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जैन सुबोध गुटका।
(८१)
तुझको, ऐसी गैरों की भी जान । रहम ला दिलमें जरा,शिकार करना छोड़दे ॥५॥ जितने पशु के वाल है,उतने जन्म कातिल मरे । 'मनुस्मृति' देखले, शिकार करना छोड़दे ॥६॥ हेवान आपस में लड़ाना, निशाना लगाना जान का। हदीस' में लिखा मना, शिकार करना छोड़ते ॥ ७ ॥ गर्भवती हिरनी को मारी भूप श्रेणिक तीर से । वह नर्क के अन्दर गया, शिकार करना छोड़दे ॥८॥ खून से होती नरक, श्री वीर का फरमान है । चौथमल कहे समझलो, शिकार करना छोड़दे ॥६॥
vocs. १२३ कम फल.
(तर्ज दादरा) इस कर्म संग जीव तेने रूप कई धरे, श्रापो संभाल श्राप लक्ष काज तो सरे ॥टेर ॥ तिलों में तेल क्षीर नीर पुष्प में सुगन्ध । ऐसे अनादिका संयोग, समझ तो अरे। इस० ॥१॥ सोनी के निमत से कंचन का गहना हो। पीकर शराय शराबी जैसे, नाली में गिरे ॥२॥ कभी गया नर्क में, दुःख का न पार है। पुद्गल की मार वे शुमार, लोचो जहां परे॥३॥ हेवान धीच पैदा होय, भार को वहां । पुष्प होय सेज बीच, जाके दय मरे ॥ ४ ॥ स्वर्ग वीच भतरा के, झुंड में रहे कभी हुमा शिरोमणि, कभी हुआ तरे ॥५॥ मनुष्य जन्म ऊंच नीच, कौम में हुश्रा । कभी तो बादशाह कभी, नकीम हो फिरे ॥६॥ दया धार हिंसा टाल, जिन बेन हैं खरे, कहे चौथमल कर्म मिटे, मोक्ष में वरे॥७॥