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जैन सुबोध गुटका।
न हम हटेंगे, मुक्ति का राज लेंगे॥३॥ निज देश वा हमारा, है प्राण से भी प्यारा । सुख से वहां रहेगें, मुक्ति का राज लेंगे॥ ४॥ यों चौथमल 'सुनाता, अब जागो सर्व भ्राता। सत्य सत्य हम कहेंगे, युक्ति का राज लेंगे।
नम्बर ४०८ (तर्ज-कांटो लागोरे देवरिया) श्राए रूप मुनि का करके,स्वर्ग से देव विप्र के द्वाराटे मुख पर मुंहपत्ति सोहे तिनके, रजोहरण है कांख में जिनके। कर में झोरी उज्वल उनके, नीची निगाह निहाल, श्रावत देखे पुरोहित अनगार ॥१॥ कहे पुरोहित धन्य भाग सवाया । आज मुनि का दर्शन पाया। मेरे घर तुम चरण पठाया । कर गुन ग्रान वेरायो अन्न जल, तत्र बोले अनगार ॥ २ ॥ नहीं खुशी चेहरे पर तेरे, क्या कारण कहे भक्त तुमेरे । सांच सांच जाहिर करदे रे । है सब सुख महाराज, पुत्र नहीं जिसका बड़ा विचार ।। ३॥ मत कर चिन्ता मुनि फरमाया । संत श्राङ्गण परं आया । होगा संब-श्रानन्द सवाया। दो पुत्तर होवेंगा पर वे लेगा संयम भार ॥ ४ ॥ सुन कर प्रोहित मन में हर्षाया । देवं कोल कर स्वर्ग सिधाया । चौथमल ने यह पद गाया । अब कैसे ले जन्म प्रायके सों आगे अधिकार ॥ ५॥