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जैन सुबोध गुटका ।
२२ संसार अनित्य: (तर्ज- - पनजी मुंडे बोल )
माया दुनियां की २ है झूठी मनवा, क्यों ललचावरे ॥ टेर ॥ उगे जोई आथमरे, फूले जो कुमलांवरे । सदा | एकसी रहे नहीं, ज्ञानी फरमांवरे ॥ १ ॥ पूंडर्थधकको भूपति निघाई नाम कहांवेरे | मान मर्दन कर दुश्मन को, सिर छत्र धरावेरे ॥ २ ॥ भोग विलास करे राख्यां संग यूं सुखमें दिवस चितावेरे । एक दिन वन क्रीड़ा करवा; आप सिधावरे ||३|| मांझरी से छायो थांबो, मारग में दरशांवरे । उपर बैठी कोयली; चा राग सुनावेरे ॥ ४ ॥ एक लूंब राजा ने तोड़ी, पछि सेना वेरे । देखा देखी तोड़ने, ये सब लेजावेरे ||५|| राजा फिर वो देख्यो, स्तंभ रूप जब पावेरे । विरूप जोई पुछियो; सब बात बतावेरे ॥ ६ ॥ अनित्य पणो राजा विचारे; ऊमर बीत्यां जावरे । रूप यौवन ऋद्धि संपदा नहीं स्थिर रहावेरे || ७ || राज्य तिलक देइ पुत्रने, नृप संयम को पद पावेरे । प्रत्येक बुद्धि होके केवली; फिर मोक्ष सिधावरे ॥ ८ ॥ साल गुण्यासी गोतमपुरा में; दस ठाणा सुख पावेरे | गुरु प्रसादे चौथमल मुनिका गुण गावेरे ॥ ६ ॥
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२३ मनको शिक्षा.
( तर्ज गर्यो ) मना समझो अवसर एवो पायेनेरे; क्यों बैठा तुम्हें