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(१६४) जैन सुबोध गुटका.।
२४६ कर्मादर्श. ..
(तर्ज-पंजाबी) सजन मत बांधो कर्म, सत गुरुजी समझाये ॥ टेर ॥ लिखा भागवत दरम्यान, पालि के माग राम ने वाण । हरि का सुनो मर्म, पुनः वाण पांवमें खावे ।। सत० ॥ १॥ स्थावर जंगम प्राणी, पहुंचावे इनके प्राण को हानी । बिगड़ जा सेकी सनस, कमे उदय जब आवे ॥२॥था हरिश्चन्द्र सत्य धारी, चेची काशी में उस ने नारी। तजा नहीं अपना धर्म, खद मरघट पर रहावे ॥३॥ लक्ष बावन सहस्त्र जो रानी, मांगी ब्रह्मदत्त अभिमानी । बांधकर पाप कर्म, सीधा नर्क में जावे ॥ ४॥ ऐसी जान कर्म ना कमा ओ, सभी जीवों पर करुणा लावो । मेटो कुल मिथ्या मर्म, मुनि चौथमल सत्य गावे ॥ ५ ॥
.:२४७ स्त्रो धर्मः . . (तर्ज--मजा देते हैं क्या यार) . . जो होवे सच्ची नार,कुल धर्म निभाने वाली. पतिव्रता के आचार, उन पर ध्यान लगाने वाली ।। टेर ।। तन रखे अपना छुपाई, ना बोले नैन मिलाई । ना करे छल. पतराई, नहीं हो सीना दिखलाने वाली ।। जो० ॥१॥ ना पति से सामना करती,नित नीचे नैनों से रहती। ससुर की लजा करती, ना पर घर के. जाने वाली ॥२॥ ना