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जैन. सुवोध गुटका ।
· · १२४. जम्बू कुंवर का उत्तर उसकी रानियों को. ..
(तर्ज-वारीजाऊरे सांवरिया तुम पर वारनारे ) सुन्दर झूठा जग लिया जान, ज्ञान लगायफेरे ॥ टेर॥ तन धन यौवन, विद्युत् भलकारा, संध्या राग स्वप्न संसारा । इंद्र धनुष क्षण बीच जाय विरलायकेरे ॥ सुन्दर० ॥१॥ जन्म जरा मृत्यु दुख भारी, अनन्त बेर भोगे सुन प्यारी। विषय वासना मांय वृथा ललचायकेरे॥२॥ पैसठ सहन पांच सो छत्तीस, बादर निगोद में सहस्र है बत्तीस । मुंहूतं एक में जन्म मरण सुन, थर २ जीव कम्पायरे ॥ ३॥ रंग पतंग सा पुदगल का ढंग, मृग तृष्णावत् कौन करें संग। कंभी तृप्त नहीं होय, स्वर्ग सुख पायकेरे ॥ ४॥ प्रेम होय तो उत्तर दीजे, मेरे साथ में संयम लीजे। कहे चौथमल बैरागी यूं समझायरे ॥५॥
फाइ १२५ वो तो सबसे निराला है. (तर्ज-विना रघुनाथ के देखे नहीं दिल को करारी है) तलाशें कहां उले ढूंढे, वो तो सवसे निराला है। हीरे वीत्र की ज्योति से, बढ़के भी उजाला है । टेर ॥ फूलों बीच वाही हैं, खुशबू बीच वोही है । न वो फूल न वो खुशवू.वो तो सबसे निराला है ॥ तलाशें ॥१॥ पानी बीच वोही है, पाषान बीच वोही है। न वो पानी न वो पाषान, वो तो सबसे निराला हैं ॥२॥ भोगी बीच वोही है, जोगी बीच वोही है। न वो जोगी ना.वो भोगी,वो तो सवसे निराला है ॥३॥ दिनके वीच वोही है, निशा के बीच कोही है । न वो दिन है न रजनी है, वो तो सबसे निराला है ॥ ४ ॥ दरखत वीच वोही है, पत्तों वांच वाही है। न वो दरखत न वो पत्ता, वो तो सबसे निराला है