________________
जन सुरोध गुटका ।
(२३)
॥२॥ पृथ्वीराज जयचंद राठोड़ के,हुई फूट अगवाणीरे। बादशाह ने कियो राज, दिल्ली पे पानीरे ॥ ३ ॥ फूट विके या कैसी सस्ती, फूटे सर नहीं पानीरे । फूटे मोती की देखो, किमत हलकानीरे ॥४॥ संप जहां पर मिले सम्पदा, फूट जहां पर हानिरे । ऐसी जानने बुद्धिवान, तज कुत्ता तानीरे ॥ ५॥ अस्सी साल में रामपुरे, मंडी बाजारमें आनीरे । गुरु प्रसाद चौथमल यूं, केवे हित आनीरे ॥ ६॥
३३ नेत्रार्दश. (तर्ज--लावणी छोटी खड़ी) नयनन में पुतली लड़े भेद नहीं पावे, कोई सच्चा गुरु का चेला बना छन्द गावे ।। टेर । इस मन के तच्छन लच्छन सब नयनन में । यह नेकी बदी के दोनों दीप नयनन में। ये योगी मोगी की छुद्रा है नैनन में। और खुशी गमी की पहिचान है नैनन में। ये करे लाखों में चोट चूक नहीं जावे ॥१॥ यह काम क्रोध दो जालिम रहे नैनन में । ये प्रीति नीति रस दोनों वसे नैनन में। है शक्ति हटोटी बदकारी नैनन में । ये लिहाज नम्रता सभी बसे नैनन में । नैनन के वश हो प्राण पतंग गमावे ॥२॥ ये शूरवीर के तोड दीखे नैनन से । और सुगडाई के अक्षर मिले नैनन से । अष्टादश देश की लिपी लिखे नैनन से । और, वरणादिक की खास विषय नैनन से ।