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जैन सुबोध गुटका।
(६६)
रहे, तो रहेमान फिर रहता है फब । वह बशर फिर कुछ नहीं, तू गोश्त खाना छोड़दे । सस्त० ॥१॥ जिस चीज़ से नफरत करे, वह गोश्त की पैदाश है। वह पाक फिर कैसे हुआ,तू गोश्त खाना छोड़दे ॥ २॥ गौ, बकरे, बैल, भैसा, लामों ही कई फट गए । दूध दही मंहगा हुआ, तू गोश्त खाना छोड़दे ।। ३॥ दूध में ताफत बाड़ी, वह गोश्त में है भी नहीं। पूछले कोई डाक्टरों से, गोश्त खाना छोड़दे ॥ ४॥ गोश्तखोर देवान के चिन्ह, मिलते नहीं इन्लान में नेक स्वादी मत बने, तू गोश्त खाना छोड़दे ॥ ५ ।। कुरान के अन्दर लिखा, खुराक श्रादम के लिये पैदा किया गेहूं, मेवा,तू गोश्त खाना छोड्दे॥६॥ कत्ल देवानात के विन, गोश्त कहो कैसे मिले। कातिल निज्जात् पाता नहीं, तू गोश्त खाना छोड़दे । ७॥ जैन सूत्रों वीच में, महावीर का फरमान है। माल अाहारी नर्क जावे, गोश्त खाना छोड़दे ॥८॥ जिसका मांस खाता यहां,वह उसको वहां पर खायगा मनु ऋपि भी कह गए, तू गोश्त खाना छोड़दे ॥ ६ ॥ नफ्स हरगिज नहीं मरे, फिर इबादत होती कहां। चौथमल की मान नसीहत, गोश्त खाना छोड़दे ।। १०॥
१०५ मोह.
(तर्ज-बनजारा) यह मोह शेतान सी जाई, तेने इसको बीवी बनाई टेर।। तेने इससे तबियत लगाई, भूला फरज जाल में आई जी, यह खुदा से रखे जुदाई । तेने० ॥१॥यह अच्छी पोशाक सजवा. ती, फिर इतर फूलल लगवाती जी, इसकी बड़ी बदिन खुदाई ॥२॥ तुझे मोटर वीच विठवाती, गुलशन की हवा खिलाती जी, है जाहिल इसका भाई ॥३॥ फिर अच्छा माल चखाती