________________
जन दुबोध गुटका ।
(२०५)
छोड़ो सुलताना । मत० ।।७॥ प्रिया.धन दोलत राजघानी, नहीं पाती संग दिवानीजी, अल्प मुखों पे नाहक बेखाना।। मंत० ॥८॥ मुनि चौथमल यं कईवे, नृप संयम मारग लेबेजी, पा फेवल मोक्ष सिधाना || मत० ॥६॥
२६२ विश्व मोह.
(तजदादरा) संसार है असार तू किस पे लुभा रहा, दिन चार की बहार न. किस पं लुभा रहा ॥ टेर ॥ टेदा दुपट्टा बांधक, मिजाज छा रहा । मेरे समान और ना, ऐसा दिखा रहा ।। संसार० ॥ १ ॥ मालो-योलाद देखना, फिसाद की है जड़ | इसको किया है तर्क, मजा नहीं पारहा ।। संसार० ।। २ ।। ए दिल ! तूं किसकी याद में दिवाना बन गया । क्या कोल करके पाया था, उसको विसर रहा। संसार० ॥ ३॥ गफार ने हुकम क्या, कुरान मंदिया । जुल्मों से सात वाज, अब किसको सता रहा। ।। संसार० ॥ ४॥ गुरु हीगलाली का शिष्य चायनल मया । गा 'दादरे । के बीच में, तुमको जिना सा ॥ संसार० ॥ ५॥