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जैन सुबोध गुटका।
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॥२॥देखो हरिश्चन्द्र ने सत्य धारा।येची उसने रानी तारा। आप भंगी घर रहा, न किया विचारणारे ॥३॥ सत्य तुंबा नहीं जल में छिपेगा। कंचन के नहीं कीट लगेगा। चौथमल कहे सत्य है विधन विदारणारे ॥४॥
२१ सती सुभद्रा का यश (तर्ज-ना छेड़ो गाली दूंगारे भरवादो मोय नीर)
प्रभु की रक्षा हमारीरे, विपता को दूरी टार ।। टेर॥ एक जिन कल्मी मुनिराया, सुभद्रा के घर पाया । उठ हाथां हर्ष बहरायारे ।। १ ।। कर्म योग नेन के माई, पड़ा फूस मुनिके आई । सती काढ्यो कर चतुराईरे ॥२॥ सासुने कलंक चढ़ाया। सती तप तेला का ठाया। 'सुर' प्रकटी धीर बंधायारे ॥३॥ दिया वज्र कमाड़ बनाई। चारों दरवाजा ताई । खोल से खुलते नाईरे ॥ ॥ ४ ॥ जब खुले देव कहे बानी, सती कच्चे सूत्र में पानी । चलनी से काढ़े पानीरे ॥ ५॥ एंडी नृप ने पिटवाई, हो सती खोले वो आई । सासु को सती जारे ॥६॥ नहीं पूर्व पाप छिपाया, फिर पर किडी के आया । यूं सासू वाक्य सुनायारे ॥ ७ ॥ सुभद्रा प्राय उस वारी, लियो चलनी से जल कागदीनी तीनों पोल उधारीरे ।। ८ ॥ मिल सुर नर मंगल गावे, सत्य धर्म की महिमा छाये। सासु अपराध खमावरे ।। ६ । रतलाम चौथमल पाया, पूज्य राज्य का दर्शन पाया। साल गुण्यासी में गुण गायारे ॥ १० ॥