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________________ (११०) जैन सुबोध गुटका। लड़े रघुवीर । मारा गया रावण सा वीर । क्षण में लंक गमाई है ॥ २ ॥ भरत बाहुवल दोन भाई । आपस में हुई उनके लड़ाई । समझाया इन्द्र ने आई है ॥३॥ महाभारत का है परमाण । कौरव पांडव सा वलवान, दिये लाखों लोग कटाई है ॥ ४ ॥ कई बादशाह और वजीर । राजा राना और अमीर । रही धरा यहां की यहां ही है ॥ ५॥ चौथमल कहे धन्य मुनिराज। तजा खजाना सुन्दर राज । माहिमा जिनकी छाई है ॥ ६॥ -5+xs १७० मिथ्या ममत्व. (तजे-चिना रघुनाथ के देखे नहीं दिल को करारी है) चले जाओगे दुनियां से, कहना ये हमारा है । उठाके चश्म तो देखो, कौन. यहां पर तुम्हारा है ॥ टेर ॥ कहां से आए हो यहां पर, और क्या साथ लाए थे । बनो मुखत्यार तुम किसके, जरा ये भी विचारा है॥ चले०॥ ॥१॥ गुनाहों के फरश ऊपर, लगा जुल्मों का तकिया है मजे में नींद: लेते हो, खूब शैतान प्यारा है ॥२॥ दिन खाने कमाने में, ऐश मस्ती में खोई रात । भलाई कुछ न की ऐसी, जिससे वहां पर सहारा है ॥३॥ जहां तक दम वहां तक है, तेरे धन माल और कुनबा । निकलते दम धरे जंगल, करे . आखिर किनारा है ॥ ४ ॥ निगाह चौ तरफ तू उस वक्त, जो फैला के देखेगा। तो अकेला .आप खाली हाथ, लिए जुल्मों का भारा है ॥ ५ ॥ कजा आने की है देरी, फकीर सी दे
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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