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जन गुषोध गटका।
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३०३ सुगोग.
(तर्जनपदी लादनी) मुगुरु संग धार धारे धार, गुरु संग टार टाररे टार ॥ टेक ॥ मनुष्य को जन्म अमोलक पाय, अरे चाता मत पहल गमाय । हाथ से बाजी तेग जाय, जिनन्द गुण गाना हो तो पर गाय ॥ दोहा । वरून अमोलक पायक, मत हो मित्र अचेत । गफलत में मत रहो गत दिन, काल मपटा देत ॥ माह की नींद निधार निवार || सुगुम । ॥१॥ मति तेरी गुरु दिनी विग इ, कोतुं हिमा २० का लाड़ । दीनी तेने शिव सुन्दर को नाइ, बोल्या तेने दुर्गति के किवाड़ ॥दोहा॥ अनन्त काल तो खोया हस विधि, फर गंवाय एम । अमृन छोड़ जहर को खांब, केस उपजे सम । सपर नहीं पड़ती तुझे लगार ।। मुगरु० ॥ मगर मस्त होके तूं फिरता, जुल्म करने से नहीं डरना, गरीबों की टवा करता, सत्य उपदेश नहीं धान ॥ तं जाने में बड़ा चतर हूं, मेरे सिवाय नहीं और जिन धर्म को मर्म न पायो, मोटोरको टोर ॥ तस्या नहीं क्रोध मान अहंकार || मुगुरु ॥ ३॥ धर्म को नहीं पहनने
मृध नर अपनी ताने है | जैन की रहस्स में जाने, मिथ्या मत में मामाने है ॥ दोहा । तर मान बजे में पाव, पिन खो नहीं पाए । मन ना कोई रिला लेगए, छाछ जगत भरमार । ममन यू बोगी गुमर