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जैन सुवोध गुटका।
(२१)
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तकरार ॥ टेर। चिड़िया न तो गुलाम जीते, गुलाम बीवी से जावे हार । पुनःबीवी से बादशाह जीते, सबमें एको मुखत्यार ॥१॥ तृण मिलाय छप्पर नर छावे,पड़े नहीं जल धार । तृण के रस्से से गज वांधे, चसके नहीं लगार ||२|| देखो जल की धार बहे तो, पर्वत नांखे विदार । जिस घर मांही एको नाही, कैसे हुआ विगार ॥ ६॥ गज ने पिंज से चूहा निकारचा, करुणा कर उस बार । चूहा कूर से गज ने उवारचा, कास्तकार गयो हार ॥ ४॥ ऐका से श्रीरामचन्द्रजी, रावणंने लियो मार । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, एको जगत में सार ॥ ५ ॥
३० पाप.
(तर्ज-पनजी मुंडे चोल) - क्यों पाप कमावरे २ वरजे सत्गुरु नहीं ध्यान में लावरे । टेर ॥ पाप कर्म कर धन थे जोड़यो, कुटुम्ब मिली खाजावेरे । भोगे परभव एकलो, ज्ञानी फरमावरे ॥ १॥ छाने २ कर्म करे ज्यू, रुई में आग छिगवरे । फूटे पाप को घड़ो प्रगट, आखिर पछतावरे ॥ २ ॥ इखाई राठोड़ भव पाप किया, मरगा लोढ़ा दुख पावेरे । वीर वचन से इन्द्रभूति, देखन को जावेरे ॥ ३ ॥ धर्म रुची ने नाग श्री, कडवो तूंबो बहरावेरे । सोलह रोग हुआ तन में, मर नर्क सिधावेरे ॥ ४॥ कीड़ी सहित फल डाल्यो