________________
mononna.
(२८) __ जैन सुवोध गुटका ! व्याही कन्या वो होती बेजार है । ऐसे नर . जन्म खो सेवे विकार है। अरे पापी ये तेने करा क्या है ॥३॥ दिन चार की है बहार मत भूलियो जनात्र । आखिर तो वह कुमलायगा जो खुल रहा गुलाब । तकलीफ देके गेर को करते हो तुम अजाब । कहे चौथमल रहिम कर तू जो बने नवाव । मान नसीहत बंदा खड़ा क्या है ॥ ४ ॥
४० दान का कल. . तर्जच्या हसीना बस मदीना करबला में तू न जा) -
लाखों प्राणी तिरगये है, दान के परताप से। सुखी होवे पलक में, एक दान के परताप से ॥ टेर ॥ दारिद्र दुर्भाग्य अपयश, समूल तीनों नाश हो । 'सुर' सम्पदा हाजिर रहे, एक दान के. परताप से ॥ १ ॥ पाप रूपी तमा हरण को, पुण्य रखी प्रकट करे । निर्वाण. पद उसको मिले, एक दान के परताप से ।। २ ॥ धन्नाशालिभद्रजी श्रीमंत कैवन्ना हुए। भरतजी चक्रवर्ती हुए,एक दान के परताप से ॥ ३ ॥ हर जगह सत्कार हो, राज्य मान्य सरदार हो। धन से भरे भंडार हो, एक दान के परताप से ॥४॥ गुरु के परसाद से, करे चाशगल ऐसा जिकर । सुरलोक की सम्पत मिले, एक दान के परताप से ॥ ५ ॥
४१ चेतन बोध. ... (तर्ज-खाजा लेलो खबरिया) जीना साथ क्या यहांसे लेजावेगा। टेंर ॥ पो