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जैन सुवोध गुटका।
पुनः महफिल में ले जाती जी, करे वेहोश नशा पिलाई ॥४॥ गुनाहों की सेज बिछाके, जुल्मों का तकिया लगाक जी, जिस पर दे तुझे लिटाई ॥५॥ ये तुझको कातिल वनावे, और वे इन्साफ करावेजी, इसे खोफ हशर का नाहीं॥६॥ कई वज़ीर बादशाह तांई, किये इसने तावे मांदीजी, दिये दोजन बीच पठाई ७॥ जरा समझ के घर में आओ,तो फिर मजा हकीकी पापोजी, दो इसका फेल मिटाई ।। ८॥ गुरु प्रसाद चौथमलं फहये, जो नसीहत पे चित्त देवेजी, फिर कमी रहे नहीं कांई ||
१०६गुरु प्रार्थना. (तर्ज-वारी जाऊरे सांवरिया तुम पर वारणारे) वारी जाऊंरे सद्गुरुजी तुम पे वारणारे । टेर ।। यह भव सिंधु अथाग भयों है, जहां चीच मेरो जहाज पड़यों है, कृपा निधान कृपाकर पार उतारनारे ॥ घारी॥ १॥ तुम ही मात पिता अरु बन्धु, परोपकारी करुणा सिन्धु । देदे सत्योपदेश, भर्म निवारणारे ॥२॥ गुरु विन जप तप करणी कैली, बिना नरेश के फौज है जैसी। पति विना झार भात पिन पालना रे॥३॥ गुरु विन कौन करे उद्धारा, तीर्थ व्रत चाहे करों हजारा। तो गुरु आशा शिर घार, काज सुधारणारे ॥४॥
आवागमन में फिर नहीं आऊं, अबके गुरुजी शिव सुख पाऊं । ऐसा मुझ शिर ऊपर पंजा डालनारे ॥५॥ गुरु हीरालालजी ने गुण कीना, चौथमल को संयम दीना । है गुरु धर्म की जहाज, फभी न विसारणारे ॥६॥