________________
(२१८) जैन सुवोध गुटका । रे॥ कैसा ॥ ४॥ निज कुटुम्ब से रक्खे लड़ाई, करे वेश्या परनारी से यारीरे ॥ कैसा० ॥ ५॥ कोट पतलून पहन. सिगरेट पीवे । संग कुत्ते ले खेले शिकारीरे॥ कैसा ॥ ६ ॥ अधर्मी तो तप जप माला को फेरे, ऊंचं बने अनाचारीरे ।। कैसा० ॥ ७ ॥ शेर का गीदड़, गीदड़ का शेर वन, वीर अधीयता धारीरे ।। कैसा० ॥८॥ चौथ मल कहे पापियों के कलियुग, ज्ञानियों के सतयुग त्रिकारीरे ।। कैसा० ॥६॥
३०७ कंजूम . (तर्ज-में तो मारवाड़ को बनियो) - मैं तो मुजी साहुकार, पैसा खरचु नहीं लगार ॥टेर।। साधु संत के कबहूं न जाऊं, वे कहे वारंवार । सुकृत करलो लाभ लूटलो, मुनता जागे खार ॥ मैं० ॥१॥ दूध दही कवहूं नहीं खाऊं, जो खाऊं-तो छ छ । एक वस्त जो वस्त्र पहनूं, वर्षे चलाऊ पांच ।। मैं ॥ २ ॥, मूंजी के घर व्याह रच्यो जब, त्रिया को समझावे. घर की मिल सब गीत गायलो, सोपारियां. बच जावे ॥ मैं०॥-३ ।। मरूं तो सिखला जाऊं कुटुम्ब को, दान पुण्य नहीं करना । नहीं खाना और नहीं खिलाना, जौड़ जमी बीच धरना
मैं ॥ ४॥ कौड़ी २ संचय कर सब पर भव में लू लार गुरु प्रसादें चौथमल कहे, ऐसी लीधी धार ।। मैं ॥५॥