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जैन सुबोध गुटका।
खाली करें झकझोल || कहो चातुर कहें के अज्ञान, दया कों .. पाले है बुद्धिवान ।। ४ ॥ तीनों मजहब के कह दिये हाल, इसी पै करलेना तुम ख्याल | दो अब कुगुरु का संग टाल, बनो तुम षट् काया प्रतिपाल ॥ दोहा || गुरु होरालालजी हुक्म से, नाथदुआरा मांय, किया चौमासा चौथमल, उन्नीसे साठ में आय । सुन के जीवरक्षा करो गुणवान ।। दया० ॥ ५ ॥
nyasin___३०२ वीर कर्तव्य. .
' (तर्ज-दादरा) ___ जो धर्म वीर पुरुष है, वह धर्म को करे । उठाके पैर आगे को, पीछे नहीं फिरे ।। टेक ।। तन धन इज्जतं सर्व एक, धर्म के लिये। करते रहे प्रचार न, किसी से वे डरे । जो० ॥१॥ अार्य के जो हीरे वह, पत्थर से कब दबे । न हटते रणं के बीच हो शूग्मा र ॥ जो० ॥ २ ॥ दुश्मन को पीठ दीष्टं परनारी को न दे। ये वस्तु देते नहीं, और दातार में खरें ।। जो० ॥३॥ मर्द दद न गिने परोपकार को। नामर्द से उम्मेद, कहो कौन . तो करे ।। जो० ॥ ४ ॥ गर गंगा जा उलंट, आग शीत उर धेरे । ऐसा न होय होय, तो भी सत्य नहीं टरें ।। जो०॥५॥ महाराज हरिश्चन्द्र वा, अर्णक को देखलो । धर्म ग्रंथ वीच नाम, उनका है सरे ।।.जो० ॥ ॥ ६ ॥ कहे चौथमल जन्म लेना, उनका श्रेष्ट है । वाकी तो भूमि भार, मनुष्यं मृगसा चरे ।। जो ॥ ७॥"
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