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जैन सुवोध गुटका।
( ३०१.)
नम्बर ४०६ . . . . . . . . (तर्ज-भजन). - एक दिन कजा. जबः आयगी, ये कोल हो जाने के. बाद । फिर बनेगा कुछ नहीं, मृत्यु निकट आने के बाद ॥१॥ पुण्य उदय नर तन मिला, खोते हो इस को इश्क में। आंसू बहाांगे वहां, मौका निकल जाने के बाद ॥२॥ सारी उमर धंधे में खोई, निज कुटुम्ब पोषन किया'। होगा लेखा पाकवत में, दम निकल जाने के बाद ॥३॥ जुल्म मस्कीनों पै करते, तुम दया लाते.नहीं। बदला देना होगा तुमको, नर्क में जाने के बाद ॥४॥ जीतेजी सुकृत न कुछ भी, हाथ से कीना नहीं । जाति रक्षा कब करो, खाख होजाने के बाद ॥ ५॥ चाहते हो मुक्ति तुम गर, पर दुख मिटाना सिखलो । अहंकार को तुम कब तजोगे, प्रीति निकल जाने के बाद ॥ ६ ॥ जाति के दुश्मन क्यों बनो, गांवों में धाड़े डाल कर । फूट को अब कव तजोगे, तादाद घट जाने के बाद ॥ ७ ॥ गुरु के प्रसाद से यों, चौथमल तुम से काहे । धर्म क्रिया कब करोगे, मनुज तन खोने के बाद ॥८॥
नम्बर ४१०.
(तर्ज-मेरे खामी बुलालो) पर नियासे प्रति लगावो मति,उनके दरपर भूलके जावो मति