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जैन सुवोध गुटका । तो साफ सुनावे, करा धर्म वहीं सुख पाया रे ॥६॥
११८ प्रश्न जंवू कुंवर से उसकी स्त्रियों का.
(तर्ज-वारी जाऊरे सांवरिया तुम पर वारनारे) . प्रियतम अवला की अरदाल, ध्यान में लावनारे ॥ टेर।। हम सब सुन्दर खुद की दासी, तुम्हरे वचनामृत की प्यासी। महर नज़र कर इधर, छोड़ मत जावनारे ॥ प्रियतम० ॥१॥ कैसे जावे बाल उमरिया, तुम बिन कौन आधार केशरिया। वोली मधुबैन, प्रेम दरसावनारे ॥ २ ॥ वात सुनी जियरा घयरावे, पानी बिन ज्यू हरी कुमलावे। पति विना ज्यूं नार, दान बिन भावनारे ॥३॥ मात पिता भये वृद्ध तुम्हारे, तिनकी और दो तनिक निहारे । विना विचार करे होय पछतावनारे ॥४॥सोच समझ कर घर पर रहिजे,हम तुम वय को लायो लीज । मुनि चौथमल कहे वेरागी!, मत ललचावनारे ॥ ५ ॥
११६ निवास की अस्थिरता. (तर्ज-बिना रघुनाथ के देख नहीं दिलको करारी है) ' सुनो सब जहां के प्रालिम, यहां कक्तक लुभानोगे। सालो वर्ष जिन्दे, तो आखिर यांसे जाओगे।। टेर॥पाया. किस कामको नरभव, लगे किस काम के धंधे । करो तो गौर. दिल अन्दर, मौका फिर फिर न पाओगे । सुनो०॥१॥ अजाब की पोट सिर धर घर, खजाना कर दिया तर तर। घराधन माल यहां रहेगा, सफर में कुछ न पाओगे ॥२॥ जरा नहीं खोफ लाते हो, वक्त योही गुमाते हो। धरी सिर
दिल अन्दर सिर
सफर में कुछ हो। धरी