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जन सुबोध गुटका
श्रावे वींद ।। चतो० ॥ ४॥ मौत हवा ऐमी चलेरे, ठहरे नहीं सुलतान । जैसे वायु योगसेरे, झड़े वृक्ष का पान . ॥ चेतो० ॥ ५ ॥ गज सुखमाल - सुन कर वानी, लियो संयम भार । सौ सुन्दर जैसी तजोरे, अप्सरा के उनिहार । चेतो० ॥ ६ ॥ गुरु प्रसादे चैःथमल यूं, बार बार चेताय प्रमाद तजो संवर ग्रहोरें, जावो मोक्ष के माय चेतोगा।
. ३४५ परस्त्री त्याज्य. . . . (तर्ज-अनोखा भंवरजी हो साहिया झालो हूँ घर भाय)
सुगड़ा मानवी हो चतुरां मत ताको परनार ।। टेर।। चीर पुरुप की कामिनी हो चतुरां, जल भरवाने जाय । पणिक सुत बैठो हाटे, हो चतुरां देखी रूप लुभाय। सुगड़ ॥ १॥ प्राता जाता छेड़ करे हो चतुरां,नारी करे विचार । मन करने इच्छं नहीं, हो चतुगं भर्म धरे संसार ।। सुगड़।। ॥ २ ॥ पानी ला मल्यो घरे हो चतुरां; पति पायो उस बार ! सा कहे छेड़ करे मेरी, हो चतुरां.पुरुष एक.गंवार ।। सुगड़० ॥३॥ खड्ग निकाल्यो म्यान से हो चतुरां नाम बता इस वार । सा कहे इम.कीजे नहीं, हा चतुरा कीजे काम विचारः ॥ सुगड़० ॥ ४॥ मैं लाऊं उसको घरे
हो चतुरां, दीजो फिर समझाया। पति गयो फिर बारणे, हो __ चतुरां, सा जल भरवा जाय ।। सुगड़० ॥ ५॥ आती. देख