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________________ जग गुरोध गका (२२६) माहीं । गुरु प्रसाद चौथमल, श्रावण में जोड़ बनाईरे । साम मानी० ॥६॥ ३२२ मान निध. [नर्ड-सयाल की मान मत करना कोई इन्सान, मान से होता है नक. सान ।। टेर ।। क्रिया मान दशारण भद्र, इन्द्र उतारा यान । मुनि ने इन्द्र वही फिर, नमा चरग दरम्यान || मान॥ ॥२॥ श्याण न मानी बाहरलीजी, निज धान की जान। पि होय अहंकार तजा जब, लीना कपलशन || मान Iराकानक शंभृग चक्रवर्ती ने कीना था अभिमान बिठी सातवीं गये नर्क में, छत्रधारी मान || मान ॥३॥ मानन ज्ञान, ज्ञान दिन ध्यान, ध्यान बिना शिव स्थान हगगन मिलने का नाही,मुन जो चतुर सुजान || मानसामान से कोप, कोप से द्रोह, द्रोह नरक की खान । वहां निकली हीन दीन हो, सागम का परमामा मान० ॥ ५ ॥ सदा इस रहे गुल गुलशन में, कभी मुना नहीं कान दिवग बीच हो तीन अवस्था, पट देखलो मान || माना ॥ ६ ॥ गुरु प्रमादे चौथमल , की शिक्षा प्रदान । अभिमान तज धार नमना, दो तारन्यान ।। मान जा
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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