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(१२०) जैन सुबोध गुटका।
.: १८६ मोटा नाकर्ता • (तर्ज-मांड, भजो नित त्रिशला नंद कुमार)
माटान एवं कर घटतुं नथी, हूं कहूंछं पाड़ी वूम अति . ॥टेर ॥ बचन श्रापी हाथ बीजाने, कहे आ शुं तारे काम । वखत आवे बदली जावे, नटत न आवे लाज । मोटा० ॥१॥ पोते बाग लगावे कोई, ते वाडी मोटी थाय । सिंचन की वेला जब श्रावे, टालो खाई जाय ॥२॥ बुडतां माणस ने पकड़ी निकाले, ला अधपच दे छटकाय.। एवा विश्वास घाती नुं प्रभु, मुखड़े नथी बंताय ॥३॥ मोटा थावे माणसोरे, पाले बोल्या बोल । मोटा ढोल जेवा नहीं थाये, माहे पोलम पोल.॥४॥ अठारदेशना. राजा मोटा, आन्या चढा नृप नी भीड़ । स्वधर्मी ने साज जो श्रापी, निज वचनों री पीड़ ॥ ५ ॥ साचा थाओ काचान थानो, रखो वचन अडोल । गुरु हीरालाल प्रसादे चौथसल, देवे सीख अनमोल ॥६॥
. १८७ श्रायु की अस्थिरता.. ..तः भर्तृहरिकी-घुणी तो धक्का द्यो वादल.महल में .
श्रासन डोडिया के माय दिन दस अठे ही तापोजी.
अमर कोई न छेजी, काची काया का:सरदार पटेर।। सुवर्ण का पलंग सेजा फुलां की जी, सोता सुन्दरी के साथ ।। अमर० ॥१॥ लाखां तो फोजी जांके संग रहती जी, उमराव जोड़ता था हाथ ॥ २॥ सोलह तो शृणगार