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(२६८)
: जैन सुबोध गुटको ।
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श्राचारज,उपाध्याय सर्व संतों को । नमा के शीश करजोड़ी, आज सबको क्षमाते हैं ॥ २.॥ चौरासी लक्ष योनी के प्राणी भूत जीव सत्तच । प्रातमवत् समझ करके, आज सबको क्षमाते हैं ॥ ३ ॥ क्षमाना और क्षमा करना, है . सवोत्तम यही जग में । समझ के धर्म यह अपना, प्राज सबको क्षमाते हैं ॥ ४ ॥ जो गलती हुई हो मुझसे, आप क्षमजो सकल भ्राता | चौथमल शुद्ध भावों, आज सत्र को क्षमाते हैं ॥ ५ ॥ .
स्तवन नम्बर ४०५ ( तर्ज-तूही तूही याद अांबरे दर्द में ) शान्ति शान्ति शांति चाहूं, शान्ति प्रभु से शान्ति चाहूं ॥ टेक । शान्तिमयी हो जग यह सारा, सदा भावना ऐसी चाहं ॥१॥ राग द्वेप दोई दर हटा के, शान्तिमयी जीवन बना हूं ॥ २ ॥ शान्ति रूप स्वरूप है मेरा, इसी बीच में चित्त रमा हूं ॥३॥ओं३म् शान्ति ओ३म् शान्ति,इसी मंत्र से ध्यान लगा हूं.॥४॥.चौथमल कहे शान्ति जपी, मैं सुख सम्पत आनन्द फल पाहूं ॥ ५ ॥
स्तवन नम्बर ४०६. . . . . (रा- मेरे मोला की मैं तो) · वीर प्रभुका मैं तो दर्श किया । टेक ॥ हाथ जोड़