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जैन सुबोध गुटका. |
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गलतान, काका भोज के लिए । बे रहम. होके कत्ल का हुक्म लगा दिया || लोभ० ॥ ४ ॥ कई भूप छोड़ गये जमी, क्या तूं लेजायगा । सुन काका ने फिर भोज को पीछा बुला लिया || लोभ० ॥ ५ ॥ कहे चौथमल पुकार, गुरु कहना मानलो | अब धार के संते.प लोभ टालरे जिया ॥ लोभ० ॥ ६ ॥
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२६१ चेतनाभिमान.. ( तर्ज - बनजारा ) .
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ऐसे चेतन को समझाना, मत रख तनका अभिमाना || टेर || देखो सन्त कुमार था चकरी, गुल बंदन देख रहा कड़ी जी । दुख इन्द्र ने जिनको बखाना || मत रख० ॥ १ ॥ पुनः सूरन ख्याल नहीं कीना । कर रूप विप्रका लीनाजी | यह देख बहुत हुलसानां ॥ मत० ॥ २ ॥ सुनी राय मान बीच छाया, अधिक श्रंगार सजाया जी । बैठ सभा में छत्र धराना || मतः ॥ ३ ॥ गले मणी मोति येन के-हारा, सिर दूले चवर न्याराजी ॥ श्रत्र निरखो कहे महाराना || मत० ॥ ४ ॥ अहो मन मोहन, भूपाला, खूबसूरत हुश्न रसालाजी, सो देखत ही पलटाना ॥ मत
५ ॥ नृपति भेद सब पाई । तुरंत अशुचि भावना भाई जी । सुन रानियो का दिल घबराना ॥ मत ॥ ६ ॥ रमझम से चली झट दोड़ी, कहे मधुर बेन कर जोड़ी जी, मत म्हाने