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जैन सुवोध गुटका ।
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१५७ दया. .. .(तर्ज-गुलशनकी आई वहार )
मत लूटो तुम जीवोंके प्रान-प्रान मेरे प्यारे । मत० ॥टेर॥ दिलका सताना रवा नहीं है, खोलके देखो कुरान ॥ कुरान ॥१॥ गरीबों के ऊपर जुल्म करोगे, तो पहुंचोगे दोजन दरम्यान ॥ दर० ॥ २ ॥ श्रारामं प्यारा लगता है तुमको, ऐसी है
औरोंकी जान !! जान० ॥३॥ खेलते शिकारी घोड़े पे चढ़ २, देते हो गोली की तान ॥ तान० ॥४॥ जो कोई कहे दया दान की, उसपे न रखते हो कानं ॥ कान० ॥ ५ ॥ जूतियों की नालोंसे मरते हैं प्रानी, पीते हो पानी विन छान ।। छान ॥६॥ पशुके वाल है जितने जनम में, होना पड़ेगा हेरान ।। हेरान ॥ ७ ॥ मनुस्मृति अध्याय पांच में, पाठों घातिक को लिखा समान ॥ स० ॥८॥ हरे दरखत को कभी न काटो, वो भी तो रखता है जान ॥ जान० ॥ चौथमलकी नसीहतों पे, जरा तो रक्खो तुम ध्यान ।। ध्यान० ॥ १० ॥
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१५८ कन्या कलाप, . (तर्ज-दादरा, सत्य धर्म यह. सवको सुनाय जायंगे) .
कन्या पितासे जाकर पुकारीरे ।। टेर। मैने पिता सुना बुड्ढेके लंग में । शादीकी कीनी तैयारीरे ॥ कन्या० ॥११॥ यदि सच्ची हो तो मर्याद नजीने । अर्ज करूं इण वारीरे ॥२॥ यह वायका एक अवला पे गुजरा। मैं कम्पी लो बात निहा. रीरे ॥ ३॥ जहर का प्याला खुशीले पिलादो, इससे मुंसे न इन्कारीरे ॥४॥ तलवार चलाओं चाहें फांसी चंदादों। ऐसी शादीले मृत्यु प्यारीरे॥५॥ बेटीको धन ले सुखी हुआ नहीं।