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जेन सुवोध गुटका।
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, ४०३ उपदेशी पद. .(तर्जना छेड़ो गाली दूंगारे) जो श्रानन्द मंगल चाचोरे, मनावो महावीर ॥ टेर ॥ प्रभु त्रशला जी का जाया, है कञ्चन वर्णी काया । जाँके चरणा शीश नमावोरे, मनावो महावीर ॥ १॥ प्रभु अनंत ज्ञान गुणधारी, है सूरत मोहनगारी | जां का दर्शन कर सुख पावोरे, मनाचो महावीर ॥ २ ॥ या प्रभुजी की मीठी वाणी, है अनन्त सुखों की दानी । थें धार धार तिरजावोरे, मनावो महावीर ॥ ३॥ जांके शिष्य बड़ा है नामी, सदा सेको गौतमस्वामी । जो रिद्धि सिद्धि थे पावोरे ॥४॥ थारा सर्व विषन टलजावे, मन वंछित सुख प्रगटावे । फेर
आवा गमन मिटाबोरे, मनावो महावीर ।। ५ ॥ ये साल 'गुण्यासी भाई, देवास शहर के माई । कहे चौथमल गुण गावोरे, मनावो महावीर ॥ ६ ॥
....४०४ क्षमापना
(तर्ज-कन्चाली). श्री संघ से विनय कर के, आज सवको क्षमाते हैं। मन वच कर्मणा करके, आज माफी चहाते हैं। टेर ॥ उपसम सार संयम का, होय शुद्धि निजात्म की । वीरवाणी हृदय धर के, आज सबको.क्षमाते हैं ।। १ ।। अईन सिद्ध