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जन मुशोर गुट
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थाराम के बदले, तदफते दिन बिताया है ॥टर ॥ युला ललितांग को रानी, बिठाया सेज के अन्दर । बड़ी मुहन्धन से शाई पेश, किया जो दिल में चाया है । मा० ॥१॥ श्राया नृपति उसदम, उदाजी होश दोनों का किराने का कही प्यारी, सण्डासे में गिराया है। सा० ॥२॥ ऊंच पांव नीचा सर.फंसा वह तरह उसमें । वहा सीने पे मल मृत्र, फार उच्छिष्ट खाया है । फंसा० ॥शा रहा ना माय वहां पे, हुश्न साग मुरझाया है।हुई बरसाद पानी की निकल नाली में पाया है।। फंसा || पिता सुन लेगया उसको, तनुन यह जानके अपना । करीफिर पावरिश उसको,बदन सुन्दर बनाया है। फंसा ॥ ५॥ट कही यश्च पनिकला, पुनः रानी बुलाया है। मगर जाता नहीं क्योंकि,रंज वहां पर ऊठाया है ॥ फंसा० ॥ ६ ॥ लिया गू गर्भ में वासा, तना तुम भोग की भाशा, चौथमल कहे कवर जम्न न नारी को सुनाया है।
३१४ संबोधन परदेशीको.
(त-निहारी) विषम वाट उलंघ ने परदेशी जो। पागो नर बन शहर परदेशी । योग मिल्यो सन्मंग की परदेशी को। पिलम्ब करे मन फेर परदेशी ॥१॥ ना धन बनाता