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जैन सुबोध गुटका । (३५) चुगने जावे ॥२॥ जैसे ख्वाब में बादशाहों के शिरपर छत्र धरावे । ताजिम देते हैं हुरमा उनको, चश्म खुले विरलावे ॥ ३ ॥ जैसे खेल रचत वादीगर, प्रत्यक्ष अंब दिखावे । क्षणभरमांही देखो तो प्यारे कुछ नहीं नजरांगावे ॥४॥ पुगलिक है सुख जगत का, ज्ञानी यूं फरमावे । चौथमल कहे सुनरे चेतन, नाहक तू ललचावे ॥ ५॥ . . .
५१ तम्बाखू.निषेध, ..., (मारो बनो नखरारोरे हाथी के होदे तोरण बांधसी) 'प्रीतम से पदसण नित्य उठ विनवे, मत पियो तमाखू ॥ टेंर । नान्या का माईजी, तमाखू मत पियो बरजा
आपने ॥ टेर ॥ कहता.प्रावे.लाज-घणी पण, था लेवो जद श्वास । मुंडाने तो डोडो.राखो, माने आवे.बास जी ॥१॥ पीला दाग लग्या हाथों के. पीला पड़ गया दांत चांसी से नहीं आवें निंद या, म्हाने सारी रात ॥ २ ॥ पीके' विगाड्यो प्रांगणो सरे,खुणो विगाड्यो खाय। संघ विगाड्यो वस्त्र ने सरे, कहूं केठा लंग ताय ॥३॥ तुरत हाथ लंबो कियो सरे, आग तमाखू कान । मंगत आदतं अणी सीखाई, उत्तम छुड़ाई लाज ॥ ४॥ पंडित मुख मैंने सुना . सरे, तमाल पत्र अधिकार । पीवे सों शूकर वनेस यो, दाता नरक द्वार ॥ ५ ॥ खाया पीया विना तमाखू, वादी मनें सतावे । इण कारण नान्या की वाई, मांस रयो न जावे ॥ ६ ॥ लाखों मनुष्य नहीं पिये तमाखू कई सारा मरजावे । थांके सामल जीमणों सरे, माने नहीं