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जैन सुवोध गुटका।
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हो होश्रावे, ना पूछेफिर हुआ कर्जदार ॥ दा० ॥ ६ ॥ युवा घेल की करते हिफाजात, वुड्ढ की पूछे नहीं सार । सा०: ॥ ७ ॥ हाथ पसारे चड़ भरे पै, हुआ खाली दे लात की मार ॥ मा०॥८॥ डाक्टर चुलाके औषध भी खावे, हुश्रा मतलब न जाव दुवार ॥ दु० ॥६॥ दूधारु गाय की लात भी खाल, दे यांटो फिर लेवे वुचकार । बु० ॥१०॥ फले वृत पे घूमे हैं पक्षी, याचक भी श्राव दुवार ॥ दु०॥ ११ ॥ मतलव के गीत नारी गाती है सब मिल, मतलव से भरा संसार ।। सं० ॥१२॥ चौथमल कहे बेस्वार्थ सदगुरु, देते उपदेश हितकार ॥ हि०॥ १३ ॥
१३३ परस्त्री परिणाम. (तर्ज-या हसीना बस मदीना, करवला में तू न जा) लाखों कामी पिट चुके, परनारके परसंग से । मनिराज कहे सब ववो, परनारके परसंग से ॥टेर ॥ दीपक की लो पर पड़ पतंग, प्राण वहीं खोता सही। ऐले. कामी कट मरे, वह परनार के परसंग से ।। लाखों० ॥१॥ परनार का जो हुश्न है, मानों यह अग्नी कुण्ड सा । तन धन सबको होमते,परनार के परसंग से ॥२॥ झूठे निवाले पर लुभाना, इन्सान को लाजिम नहीं । सूजाक गर्मी में सड़, परनार के परसंग से ॥३॥ चार से सत्ताणुवा (४६७) कानून में लिखा दफा । सजा हाकिम से मिले, पहनार के परसंग से ॥ ४॥ जैन सूत्रों में मना, मनुस्मृति भी देखलो । कुरान बाएवल में लिखा, पर नार के परसंग से ॥२॥ रावण कीचक मारे गए,द्रौपदी सीया के वास्ते । मणीरथ मर नरके गया, परनार के परसंगले ॥६॥ जहर वुझी तलवार से श्रा, अयन मुलाम बदकार