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जैन सुबोध गुटका |
विभीषण सुनो राम, सीता की देऊं जमान । कष्ट सह्यो धर्म नहीं छोड़ा, बहुत गुणों की खान ॥ ८ ॥ मिलकर सारा करे वीनती, राम धरे नहीं कान | चौथमल कहे कैसे माने, होन हार बलवान ॥ ६ ॥
२८ चेतन के साथी कौन ? ( पनजी मूंडे वोल )
साथै यासीरे २ सुन प्रानी जो सत कर्म कमासीरे || || तू जाने मारे मात पिता, सुत दारा मामा मासीरे । स्वार्थ का सकल सगा, तू लीजे विमासीरे ॥ १ ॥ स्नान करे बागों में जानित, तन पोशाक सजासीरें । दर्पण में मुख देखर तू पातर नचासीरे || २ || भोगों में मद मस्त बनी तू, फूल्यो नहीं समासीरे । चटके यौवन उतर जाय, पीछे पछतासीरे ॥ ३॥ बार बार यह उत्तम नरदेहं प्रानी फिर कब पासीरे । शोभा ले संसार में, अमर रह जासीरे ||४|| खेल गोठ में साथीड़ा संग, खूब माल उड़ासीरे | सुकृत की कोई बात करे, मन में नहीं भातीरे ||५|| बोवे पेड़ बंधूल को फिर, आम कहां से खासीरे । सुख अभिलापी पाप करे, सुन आवे हांसीरे ॥ ६ ॥ दान सुपात्र देने से भव सागर तिर जासीरे । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, त बदमासीरे ॥ ७ ॥
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२६ एक्यता.
( तर्ज--मार्च )
अरज म्हारी, सुनियो सब सरदार । एको कर मेटो या