कर अक्षय सुख तू पायगा । Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१६.) . जैन-सुवोध गुटका । narammarrrrrrrrrrrnm.inmamimirromanmnrammarma . त्रिकाल तीनों जगत् । हस्ताम्ल ज्यू. दरसायगा. ॥ यही चौथमल का जितलाना तुझे ॥ ४॥ नस्वर ४२८ । (तर्ज--पूर्ववत्) सखी वात पर क्यों नहीं ध्यान धरे । पिया मिलने . की क्यों न तैयारी करे ॥ टेर ॥ दिन चार पियर वीच में आखिर तूं रहने पायगी । याद रख सुसराल में फिर अंत ही तूं जायगी, मत मिथ्या मोह के बीच परे ॥ १॥ ज्ञान जल स स्नान कर, अघमेल तज दीजियो । शील का शृंगार तन, अच्छी तरह सज लीजियो । पूरी करके सजावट पहुंच घरे ॥२॥ तेरेसे भी अधिक गुण में, पिया के कई जानियों । यौवन की मद माती बनी, अभिमान तूं . मत प्रानियो । बिना पिया के क्यों तूं भटकती फिरे ॥३॥ . करके निगाह तूं देखले, चिन पिया सुख कच पायगा । कहे. चौथमल यू मुफ्त तेरा, जन्म सारा जायगा ! शुद्ध ध्यान पिया का धरे सो तिरे ॥४॥ नम्बर ४२६ [ तर्ज-पूर्ववत् । . .क.मी. ल.तमाखू तुम पीजो, मती पीने वालों को। Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका। (३७), संग भी कीजो मती ॥ टेर ।। है बुरी ये चीज ऐसी, खर नहीं खाता इसे. । इन्सान होके पीने को तूं, किस तरह लाता इसे । इसे जान अशुद्ध चित्त दीजो मती ॥१॥ देख पीते और को जाते हैं वहां पर दौड़कर । चाहे जितना कार्य हो, पीवेगा सबको छोड़कर ॥ ऐसी आदत से हरदम रीमो मती ॥ २ ॥ उत्तम से लेकर शूद्र तक की, एक हो जाती चिलम । शुद्धता. रहती नहीं, दे छोड़ तू मत कर विलम्ब ॥ अपने घर से चिलम कभी छूजो मती ॥३॥ देता तमाखू दान वह, दाता नरक में जायगा। देखो पुराण में साफ ही लिखा तुम्हें मिल जायगा ॥ मिले मुक्त तो भी तुम लीजो मती ॥ ४ ॥ जाता है पैसा गांठ का, होती है फिर बीमारियां । चौथमल कहे छोड़ दो, भारत के नर और नारियां ।। सुनके बात मेरी तुम खीजो मती॥५॥ नम्बर ४३० (तर्ज-पूर्ववत् ) , कभी चहा की चाह तुम कीजो .मती। प्राण नाशक समझ तुम पीजो मती ॥टेर ॥ परतन्त्र मारत हो गया आधीन होके चाय के । कान्ति रूपी रत्न को, खोया होटल में जाय के ॥ इस में फंस के प्राण तुम दीजो मती ॥१॥ एक बार चा..का गौपानी, कोप भर के.पी.लिया। है छूटना.मुश्किल फिर, उपाय चाहे सो किया । निमरी इस Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१८) जैन सुवोध गुटका । के ही ऊपर रीजो मती ॥ २ ॥ चूसने में खून को, जलोक मानिन्द जानलो । फायदा इस में नहीं, सच्ची कहें हम मान लो ॥ मीठी देख उसे तुम रीझो मती॥ ३॥ सत्ताईस क्रोड़ रुपयों का, होता खरच हरसाल में। अय हिन्दवासी भाइयों कुछ भी लाओ ख्याल में ॥ कभी भूल के चहा तुम छजो प्रती ॥४॥ फिजूल खर्चा बन्द कर, सत्कर्म में दो माल को । चौथमल कहे है नहीं, देखो भरोसा काल को ।। कर के कुकृत्य अपयश लीजो मती ।। ५॥ .. ko _ नम्बर ४३१ . . . : . (तर्ज-पूर्ववत् ) दारू भूल के पीने न जाया करो। पागल पन को खरीद न लाया करो ॥ टेर ॥ शराब पीने वालों को कुछ. भी न रहता भान है । हैवान कहते हैं सभी रहता न कोई ज्ञान है ।। ऐसे स्थान पे भूल न जाया करो ॥१॥ वकता है मुंह से गालियां, इन्सान पागल की तरह । नालियों में जा गिरे, पेशाब कूकर पा करे ।। इसके पीने से दिल को : हटाया करो ॥ २॥ माँ-बहिन का भी मान वो, नर.भूल जाता है सभी । मार देता जान से तलवार लेके वो कभी॥ जुल्म करने से बाज तुम आया करो॥३॥ बदबू निकलती मुंह से, शराब पीने से सदा । अच्छे पुरुष छूते नहीं,हाथ से Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका । ( ३११ ) हरगिज कदा || वृथा इसमें न धन को लगाया करो ॥ ४ ॥ गरम शीशा करके, यम दोजख में तुमको पायगा । साफ लिखा शास्त्र में पीछे वहां पछतायगा || दिल में खैफा खुदा का भी लाया करो || ५ | साल सित्यासी में कहे, यों चौथमल सुन लीजियो । चाहो अगर अपना भला, त्यागन इसे कर दीजियो | मेरी शिक्षा को दिल में जमाया करो | ६ ॥ नंबर ४३२ [ तर्ज- पूर्ववत् ] कभी नैनों से पाप कमाओ मता । इनके वंश में हो जन्म गमाश्रो मती || टेर || चार दिन की है जवानी. इसमें क्यों तुम वहकते । हाथ कुछ श्राता नहीं, क्यों वद निगाह से देखते | देखी सुरूपा मन को डिगाश्री मती ॥ १ ॥ नेनों के वश में होके खोता, पतंग देखो प्राण को । श्राग में पढ़ता है जाके, क्या खबर हैवान को । ऐसे आखों के वश में होजाओ मती ॥ २ ॥ किस लिये श्रांखे मिली, किस काम को करने लगे । थिएटर, तमाशा देखने में सब से ही आग भगे । पोट पापों की बांध के जाओ मती || ३ || पालो दया सब जीव की, श्राखों का यही सार है | चौथमल कहे नहीं तो फिर, यह नैत्र ही बेकार “है। भूल विषयों में तुम ललचाओ मती ॥ ४ ॥ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२०) जैन सुबोध गुटका । . . . .. .. नंबर ४३३ . . ... [तर्ज-पूर्ववत् ] मत चहा की चाट लगाया करो । खुद पीवो न औरों को पाया करो ।। टेर ॥ फायदा कुछ भी नहीं,नुक्सान करती है सदा । भूल कर हाथों से मी, हरगिज न तुम छूनो कदा । भर-भर प्याला न इसका उड़ाया करो ॥१॥ दूध-शकर के मजे से पीते हैं नर हो फिदा । रोग पैदा करती है और नींद हो जाती चिदा । ऐसी जान इसे छिटकाया करो ॥ २॥ वीर्य का भी नाश कर देती है, जहरीली पत्ती । नामदंपन पैदा करे नहीं झूठ है इस में रत्ती । अपने मन को जरा समझाया करो ।। ३ ।। धर्म और कर्म को, भृले हो इसकी याद में । बन गये कंगाल . कई जो लगे इस नाद में। ऐसे व्यसन को दूर हटाया करो। ४॥ फिजूल खर्ची मत करो,जो चाहते हो खुदका मला । चौथमल तुमको कभी, हरगिज न देता कुसलाह । मेरी नसीहत पर ध्यान लगाया करो ॥ ५॥ नंबर ४३४ . . तर्ज पूर्ववत् ] तेरे दिल में तो वह दिलदार बसे । तूं तो ज्ञान लगा कर देख उसे ।। टेर ॥ जैसे सुगंधी फूल में, और धातू ज्यू Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "जैन सुबोध गुटका | ( ३२१ ) पाषाण में ! तिल तेल - घृत है दुग्ध में, फिर खड्ग जैसे म्यान में । मोह - जाल में फंस क्यों भूला उसे ॥ १ ॥ नाभि कमल में मुश्क कां, नहीं मृग को कुछ भान है । घास को वह संघता जगत् ऐसे अज्ञान है । कहे कहां तक. खुद की नं खबर जिसें ॥ २ ॥ कर की नब्ज़ से भी निकट, नहीं दूर उसको जाननी | दगाबाजी का हटा, पर्दा उसे पहिचानना । बिना सत्संग के मिलता न वह तो किसे - ||३|| कहे चौथमल द्वित भाव और दुरंगी चालें छोड़ दे । दूदल अपने ही अन्दर मिथ्याश्रम को तोड़ दे । इन वि पयों में नाहक तू तो फंसे ॥ ४ ॥ नंबर ४३५ [ तर्जं पूर्ववत् ] कैसे वीर कज़ा के हुक्म में चले । क्या है ताकत अली जो करके चले ।। र ।। छत्र धारी राय-राना घनी निर्धन भी चले | कौन कायम यहां रहा, जब काल का चक्र चले । करनल, लेफ्टन, जनरल सर्जन चले ॥ १ ॥ वैद्य धन्वंतरि चले हकीम लुकमां भी चले । कप्तान सूबेदार और साहिब मुन्शी भी चले । दफ्तर छोड़ के बाबू साहब चलें ॥ २ ॥ चक्रवर्ती, बादशाह, माण्डलिक, श्रवतारी चलें। काल की गर्दिश में सूर्यग्रह तारा भी चले । राम रावण, फिर चारों ही युग चले ॥ ३ ॥ पटेल, नम्बरदार, · Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२२) जैन सुबोध गुटका। सूबा, वकील, बैरिस्टर चले । फरीक सुदाई चले, हुकूमत तज हाकिम चले । इसके आगे न किसी की मजाल चले ॥४॥ पल्टन, रिसाला, तोफखाना, दारू,सिका घर चले। कहे चौथमल जौहरी जवाहिर, पेटियों में भर चले । प्रभु नाम विना जन्म खो के चले ॥५॥ नंबर ४३६ [तर्ज-पूर्ववत् । कभी होटल में जाकर के खायो मती। अपना धर्म उत्तम गमामो मती ॥ देर ।। दध और शकर के लालच सहज पीते चाह को । देखते ऋतु नहीं पीते हैं बारह मास को। अपने तन को मिट्टी में मिलाओ मती ॥शानीचता और ऊँचता का रहता नहीं,कुछ भान है। है सभी एक साव वहां पर और नहीं कुछ ज्ञान है । ऐसे स्थान पर भूल के जाओ मती ॥२॥ खाद्य पदार्थ का भी तो विचार करते हैं कहां । शराब और ब्रांडी को भी संसर्ग से पी लेंगे वहां । जाकर कान्दे के भुजिये उड़ावो.मती. ॥३.।. बनती है दो-दो पैसे में, घर चीज उम्दा हाथ से. । होटल में देते चार पैसे तो न मिले अाजाद से । फँस के फैशन में धन को गमानो मती ॥ ४. ॥ साल सित्यासी में कहे यूँ चौथमल तुम से सफा । हॉनी सिवा नहीं लाभ है, Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुवोध गुटका। ( ३२३) मिलता न है कोई नफा । मेरी नसीहत को दिल से भुलाभो मती ॥ ५॥ . . नम्बर ४३७ . [तर्ज-पूर्ववत्] — , जिया गफलत की नींद में सोचे मती वृथा मनुष्य-जनम को खोवो मती ॥ टेर । पूर्व भव के पुण्य से, अाकर मिली है सम्पदा । अब न लूटे लाभ तो, यह फिर न मिलने की कदा ॥ सच्चे मुक्का तज झूठे पिरेवो मती ॥१॥ मुख मिला.प्रभु-भजन को, क्यों न भजे नादान तू | कान से प्रभु-वाणी सुन, फिर हाथ से दे दान तू ।। कभी विषयों क. वश में तू होवे मती ॥२॥ नन से कर दर्श मुनियों के, सदा तू प्रेम से । तन से करले तू तपस्या, हरगिज डिगे मत नेम से ॥ भव सिन्धु में नैया डुबोवे मती ॥६॥ मैं तुझे समझा चुका अन, मान या मत मान तू । चौथमल कहे किस लिये आया जरा पहिचान तू ॥ मिथ्या-माया को देख तू मोवे मती॥४॥ . . नम्बर ४३८ तर्ज-पूर्ववत् ] 1: 'दुनियां सपनेसी जान लोभावो मती । इसके झांसे Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२४) जैन सवोध गुटका । में भल के आवे मती ॥ र जितने पदार्थ जगत में, दिखते हैं तुमको नैन से | नाशवान् हैं ये सभी, जानले प्रभु बैन से ॥ इसमें कोई भी संशय लावे मती ॥१॥ रात में पाया स्वभ, जैसे किसी कंगाल को । बन गया वह वादशाह भर-भर उड़ावे माल को. ॥ बोले हुक्म से वाहिर: 'जावे सती ॥ २॥ बैठा सिंहासन आपके सिर छत्र और चंवर दुरे । हुरमा खड़ी है सामने, सज धज के वह लटका कर ।। झूठी जाल में कोई ललचावे मती ॥३॥ मुंदी है आंखें ये जब तक, ठाठ है मानो सही । खुलाई जब आँख तो,आता नजर फिर कुछ नहीं । ऐसी जान जगत् में लुभाव मती ॥४॥ छोड़कर गर्फलंत को तुम, अब तो जरा श्रोसान लो । गुरु के प्रसादे 'कहे चौथमल अंब मानलो।। धर्म छोड़ अधर्म कमावे मती ॥५॥ · नंबर ४३६....: [तर्ज-पूर्ववत् मुझे भूल के जालिम सतावे मती। मेरे धर्म में दखल पहुंचावे मती ॥ टेर..।। है तुझ मालुम नहीं क्या, मैं हूं दुश्मन जानकी । इन्द्र से भी न , डिगू, ताकत है क्या इन्सान की ।।. संय मृत्यु का मुझको दिखावे मती ॥ १ ॥ प्राण से भी तो अधिक प्यारा मुझे सद्धर्म है । हरगिज न Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन सुबोध गुटका। (३२५) छहंगा इसे तुझको न मूर्ख शमें है ।बुरी बातों से पेश तु श्रावे मती ।। २ ॥ वास खाती सिंहनी नहीं, खायगा खज़ होज भी। लंधन. करेगी वह मगर, तृण न चाहेगी कभी। मेरे आगे तू जाल फैलावे मती ॥ ३॥ छोड़के इन्सानपन तू क्यों बना नादान है । कहे चौथमल दिन चार का दुनियां में तु महमान है । वदी बांध के साथ ले जावे मती ॥ ४ ॥ नंबर ४४० " (तर्ज-शिक्षा दे रहीजी हमको रामायण ! .. शिक्षा धारियों रे, हमारे देश के प्रेमी बन्धु ।।ध्रुवीयाटा गिन्नी का मत खाओ, इसमें दोष है भारी | ताकत हीन बनावे, तुमको, धर्म न रहे लगारी ॥ १॥ कीड़ों की होती है हिंसा, इस रेशम के काज,थोड़े शोक के कारण प्यारो, मतना करो अकाज ।। २ ॥ हिंसाकारी वस्त्र विदेशी, मत तुम हरगीज,धारो। खादी देश की हैं श्राबादी, इसको मति विसारो ॥ ३ ॥ सस्ता जान के ची मिश्रित, घी कभी मत खाओ। नकली घी से असली ताकत, कहो कहां से लाभो ॥४॥ संवत् उन्नीसे साल सित्यासी, शहर सतारा माई । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, मुनियों ध्यान लगाई ॥ ५॥ Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAMAN ( ३२६) जन सुबोध गुकटा। . नस्बर ४४१ [तर्ज-मर्दवनो मर्दवनो] बन्द करो बन्द करो, तुम बालविवाह को बन्द करो ॥ ध्रुव ॥ छोटे छोटे छोरा छोरी, खेले धूल में मिलकर टोरी। मत लग्न करो मत लग्न करो, लघुवय में मतना लग्न करो ॥ १॥ समझत नहीं हिताहितं माई, मोह वश देवे परणाई । ध्यान धरो ध्यान धरो, हित शिक्षा पै कुछ ध्यान धरो॥२॥ बच्चपन में विद्या न पढ़ाओ, नाहक लग्न उनके करवाओ। क्यों बदनाम करो बदनाम करो, भारत का मत बदनाम करो ॥ ३ ॥ मत वीर्य नष्ट लघुवय में कराओ, ब्रह्मचये उनसे पलवानो । मत जुल्म करो जुल्म करा, निज बच्चों पै मत जुल्म करो.॥ ४ ॥ जीवित कब उन के सुत रहावे, अल्प उमर में कई मर जावे । विचार करो विचार करो, सब बान्धव अब विचारं करो ॥५॥ गोर करो जाति के मुखिया,,होय तभी यह भारत मुखिया कुछ गोर करो गोर करो, जाति के मुखिया.गोर करो॥६॥ चौथमल, सवको जितलाया, शहर सतारे भजन बनाया। सुधार करो सुधार करो, निज जाति का सुधार करो ॥७॥ . नंबर ४४२ . . . . (तर्ज-कमली वाले की) मत देचो कन्या को कोई, दिल बीच दया तुम Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन मुदोध गुटका। (३२७) लाकर क । क्यों भरते हो तुम पाप पिएड, वे हक का पैसा खा करके ॥ टेर ॥ देते थे उलटा द्रव्य हजारों का, लड़की को माता पिता । निक्ष्य बनके अवतो .चे, वे लोग लाज विसग करके ॥ १ ॥ नहीं देखे बुढा चालक, हो लोभ बीच बनते अंध । नहीं सोचे कृत्याकृत्य, ढकेले कूप चीच जा करके ॥ २ ॥ बोर मोगरी मालन जूं, बेचे है बाजार में जा करके । वैसे ही कन्या को देते, फिर रूपे नगद गिनवा करके ॥३॥ जहां देते वहां वो जाती है नहीं करती है इन्कार कभी । नहीं जोर जवर दिखलाती है, रहती है वो शरमा करके ॥ ४ ॥ हरगिज न होगा कभी भला, वे हक का धन को खाने से । कहे चौथमल हरदम तुम से यह भजन सतारे गा करके ॥ ५॥ नंवर ४४३ . . . (तर्ज-शिक्षा दे रही जी हम को रामायण) . . . इन्हें तुम · त्यागियोरे, भारत देश हितेच्छु प्यारो ॥ ध्रुव ॥ विड़ी सिगरेट और तमाखू को, मत पीना माई । फिजूल खर्ची वन्द करो तुम, 'श्रादत बुरी मिटाई ॥ १ ॥ गांजा पिकर प्यारो तुमतो, सीना नाहक जलाते । तरुणपने में खांसी हो कर, जल्दी कई मरजाते ॥ २॥ भूल कभी मत पियो भंग को, करती है नुकसान । पागल जैसा बना Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... A MRAVAAAAAAA (३२८) जैन सुबोध गुटका। देती है, कुछ भी न रहता मान ॥ ३ ॥ बुरा नशा है दारू का, सब भूल जाए वह भान । जाकर गिरता है नाली में, मुख पर मृते श्वान ।। ४ ॥ लाखों रूपों की होती है हरसाल में हानी । देश दुखी होगया इसी में, तो भी न तजते पानी ।।.५ ॥ अपना तो तुम, सुनजो ध्यान लगाई। गुरु प्रसादे चौथमल कहे, शहर सतारा माई ॥ ६ ॥ . ..:: . नंबर ४४४ . . .: . : (तर्ज--कमली वाले की) .. . इस दुनियां के पड़दे से तूं तो, अवश्यमेव ही जावेगा। ले जावेगा संग में तूं तो, जो नेकी. बदी कमावेगा ।।टेर। नहीं अमर रहे जग से कोई सुरनर-इन्द्र भी बड़े बड़े। उनका कजा कर गई गटका, क्या तुझको भी नहीं अावेगा. ॥ १ ॥ रहती थी फौज लाखों तारे और उठाते हुक्म सभी उसका । जिस वक्त बने नहीं कोई सहाथी, जब मृत्यु गला दबागा ॥ २ ॥धन माल खजाना ये तेरा,रह जायेंगे सब ही याही । पितु-मात-भ्रात सजन सत्र ही, श्मशान बीच पहुंचावेगा ।। ३ ।। दुनियां के हाट में आकर के मत खाली हाथ.तू तो जाना नहीं तो परमव में आखिर. तु., जाकर के वहां पछतावेगा ॥ ४ ॥ मिला अमोल सु अव:सर यह, जिसका भी दिल में ख्याल करो.. कहे चौथमल करले सुकृत, परभव में तू सुख पावेगा॥ ५॥ . www.sion Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२६) जैन सुवोध गुटका। Amrianraiminamawiwwmarrrrrrrrrrrmmmmmmmmmmmmm নয় ২৪ .: (तर्ज -कांटा लागोरे). ... सञ्च देव वहीं तुम मानो, जिसमें दोष अठारह नाय । दोप अठारह नाय | उनके वन्दो नित तुम पाय ।। टेर ।। दान, लाभ, भोग, उपभोग, अन्तरायवीर्य, का हुआ वियोग, । हास्य, रति, अरति, दुगच्छा, दीनी दूर इंटाय ॥ १ ॥ भय, शोक," और काम, निवारा, मिथ्यात्व," अज्ञान," से किया किनारा, निन्द्रा, अव्रत,'". राग-द्वेप लिये जीत विजय पाय ॥ २॥ धन धानि कर्म . हटाया, अनन्त ज्ञान दर्शन प्रब टाया, महिमा फैली तीन लोक में सुरनर भी.गुणगाया ॥ ३ ॥ ऐसे देव को जो नर ध्यांव, स्वर्ग मोक्ष का वह फल पावे, आवागमन मिट जाये, संशय इस में तूं मत लाय ॥ ४ ॥ गुरु प्रसादे चौथमल गाया, सच्चे देव का चिन्ह बताया । साल सित्यासी नगर शहर में दियो चौमासा ठाय ॥ ५ ॥ :: : . . . .. . . . . नंवर ४४६ ... . (तर्ज-मर्द बनो मर्द बनो) : दया करो, सब भारतवासी दया करो दया करो ॥ध्रुव ॥ देवी स्थान में तुम जा जा के, टोनगें बकरे को ला ला के। मत प्राण हरों-प्राण हरो हरंगीन मत उन के Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (,३३०), जन सुबोध गुटका ! प्राण हरो ॥१॥ माता नहीं हिंसा चाहती है, जीव मार दुनियां खाती है । मत पाप करो पाप करो, हिन्दु बन्धु मत पाप करी ॥२॥ जैसे तुम भी जीना चाहो वसे परको भी अपनाओ । प्रेम करो प्रेम करा, पर जीवन पै तुम प्रेम करो ॥३॥ बलिदान जीवों का करते, तदपि अक्षय वो नहीं जीते । ध्यान धरो ध्यान धरो, कुछ शिक्षा ऊपर ध्यान करो ॥४॥ करे रक्षा वह माता पक्की, होय, हिंसा तो डायन नक्की । तुम दूर करो, दूर करो हिंसा से तबियत दूर करो ॥ ५॥ हिंसा कर नरकन में जावे, सब मजहब ऐसे जितलावे । बाहर करो, बाहर करो हिंसा को हिंद से वाहर करो ॥६॥ गुरू प्रसादे चौथमल गावे, हिंदवासियों को जितलावे । बन्द वन्द करा, अब हिंसा करना बन्द करो ॥७॥ -~SS. - नंबर ४४७ (तर्ज गुलशन में आई यहार ) दिल में रखो विश्वास, विश्वास मेरे प्यार ॥ टेर ॥ रखती है विश्वास त्रिया पतिपे, वृद्धि होती है सुत की खास २ ॥ १ ॥ वेश्या के विश्वास नहीं होने से, होती न संतान तास २ ॥२॥ कृपी विश्वास रखता है दिल में, होती है धान्य की रास २॥३॥ ऐसे ही धर्म पे विश्वास Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका । ( ३३१ ) रखो, जो चाहते हो मुक्ति को वास २ ॥ ४ ॥ साल सित्यासी शहर नगर में, कियो चौथमल चौमास २ ॥ ५ ॥ ༡ ༤-, S नंबर ४४८ [ तर्ज मेरे स्वामी मुगत में बुलालो मुझे ] मिली कसी अमोल ये काया तुझे, कृपा कर के गुरुजी तावे तुझे || टेर || तीर्थकर नर काया से, लेते हैं जो अवतारजी, कर के करणी देही से, होते हैं भव दधि पारजी, मैं तो सची सची ये जीतावुं तुझे ॥ १ ॥ महावीर ने नर देही से, उपकार भारत में किया, राम ने श्रवतार जग में, इसी काया से लिया, परहित कर लो ये ही समझा तुझे ॥ २ ॥ कंचन से महंगी काया है, यह निती का ठहराव है, कहे चौथमल वरना यह काया, मिट्टी से खराब है, करले काया से तपस्या जितावुं तुझे ॥ ३ ॥ नंबर ४४६ : [ तर्ज- महावीर से ध्यान लगाया करो ] तेरे दिलका तूं भ्रम मिटा तो सही, जरा राह निजात की पात सही || ढेर || महावीर का फर्मान है अव्वल तो सम्यक ज्ञान हो, नो पदार्थ पर द्रव्यका यथार्थ फिर भान Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३२) जैन सुबोध गुटका। हो, अविद्याको दूर हटा तो,सही ॥ १ ॥ समकिता में अके बनो, सैनिक राजा के तरह, मत, साज बंछो देवकी कुजापि भी मत ना करो। रूपातित से लोह लगा तो सही ॥ २॥ पाप के बचने के खातिर, त्याग सेवन कीजिये । ऐसी अमोलख वक्त को नहीं भ्रल जाने दीजिये । मनुज जन्म का कर्तव्य बजा तो सही ॥३॥ कर तपस्याः भाव से इसी नफ़्स को तूं मार ल । कह चौथमल मौका मिला अब आत्मा को तार ले । पूना शहर में धर्म कमातो सही ॥४॥ ,, नंबा ४५० . (तर्ज पूर्ववत् ) . . कभी भूल किसी को सतावो मती, अपने दिल को तो सहन बनावो मती ।। टर ।। मत सतावो तुम किसी को, मान लो तुम मानलो । वरना दोजख, में गिरोगे,, बात सची जानलो । जुल्म करने में कदम बढ़ावो मती ॥ १॥ कर्ता तक था जिस्म का, पर यह सदा न रहायगा । जो खाक का पुतला बना, वह खाक में मिल जायगा । खुब सूरत देखने लुभाओ मती ॥२॥ धनके लालच बीच श्रा, मत जिंदगी बरबाद कर । किस लिये पैदा हुवा इस बात को तूं यादकर, बुरे कामों में पैसा लगाओ. मती. ॥३॥ अय युवानों इस युवानी, का गरम बाज़ार है । है Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन सुबोध गुटका ( ३३३ ) नेकी बदी का सोदा इस में, घिकरहा दर वार है । यहां से बंदी खरीद ले जावो मंती ॥ ४ ॥ तन से तुम तपस्या करो, सुखावत, करो धन धान से । साल सत्यासी वाघली में चौथमल कहे आन के 1. कभी भांग का रगड़ा लगावो मती ॥ ५ ॥ नम्बर ४५१ ( रार्ज - पूर्ववत् ) " है कौन यह ज्ञान लगा तो सही, अज्ञान का परदा हटाती सही || टेर || क्या तफावत सोचलो, इनसान और हैवान में । हेवान से विचार शक्ति अधिक है इनसान में । जरा सोच के दिल में जमा तो सहीं ॥ १ ॥ श्रार्यः मनुष्य क्षत्री नृपत अपने तांई मानता । संयोग के लक्षणः को असली समझना अज्ञानता । सच्ची बातें ये दिल में बिठा तो सही ॥ २ ॥ जिसम भी तेरा नहीं मानिंद है एह सदन : के । भ्यान से तलवार जैसे तूं जुदा है बदन से प्यारे देह का मान मिटाती सही ॥ ३ ॥ गरुर गुस्सा दगा लालच इसको भी वह मत जानियो । अच्छे बुरे निमित्त के फल्द इसे पहचानियो । असली बातों को दिल में बिठा तो सही ।। ४ ।। निज २ विषय को जाने इंद्रिय नहीं, दिगर का भान है । प्रत्येक इंद्रिय का विषय का सब उसीको ज्ञान है । वह कौन है हमको बता तो सही ॥५॥ 1 . ' : 1 · : 1. Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३४) जन सुबोध गुटका । निद्रा स्वम जागृत दशा, इन तीन से भी अन्य है।जानने उसकी गति नहीं काम देता मन है । सुरता से भी परे तुं जातो सही ॥ ६ ॥ ज्ञाता से जो ज्ञेय पदार्थ दृश्य जड़ स्वरूप है । - ज्ञान मय तो है चिदानंद आत्मा अरूप है। तूं अपने स्वभाव में आता सही॥ ७॥मैं कौन हूँ मै कौन हूं। यह कहनेवाला है वही, कहे चौथमल इस बात में बिलकुल ही संशय नहीं, इस का भेद तो गुरु से-तूं पातो सही ।। ८ ॥ . नम्बर ४५२ . [तर्ज--पूर्ववत] . . . . . चतन निज स्वरुप तूं पाया नहीं, जिससे मृत्युका अंतभी श्राया नहीं ॥ टेर ॥ इंन्द्रिय संबंधी जो विषय है तू उसे. सुख मानता । पाप केई कर रहा है यह तेरी अज्ञानता । तकर पिनी मक्खन कभी खाया नहीं ॥ १॥ दुनियां के सुख तो दृष्टिसे देखके पलटायगा । सदा कायम जो रहे असली व सुख कहेलायगा । इस का क्या है मर्म तेने पाया नहीं ।। २ ॥रत पाणी में पड़ा,पाणी तो हिलता रहायगा। वहां तलक वह रत्न है तेरी नजर नहीं आयगा। इस न्याय पे ध्यान लगा तो सही ॥ ३ ॥ विषय कषाय के योगसे, तेरा मन चंचल हो रहा । कुछ भान तुझको है नहीं,नर जिंदगी को खो रहा। एक स्थान पे दिलको जमाया हीं॥४॥ मन की चंचलता सभी अभ्यास से मिटजा Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन सुोध गुटका। ( ३३५) यगा । चाहे चोथमल अज्ञान का, परदा तेरा हट जायगा । ज्ञान पानसे फिर भरमाया नहीं ॥ ५ ॥ नम्बर ४५३. . [तर्ज पूर्ववत् ] : फानि दुनियां में कोई लुभावो मती, नर जन्म को मुफ्त गमावो मती । टेर ॥ दुनियांतो दोजख की तरह है मोमनोके वासते, और जन्नत जानलो तुम काफिरों के वासते । दिलसे खोफ खुदाका हटायो मती ॥ १ ॥ दुनियां तो खती आखरत की, सौचलो दिल में जरा । सामान ले तू पाकवत का,कालं तेरे शिर खड़ा। यहांसे खाली हाथ तुम जावो मती ॥२॥ मुर्दार के मानिंद दुनियां,श्वान चाहता हैं इसे । इनसे मोहबत ना करे वो है खुदा प्यारा जिसे। इन'द्गलों से प्रेम लगावो मती ॥३|दुनियां तो घर फरेब . का, झांसे में कोई आना मती । आखरत है घर खुशी का भूल तुम जाओ मती । सच्ची बात हंसीमें उड़ावो मती ॥४॥ घोढनदी सप्ता: सितीमें कहता तुम को चौथमल । छोड़ गीदड़पन को अयतो वाले आत्मबल । खाली वरून बातों में बितानो मती ॥ ५ ॥ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३६) जैन सुबोध गुटका । नम्बर ४५४ . (तर्ज-पूर्ववत् ). ... ... __थोड़े जिने पे क्यों तूं गुमान करे, प्रभु नाम का क्यों ना तूं ध्यान धरे । टेर ॥ चंचल है चपला सम ये आयु तुट एकदम जायगा । फिर जुड़े हरगिज नहीं अागे वहां पछतायगा । करके पाप वृथा अघ कुंभ भरे ॥ ५॥ जुल्म कर लूटे गरीबों को, न तूं लाये दया । माल यहां रहजायगा नहीं साथ किसके ये गया । केई खाली हाथ कर कर के मरे ॥ २ ॥ ऐश और आराम में फंसके उमर खोई सवी । .. हाथ से दिना नहीं उपकार में कौड़ी कमी । नहीं करे तप-" स्या दिन गत चरे ॥३॥ स्वार्थी संसार नहीं कोई, काम · . तेरे नायगा । खान में शामिल है सभी, कर्जा तूंही चुकायगा, अब तो आयो जग तुम समझके घरे॥४॥ साल . सत्यासी में कहे यों चौथमल कान्हूर में । लूटलो तुम लाम । इस भव सिंधु रूपी पूर. में। बिना धर्म कहो नर से तराशा witingués नम्बर ४५५.. (तर्ज-याद हम करते हैं). कस मत जाणी योरे कभी पुरुषसे नार । टेर ॥वाल ब्रह्मचारिणी रही थी, बाली सुंदरी नार । सुयश फैला सुभद्रो का, खोले चंपाके द्वार ॥ १॥ गिरनार गुफामें राज . . Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका (३३७) मतिन, जाके चीर सुखाया न रहे नेम को पतित होतो, देश ज्ञान समझ या २॥ नारी निदा मत करो नारी रत्न • खान, नापीसिनर पैदा होतीर्थकर से महानं ।। ३॥ पतिव्रता हुई जनक दुलारी, जाने लोक तमाम । पतिके' पहले याद करे सब. देखो सीताराम ॥ ४ ॥ तप जप करके स्वर्ग मोक्षमें, करती नार निवास । लीलावती की गिनत प्रकट है, पढ़लो तुम इतिहास ॥ ५ ॥ चितौड़ गढ़ पर "पद्मनाने,निज पति को छोड़ायो । योनी वाचे प्रवेश होयकर, अपना धर्म बचीया ॥६॥ मनमाड़ से 'विहार करिने, येवला शहर में आया । गुरु प्रसाद चौथमल ने साल छियासी गाया ॥ ७॥ निम्बर ४५६ः । तज"तुमे अपनी तन मन लंगाना पड़ेगाः) । 'तुमे यहां से एक दिन जाना पड़ेगा, इस दुनिया से डेरा उठाना पड़ेगा ॥टेर ॥ तेरे माता पिता और ज्ञाति कुटुम्ब, तुम्हें इन से मोहब्बत हटाना पड़ेगा ॥ १॥ तूं तो शक्त बना दिल जुल्म करे, नतीजा तुमे इन का पाना पड़ेगा ॥२॥ जो कुछ करना हो करलो यह वक्त मिली, नहीं तो वहां रंज उठाना पड़ेगा।३॥ जो मानोगे नहीं तो पड़ोगे नर्क में, फिर रोरो के रंज उठाना पड़ेगा ॥४॥ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सुबोध गुटका | ( ३३६ ) 4 4 प्रणी, हर वक्त समय यह नांय मिले, कुकर्म तजो उत्तम प्राणी || ढेर || जो कुछ लिखा तकदीर बीच वैसी संपत तुझ श्राय मिली, अब आगे की तजवीज करो मत देर वरो अवसर जाणो ॥ १ ॥ जो वक्त हाथ से जाता है, नहीं लौट कदापि श्राता है, नहीं मिले किसी जगह, मोल, फिर है कैसी अमोलक जिंदगानी || २ || मत जुल्म करो प्रभु से तो डरो क्यों पापों का तुम घट भरो, अच्छे के लिये तेरे इक में समझाते हैं सत्गुरुं ज्ञानी || ३ || धन दौलत और सुत दारा ये मिले प्राय कई पापी को, लेकिन मिलना है मुश्किल दिल सत्संग और प्रभु की वाणी ॥ ४ ॥ उन्नीसो छियासी चौथमल जलगांव बीच चौमासा किया उपदेश दिया फिर श्रोता को सुनो प्रेम लगा अति हित आणी ॥५ । ܚܘܘܘܐ नम्बर ४५६ ' (तर्ज- अर्ज पर हुक्म श्रीमहावीर ) : " मिले अगर बादशाही तो खुदाही आय जाती है, जब आंखें चार होती है तो मोहबत आय जाती है || ढेर || 'देखे कई मालदारों को घूमते बग्गी मोटर में, गरीबों की सुनते हैं नाहीं खुदाही श्राय जाती है ॥ १ ॥ पढ़े लिखे चड़े आलम वकील और चैरिटर, वो भी नहीं दीन को गिनते खुदाही आय जाती है ॥ २ ॥ कलेक्टर सुबा साहेब Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४० ) "जैन सुबोध गुटका | Ang मजिस्ट्रेट और डिपटी, और कप्तान तहसीलदार खुद ही आय जाती है || ३ || चौधरी पंच नंबरदार पटेल पटवारी जमादार, बनावे जा मुखी किसी को खुदा ही आय जाती है || ४ ||' चौथमल कहे भजो ईश्वर, तजी मोह माया दुनिया की, मुरतबा जो मिले बहेतर, खुदा ही आय जाती 1.' 2009 : ॐ वीर स्तुति महावीर मनमोहन प्रभुका, नाम है शान्तिकरण सदा । हार्दिक भाव से उसग उमग के, करता हूँ मैं स्मरण सदा ॥ वीतराग, जिन देव विश्व भवः सिन्धु तारण, तिरण सदा । कृमण करें तुम नाम हृदय में, मिथ्या कुमत तम हरण सदा ॥ प्रणमत इन्द्र, नरेन्द्र सुरासुर, अर्चित है तुम चरण सदा । भूतिप्रज्ञ' सर्वज्ञ, “चौथमल” दास तुमारे शरण सदा ।। ५ ॐ शान्ति !' शान्ति । शान्ति Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छप गया! छप गया !! छप गया !!! स्था० जैन साहित्य का चमकता हुआ सितारा, भगवान महावीर का आदर्श जीवनलेखक-प्रखर पंडित मुनि श्री चौथमलजी महाराज सच्ची ऐतिहासिक घटनाओं का भण्डार वैराग्य रस का जीता जागता आदर्श, राष्ट्र-नीति व धर्म-नीति का खजाना सुमधुर--ललित भाषा का प्राण, सजीव भाषा में विरचित भगवान महावीर का आद्योपान्त जीवन चरित्र छप कर तैयार है। जिसकी जगत् वल्लभ प्रसिद्धवक्ता पं० मुनि श्री चौथमलजी महाराज सा० ने साधुवृत्ति की अनेक कठिनाइयों का सामना करके अपने अमूल्य समय में रचना की है। संसार की कैसी विकट परिस्थिति में भगवान का अवतार हुआ ? भगवान् ने किस धीरवीरता के साथ उन विकट परिस्थितियों का समूल नाश कर अमर शांति का एक छत्र शानष स्थापित किया, लोक कल्याण के लिये कैसे कैसे असह्य परिपहों को सहन किया? श्रादि रहस्यपूर्ण घटनाओं का सच्चा हाल पुस्तक के पढ़ने से ही विदित होगा । स्थानाभाव से हम यहां उसका विस्तृत वर्णन नहीं कर सकते । अथाह संसार सागर को पार करने के लिए यह जीवनी प्रगाढ़ नौका का काम देगी। इस की एक एक प्रति तो प्रत्येक सद्गृहस्थ को अवश्य ही अपने पास रखना चाहिए । बड़ी साइज के लगभग ६०० पृष्ठ सुनहरी, जिल्द तिसपर भी मूल्य केंघल २) मात्र । शीघ्र मंगाकर पढ़िये अन्यथा द्वितीय संस्करण की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। पता: श्री जैनोदय पुस्तक प्रकाशक समिति, रतलाम. Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. वीर भगवान् की पवित्र वाणी का ... अपूर्व संग्रह . :. निग्रंथ प्रवचन संग्रह कर्ता प्रखर पंडित मुनिश्री चौथमलजी महाराज यह ग्रंथ भगवान महावीर के उपदेश रूपी समुद्र से निकाले हुए अपूर्व धर्म रत्नों का खजाना है । ग्रंथकारने अपने जीवन के अनुभव और परिश्रम का पूर्ण उपयोग करके इस संग्रह को तैयार किया है। __इसमें गृहस्थ धर्म, मुनि धर्म, आत्म शुद्धि, ब्रह्मचर्य, लेश्या, पट् द्रव्य, नर्क स्वर्ग आदि अनेक विषयों पर जैन सूत्रों में से खोज खोज कर गाथाएं संग्रह की गई हैं। पहिले मूल गाथा-और उसका अर्थ और फिर उसका सरल भावार्थ देकर प्रत्येक विषयको स्पष्ट रूपसे समझ या गया है। अन्तमें जिन सूत्रों से गाथाएं संग्रह की गई हैं. उनका नाम और अध्याय २० देकर सोने में सुगन्ध ही करदिया है। इस एक ग्रंथ द्वारा ही अनेक सूत्रों का सार सहज में प्राप्त होजायगा। . . . ३५० पृष्ठ और सुनहरी जिन्दसे सुसज्जित इस. ग्रंथ का मूल्य केवल ). मात्रः । शीघ्र मंगाइए अन्यथा, दूसरे । संस्करण की प्रतीक्षा करना पड़ेगी। पता-श्री जैवोदय पुस्तक प्रकाशक समिति, रतलाम Page #350 -------------------------------------------------------------------------- _