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जैन सुबोध गुटका।
अंजना को पीहर में, राखी नहीं लगारीरे । हनुमान-सा पुत्र हुआ, जिनके वलकारीरे ॥ कर्मः ॥ ५ ॥ खन्दक जैसे मुनिराज की, देखो खाल उतारे । गजसुक्रमाल सिर मार सही, समता उर धारीरे ॥ कमे० ॥ ६॥ सम्बत् उन्नीसे अस्सी साल, धम्मोत्तर सेखे कारीरे । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, दया सुख कारौरे । कर्म० ॥ ७॥
TA३२६ बाग ले उपमित संसार,
(तर्ज दादरा) मत पक्षी तूं चाग में, ललचानारे ।। टेर ।। संसार मानो यह बाग लगा है, जिसमें गर्भ गुलाब महकानारे ॥ मतः॥ ॥१॥ ममता की मंहदी, और मान मोगरा । फिर अधर्म का आम लगानारे ।। मत० ॥ २ ॥ कर्म के कैले और दर्द की दाड़म । क्रोध केवड़ा वुवानारे । मत० ॥३॥ इस वाग के अन्दर, काल शिकारी | तक तक के मारे निशानारे । मत० ॥ ४॥ चारों गति के चारों दरवाजे जिसमें आते कई राणारे ।। मत०॥५॥ अय भोला हंस!
आया तूं कहां से । कहां तेरा असल ठिकानारे ।। मत० ॥ ॥ ६ ॥ चौरासी लक्ष जीवा योनी का लंवा । मोह माली है इसका पुरानारे ।। मत० ॥७॥ काम भोग फल फूल खिले हैं । जिससे इस दिल को हटानारे ॥ मत० ॥८॥ राग द्वेष दो बीज पड़े हैं। जरा रूपी यह बिल्ली का अ.नारे