________________
अन सुबोध गुटका।
(१७१)
तन मन से पडिमा वही,करणी करी उत्सायजी।
सलेखणा कर सुर हुआ, पहिले कल्प में जायजी ।। [मिलत] उपासकदसा में लिखा जिकर, महाविद पीच पावे निर्वाण ||४||
दया धर्म के झंडे नीचे, जो कोई शख्म भी प्राता है । तप संयम को धारन करके, वही मोक्ष में जाता है। भगवान और भन्नों के नीच, नहीं न्यात नात का नाता है। गुड़ लगता है सबको मीठा, जो कोई इस को खाता है।
शर इसी तरह से धर्म भक्ति, सब को तारण हारजी। उठावे उसके पापकी, भूमि पड़ी तलवारजी ॥ जहाज उतारे सकल को, नहीं करे इन्कारजी ।
केवली के वचन को, ले धारके हो पार जी ॥ [मिलत] गुरुप्रसादे चौथमल कहे, सुत्रों का देकर प्रमाण ।५ ।
२५३ रावण को विभीक्षण ने कहा..
(तर्ज-मजा देते हैं क्या यार) सुनो रावन मेरी बात, पर नार के लाने वाले ॥ टेर।। कहे लक्षा के लोग लुगाई, रावण लागो नार पराई। बांधव के नहीं समाई, अपयश के उठाने वाले ॥ सुनो० ॥१॥ यों कहे विभीषण भाई, ये क्या कुबुद्धि कमाई । कहे जगत फरी भन्याई,