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जैन मुवोध गुटका ।
ने । हजरत अली पर वहार की; परनार के परसंग से ॥७॥ कुत्ते को कुत्ता काटता,कत्ल नर नर को करे । पल में महाव्यत टूटती, पर नार के परसंग से ॥ ८॥ किस लिए पैदा हुआ, अए बेहया कुछ सोच तू । कहे चौथमल अव स्थर कर, पर नार के परसंग ले।। ६ ॥
१३४ बन्धु प्रार्थना.
(तर्ज--मांड., अहो मुझ बंधव प्यारा, करुणा आणी अर्जी लो मानी जी राज ॥ टेर ॥ भरत सुणी संयम तणी, छूटी आंसु की धार । यांधव से यूं बीनवे, मत लो संयम भार ।। अहा० ॥१॥ अठाणुं संयम लियो, पूर्व पिता के पास । ऐला विचार मत करो मुझे, श्राप तो विश्वाल ॥२॥ यो सघनोई राज्य लो, छत्र चंवर दुराय । श्राप रहो संसार में, अर्ज कबूल कराय ॥३॥ शहर वनिता जावतां, पग नहीं पड़े लगार । माजी साहब ने जायने में, कई कहूं समाचार ॥ ४॥ चक्र त निज स्थान पै, आयो नहीं इण काज । करी चढ़ाई प्रावियो काई, यह अनादि रिवाज हो ॥५॥ बाहुबल कहे सुनो भरतजी, जो निकल्या मुझ वैण । गज दन्तवत् नहीं फिो कांई, यह सुरा का वैण ॥ ६॥ समझाया मानी नहीं लियो संयम हित जान । भरत गयो निज शइर वनिता, फेरी अखरिडत भान ॥७॥ उगणीले बासठ मेरे, उदियापुर चौमाल । चौथमल कहे गुरु प्रसादे, वरते लील विलास हो ॥ ८॥
१३५ दीन दुनियां वास्ते मत विगाड़ो. .
(तर्ज-या हसीना वस मदीना, करवला में तू न जा ) • अए प्यारो ! मत विगाड़ो; दीन दुनिया वास्ते । नेक