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जैन मुबोध गुटका। (२६६) कर मेघ कुंवरजी, कहे माता से श्राय । भेटे आज प्रभु को मैंने, सफल करी निज काय ॥१॥ अद्भुत वाणी,सुन कर. जाना, यह संसार असार । है स्वार्थ की दुनियां सारी, कोई न आवे लार ॥२॥ छाया घद वैराग्य हमारे, लगा. संयम भार । दीजो आज्ञा जननी गुमको, कगे न किंचित् वार ।। ३ ।। मुनि वनूगां मैं तो गाना, छोड़ी सब घरवार । सुनकर माता पड़ी जमी पर, छूटी आंसू धार ॥ ४॥ सहल नहीं है संयम जाया, है खाएडा की धार । विविध भांति समभाया पर नहीं, मानी मेघ कुंवार ॥५॥ महोत्सव करके संयम दिलाया, माता धारनी नार । मेघकुंवरजी करणी करके, पहुंचे स्वर्ग मझार ॥ ६ ॥ साल सित्यासी बारा संत मिल, पारामति में आया । गुरु हीरालाल प्रसाद चौथमल, जोड़ सभा में गाया ।। ७॥
नम्बर ४०७
तर्ज-चर्खा चला चला के ] अंघ को जला जला के, मुक्ति का राज लेंगे ॥ टेक ॥ "क्षमा का. खड्ग लेकर क्रोधादि दुश्मनों को । सम्पूर्ण नष्ट करेंगे, मुक्ति का राज लेंगे ॥ १॥ चारित्र पालने में होती है. जो कठिनता । उस से न हम डरेंगे, मुक्ति का राज.लेंगे, ।२॥ जो धर दिया है आगे, हमने कदम हमारा । पीछे