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जेन सुबोध गुटका।
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.१७२ कराल काल.. (तर्ज विना रघुनाथ के देखे नहीं दिल को करारी है). . . कजा का क्या भरोसा है, न मालूम फव. ये विगा। खड़ा रह जायगा लशकर, पकड़ तुमको ले जावेगा । टेर॥ तीतर को बाज पकड़े है, मेंडक को सांप असता है। विल्ली चूहा झपटती है, काल ऐसे दवावेगा ॥ कजा० ॥ १॥ कहां है वेद धनवंतर, कहां लुकमान जहां में है। मिलाया खाक में उनको, तू क्या वाकी रहजावेग ॥ २॥ जैसे सिंह हिरन को ले, कजा नर को लहे आखिर । नहीं माता पिता भाई तुझे आके छुड़ावेगा॥३॥ धरे रह जायंगे हथियार, क्या उमराव और साथी । घरे' रह जायंगे न्याती, नहीं कोई वचावेगा ॥४॥ चले नहीं जोर जादू का, चले नहीं जोर वाजू का । पड़े त्रिलोक में डंका, तू कहां जाके छुपावेगा ॥५॥ अरे! जिसकी धमक आगे, कांपते चांद व सूरज । मगर सोता तू गफलत में, अधर आके उठावेगा ॥६॥ गुरु हीरालालजी परसाद, कहे मुनि चौथमल ऐसे । करो क्रिया वरो मुक्ति, तो काल भी ताप खावेगा ॥७॥
१७३ स्वार्थी संसारं. : (तर्ज -परदेशों में रेमगई जान अपना कोई नहीं ). .. लव मतलय को संसार, तेरा तो कोई नहीं ॥टेर मात और तात कुटुंव और संजन, मतलव को परिवार ॥ तेरा० ॥ १॥ कंठी डोरा कानों का मोती, धरी रहेगी नारं ॥२॥ कसूमल पाग केशरियां यागा, सब झूठा सणगार ॥३॥"जों तू जन्म सुधार्यो चाहे, सेव २ अयगार ॥४॥ असल धर्म है
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