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जैन सुवोध गुटका।
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॥३॥ कौन है मादर फादर, कौन तेरे सज्जन हैं । धन माल यहां रह जायगा, तेरे लिये तो कफन है । ऐसी जान के पाप कमावो, मती ॥४॥ साल छियासी भुसावल, आया जो सेखे काल में । चौथमल उपदेश श्रोता को, दिया बाजार में जाके होटल में धर्म गमावो मती ।।५।।
४०२ उपदेशी पद. . . [तर्ज-पूर्ववत् ]
महावीर से ध्यान लगाया करो, सुख सम्पत इच्छित पाया करो ॥ टेर ॥ क्यों भटकता जल में, महावीर-सा दुजा नहीं । त्रशला के नन्दन जक्त चन्दन, अनंत ज्ञानी है वही । उनके चरणों में शीश नमाया करो ॥१॥ जगत भूषण विगत दूपण, अधम उधारण वीर है । सूर्य से भी तेज है, सागर के सम गम्भीर है। ऐसे प्रभु को नित्य उठ ध्याया करो ॥२॥ महावीर के प्रताप से होती विजय 'मेरी सदा मरे वसीला है उन्हीं का, जाप से टले आपदों।
जरा तन मन से लोह लगाया करो ॥ ३॥ लसानी ग्यारे · ठाणा, भाया चौरासी साल है। कहे चौथमल गुरु कृपासे, "मेरे व मंगल माल है। सदा आनन्द हर्ष मनाया करो ॥४॥