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जग सोध गुटर।।
विना विद्या को मिखाने । क्या नास्तिक उन्हें बनाने को ।। करो० ॥ ३ || कोट पनलुन बूट पहन के चाले । सिगरेट का धुश्रा उड़ाने को ।। करो० ॥ ॥ में गुधरंगी संतान तुम्हारी । खुद अगवा हरा रहा दिवाने को करी ॥ ५ ॥ धार्मिक ज्ञान दिन विद्या मजल गर । ई खानी पेट भराने को ।। करी० ॥६॥ नवतत्व पदव्य न्याय सिखायो । शुद्ध श्रधा उनकी रवाने को ।। करो० ॥ ७ ॥ चौथमल कहे जिन चानी सुजानी । यही निरने सिरान को ॥ करो० ॥८॥
३२५ कर्म गति.
ति-पंजी कर्म गति भारीरे २नहीं टले कभी गुनजी नावार ॥ देर॥ मेरेब पर भेष धरे नहीं, देखा को बना । शाह को रखना को परदे छत्तर धारी नहीं ॥१॥ गजानन को राज्य तिलक, मिलने की हो रही सयालीरे । कम्मा ने ऐसी की, गले विपिन मुमारी का॥२॥ शीलवती थी सीता माता, जनक गज दलारीरे ! ने बनवाग दिया, फिरी मारी मारी की ॥३॥ सत्यधारी भिन्द्र गजा मनी नाग नारी बाप रहे मंगी के घर पर, भरे नित वारी कर्मः ॥ नगी