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जैन सुवोध गुटका।
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करता, थी. ऋिद्धि इन्दर जैसीरे । बादल जू विरलाय गया तू कहां तक रहे पीरे ॥३॥ पुण्य से छत्रपति हुवो माटो, हाथी घोड़ा मवसीरे । आग सुख मिले तुझको, कर करणी वैसीरे ॥ ४॥ माल खजाना धयों रहेगा, कुण लेजावा देसीरे । अंत समय थारा तनका भूषण, उतार लेसीरे॥५॥ परभव में नासीर पापी, जम हाथां थारी पेसीरे न कुंड में कर्म फल तू, कैसे सेसीरे ॥ ६ ॥ गुरू प्रसादे चौथमल कहे, या वाणी उपदेशीरे । वे ही तीरे जो जिन प्रभु को, शरणों ग्रहसारे ।। ७॥
३६ कुपुत्र लक्षण. . (तर्ज थारो नरभव निष्फल जाय जगत का खलमें) . ऐसे कुल लजावन, कलियुग में संतान है ॥ टेर ॥ पिता माता से करे लड़ाई, बोले गेर जबान है । चले नारकी आज्ञा मांही, बन रह्यो दास समान है ॥१॥ जुवा चोरी वैश्या परनारी, दुर्व्यसनों में गलतान है । कुसंगत में फिरे भटकतो, नहीं इजत को ध्यान है' ॥ २॥ माता कहे कठिन से पाला, जिसका भी कुछ ध्यान है । कुत्ती वैश्या रांड तेरा, क्या मुझ पर अहसान है ।। ३ ।। साला श्वसुर से हेत घणों, भाता से तानों तान है । धन खोई. ने करजदारहो निर्लज फिर अंज्ञान है.॥४॥ सत्संग तो खारी लागे, कुकर्म में भगवान है । चौथमल कहे प्रतीत नहीं, नहीं बोली का- परमान है ।। ५॥ . .