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________________ "जैन सुवोध गुटका । चला फेरी | फिर मौका कहां | ल्हेरी, किया मानी, कहां ( १११ ) तुझ को इशारा ब्रह्मदत्त से भोगी ॥ है ॥ ४ ॥ कहां शम्भूम चक्र कहां वसुदेव से योधा, हुए ऐसे हजारों है हीरालाल के परसाद, कहे मुनि चौथमल धर्म के प्रेमी, तो सुधरे काज सारा है ॥ ८ ॥ ফঃ*ঃa ७ ॥ गुरु सबसे । बनो जिन १७१ साधु संगत सार. ( तर्ज - पनजी मुंडे बोल ) संगत करले २ साधु की संगत शिव सुखदातारे || ढेर || प्रत्यक्ष कल्प वृक्ष-सा जुग में, जाने पारस मिलियारे । तुरत होसी तिरो थारो ज्ञान के सुखीयारे ॥ संगत० ॥ १ ॥ कुटुम्ब कबीला धन दौलत में, मत ना कभी तुम राचोरे । विन मतलब बिन कोई न पूछे, सगपण काचोरे ॥ २ ॥ जूंश्रावाज चोर लंपट, और मद्य मांस खानारारे । इतनों की संगत मत कीजो, सुन बेन हमारारे ॥ ३ ॥ कुगुरु कनक कामिनी भोगी, लोभी और धूतारारे । आप ह्वे कैसे तुझ तारे, करो विचारारे ॥ ४ ॥ गौतम स्वामी पूछा कीधी, देखो भगवती माईरे । दश दोल की है। वे प्राप्ती, सुगुरु संगत पाईरे ॥ ५ ॥ कहे चौथमल गुरु हमारा, हौशलालजी ज्ञानीरे । चतुर हो तो समझो दिल में अति हित आनीरे ॥ ६॥
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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