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जैन सुवोध गुटका।
(८३)
॥५॥ हिन्दू पीच वोही है, मुसलमां वीच वोही है। न वो हिंदू नवो मुसलमां, वोतो सयले निराला है ॥६॥ स्त्री बीच वोही है, पुरुषों वीच वोही है।न वो स्त्री न वो मानुष, वो तो सबसे निराला है॥ ७ ॥ हरशे बीच वोही है, हृदय वीच वोही है। न वो हरशे न घो हृदे, वो तो सबसे निराला है ॥८॥ सूर्य सम जूदा है सबसे, धूप सम सबके अन्दर है । न वो सूरज न वो है धूप, वो तो सबसे निराला है ।।६ ॥ अनंत चतुष्ट करके सहित, न उसके रूप है ना रंग। चौथमल कहे वो निरवानी, वोही भक्तों का वाला है ॥ १०॥
१२६ गौ से लाभ. (तर्ज-जशोदा मैया, अव ना चराऊ तेरी गैया) दयालु भैया, मरे बे अपराध पशु या ॥टेर ॥ कहां गये गोपाल लाल, धनु के थे वो चरैया । शिर पर आढ़े काली कमलिया, वंशी राग बजैया । दयालु० ॥१॥ हिंदू नाम उसी का जानों, पर के प्राण बचैया। हिंदू होके पशु वीणा से, जमपुरी बीच पठया ॥ २॥ गऊ के जरिये दूध मलाई, पेड़ा खात रवड़िया । गऊ के सुत से खेती होवे, सबके उदर भरैया ॥३॥ माता दूध अल्प पिलावे, वो उमर भर दूध पिलया । उपकार पे अपकार करे, वो कैसे कृत धनैया ॥ ४॥चेतो चेतो जल्दी चेतो, अहो ! निज सुख के चैया । चौथमल कहे दया धर्म से, पार लगे तेरी नैया ॥५॥
१२७ चोरी निषेध. (तर्जया हसीना वस मदीना, करवला में तू न जा) । इज्जत तेरी बढ़ जायगी, तू चोरी करना छोड़दे । मानले