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जैन सुबोध गुटका।
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नसीहत मानलो तुम, दीन दुनियां चास्ते ॥ टेर ॥ यह चन्द रोजा जिन्दगी है, गौर कर देखो जहां । ऐयाशी वनके मत शिगाड़ो दीन दुनियां वास्ते ॥ अरे० ॥१॥ रहम करना जान पर, इन्सान का यह फर्ज है । दिल सताके मत विगाड़ो, दीन दुनियां वास्ते ॥ २॥ इन्साफ पर रक्खो निगाह, रिशवत का स्थाहा छोड़दो । झूठी गवाह भर मत विगाड़ो, दीन दुनियां चास्ते ॥ ३॥ माल और भोलाद हरगिज, साथ में आते नहीं। हस करके मत विगाड़ो, दीन दुनियां वास्तं ॥४॥ हुश्न सदा रहता नहीं, दरियाके मुत्राफिक जा रहा । जिनाह करके मत विगाड़ो, दीन दुनियां वास्त ॥५॥ एक पैसे के लिये, तू खुदाकी खाता कसम । लालच में पाकर मत विगाड़ो, दीन दुनियां वास्ते ॥६॥ अगर दिल हुशियार है तो, जुलम से अव वाज श्रा। नशा करके मत विगाड़ो, दीन दुनियां वास्ते ॥७॥ दीन को जिसने विगाढ़ा, वो इन्लां नहीं हेवान है । चौथमल कहे मत विगाड़ो, दीन दुनियां वास्ते ॥८॥
१३६ गुरूपकार.
(तर्ज. नाटक) सावोजी प्राची चिदानंद के जगानेवाले, मोहकी नींदको उड़ानेवाले, करके विचार ज्ञान टेलीफोन के लगाने वाले । श्रावोजी० ॥ टेर॥ कुमता की सेजों में जाके कप्ता यह वैमान लेटा। जवानोके वीव हो अज्ञानी यह कैसे ऐंठा, अपना स्वरूप बिलारा, विषयों में धर्म हारा, ममता से फिर मारा, कैसा प्रज्ञान धारा, कहे सुमता नारी, चेतन थारी, चाल नठारी, देवो निवारी, चौथमल तो समझोन वाला भावो० ॥१॥