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जैन सुवोध गुटका।
. ३२३ जालिमों का जीवन, .. (तर्ज-गजल, इलाजे दर्द गर तुमसे मसीहा हो नहीं सकता)
__ कमी ज़ालिम फला फूजा, कहीं हमने न पाया है। मगर मुश्किल से मरते तो, निगाह में बहुत आया है ।टेरा॥ कल गुल ने दुल्हा सर पे, जो शासन जमाया है। देखलो
आज पेरों के, तले जाकर दवाया है ॥ कभी० ॥१॥ करके कैद गैरों को, खूप जिनको सताया है । वही कैदी बनी जहां में, खास दण्डा हिलाया है | कभी० ॥२॥ देने और को फांसी, समां जिसने मंगाया है। उसी फांमी से खुद उसने, प्रान देखो गंवाया है | कमी० ॥ ३॥ टिकाते पैर न भू पे, जो ऐसा मान छाया है। मिले मिट्टी में जाकर वे, निशां बाकी न रहाया है ॥ कभी० ॥४॥ शुल के शूज, फूल के फूल, यह प्रभु ने बताया है। चौथमल कहे वो चंबूल, आम किसने न खाया है। कभी० ॥ ५॥
-sxe+s३२४ ज्ञान उद्योत.
[ तर्ज दादरा] । करो कोशिश, ज्ञान पढ़ाने को ॥ टेर ॥ छोटे २ बच्चों को, ज्ञान नहीं देते । खाली रखते हो मूर्ख कहाने को ।। करो० ॥१॥ गफलत की नींद में, सोते पड़े हो । सिर उठा के तो देखो जमाने को ॥ करो०॥ २॥ ज्ञान