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जैन सुबोध गुटका।
विप अमृत ये दोनों नैन में रहावे ॥३॥ मुनि मुद्रा का दरस करे नैनन से । पांव धरे जीवों को टाल नैनन से। गौशाले की रक्षा वीर करे नैनन से । इलायची कुंवर गुरू देख तिरे नैनन से। मुनि चौथमल नैनन पैछंद सुनावे ॥४॥
३४ शिष्य प्रार्थना, (तर्ज-अम्मा सुझे छोटीसी टोपी दिलादे).
गुरू मुझे ज्ञान का घाला पिलादो, प्याला पिलादो. आला बनादो । गुरू मुझे मोहबत का शरबत पिलादो ॥टेर। सोता हुअा हूं गफलत की निंद में। हां मेरा पकड़ के पल्ला जगादो ॥ १॥ भवसिन्धु में मेरी नौका पड़ी है । आप इसे मल्लाह होके तिरादो ॥ २॥ काम क्रोध मद मोह चोर हैं । इस डाकू से मुझको बचादो ॥ ३ ॥ संसार का नाता झूठा है त्राता । मुझे मुक्ति के मार्ग लगादो ॥ ४॥ चौथमल कहे गुरूजी मुझको । ब्रशलानन्द से वेग मिलादो ।। ५॥
३५ चेतन को अनित्य की शिक्षा.
(तर्ज-पनजी मुंडे बोल ) प्राणी परदेशी २ अमर दुनियां में कुण रेसीरे टेश। मोटो पंथ संत फरमावे, तू क्यों रयो वेसीरे । मारग मांही विलम रयो, थारी बुद्धि कैसीरे ॥१॥ सुन्दर का रंग रूप में मोयो, तूं वणरयो भोग गवेषीरे । सत शिक्षा देव-रणवाराको, तू बणे द्वेपारे ॥२॥ उदेः अस्त तक राज्य