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जैन सुबोध गुटका:।
कलकत्ता केरी, शोभा करे नर नार । सुरलोक तो मेरे दाय न आवे, तो ओरां को काई शुमार ।। २.॥ अरिहंत भगवंत ना मिलेरे, उपन्यो पंचम काल । केवल ज्ञानी न मनःपर्यवज्ञानी, नहीं मिले लब्धी का धार ।। ३ ।। चौथमल शिवपुर के काजे, रह्यो. घणो लुभाय । ज्योति में ज्योति किस दिन समाऊं सफल मनोरथ थाय ॥ ४॥
२२६ दान की महत्वता.
(तर्ज पंजी मुंडे बोल ) : .:: दान नित्य कीज़ेरे, अणी. छती लक्ष्मी को लाको लीजेरे:॥ टेर-॥ चार प्रकार है धर्म जिन्हों में, दान प्रथम कहावरे । चित्त वित, पातर शुद्ध मिल्या; संसार, घटावरे ॥ दान ।.१॥ चणा का छोड़ नदी की बेरी, पर: को ज्ञान सिखावरे । कलम किया वृक्ष :बळे: ज्यू, दानी: सुख. पावरे ॥२॥ मिथ्यात्वी से सहस्त्रगुणों फल, समदृष्टि ने दीधारे । तेथी मुनि मुनि से गणधर तेथी जिन लीधारे ॥३॥ भरयो सरोवर रन खान में,प्यासी निरधन रहावरे। .. ऐसे छत्ती पाय लक्ष्मी लास गमावरे.॥४॥ वृक्ष निष्फल
और वन्ध्या नारी; कोई. कर्म योग रह जावेरे । दया दान फल: जान कभी निष्फल नहीं जावरे ॥ ५॥ अभय दान सुपात्र दान से गोत्र तिर्थकर होरे । ज्ञाता सूत्र अध्याय