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जैन सुबोध गुटका।
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प्रकार का मेवा मसाला, सो भोग्या अनंतीवार ॥२॥ छत्र चंवर शिर वीजतारे, खमा २ करता नर नार | गादी तकिया चैठतारे, सो चले गये सरदार ॥ ३॥ राजा राणा बादशाह रे, रहता संग सवार । माल मुल्क छोड़ी गया रे, देर न लगी लगार ॥ ४॥ चुना चंदन फुलेल लगाई, हीडे हीडा मंझार । नया २ लणगार सजीने, गर्व मती लगार ॥ ५॥ इम जानी जग जाल ने बोड़ो, निज प्रातम को तार । जंवूकुमार अतुल वैरागी, उतरया भवजल पार ॥ ६ ॥रंभा बत्तीसों तजोरे, शालिभद्र कुमार। मुनि अनाथी महा वैगगी, छोड्या धन भंडार।॥ ७॥ बाल ब्रह्मचारी गज मुनि रे,यादव कुल शणगार। नेम समीपे संयम लेने, कर गया खवा पार ॥८॥ गुरु हीरा. लाल प्रसाद चौथमल, जोड़ करी श्रीकार | मांडलगढ़ उन्नीसे बांसठ, फागण सेखे कार ||
१८५ मूर्ख को शिक्षा देना व्यर्थ.
(तर्ज-आशावरी) सन्तां नुगरा का नहीं विश्वासा ॥ टेर ॥ इत उत डोलत माया कुं हूंढत, जेता मूंह तेता दिलासा । कोई यत्न वाहे सो करलो, कबहु न होता खुलासा ॥ सन्तां ॥१॥सर भूमि में चीज पड़े ज्यू वी चि जवासा | उ तवा पर बूंद पानी का, क्षण में होत विनाशा ॥२॥ दग्ध चीज अंकुर न मेले, मुरदा ले कव श्वासा,उड्डू मूंग कभी नहीं सीजे,जो नांच लगे पवासा ॥३॥ गुरु प्रसाद चौथमल कहे, सुन जोयानी खाला। जा घट अन्दर है विश्वासा, ता घर लील विलासा ॥ ४ ॥