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________________ जन पोटका | ( १७६) 1 वर्ष सोलहका अधिकार || श्री० ||१२|| देखा उनके पुण्य सवाया। तीन खंड का नाथ कहाया। शोभा करे नरनार ॥ श्री० || १३ || धर्म साज दे अधिक मुरारी । गोत्र विर्येकर के अधिकारी । यह थागम में अधिकार ||श्री ० ||१४|| गुरु प्रसाद चौथमल गये । उन्नीसे साल सत्ततर श्रावे | जोधाणे जोड़ी जिंवार ॥ श्री० ॥ १५ ॥ ... ན་ २६१ राजुल उपदेश. ( तर्ज-घरे रावण तु धमकी बताता किसे ) अरे रह नेमी ! क्यों मन को बिगाड़े, तेरे झांसे में श्राने की हूं ही नहीं । तेरा रूप इंद्र पुरिंद्र चन, तो भी मैं ललचानेकी हूँ भी नहीं || ढेर || तेन सीस मूंडा लेकिन मन न मुंडा, कह दिया वाक्य सोचा नहीं ऊंडा । पर लोक चिगदे यह लोक भृंडा, और मैं तुझे पानकी हूं भी नहीं ॥ श्ररे० ॥ २ ॥ क्यों गज चढ़ खर पर सूरत घरे, तुझे बार २ विकार पड़े । इस जीनसे तो मरना ही सरे, फिर और तो कहने की हं भी नहीं ॥ घरे || २ || कई गांव नगर पुर शहर फिरे, खूब सूरत नार पे नैंन घरे। ऐसे जो नियत तेरी बिगड़े, तो संजन पलने का है भी नहीं || अरे० ॥३॥ सती राजिमतीजी के चैन सुनी, भाए ठिकाने रहनेम मुनि । चौथमल दोनों हुए हैं गुनी, गये मोच फिर थाने के है भी नहीं || अरे० ॥ ४ ॥ 1
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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