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(२५०) जैन सुबोध गुटका । सुव्रतंजी, मुनिसुव्रतजी । नमी नम पार्श्वनाथः महावीर लागे सुहावना ॥ ३ ॥ ग्यारह तो गणधर वीस वेहरमान, वीस . वेहरमान, सकलं साधु, अनगार, चरणों में शीश नमावना ॥४॥ गुरु प्रसाद चौथमल कहें, चौथमल कहे । जन्म अरण दुख टाल, परम सुख पावना ॥ ५ii . .
.... ३४७ यश ही एक जीवन है.", ... ... ... . (तर्ज-पंजी मूंड वोल ). .. . सुयश. लीनरे २ मनुष्य की उत्तम काया पाइरेटेर। सुयश जीनो, राम भरत ने. राजऋद्धी भोलाईरे। पिता वचन सिर धार गये, विपिन सिधारे ॥ १॥ सुयश लीनो भूप विभीषण, राम शरण में आईरे । असत्य पक्ष नहीं कियो नहीं, नीति विसाईरे ॥ २ ॥ भामा शाह जो धन देईने, लीनी आप मलाईरे । जीता धनी ने रोक धर्म की, विजय कराईरे ।। ३ ॥ निश्चलं नहीं है तन धन योवन, देखो निगाह लगाईरे । यश जीवन अपयश मरण, समझो मन. माईरे ॥ ४ ।। भले भलाई. बुरे चुराई, प्रत्यक्ष रही दिखाईरे । फूल से फूल शूल से शून है, संशय नाईरे॥५॥ पश्चिम. खान देश में धुलिये, साल पिचासी माईरे । गुरु प्रसादे चौथमल या, जोड़ बनाईरे ॥ ६ ॥