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जैन सुबोध गुटका।
वैर विरोध तजी आपस में, सम्प करो हितकार ॥ मिल० ॥२॥ गिन्ती बढ़ी विधवा की ज्यादा, कन्या विक्रय निवार || मिल० ॥३॥ बेटी घर पानी नहीं पीते । अब ले वीस हजार ॥ मिल० ॥ ४॥ गर्भ पात से दुष्कृत होते, फैल गया व्यभिचार ॥ मिल० ॥५॥ चौथमल कहे अब नहीं चतो, तो डूबो मंझधार ॥ मिल० ॥६॥
३२१ अभिमान त्याज्य. [तज-तरकारी ले लो मालिन आई है बीकानेर की ]
अभिमानी प्रानी, डरतो लाओरे जरा राम को टेर।। योवन धन में हो मदमादा, कणगट ज्यू रंग आणे । तेरे हित की बात कहे तो, क्यों त उलटी तानेरे । अभिमानी ॥ १ ॥ कन्या.बेची, धन लियो एंची, बात करे तूं पेची। मुरदा को ले कफन खेची, हृदे कपट की कैंचीरे । अभिमानी॥ ॥२॥ घर का टंटा डाल न्याति में, तूं तो धड़ा नखावे । अापस वीच लड़ा लोगों ने,सदर पंच बन जावेरे।।अभिमानी०॥ ॥३॥धर्म ध्यान की कहे वतावे, हम को फुरसत नाही। नाटक गोठ व्याह शादी में,देतूं दिवस विताइअभिमानी ॥४॥ उपकार कियो नहीं किसी के ऊार, खा खा तन फुलावे। हीरा जैसा मनुष्य जन्म ने, क्यों तूं घृथा गंवावरे। अभिमानी० ॥ ४ ॥ मारवाड़ में शहर सादड़ी, साल इक्यासी